न्यूजक्लिक के 74 वर्षीय प्रधान संपादक प्रबीर पुरकायस्थ 6 महीने जेल में रहने के बाद आखिरकार जमानत पर रिहा हो गए. सुप्रीम कोर्ट ने उन की गिरफ्तारी को अमान्य करार दिया और कहा कि जब 4 अक्टूबर, 2023 को रिमांड आदेश पारित किया गया था, तो उस से पहले प्रबीर पुरकायस्थ या उन के वकील को रिमांड की कौपी क्यों नहीं दी गई? इस का मतलब यह है कि गिरफ्तारी का आधार उन्हें लिखित रूप में नहीं दिया गया. इस लिहाज से उन की गिरफ्तारी वैध नहीं है और इस वजह से प्रबीर पुरकायस्थ की गिरफ्तारी को कोर्ट निरस्त कर उन्हें जमानत पर रिहा करने का आदेश देता है.

न्यूजक्लिक एक स्वतंत्र मीडिया संगठन है जो अपने मिशन का वर्णन ‘प्रगतिशील आंदोलनों पर विशेष ध्यान देने के साथ, भारत और उस से परे समाचारों को कवर करने के लिए समर्पित’ के रूप में करता है. प्रबीर पुरकायस्थ इस के संस्थापक होने के साथसाथ प्रधान संपादक भी हैं. इस संस्था से अनेक वरिष्ठ पत्रकार जुड़े हुए हैं. अभिसार शर्मा, औनिंद्यो चक्रवर्ती, भाषा सिंह, उर्मिलेश, सुमेधा पाल, अरित्री दास, इतिहासकार सोहेल हाशमी और व्यंग्यकार संजय राजौरा जैसे न्यूजक्लिक से जुड़े अनेक पत्रकार उन लोगों में शामिल थे, जिन के ऊपर 3 अक्टूबर 2023 को पुलिस ने छापा मारा, उन के घरों की तलाशी ली और उन के कंप्यूटर, लैपटौप, फोन आदि जब्त कर लिए. आरोप था कि न्यूजक्लिक प्लेटफौर्म से ‘राष्ट्रविरोधी प्रचार’ के लिए चीनी फंडिंग हो रही है.

ये छापेमारी 17 अगस्त 2023 को न्यूयौर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के आधार पर की गई थी. रिपोर्ट में न्यूजक्लिक वेबसाइट पर आरोप लगाए गए थे कि उस ने चीनी प्रोपेगेंडा फैलाने के लिए एक अमेरिकी करोड़पति से फंडिंग प्राप्त की है. उस समय दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा ने न्यूजक्लिक के खिलाफ केस दर्ज किया था. इस के बाद ईडी ने भी इस मामले में केस दर्ज किया था.

उक्त कार्रवाई गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम और भारतीय दंड की धारा 153 ए (विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना) और 120 बी (आपराधिक साजिश के लिए सजा) के प्रावधानों के तहत दर्ज की गई पहली सूचना रिपोर्ट पर आधारित थी. हालांकि न्यूजक्लिक ने इन सभी आरोपों का खंडन किया था. न्यूजक्लिक से जुड़े पत्रकारों के खिलाफ यूएपीए की धाराएं इसीलिए लगाई गई थीं ताकि गिरफ्तारी के बाद वो जमानत पर आसानी से छूट न सकें.

पुलिस ने न्यूज वेबसाइट के प्रधान संपादक प्रबीर पुरकायस्थ और एचआर हेड अमित चक्रवर्ती को गिरफ्तार किया. इस के बाद पुलिस ने करीब 30 स्थानों की तलाशी ली और 46 लोगों से पूछताछ की. दक्षिण दिल्ली में संस्था के कार्यालय को सील कर दिया और तमाम डिजिटल उपकरणों, मोबाइल फोन व अन्य दस्तावेजों आदि को जब्त कर लिया. मजे की बात यह है कि दिल्ली पुलिस ने इस केस में सोशल एक्टिविस्ट गौतम नवलखा और अमेरिकी कारोबारी नेविल रौय सिंघम को भी नामित किया था. जबकि गौतम नवलखा एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में 4 साल से हाउस अरेस्ट थे और हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर जमानत पर छूटे हैं.

प्रबीर पुरकायस्थ गिरफ्तारी के बाद से ही दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद थे और जमानत के लिए प्रयासरत थे. हाई कोर्ट से उन को पहले ही जमानत मिल जानी चाहिए थी मगर नहीं मिली और इस कवायत में सुप्रीम कोर्ट तक मामले को आतेआते 6 महीने का वक्त गुजर गया.

सुप्रीम कोर्ट में प्रबीर पुरकायस्थ की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कोर्ट को बताया कि 3 अक्टूबर 2023 को प्रबीर पुरकायस्थ को गिरफ्तार करने के बाद पुलिस ने उन के वकील को सूचित किए बिना दूसरे दिन सुबह 6 बजे ही जल्दबाजी में मजिस्ट्रेट के सामने पेश कर रिमांड पर ले लिया और जेल भेज दिया. शीर्ष अदालत यह सुन कर आश्चर्यचकित रह गई कि प्रबीर पुरकायस्थ के वकील को उन की रिमांड अर्जी मिलने से पहले ही रिमांड आदेश पारित कर दिया गया.

सुप्रीम कोर्ट ने पाया है कि गिरफ्तारी की प्रक्रिया जैसे कि गिरफ्तारी का आधार बताना, आरोपी को अपना वकील देने का मौका देने तक का इस मामले में पालन नहीं किया गया. कपिल सिब्बल ने कोर्ट को बताया कि जब श्री पुरकायस्थ ने इस पर आपत्ति जताई, तो जांच अधिकारी ने उन के वकील को टेलीफोन के माध्यम से सूचित किया और रिमांड आवेदन उन्हें व्हाट्सऐप पर भेज दिया, जो कतई ठीक नहीं था, क्योंकि यह जानकारी लिखित में दी जाती है.

पुलिस की जल्दबाजी पर हैरानी जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने प्रबीर पुरकायस्थ की गिरफ्तारी और रिमांड की प्रक्रिया को गैरकानूनी करार देते हुए उन्हें तुरंत रिहा करने का आदेश दिया. सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बीआर गवई की अगुवाई वाली दो सदस्यों वाली बेंच ने यह भी कहा कि पुरकायस्थ की गिरफ्तारी और उस के बाद उन्हें हिरासत में रखा जाना कानून की नजर में पूरी तरह अवैध था. पुरकायस्थ की गिरफ्तारी के समय यह नहीं बताया गया कि इस का आधार क्या था. इस की वजह से गिरफ्तारी निरस्त की जाती है.

अब जबकि प्रबीर पुरकायस्थ और गौतम नवलखा को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल चुकी है, पत्रकार संगठनों ने दोनों की जमानत का स्वागत करते हुए राजनीति कारणों से की गई इन गिरफ्तारियों की कड़े शब्दों में निंदा की है. वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव ने एक्स पर लिखा – ‘माननीय न्यायमूर्ति गण, आपने भारत के पत्रकारों को थोड़ा और निर्भय बनाने का काम किया है. न्यूजक्लिक के प्रबीर पुरकायस्थ और भीमा कोरेगांव कांड में अभियुक्त गौतम नवलखा तथा उन के कई साथियों को जमानत दे कर सर्वोच्च न्यायालय ने प्रैस की स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की आजादी और मानवाधिकारों की रक्षा की है.

‘इन दोनों अलगअलग मामलों में जिस तरह सत्ता और कानूनों का घोर दुरुपयोग कर के आलोचक आवाजजों का दमन किया गया वह भारतीय लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा था. इसी तरह के काम सरकार पर तानाशाही सोच और इरादों के आरोपों को सुदृढ़ बनाते हैं. सरकार की आलोचना, वैचारिक विरोध आतंकवाद नहीं हैं. उन के आधार पर मनगढ़ंत आरोप लगा कर आतंकवाद निरोधक कानून यूएपीए लगाना बुनियादी संवैधानिक स्वतंत्रताओं पर हमला करना है. आशा है सरकारें और जांच एजेंसियां इन फैसलों से सही सबक लेंगी.’

डिजिटल युग में एक स्वस्थ और मजबूत समाचार पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण को सुनिश्चित करने में मदद करने के इरादे से डिजिटल मीडिया संगठनों द्वारा गठित डिजिपब (DIGIPUB) न्यूज इंडिया फाउंडेशन ने भी कहा, “हम न्यूजक्लिक के खिलाफ पुलिस और एजेंसी की कार्रवाई की लगातार निंदा करते रहे हैं, जहां पत्रकारों से पूछताछ की गई, उन के उपकरणों को जब्त कर लिया गया और उन के घरों पर छापे मारे गए.

“इसी तरह पिछले साल प्रबीर पुरकायस्थ की गिरफ्तारी हुई. लोकतंत्र में कोई सरकार स्वतंत्र प्रैस के खिलाफ केंद्रीय एजेंसियों को इस्तेमाल नहीं कर सकती, खासकर उचित प्रक्रिया के अभाव में. पत्रकारों के खिलाफ कानून को हथियार नहीं बनाया जाना चाहिए, इस से उन का जीवन, स्वतंत्रता और आजीविका जोखिम में पड़ जाती है. हम खुश और आभारी हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने आखिरकार हस्तक्षेप किया है. हम सरकार से आग्रह करते हैं कि वह उन मीडिया घरानों के खिलाफ जानबूझ कर और उन्हें दबाने के लिए की जा रही कोशिशों में सावधानी और संयम बरते, जिन से वह (सरकार) सहमत नहीं हैं. हमें उम्मीद है कि प्रबीर के मामले में कानून के अनुसार निष्पक्ष सुनवाई होगी.”

उल्लेखनीय है कि 3 अक्टूबर 2023 को प्रबीर पुरकायस्थ की गिरफ्तारी के समय प्रैस क्लब औफ इंडिया ने न्यूजक्लिक के खिलाफ पुलिस कार्रवाई की कड़ी आलोचना करते हुए कहा था कि इस से प्रैस की स्वतंत्रता को बड़ा खतरा है. उसी दिन, एडिटर्स गिल्ड औफ इंडिया (ईजीआई) की कार्यकारी समिति ने वरिष्ठ पत्रकारों के आवासों पर की गई छापेमारी के संबंध में चिंता व्यक्त की थी, जिस में उन के इलैक्ट्रौनिक उपकरणों की जब्ती और दिल्ली पुलिस द्वारा पूछताछ के लिए हिरासत में लिए जाने पर सवाल उठाया था. एडिटर्स गिल्ड ने उचित प्रक्रिया का पालन करने और कड़े कानूनों के तहत धमकी के माहौल से बचने, एक कामकाजी लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और असहमति की रक्षा करने की आवश्यकता पर जोर दिया था.

नैशनल अलायंस औफ जर्नलिस्ट्स, दिल्ली यूनियन औफ जर्नलिस्ट्स और केरल यूनियन औफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स (दिल्ली यूनिट) ने भी सामूहिक रूप से 3 अक्टूबर 2023 को पुलिस छापे और पत्रकारों की गिरफ्तारी की निंदा की थी. उन्होंने मीडिया कर्मियों को निशाना बनाने और इन कार्रवाइयों में अभूतपूर्व जल्दबाजी दिखाने की निंदा करते हुए इस बात पर जोर दिया था कि मोदी सरकार का उद्देश्य प्रैस की स्वतंत्रता को दबाना है, विशेष रूप से श्रम और कृषि मुद्दों पर न्यूजक्लिक की कवरेज के बाद से सरकार बौखलाई हुई है. उन्होंने प्रैस की स्वतंत्रता पर इस कथित हमले को तत्काल रोकने का आह्वान किया था और मीडिया बिरादरी से सरकार की धमकियों के खिलाफ एकजुट होने का भी आह्वान किया था. जाहिर है न्यूजक्लिक पर पुलिस और ईडी की कार्रवाई सरकार के आदेश पर ख़बरों का मुंह बंद करने के उद्देश्य से हुई थी.

प्रैस की आजादी : भारत की लगातार गिरती साख

पिछले कुछ वर्षों में ‘दैनिक भास्कर’, ‘न्यूजलौंड्री’, ‘न्यूजक्लिक’, ‘द कश्मीर वाला’ और ‘द वायर’ जैसे मीडिया संगठनों पर सरकारी एजेंसियों की छापेमारी के बाद यह बात लगातार उठ रही है कि भारत में लोकतंत्र का दमन हो रहा है. केंद्र की भाजपा सरकार की बलपूर्वक कार्रवाइयां केवल उन मीडिया संगठनों और पत्रकारों के खिलाफ जारी हैं जो सत्ता के सामने सच बोलते हैं. विडंबना यह है कि जब देश में नफरत और विभाजन को भड़काने वाले पत्रकारों के खिलाफ कार्रवाई करने की बात आती है तो भाजपा सरकार पंगु हो जाती है.

वैश्विक मीडिया निगरानी संस्था रिपोर्टर्स विदाउट बौर्डर्स (आरएसएफ) की मई 2023 में जारी रिपोर्ट के मुताबिक विश्व प्रैस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत की रैंकिंग 180 देशों में से 161वें स्थान पर खिसक चुकी है. साल 2002 में भारत इस लिस्ट में 150वें पायदान पर था. आरएसएफ ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि भारत में सभी मुख्यधारा मीडिया अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी अमीर व्यापारियों के स्वामित्व में हैं और सरकार के समर्थन में काम करते हैं.

रिपोर्ट में कहा गया है कि मोदी के पास समर्थकों की एक ऐसी फौज है जो सरकार की आलोचना करने वाली सभी औनलाइन रिपोर्टिंग पर नजर रखते हैं और स्रोतों के खिलाफ भयानक उत्पीड़न अभियान चलाते हैं. अत्याधिक दबाव के इन दो रूपों के बीच फंस कर कई पत्रकार, व्यवहार में, खुद को सेंसर करने के लिए मजबूर हैं. पत्रकार सौफ्ट टारगेट (जिन पर निशाना लगाना आसान हो) हैं, खासतौर पर वे जो छोटे न्यूज पोर्टल्स से आते हैं. उन के पास वह सुरक्षा नहीं है जो बड़े संगठनों में मौजूद लोगों के पास है. आज पत्रकारों की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को ले कर अनेक गंभीर सवाल भारत में खड़े हैं, जिन का जवाब सरकार को देना ही होगा.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...