Best Hindi Story : मेरे बेटे आकाश की आज शादी है. घर मेहमानों से भरा पड़ा है. हर तरफ शादी की तैयारियां चल रही हैं. यद्यपि मैं इस घर का मुखिया हूं, लेकिन अपने ही घर में मेरी हैसियत सिर्फ एक मूकदर्शक की बन कर रह गई है. आज मेरे पास न पैसा है न परिवार में कोई प्रतिष्ठा. चूंकि घर के नौकरों से ले कर रिश्तेदारों तक को इस बात की जानकारी है, इसलिए सभी मुझ से बहुत रूखे ढंग से पेश आते हैं.
बहुत अपमानजनक है यह सब लेकिन मैं क्या करूं? अपने ही घर में उस अपमानजनक स्थिति के लिए मैं खुद ही तो जिम्मेदार हूं. फिर मैं किसे दोष दूं? क्या खुशी, मेरी पत्नी इस के लिए जिम्मेदार है? अंदर से एक हूक सी उठी. और इसी के साथ मन ने कहा, ‘उस ने तो तुम्हें पति का पूरा सम्मान दिया, पूरा आदर दिया, लेकिन तुम शायद उस के प्यार, उस के समर्पण के हकदार नहीं थे.’
खुशी एक बहुत कुशल गृहिणी है जिस ने कई सालों तक मुझे पत्नी का निश्छल प्यार और समर्पण दिया. पर मैं ही नादान था जो उस की अच्छाइयां कभी समझ नहीं पाया. मैं हमेशा उस की आलोचना करता रहा. उसे मानसिक रूप से प्रताडि़त करता रहा. अपने प्रति उस के लगाव को हमेशा मैं ने ढोंग समझा.
मैं सारा जीवन मौजमस्ती करता रहा और वह मेरी ऐयाशियों को घुटघुट कर सहती रही, मेरे अपमान व अवमाननापूर्ण व्यवहार को सहती रही. वह एक सीधीसादी सुशील महिला थी और उस का संसार सिर्फ मैं और उस का बेटा आकाश थे. वह हम दोनों के चेहरों पर मुसकराहट देखने के लिए कुछ भी करने को हमेशा तैयार रहती थी लेकिन मैं अपने प्रति उस की उस अटूट चाहत को कभी समझ न पाया.
मैं कब विगत दिनों की खट्टीमीठी यादों की लहरों में बहता चला गया. मुझे पता भी नहीं चला था.
उन दिनों मैं कालिज में नयानया आया था. वरिष्ठ छात्र रैगिंग कर रहे थे. एक दिन मैं कालिज में अभी घुसा ही था कि एक दूध की तरह गोरी, अति आकर्षक नैननक्श वाली लड़की कुछ घबराई और परेशान सी मेरे पास आई और सकुचाते हुए मुझ से बोली, ‘आप बी.ए. प्रथम वर्ष में हैं न, मैं भी बी.ए. प्रथम वर्ष में हूं. वह जो सामने छात्रों का झुंड बैठा है, उन लोगों ने मुझ से कहा है कि मैं आप का हाथ थामे इस मैदान का चक्कर लगाऊं. अब वे सीनियर हैं, उन की बात नहीं मानी तो नाहक मुझे परेशान करेंगे.’
‘हां, हां, मेरा हाथ आप शौक से थामिए, चाहें तो जिंदगी भर थामे रहिए. बंदे को कोई परेशानी नहीं होगी. तो चलें, चक्कर लगाएं.’
मेरी इस चुटकी पर शर्म से सिंदूरी होते उस कोमल चेहरे को मैं देखता रह गया था. मैं अब तक कई लड़कियों के संपर्क में आ चुका था लेकिन इतनी शर्माती, सकुचाती सुंदरता की प्रतिमूर्ति को मैं ने पहली बार इतने करीब से देखा था.
उस के मुलायम हाथ को थामे मैं ने पूरे मैदान का चक्कर लगाया था और फिर ताली बजाते छात्रों के दल के सामने आ कर मैं ने उस का कांपता हाथ छोड़ दिया था कि तभी उस ने नजरें जमीन में गड़ा कर मुझ से कहा था, ‘आई लव यू’, और यह कहते ही वह सुबकसुबक कर रो पड़ी थी और मैं मुसकराता हुआ उसे छोड़ कर क्लास में चला गया था.
बाद में मुझे पता चला था कि उस सुंदर लड़की का नाम खुशी था और वह एक प्रतिष्ठित धनाढ्य परिवार की लड़की थी. उस दिन के बाद जब कभी भी मेरा उस से सामना होता, मुझ से नजरें मिलते ही वह घबरा कर अपनी पलकें झुका लेती और मेरे सामने से हट जाती. उस की इस अदा ने मुझे उस का दीवाना बना दिया था. मैं क्लास में कोशिश करता कि उस के ठीक सामने बैठूं. मैं उस का परिचय पाने और दोस्ती करने के लिए बेताब हो उठा था.
मेरे चाचाजी की लड़की नेहा, जो मेरी ही क्लास में थी, वह खुशी की बहुत अच्छी सहेली थी. मैं ने नेहा के सामने खुशी से दोस्ती करने की इच्छा जाहिर की और नेहा ने एक दिन मुझ से उस की दोस्ती करा दी थी. धीरेधीरे हमारी दोस्ती बढ़ गई और खुशी मेरे बहुत करीब आ गई थी.
मैं जैसेजैसे खुशी के करीब आता जा रहा था, वैसेवैसे मुझे निराशा हाथ लगती जा रही थी. मैं स्वभाव से बेहद बातूनी, जिंदादिल, मस्तमौला किस्म का युवक था लेकिन खुशी अपने नाम के विपरीत एक बेहद भावुक किस्म की गंभीर लड़की थी.
कुछ ही समय में वह मेरे बहुत करीब आ चुकी थी और मैं उस की जिंदगी का आधारस्तंभ बन गया था, लेकिन मैं उस के नीरस स्वभाव से ऊबने लगा था. वह मितभाषी थी, जब भी मेरे पास रहती, होंठ सिले रहती. जहां मैं हर वक्त खुल कर हंसता रहता था, वहीं वह हर वक्त गंभीरता का आवरण ओढे़ रहती.
दिन गुजरने के साथ जैसेजैसे उस के व्यक्तित्व का यह पहलू मेरे सामने आ रहा था वैसेवैसे उस के प्रति मेरा मोहभंग होता जा रहा था. जहां वह मानसिक रूप से दिन पर दिन मेरे करीब आती जा रही थी, वहीं मैं जानबूझ कर अपने को उस से दूर करता जा रहा था, क्योंकि मैं जानता था कि उस के और मेरे रिश्ते का कोई भविष्य नहीं है. मुझे एहसास होता जा रहा था कि यदि हम ने शादी कर ली तो मैं उस के साथ कभी सुखी नहीं रह पाऊंगा. यह सोच कर मैं ने धीरेधीरे उस से मिलना कम कर दिया. लेकिन नेहा से मुझे पता चला कि मेरे इस रवैये से वह बहुत दुखी और परेशान रहने लगी थी, क्योंकि वह मुझ से भावनात्मक तौर पर जुड़ चुकी थी.
नेहा ने तो मुझे यह भी बताया कि अगर मैं खुशी से शादी नहीं करूंगा तो वह अपनी जान दे देगी, लेकिन किसी और लड़के से शादी नहीं करेगी. नेहा की इस बात से मैं परेशान हो गया था, और एक दिन खुशी को मैं ने अपने और उस के विरोधाभास के बारे में बताया कि हम दोनों के स्वभाव में जमीनआसमान का अंतर होने की वजह से वह कभी मेरे साथ सुखी नहीं रह पाएगी. इसलिए बेहतर यही होगा कि हम अपने रास्ते अलग कर लें.
मेरी इस बात को सुन कर खुशी बहुत रोई थी और उस दिन घर जा कर उस ने अपने दोनों हाथों की नसें काट कर खुदकुशी करने का प्रयास किया था.
उस दिन खुशी के घर वालों को मेरी और खुशी की दोस्ती के बारे में पता चल गया. अगले ही दिन उस के घर वाले उस की और मेरी शादी का प्रस्ताव ले कर मेरे मातापिता से मिले थे.
नेहा ने मेरी और खुशी की दोस्ती के बारे में पहले ही मेरे मातापिता को सबकुछ बता दिया था, सो मेरे मातापिता ने मेरी राय बिना पूछे उस से मेरा रिश्ता पक्का कर दिया था. बाद में मैं ने अपने मातापिता से इस रिश्ते को तोड़ने की लाख मिन्नतेंकीं लेकिन उन्होंने मेरी बातों पर ध्यान नहीं दिया और आखिरकार मेरी शादी खुशी से हो गई.
विवाह के बाद खुशी ने मुझे वे सारी खुशियां दी थीं जिन की एक पति को अपने पत्नी से अपेक्षा होती है. शादी के बाद के पहले 2-3 वर्ष बहुत अच्छे बीते. वक्त के साथ मैं एक प्यारे से बेटे का पिता बन गया था. उस को गोद में उठा कर मैं बेपनाह खुशियों से भर जाता. उसे लाड़दुलार कर मुझे बहुत सुकून मिलता लेकिन लगभग 3 सालों के विवाहित जीवन के बाद हमारे दांपत्य जीवन में कुछ ठहराव सा आने लगा था. हमारे संबंधों में एकरसता और ऊब की शुष्कता पसरती जा रही थी.
मैं शुरू से ही रसिक स्वभाव का था. नईनई लड़कियों से दोस्ती करना मेरा प्रिय शगल था.
गुवाहाटी में मेरा काफी पुराना अच्छा- खासा साडि़यों का शोरूम था. मुझे व्यापार के लिए अधिक समय नहीं देना पड़ता था, पुराने कर्मचारी मेरी दुकान बहुत अच्छी तरह से संभाल रहे थे. गुवाहाटी के अलावा शिलांग में भी मेरा साडि़यों का एक बड़ा शोरूम था, सो मैं सप्ताह में एक बार शिलांग जरूर जाया करता था. वहां कई लड़कियां मेरी मित्र थीं. शिलांग में एक दोस्त के यहां मेरा परिचय फ्लोरेंस नाम की एक खासी जाति की लड़की से हुआ था. पहली ही नजर में वह लड़की मेरी निगाहों में चढ़ गई थी. उस से पहले मैं जितनी खासी लड़कियों के संपर्क में आया वे सब महज कागजी गुडि़याएं थीं, जिन के जीवन का उद्देश्य सिर्फ मौजमस्ती तथा सैरसपाटा हुआ करता था, लेकिन फ्लोरेंस बेहद जिंदादिल और बिंदास होने के साथसाथ मानसिक रूप से बहुत परिपक्व थी. वह कभी अर्थहीन बातें नहीं करती थी. उस का व्यक्तित्व बहुत प्रभावशाली था.
एक दिन बातों ही बातों में फ्लोरेंस ने मुझे बताया कि वह एक अच्छी नौकरी की तलाश में है, क्योंकि वह कंपनी, जिस में वह काम कर रही थी, उस की शिलांग की शाखा बंद होने वाली थी.
फ्लोरेंस ने जैसे ही मुझे यह बताया मैं ने उसे अपने शिलांग वाले साड़ी के शोरूम में मैनेजर के पद पर रख लिया था. अब जैसेजैसे मैं उस के संपर्क में आ रहा था, मेरा उस के प्रति खिंचाव बढ़ता ही जा रहा था. दूसरी लड़कियां जहां मेरी अमीरी और आकर्षक व्यक्तित्व की वजह से मेरे आसपास तितलियों की तरह मंडराया करती थीं वहीं फ्लोरेंस मुझ से पर्याप्त दूरी बनाए रखती, जिस की वजह से मैं उस की ओर शिद्दत से खिंचता जा रहा था.
इधर उस की ओर मेरे खिंचाव का एक कारण और था. फ्लोरेंस के नाम कई एकड़ जमीन थी. अगर मैं फ्लोरेंस से रिश्ता कायम कर लेता तो मैं उस की जमीन का मालिक बन जाता. सो जमीन के लालच में मैं उस से रिश्ता कायम करना चाहता था और एक दिन मुझे वह मौका मिल गया जिस की मुझे चाहत थी.
उस दिन फ्लोरेंस मेरे पास बहुत खराब मूड में आई और मेरे कुरेदने पर रो पड़ी. मुझ से बोली, ‘मेरे भाई बहुत जल्लाद हैं. हम खासियों में मां परिवार की मुखिया होती है. बेटियां वंश आगे चलाती हैं. बेटियों को ही मां की जमीनजायदाद मिलती है. मैं अपनी मां की इकलौती बेटी हूं. इसलिए मां की सारी जमीन मुझे मिली है. मेरे दोनों भाइयों की निगाहें मेरी जमीन पर उगने वाले फलों से होने वाली आमदनी पर गड़ी हुई हैं.
‘मैं तो नौकरी पर आ जाती हूं तो मेरे भाई ही खेतों में मजदूरों से काम करवाते हैं. खेती से होने वाली आमदनी पर अपना नियंत्रण रखने के लिए मेरे भाई मेरी शादी एक निकम्मे, नाकारा खासी आदमी से कराने पर जोर दे रहे हैं.’
उसे इस तरह रोते देख मैं ने उसे अपनी बांहों में भर लिया और उस से बोला, ‘अरे, मेरे होते हुए तुम क्यों चिंता करती हो? मैं तुम्हारे भाइयों से बातें करूंगा और उन्हें धमकाऊंगा. तुम बिलकुल भी मत डरो. मेरे होते हुए कोई तुम पर अपनी मरजी नहीं थोप सकेगा.’
यह कह कर मैं ने उसे चूमना शुरू कर दिया. तब फ्लोरेंस ने मेरे चंगुल से छूटने के लिए बहुत हाथपांव मारे लेकिन उस दिन मेरे ऊपर उस का नशा इस कदर हावी था कि मैं ने उस की एक न सुनी और आखिरकार कुछ प्यार और कुछ जोरजबरदस्ती करते हुए मैं ने उसे आत्मसमर्पण करने पर विवश कर दिया. उस दिन मैं ने महसूस किया कि मेरी इस जबरदस्ती से फ्लोरेंस बहुत अधिक नाराज नहीं थी. धीरेधीरे वह मुझे दिलोजान से चाहने लगी थी.
फ्लोरेंस के शोख बिंदास व्यक्तित्व के सामने खुशी का सीधासादा व्यक्तित्व मुझे नीरस लगने लगा था. फ्लोरेंस बातें करने में इतनी वाक्पटु थी कि मामूली बात को भी वजनदार और आकर्षक बना कर सामने रखती. मुझे उस से महज बातें करना बहुत अच्छा लगता था.
अब व्यापार के काम के बहाने मैं हफ्तों फ्लोरेंस के घर पड़ा रहता था. धीरेधीरे शिलांग के साडि़यों के शोरूम की पूरी बागडोर उस ने अपने हाथों में ले ली थी. इधर मुझे यह खुशखयाली भी रहने लगी कि फ्लोरेंस की सारी जमीन अब मेरी है. मैं ही उस का असली मालिक हूं.
फ्लोरेेंस से मेरे संबंधों की खबर खुशी और मेरे परिवार वालों को लग गई थी जिस की वजह से खुशी बहुत दुखी रहने लगी थी. मैं जब भी घर जाता, वह मुझ से कहती, ‘देखो, तुम क्यों उस खासी युवती को इतनी अहमियत दे रहे हो? क्या मुझे और मेरे बेटे को तुम्हारा साथ, तुम्हारा वक्त नहीं चाहिए? आज तुम मानो या न मानो पर देखना, एक दिन वह खासी औरत तुम्हारा साडि़यों का शोरूम हड़प लेगी. तुम ने यहां का शोरूम भी नौकरों के भरोसे छोड़ दिया है. वहां की आमदनी पहले से आधी रह गई है. तुम क्यों अपना सर्वनाश करने पर तुले हुए हो?’
खुशी की बातें सुन कर मैं गुस्से में भर उठा था और उस को चांटा मार कर घर से बाहर निकल आया था.
उसी दिन मैं शिलांग चला गया था. समय पंख लगा कर उड़ता चला गया और मेरा बेटा बड़ा हो चला था. जैसेजैसे वह समझदार होता जा रहा था, वह भी मुझ से दूर होता जा रहा था. मैं उसे अपने करीब लाने की भरसक कोशिश करता, पर वह मुझ से हमेशा अनमना सा रहता और अजनबियों की तरह पेश आता.
फ्लोरेंस से भी मेरा एक बेटा था जिसे मैं बेहद प्यार करता था. जैसेजैसे वह बड़ा हो रहा था वह भी मेरे नियंत्रण से बाहर होता जा रहा था.
इधर पिछले कुछ सालों से खुशी का कुछ दूसरा ही रूप मुझे देखने को मिल रहा था. गुवाहाटी वाला साडि़यों का शोरूम अब खुशी संभाल रही थी. उस के देखभाल करने के बाद वहां की बिक्री लगभग दोगुनी हो गई थी.
अब मेरा बेटा आकाश भी बड़ा हो चला था और कालिज के बाद वह भी शोरूम में बैठने लगा था, लेकिन एक बात जो मुझे खाए जा रही थी वह यह कि खुशी के प्रति मेरे अवमाननापूर्ण व्यवहार के प्रतिक्रियास्वरूप वह मुझ से बहुत कटाकटा सा रहने लगा था और दुकान की तिजोरी की चाबी भी वह अपने पास रखने लगा था. इस वजह से मैं रुपएपैसे के मामले में उन का मोहताज हो गया था. जब कभी मुझे रुपएपैसों की जरूरत होती, खुशी ही मुझे थोड़ेबहुत रुपए दे देती. इस तरह रुपयों के लिए पूरी तरह खुशी पर निर्भर होने की वजह से मेरे आत्मसम्मान को बहुत ठेस पहुंची थी और मुझ में धीरेधीरे हीनता की भावना घर करती जा रही थी.
उधर जिस जमीन के लालच में मैं ने फ्लोरेंस से रिश्ता जोड़ा था, उस जमीन के कागजों की फ्लोरेंस ने मुझे हवा तक नहीं लगने दी. न जाने वह उन्हें कहां छिपा कर रखती थी. उस पर कई महीनों से फ्लोरेंस से मेरी गंभीर अनबन चल रही थी. वह मुझ पर बहुत जोर डाल रही थी कि मैं खुशी को तलाक दे कर उस से अदालत में शादी कर लूं. लेकिन मैं खुशी को तलाक नहीं देना चाहता था. शायद इस की वजह यह थी कि मैं खुशी से भावनात्मक रूप से बहुत जुड़ा हुआ था. इस वजह से फ्लोरेंस और मुझ में झगड़ा बढ़ता ही गया और एक दिन फ्लोरेंस और उस के बेटे हनी ने मिल कर शिलांग वाले साडि़यों के शोरूम पर पूरी तरह से अपना कब्जा जमा लिया था. मैं जब भी शिलांग वाले शोरूम में जाता, हनी मुझे तिजोरी को हाथ तक न लगाने देता.
अब मुझे एहसास होने लगा था कि फ्लोरेंस के साथ रिश्ता कायम कर के मैं ने जिंदगी के हर क्षेत्र में नुकसान उठाया था. फ्लोरेंस की वजह से मैं ने खुशी और आकाश की उपेक्षा और अवहेलना की. मैं ने अपनी पत्नी की उपेक्षा की जिस की वजह से मेरे बेटे ने मुझे कभी पिता का आदरमान नहीं दिया और मैं अपने ही घर में बेगाना बन कर रह गया.
फ्लोरेंस से रिश्ता रखने की वजह से मेरे परिवार वालों ने मुझे पुश्तैनी संपत्ति से बेदखल कर उसे खुशी और आकाश के नाम कर दिया था. मेरी लापरवाही के चलते मेरा गुवाहाटी का शोरूम भी खुशी और आकाश के कब्जे में चला गया था. अब मुझे एहसास हो रहा था कि मैं जिंदगी की लड़ाई में बुरी तरह से हार गया था.
एक वक्त था जब कुदरत ने मुझे दुनिया की हर नियामत बख्शी थी. सुशील पत्नी, एक प्यारा सा बेटा, चलता हुआ व्यापार, सामाजिक प्रतिष्ठा, लेकिन मैं ने यह सबकुछ अपनी ही बेवकूफी से गंवा दिया था. शायद यही मेरी गलतियों की सजा है, लेकिन अब मुझे अपनी गलतियों का एहसास हो चला है और इस के लिए मैं खुशी और आकाश से माफी मांगूंगा. फ्लोरेंस से अपने सारे संबंध हमेशा के लिए तोड़ लूंगा. दोबारा से शोरूम में बैठ कर व्यापार संभालूंगा. खुशी बहुत अच्छी है. वह जरूर मुझे माफ कर देगी.
शोरूम में बैठ कर काम संभालने के खयाल ने मुझे बहुत सुकून दिया था. फिर भी मन के एक कोने में कहीं यह डर छिपा हुआ था कि क्या आकाश और खुशी मुझे फिर से व्यापार संभालने देंगे? क्या वे दोनों मेरी पिछली भूलों को नजरअंदाज कर पाएंगे?
इसी डर और आशंका के साथ मैं शोरूम पर पहुंचा और खुशी से बोला, ‘खुशी, मैं ने पूरी जिंदगी तुम्हारे साथ बहुत अन्याय किया. अपने गलत आचरण से तुम्हारे दिल को बहुत दुखाया. मैं वादा करता हूं कि पुरानी भूलों को अब कभी नहीं दोहराऊंगा. मैं ने फ्लोरेंस और हनी से सारे रिश्ते तोड़ लिए हैं. बस…तुम मुझे एक बार माफ कर दो.’
खुशी तो कुछ नहीं बोली लेकिन आकाश बोल पड़ा, ‘अब आप को अपनी गलतियों का एहसास हो रहा है. मेरी मां ने कितने दिन और कितनी रातें आप की वजह से रोरो कर गुजारी हैं, यह मैं ने अपनी आंखों से देखा है और अब आप माफी मांग रहे हैं. नहीं, बिलकुल नहीं. आप हमारी माफी के बिलकुल भी हकदार नहीं हैं. इतने सालों तक हम ने बिना आप के सहारे के अकेले, अपने दम पर जिंदगी जी है, आगे भी जी लेंगे.
अब आप कारोबार संभालने की बात कर रहे हैं, जबकि पहले आप ने ही सारा कारोबार चौपट कर दिया था. यह शोरूम बंद होने के कगार पर आ पहुंचा था. आप यहां से जाइए, हम दोनों की जिंदगी में अब आप की कोई जगह नहीं है.’
आकाश की इन कड़वी पर सच बातों को सुन कर मेरा दिल बैठ गया और मैं ने हताश कदमों व टूटे दिल से वापस लौटने के लिए कदम बढ़ाए थे कि तभी खुशी बोल पड़ी, ‘आकाश बेटा, पापा से ऐसा नहीं कहते. गलतियां किस से नहीं होतीं? पापा को अपनी गलतियों का एहसास हो गया, यही बहुत है. सुबह का भूला शाम को घर आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते. हां, पर अब आप को मेरी एक बात माननी पडे़गी कि आप भविष्य में फ्लोरेंस और हनी से कोई रिश्ता नहीं रखेंगे और न उन से मिलने शिलांग जाएंगे.’
‘खुशी, अगर तुम्हें मेरी बातों पर यकीन है तो मैं तुम्हारी कसम खा कर कहता हूं कि भविष्य में मैं उन से कोई संबंध नहीं रखूंगा. मैं ने उन से हमेशाहमेशा के लिए अपने रिश्ते तोड़ लिए हैं.’
यह सुन कर खुशी के चेहरे पर संतुष्टि के भाव परिलक्षित हुए. फिर अपनी कुरसी से उठते हुए उस ने मुझ से कहा, ‘यह जगह आप की है. आप आइए, यहां बैठिए.’
मैं एक बार फिर खुशी की अच्छाइयों के सामने नतमस्तक हो गया था. मुझ में एक बार फिर से जिंदगी जीने की तमन्ना जाग उठी थी.
लेखिका – रेणु दीप