“तुम सुनना नहीं चाहते और मैं यहां के लोगों की बातें सुनसुन कर थक गई हूं, मुझे अब नीचे उतरते भी डर लगता है कि कब कोई मुझ से कुछ कह न दे.’’ मैं किचन में काम करतेकरते पति सक्षम को सुनाने के उद्देश्य से जोरजोर से बोलती जा रही थी पर किचन के सामने ही डायनिंग टेबल पर बैठे सक्षम मेरी हर बात को अनसुना कर के अपना पूरा ध्यान पेपर में लगाए थे मानो आज उसे न्यूजपेपर पर रिसर्च करनी हो.
‘‘तुम्हें सुनाई दे रहा है न कि मैं क्या बोल रही हूं,’’ अपनी बात का उधर कोई असर न होते देख मैं एकदम उस के पास जा कर जोर से बोली, “सक्षम, पेपर हटाओ सामने से, सुनाई पड़ रहा है न तुम्हें कि मैं क्या कह रही हूं.’’
और कोई चारा न देख कर सक्षम ने पेपर हटाया और अनजान बनते हुए बोला, ‘‘हूं, क्या कहा, मैं सुन नहीं पाया.’’
‘‘सक्षम, नाटक मत करो, तुम ने सब सुन लिया है. मुझे, बस, अपनी बात का जवाब चाहिए,’’ मैं एकदम सामने सोफे पर बैठती हुई बोली.
‘‘तो उत्तर यह है कि मैं एक भी पैसा नहीं दूंगा जब तक कि मेरा स्कूटर नहीं मिल जाता. जिस को जो करना है, कर ले.’’
यह कह कर सक्षम अपनी तौलिया उठा कर बाथरूम में चले गए. मैं अकेली ही बैठी बड़बड़ाती रही, ‘कैसे समझाऊं इन्हें, 2 बच्चों के बाप होने के बाद भी कुछ सुनने को तैयार नहीं. जब पिता का ही यह अड़ियल रवैया है तो बच्चे आगे चल कर क्या करेंगे.’ खैर, अभी तो फिलहाल ब्रेकफास्ट की तैयारी करती हूं वरना दुकान जाने में देर हो जाएगी, यह सोचते हुए मेरे कदम किचन की ओर बढ़ गए.
इंसान जब दिमागी तौर पर अशांत हो तो उस का शरीर तो काम करता है पर मन कहीं औेर ही होता है. सो, मेरे हाथ तो परांठे बना रहे थे पर मन आज से 15 वर्ष पहले जा पहुंचा जब मैं संयुक्त परिवार में बहू बन कर आई थी जिस में सासससुर, जेठजिठानी, भतीजेभतीजी सभी थे. कुछ वर्षों बाद जब मेरे भी 2 बच्चे हो गए तो सब के दिलों के दायरे बड़े होने के बाद भी जगह कम पड़ने लगी. यों भी आजकल के परिवारों में पतिपत्नी तो क्या, बच्चों को भी अपना पर्सनल स्पेस चाहिए होता है, फिर यहां तो बड़े ही 6 जने थे, ऊपर से 4 किशोर होते बच्चे.
वक्त की जरूरत को समझते हुए 5 वर्षों पहले ससुरजी ने उसे यह छोटा सा 3 बीएचके फ्लैट खरीद्वा कर एक तरह से दोनों बेटों को अलगअलग कर दिया. सासससुर ने समयसमय पर दोनों के साथ ही रहना तय किया. कहना न होगा इस बंटवारे से सब को अपना पर्सनल स्पेस मिला था. सो, सभी खुश थे.
अब नए फ्लैट में एक तरह से उस की नईनवेली गृहस्थी बस रही थी. सो, सासुमां ने अपने दिल के दरवाजे खोलते हुए कहा था, ‘बेटा, तुझे इस घर में से जो चाहिए हो, वो ले जा.’ वह सिर्फ जरूरतभर का सामान ले कर इस छोटे से फ्लैट में शिफ्ट हो गई थी.
अपना घर जिस का सपना हर लड़की देखती है, उसे उस ने और सक्षम ने बड़े मन से सजाया था. बहुत बड़ी तो नहीं, 12 फ्लैट की 3 मंजिली छोटी सी सोसाइटी थी. हर फ्लोर पर 4-4 फ्लैट थे. सभी परिवार अच्छे और मिलनसार थे.
सक्षम कट्टर हिंदूवादी हैं, बातबात पर उन का हिंदुत्व जागता रहता है, अपने धर्म के अलावा सारे धर्म उन्हें बेकार लगते हैं. जबतब मेरी उन से इस बात पर बहस हो जाती है. अपने इसी हिंदुत्व के कारण फ्लैट खरीदते समय सक्षम ने सब से पहले सुनिश्चित किया कि पूरी सोसाइटी में सभी परिवार हिंदू ही हों.
मेरी सोसाइटी की सभी महिलाओं से कुछ ही समय में गहरी दोस्ती हो गई थी. मैं ने यहां की किटी पार्टी भी जौइन कर ली थी ताकि सभी सदस्यों से भलीभांति परिचय हो सके. सक्षम एक तो बहुत कम मिलनसार हैं, दूसरे, सुबह से शाम तक दुकान पर काम करने के बाद उन के पास इस सब के लिए समय भी नहीं रहता.
सक्षम यों तो बहुत सुलझे हुए इंसान हैं पर बिजनैसमैन होने के कारण पैसे के मामले में बहुत कंजूस हैं, पैसों के मामले में उन्हें घर के छोटेछोटे खर्चों का भी हिसाब चाहिए होता है. एकएक पैसा उन की जेब से बहुत मुश्किल से निकलता है. बच्चों के खर्चों को ले कर भी अकसर टोकाटाकी होती रहती. मुझे भी कहां कभी सक्षम का यह व्यवहार अखरा, हमेशा यही सोचती कि आज पैसा बचेगा तभी तो जुड़ेगा और कल काम आएगा. बच्चों को भी पैसे की अहमियत तभी समझ आएगी जब उन के खर्चों पर अंकुश लगाया जाएगा पर पिछले कुछ दिनों से तो सक्षम का यह बनिया स्वभाव ही मेरे लिए अपमान का कारण बनता जा रहा है.
जिस सोसाइटी की महिलाएं 5 सालों से दिन में दस बार मुझ से मिलने आती थीं, मेरे साथ फोन पर गपें लगाती थीं, वे आज मुझे देख कर मुंह फेर लेती हैं. पिछले एक साल से यही सब झेलझेल कर मैं पेरशान हो गई हूं. अभी मैं इसी झंझावात में उलझी थी कि डोरबेल की आवाज से मेरी तंद्रा भंग हुई, दरवाजा खोला तो सामने अध्यक्ष की कार साफ करने वाला लड़का हाथ में रजिस्टर लिए खड़ा था. मैं ने रजिस्टर हाथ में ले कर पढ़ा तो लिखा था, ‘कल रविवार को सुबह 10 बजे सोसाइटी की होने वाली मीटिंग में आप आमंत्रित हैं.’ रजिस्टर पर साइन कर के मैं वापस किचन में आ गई.
अब तक सक्षम तैयार हो कर नाश्ते के लिए डायनिंग टेबल पर आ गए थे. नाश्ता लगाते हुए रविवार की मीटिंग के बारे में मैं ने सक्षम को सूचना दी तो सक्षम बोले, “कोई जरूरत नहीं जाने की, करतेधरते तो कुछ हैं नहीं, जब देखो तब मीटिंग ही करते रहते हैं ये लोग और जब से इस मुल्ला को अध्यक्ष बनाया है तब से पूरी सोसाइटी का कबाड़ा हो गया है. क्या पूरी सोसाइटी में कोई हिंदू ऐसा नहीं था जिसे अध्यक्ष बनाया जाता. इन को इतना मानसम्मान देने की जरूरत नहीं है, एक दिन हमारे ही सिर चढ़ कर नाचेंगे.”
“जिन्हें तुम मुल्ला कह रहे हो वे सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज हैं, इस सोसाइटी के सभी लोगों से अधिक योग्य और समझदार तभी तो सर्वसम्मति से अध्यक्ष बनाया गया है उन्हें. तुम्हारे अलावा किसी को भी उन से कोई भी समस्या नहीं है. 4 सालों से गुप्ता जी थे तो अध्यक्ष, कुछ करते ही नहीं थे और तैयब जी ने तो एक साल में ही सोसाइटी का कायाकल्प कर दिया है. इतनी पुरानी होने के बाद भी यह सोसाइटी कितनी अच्छी लगने लगी है. देखा नहीं, पिछली मीटिंग में जब सैकंडफ्लोर के वर्मा जी और फर्स्टफ्लोर के गुप्ता जी आपस में इतने अधिक भिड़ गए थे कि बात हाथापाई तक पहुंचने ही वाली थी वे तैयब जी ही थे जिन्होंने न्यूट्रल भाव से सारे मामले को रफादफा कर दिया था. यही नहीं, उन की पत्नी सलीमा जी तो मेरी बहुत अच्छी दोस्त भी हैं. कितनी सुंदर और केंद्रीय विद्यालय से रिटायर प्रिंसिपल हैं वे.”
“तुम तो ऐसे उन का पक्ष ले रही हो जैसे वे तुम्हारे रिश्तेदार हों. अरे, साले पूरे देश में तो दंगा कराते रहते हैं, यहां क्या खाक मामले सुलटाएंगे. मैं तो नहीं जाऊंगा और न मेरे पास इतना फ़ालतू टाइम है कि उस मुल्ला की बातें सुनूं. तुम्हें जाना हो तो चली जाना. यों भी स्कूटर वाली घटना के बाद की लगभग सभी मीटिंग्स तुम अकेली ही अटेंड करती हो.
अपना अदालती फरमान सुना कर सक्षम दुकान चले गए पर मेरा मन बेहद अशांत हो गया. ‘कैसे सुलझाऊं इस अजीब सी समस्या को’ यह सोचते हुए मुझे एक साल पुरानी वह घटना याद आ गई जो इस फसाद की जड़ थी. उस दिन सुबहसुबह सक्षम दुकान जाने के लिए निकले थे कि नीचे पार्किंग के कोने में 3 साल से खड़े अपने पुराने स्कूटर को जगह पर न देख कर भन्ना गए और सीधे सोसाइटी के अध्यक्ष शफीक उल्ला तैयब जी के पास जा पहुंचे,
‘यहां 2 साल से मेरा स्कूटर खड़ा था, वह अब अपनी जगह पर नहीं है. लगता है चोरी हो गया.’
‘अरे जैन साहब, नाराज क्यों होते हो, आइए, अंदर आइए, बैठ कर बात करते हैं,’ तैयब जी ने बड़े विनम्र भाव से कहा. सक्षम गुस्से में कुछ नहीं देखते, सो, आवेश में बोले, ‘क्या बैठ कर बात करते हैं, सोसाइटी का मेंटिनैंस हर महीने देते हैं, फिर भी स्कूटर चोरी हो गया?’
‘मियां कैसी बात करते हैं, आप जानते हैं कि सोसाइटी मेंटिनैंस चार्ज केवल 500 रुपए प्रतिमाह है जिस में सभी फ्लैट्स की साफसफाई और लाइट जैसी आवश्यक जरूरतें ही पूरी हो पाती हैं. मैं सोसाइटी का अध्यक्ष हूं, गार्ड नहीं जो आप के स्कूटर के लिए जवाबदेह होऊं. ले गया होगा कोई कबाड़ा समझ कर, आप भी तो उसे कबाड़ में ही देते न?’ अब तैयब जी का स्वर भी तल्ख हो चुका था, साथ ही, शोरशराबा सुन कर सोसाइटी के अन्य लोग भी आ चुके थे.
‘यह मियांवियां क्या होता है, मैं सक्षम हूं, आप मेरा नाम लीजिए. आप कुछ नहीं कर सकते तो ठीक है जब तक मेरा स्कूटर नहीं मिलेगा मैं एक भी पैसा मेंटिनैंस के नाम पर नहीं दूंगा.’ यह कह कर सक्षम कार स्टार्ट कर के दुकान चले गए थे और पीछे छोड़ गए थे लोंगों की तमाम तरह की बातें. मुझे तो शाम को पूरा घटनाक्रम पता चला जब फर्स्टफ्लोर पर रहने वाली मिसेज शर्मा ने शिकायती लहजे में सारे वाकए को मिर्चमसाला लगा कर सुनाया.
उस समय मैंने सोचा था कि शाम को सक्षम को समझा दूंगी. पर रात को दुकान से वापस आने के बाद सक्षम इतने थके होते हैं कि किसी विशेष मुद्दे पर उन से बात नहीं की जा सकती. अगले दिन सुबह नाश्ते के समय जब मैं ने बात करने की कोशिश की तो सक्षम बिफर गए, ‘किस बात का मेंटिनैंस देते हैं हम, आज पुराना स्कूटर गया है, कल कार चली जाएगी तब भी ये यही कहेंगे. मुझे पहले मेरा स्कूटर चाहिए, उस के बाद ही कोई पैसा दूंगा. वैसे भी, मुझे तो लगता है कि अध्यक्ष, सचिव और कोषाध्यक्ष मिल कर गड़बड़घोटाला करते हैं. अब इस बारे में तुम भी मुझ से कोई बात नहीं करोगी,’ कह कर सक्षम नाश्ता करने लगे.
‘सक्षम, समझने की कोशिश तो करो, हम यहां रहते हैं, यहां के लोगों से कट कर नहीं रह सकते. वक्तजरूरत पर यही लोग काम आएंगे. फिर तैयब जी तथा अन्य पदाधिकारी अपना इतना समय देते हैं, तभी अपनी सोसाइटी साफसुथरी और मेन्टेन रह पाती है. वे कोई अपने लिए तो नहीं मांगते मेंटिनैंस, सोसाइटी के लिए ही न. वैसे भी फ्लैट का तो कल्चर भी यही होता है कि इंसान को केवल अपने नहीं बल्कि सब के हिसाब से चलना पड़ता है. फिर उस सैकंडहैंड खरीदे स्कूटर को तुम ने पिछले 4 वर्षों से हाथ तक नहीं लगाया है. वह तो खड़ेखड़े ही कबाड़ हो गया था. तुम भी तो उसे किसी को देने की ही बात कर रहे थे न. तो ले गया कोई बेचारा,’ मैं ने सक्षम को समझाते हुए कहा.
‘हमें किसी की जरूरत नहीं है. ये लोग कभी किसी के सगे नहीं हो सकते. देश के सभी दंगों में इन का ही हाथ होता है. मैं ने सबकुछ देखभाल कर अपना फ्लैट लिया था. रिसेलिंग वालों ने सब गड़बड़ कर दिया और 2 मुल्लों को सोसाइटी में बसा दिया. मेरा वश चले तो मैं अपनी इस सोसाइटी में किसी भी मुल्ले को नहीं रहने देता. और ये मूर्ख सोसाइटी वाले जिन्होंने उसे ही अध्यक्ष बना दिया और कोई मिला ही नहीं इन्हें. तुम्हारी फिलौसफी तुम अपने पास रखो. जब तक मेरा स्कूटर नहीं मिलता, मैं एक भी पैसा नहीं देने वाला,’ कह कर सक्षम अपना बैग ले कर दुकान चले गए. बस, उस दिन से ले कर आज तक मैं सोसाइटी मैंबर्स की उपेक्षा झेल रही थी और इस बात को अब लगभग एक साल होने जा रहा था. हर मीटिंग में सक्षम अपना वही घिसापिटा जुमला दोहरा देते हैं, ‘स्कूटर मिलेगा तो ही मेंटिनैंस दूंगा और तो ही मीटिंग में आऊंगा.’
3 महीने पहले की बात है. एक दिन जब मैं और सक्षम सुबह मौर्निंग वाक कर के लौट रहे थे कि सोसाइटी के कुछ लोगों ने हमें घेर लिया. मैं तो डर ही गई थी कि कहीं झगड़ा न हो जाए पर तैयब जी आगे आए और प्यार से सक्षम के कंधे पर हाथ रख कर बोले, ‘बेटा, आज मुझे अपने स्कूटर के कागज ला कर दे देना ताकि मैं आज थाने जा कर रिपोर्ट कर दूं और पुलिस अपनी कार्यवाही कर सके.’ उस दिन पहली बार मैं ने सक्षम का स्याह चेहरा देखा. वे कनखियों से मुझे देखने लगे क्योंकि स्कूटर का तो कोई भी कागज हमारे पास नहीं था, हम ने तो खुद ही उसे सैकंडहैंड खरीदा था और अपने नाम पर उसे करवाने में 2,400 रुपए लग रहे थे और बिना वजह इतने रुपए खर्च करना सक्षम को पसंद नहीं था. सो, इतने दिनों से स्कूटर अपने पहले मालिक के नाम पर ही चल रहा था.
‘जी, मैं भिजवाता हूं,’ कह कर किसी तरह सक्षम ने अपना पीछा छुड़ाया और घर आ गए. पहली बार सक्षम ने स्कूटर के मुद्दे पर कोई बात नहीं की. कुछ दिनों तक सक्षम ने स्कूटर के बारे में कोई भी बात नहीं की. इसी तरह जिंदगी चल रही थी और मुझे समझ ही नहीं आ रहा था कि सक्षम को कैसे समझाऊं.
एक रात जब सक्षम घर लौटे तो बहुत बेचैन से लग रहे थे. पिछले कुछ दिनों से बहुत थकान का अनुभव भी कर रहे थे. पर डाक्टर के पास जाने से कतरा रहे थे. रात को 2 बजे तो स्थिति इतनी बेकाबू हो गई कि सक्षम को तुरंत डाक्टर के पास जाने की जरूरत लगने लगी. हमारे दोनों बच्चे बाहर पढ़ रहे थे और मैं अकेली थी. तैयब जी की पत्नी मेरी अच्छी दोस्त थीं और ड्राइविंग भी अच्छी तरह कर लेती थीं, सो, मैं ने उन्हें फोन पर सक्षम के बारे में बताया.
चूंकि वे हमारे फ्लोर के जस्ट नीचे वाले फ्लोर पर ही रहते थे सो 2 मिनट में वे आ ही गए और जल्दी से हम सक्षम को ले कर हौस्पिटल पहुंचे. सच कहूं तो मैं तो इतनी बदहवास सी हो गई थी कि कुछ समझ नहीं आ रहा था. तैयब जी और सलीमा जी ने ही हौस्पिटल की सारी औपचरिकताएं पूरी कीं और सक्षम को एडमिट करवाया. तैयब जी और सलीमा जी तब तक मेरे साथ रहीं जब तक कि उसी शहर में रहने वाले सक्षम के बड़े भाई नहीं आ गए.
अगले दिन सक्षम की सारी रिपोर्ट्स आ गई थीं जिन में सक्षम को हेपेटाइटिस बी हुआ था, हीमोग्लोबिन का लैवल बहुत कम था और डाक्टर्स ने ब्लड चढ़ाने की जरूरत बताई थी. सुबहसुबह तैयब जी, सलमा तथा सोसाइटी के कुछ अन्य लोग चायनाश्ता और दोपहर का खाना ले कर हौस्पिटल आ गए. जब उन्हें पता चला कि सक्षम को ब्लड की जरूरत है तो सभी ने अपनेअपने लैवल से प्रयास किए. बड़ी मुश्किल से तैयब जी के ही एक रिलेटिव का ब्लड ग्रुप सक्षम के ग्रुप से मैच हुआ और सक्षम को चढ़ाया गया. 10 दिनों तक हौस्पिटल में रहने के बाद जब 11वें दिन सक्षम को डिस्चार्ज किया गया तो सक्षम बहुत खुश थे.
घर आते ही सलीमा चाय बना कर ले आई थीं. यही नहीं, मेरे घर की पूरी साफ़सफाई भी करवा दी थी उन्होंने. आज सक्षम ने भी सलीमा जी के हाथ की चाय पी और उन्हें थैंक्यू भी कहा. कुछ देर बैठ कर सब चले गए और मैं काम में व्यस्त हो गई. शाम को घंटी बजी, मैं ने दरवाजा खोला तो सलीमा और तैयब जी सोसाइटी के अन्य मैंबर्स के साथ केक ले कर खड़े थे. मैं चौंक गई,
“केक, क्योंकैसे?”
“आज क्या है, बताओ जरा…सब भूल गईं क्या?” सलीमा ने मुसकराते हुए कहा.
“आज, 20 जून. ओहो, हमारी शादी की 25वीं सालगिरह. अरे, सक्षम की बीमारी के चक्कर में मुझे तो कुछ याद ही नहीं रहा.”
सलीमा ने मुझे चेंज करने को कहा और टेबल पर केक व साथ लाया कुछ नाश्ता लगा दिया. जैसे ही हम दोनों केक काटने लगे तो सलीमा जी ने दोनों बच्चों को वीडियोकौल पर ले लिया. दोनों ही बड़े खुश हो गए. काफी देर तक गपें लगा कर जब सब जाने लगे तो सक्षम तैयब जी की तरफ मुखतिब हो कर बोले,
“आप लोगों को हमारे कारण बहुत परेशानी उठानी पड़ी.”
‘‘बेटा, इस में परेशानी की क्या बात है. हम सब एक परिवार हैं. 25वीं सालगिरह बारबार नहीं आती, इसलिए अच्छे मन से सैलिब्रेट करो.
बीमारीहारी तो आतीजाती रहती है.” तैयब जी की बातों से हम दोनों का ही मन प्रसन्न हो गया.
कुछ दिनों के आराम के बाद सक्षम ठीक हो गए. सोसाइटी की बात होने पर सक्षम अब प्रतिरोध करने के स्थान पर शांत हो जाया करते थे और एक दिन सक्षम स्वयं ही एक साल का 6,000 रुपया मेंटिनैंस ले कर तैयब जी के पास पहुंच गए और बोले, “सर, आप ठीक ही कह रहे थे कि स्कूटर को मैं भी कबाड़ में ही देता. इसलिए उस मुद्दे को भूल कर आप यह राशि रखिए, साथ ही, सोसाइटी के लिए यदि मैं कुछ और भी कर सकता हूं, तो प्लीज बताइएगा.’’
मैं बहुत खुश थी कि भले ही सक्षम को यह देर में समझ आया पर आया तो कि आप के शहर में परिवार में कितने ही सदस्य हों परंतु आवश्यकता पड़ने पर सब से पहले पड़ोसी ही काम आता है. इसलिए आसपड़ोस से हमेशा बना कर रखनी चाहिए, साथ ही, हिंदू, मुसलमान सब की रगों में बहने वाले खून का रंग एक ही होता है.
फ्लैट में रहते समय छोटीछोटी बातों को इग्नोर कर के, सब के हिसाब से चलना चाहिए. फिर जहां हम निवास करते हैं वहां की सुविधाओं के उपभोग के लिए निर्धारित राशि देना हर निवासी का दायित्व है. साथ ही, जो लोग सोसाइटी के लिए काम करते हैं उन पर आक्षेप लगाने के स्थान पर उन्हें सहयोग करना चाहिए.