प्रफुल्ल ने बीमार मां की तीमारदारी में कोई कोरकसर नहीं छोड़ी. अपने कर्तव्य के प्रति इतने सजग होने के बावजूद प्रफुल्ल मां से बात नहीं करता था. आखिर प्रफुल्ल की मां से ऐसी क्या नाराजगी थी कि उन से अबोला ही कर लिया था?
प्रफुल्ल की मम्मी अकसर बीमार रहती थीं. दमे की मरीज तो वे थीं ही, किंतु इस बार तो वे ऐसी बीमार पड़ीं कि उन्होंने बिस्तर ही न छोड़ा. टायफाइड होने के बाद वे संभल ही नहीं पाईं कि फिर से बुखार हो गया. आंखें अंदर को धंस गईं, गाल पिचक गए, बिस्तर पर पड़ीपड़ी टुकुरटुकुर देखने लगीं.
प्रफुल्ल ने अपनी मम्मी के इलाज में जरा भी लापरवाही नहीं बरती थी. अच्छे चिकित्सक से उन का इलाज करवाया था. नर्सिंगहोम में भरती भी करा दिया था. दिनोंदिन हालत बिगड़ने पर उस ने एलोपैथिक पद्धति के बजाय होम्योपैथिक चिकित्सा का सहारा लिया था. एक वैद्यराज के निर्देशानुसार काढ़ा उबालउबाल कर भी मम्मी को दिया था. मम्मी की हालत गिरती ही गई थी. सारे नातेरिश्तेदार खबर लेने आने लगे. छोटी बहन आभा तो महीनेभर से मम्मी के पास ही थी.
प्रफुल्ल ने खर्चे की परवा नहीं की थी. अपनी पत्नी एवं बच्चों से भी उस ने यही आशा की थी. उन सभी को उस ने सजग रहने की सख्त हिदायत दे रखी थी. मम्मी को उन्होंने कभी अकेला नहीं छोड़ा था. अपने कर्तव्य के प्रति इतना सजग होने के बावजूद प्रफुल्ल मम्मी की बीमारी में उन से दूरदूर ही रहा था. उस ने कोई बात तक नहीं की थी. दूर रहते हुए वह सारे सूत्र संभालता रहा. प्रफुल्ल के इस अनोखे व्यवहार का कारण था अपनी मम्मी से लगभग एक वर्ष से चल रहा ‘अबोला.’ उस ने मम्मी से बातचीत बंद कर दी थी.
हुआ यों था कि सालभर पहले प्रफुल्ल के पापा के निधन के बाद पापा के स्थान पर प्रफुल्ल का नाम सरकारी कागजों में चढ़ाया जा रहा था. उस समय प्रफुल्ल की मम्मी ने प्रफुल्ल को सलाह दी थी कि आभा की माली हालत ठीक नहीं है, इसलिए उस की सहायता के लिए वह खेती की जमीन में से कुछ हिस्सा बहन को दे दे.
यह सलाह प्रफुल्ल को नहीं सुहाई क्योंकि आभा के पति ने अपनी पैतृक संपत्ति में से अपनी बहनों को कुछ नहीं दिया था. इसीलिए प्रफुल्ल ने दलील दी थी कि आभा ने अपनी ननदों को यदि पैतृक संपत्ति में से हिस्सा दिया होता तो वह अपने पिता की संपत्ति में से हिस्सा लेने की हकदार होती. उसे अपनी मम्मी की यह बात बनावटी लगी थी. उसे मम्मी की इस बात में बेटी के प्रति पक्षपात नजर आया.बे टे के बजाय उन्हें अपनी बेटी ही अधिक लाड़ली रही थी. उस के विवाह में भी उन्होंने प्रफुल्ल के विवाह से कहीं अधिक खर्च किया था, पापा जब हाथ खींचने लगे थे तो मम्मी ने उन्हें उदार बनने के लिए विवश किया था. पापा के न रहने पर भी उसी राह चलती रहीं, आभा को जमीन दिलवाने को आमादा रहीं.
प्रफुल्ल ने मम्मी की सलाह अनसुनी कर दी. मम्मी एवं आभा दोनों जब सहमतिपत्र पर हस्ताक्षर करने में थोड़ी झिझकी थीं तो उस ने साफ शब्दों में कह दिया था कि वह पूरी जमीनजायदाद का मालिक बनेगा, नहीं तो कुछ भी नहीं लेगा. तब मम्मी और आभा ने ?ां?ाला कर हस्ताक्षर कर दिए थे- मम्मी और बहन के इस व्यवहार ने उस के मन में गांठ लगा दी थी. सारी जमीनजायदाद का मालिक बन जाने पर भी वह उन के प्रति सहज नहीं हो पाया था. उसे एक फांस सी चुभती रही थी. उस ने ऐसी कौन सी अनुचित मांग की थी. वे दोनों सहज ढंग से सहमतिपत्र पर हस्ताक्षर कर देतीं तो उस के मन में फांस न चुभती, मगर उन दोनों ने ?ां?ाला कर पत्र पर हस्ताक्षर कर यह जताया था कि उन दोनों ने उस पर जैसे कोई एहसान किया है.
इस घटना के कुछ महीने बाद ही प्रफुल्ल के मन में पड़ी गांठ पर दूसरी गांठ भी पड़ गई थी. हुआ यों था कि एक असामी के आने पर प्रफुल्ल के पिताजी की तिजोरी खोली गई थी, जिस में रेहन रखे गए गहने रखे जाते थे. उस के पिताजी गहने रेहन रख कर कर्ज देते थे. लेनदेन का यह कारोबार उन के निधन के बाद बंद हो गया था, इसीलिए तिजोरी को खोलने की नौबत नहीं आई थी.
प्रफुल्ल का मन तो हुआ था कि इस तिजोरी को खोल कर लेनदेन का हिसाब साफ कर दिया जाए मगर तिजोरी की चाबी मम्मी के पास होने से वह तिजोरी खोल नहीं पाया था और मम्मी से चाबी मांगने में उसे संकोच हुआ था. कर्जदार असामी के आने से मम्मी को तिजोरी का ताला खोलना पड़ा था. इसी समय उन्होंने तिजोरी में रखे अन्य गहने निकलवा कर उन के हिसाबकिताब की जांच कराई थी. जांच करने पर रेहन रखे जिन गहनों की रेहन की अवधि समाप्त हो गई थी उन का बंटवारा उन्होंने भाईबहन में अपने हाथ से कर दिया था पर इस बार उन्होंने प्रफुल्ल की सहमति नहीं ली थी. उन्होंने खुद ही निर्णय लिया था. उन्होंने प्रफुल्ल से यही कहा था कि ये गहने तो पराए हैं, इन में से आभा को देने में कोई हर्ज नहीं है. गहनों के इस बंटवारे ने प्रफुल्ल के मन पर पड़ी गांठ को और भी मजबूत कर दिया था.
अपनी लाड़ली बेटी को उन्होंने गहनों में से बेटे के बराबर हिस्सा दे दिया. उन्होंने अपने बेटे पर अविश्वास किया, सोचा कि जिस तरह उस ने अचल संपत्ति में से आभा को हिस्सा नहीं दिया तो हो सकता है गहनों में से भी न दे, यही सोच कर उन्होंने एकतरफा फैसला किया.कुछ दिनों बाद प्रफुल्ल ने अपने पिताजी की लेनदेन की लिखतपढ़त की बारीकी से पड़ताल की तो उसे लगा कि बंटवारे में आए गहने लिखतपढ़त के हिसाब से मेल नहीं खा रहे हैं. उसे संदेह हुआ कि मम्मी ने बंटवारे से पहले ही कुछ गहने तिजोरी में से निकाल कर आभा को दे दिए होंगे, क्योंकि तिजोरी की चाबी तो उन्हीं के आंचल से बंधी रहती थी.
इस बीच आभा के रहनसहन में आए बदलाव से प्रफुल्ल को लगा था कि यह सब मम्मी के गुप्तदान का ही प्रताप है. इस अनुमान से एक और नई गांठ उस के मन पर पड़ गई थी. नतीजतन, वह उन दोनों से तंग आ गया था. उस ने उन से बातें करना बंद कर दिया था. प्रफुल्ल के इस व्यवहार से चकित हो कर मम्मी ने उसे यह कहते हुए ?िड़का भी था, ‘क्यों रे मुए, मांबेटे में भी कहीं ‘अबोला’ चलता है? और यह तो बता कि तू ने अबोला किया किसलिए. बहन को जरा से गहने क्या दे दिए, इसी में तेरा मुंह फूल गया? आभा के लिए तेरे मन में जगह क्यों नहीं है? वह तेरी सौतेली बहन है क्या?’ प्रफुल्ल ने मम्मी के इन प्रश्नों का कोई उत्तर नहीं दिया था, वह तना ही रहा था.
फिर कई दिन बीत जाने के बाद भी प्रफुल्ल का अबोला जब नहीं टूटा था तो मम्मी झल्लाई थीं, ‘प्रफुल्ल, साफसाफ कह कि तू चाहता क्या है? तू कहे तो आभा से गहने वापस ले लेती हूं. तू यह अनोखा व्यवहार बंद कर. लोग सुनेंगे तो बदनामी होगी,’ किंतु प्रफुल्ल ने मम्मी की इस ? झल्लाहट पर ध्यान नहीं दिया था कोई परिणाम न निकलने पर मम्मी ने एक रोज रोंआसी हो कर प्रफुल्ल से कहा था, ‘भैया, मुझ से यदि कोई अपराध हो गया है तो मुझे क्षमा कर दे. मैं तुझ से माफी मांगती हूं.’
मम्मी के ऐसा कहने से प्रफुल्ल की पत्नी एवं उस के बच्चों को दुख हुआ था. उन्होंने भी प्रफुल्ल से कहा कि मम्मी इतना ?ाक गई हैं, अब तो आप इस झगड़े को छोडि़ए. तभी एक रोज आभा ने आ कर घटनाक्रम को नया मोड़ दे दिया था. वह गहनों की पोटली ले कर आई और अपने भाई के सामने उसे पटकते हुए बोली थी, ‘ले दादा, अपनी छाती ठंडी कर ले. देख ले, सारे गहने वापस आ गए हैं या नहीं. कोई कमी रह गई हो तो बता दे.’आभा के इस धमाके ने प्रफुल्ल के ठंडे हो रहे मनमस्तिष्क को फिर गरमा दिया था. वह सहज होतेहोते फिर असहज हो गया था.
प्रफुल्ल की पत्नी ने अपनी ननद को वे गहने लौटा दिए थे. आभा गहने वापस लेने को तैयार नहीं हुई थी मगर प्रफुल्ल की पत्नी यही कह कर गहने छोड़ आई थी कि बहन को दिए गहने भाई वापस नहीं लेता है. प्रफुल्ल अपनी मम्मी से तना हीरहा था. मम्मी का स्वास्थ्य जब बिगडऩे लगा था तब प्रफुल्ल की पत्नी ने ही उसे ?िड़का था, ‘अमरसिंह राठौर मत बनो, मम्मी का खयाल करो?’ मम्मी की उदासी प्रफुल्ल को दुखी करती रही थी, इसीलिए उस का मन करता था कि वह अपना गुस्सा थूक दे मगर वह ऐसा कर नहीं पा रहा था.
किंतु इस विषम स्थिति में भी उसे अपनी मम्मी की चिंता बराबर रही थी. मम्मी के इलाज के बारे में वह सजग रहा था. मम्मी को टायफाइड होने पर आभा जब यहां आई हुई थी तब एक रोज वह प्रफुल्ल से झगड़ी थी. उस ने भाई को आड़े हाथों लेते हुए खरीखरी सुनाई थी. ? झल्ला कर यह तक कह दिया था, ‘दादा, तेरा दिल पत्थर का है.’ आभा की इस बात ने प्रफुल्ल को जैसे कठघरे में खड़ा कर दिया था. वह आत्मविश्लेषण करने लगा था और खुद से पूछने लगा था कि उस का क्या
दोष है. क्या मम्मी ने उसे कांटे चुभोए, इसीलिए उन के प्रति उस का मन खट्टा हुआ. ऐसे आत्मविश्लेषण से व्यथित हो कर प्रफुल्ल ने अबोला समाप्त करने का मन बनाया था. एक रात के सन्नाटे में वह मम्मी के कमरे में इसी हेतु गया भी था. उस की पदचाप से मम्मी जाग गई थीं. उन्होंने हौले से पूछा था, ‘कौन है?’ मगर तब तक तो वह उन के कमरे से बाहर आ गया था. मम्मी की आवाज सुन कर प्रफुल्ल की पत्नी भी जाग गई थी. उस ने मम्मी से पूछा था, ‘क्या है, मम्मी?’
‘कुछ नहीं बहूरानी,’ मम्मी ने कहा था. इस ‘कुछ नहीं’ ने प्रफुल्ल के कलेजे पर चोट सी की थी, मगर वह फिर दोबारा उन के कमरे में नहीं जा पाया था. मम्मी की हालत जब दिनोंदिन गिरने लगी थी तब प्रफुल्ल की पत्नी ने ही उसे चेताया था, ‘देखोजी, वक्त रहते मम्मी से बोल लो, नहीं तो बाद में जिंदगीभर पछताओगे.’ प्रफुल्ल के बच्चों ने भी अपने पापा से विनती की थी, ‘पापा, दादीमां आप को याद करती हैं, कहती हैं कि आप एक बार उन्हें मम्मी कह कर पुकार लें.’
आभा ने अपने भाई को ?िड़का था, ‘दादा, तू तो बैरी से भी ज्यादा हो गया रे. मां तेरे बोल के लिए तरस रही हैं और तू उन की यह आखिरी इच्छा भी पूरी नहीं कर रहा है. तुझे हो क्या गया है.’ इन वाक्यबाणों से व्यथित प्रफुल्ल अपने मन की जकड़न से मुक्त होने का प्रयास करने लगा था. तभी एक रोज संज्ञाशून्य हुई मम्मी की चेतना लौटने पर उन का करुण स्वर उस के कानों में पड़ा. वे कराहते हुए पुकार रही थीं, ‘बेटा प्रफुल्ल?’इस पुकार को प्रफुल्ल अनसुना नहीं कर पाया. मानो अंधी सुरंग में से जैसे किसी ने उसे खींच लिया, मन की जकड़न से जैसे किसी ने उसे मुक्त कर दिया, वह भागाभागा मम्मी के कमरे में गया. मां के पलंग के पास आ कर उस ने भीगे स्वर में कहा, ‘मम्मी…मम्मी?’
मम्मी ने अपनी बो पलकें खोलीं. बेटे को पास खड़ा देख वे जैसे निहाल हो गईं, मगर उन्हें अपनी आंखों पर सहसा विश्वास नहीं हुआ. उन्हें लगा कि वे सपना देख रही हैं, इसीलिए उन्होंने पूछा, ‘कौन? प्रफुल्ल?’‘हां, मम्मी,’ प्रफुल्ल ने उन के पलंग पर बैठते हुए कहा. मम्मी ने अपने बेटे के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘बेटा, एक बार मम्मी और कहो?’ प्रफुल्ल ने भर्राए स्वर में कहा, ‘मम्मी…’ तभी मांबेटे दोनों फूटफूट कर रो पड़े.