पढ़ेलिखे और पेशे से इंजीनियर राधेश्याम पथरी का इलाज कराने डाक्टर के पास नहीं, एक माई के दरबार गए जिसे लोग चमत्कारी देवी कहते थे. लेकिन वहां उन के साथ ऐसा क्या हुआ कि उन्हें देवीदेवताओं और तथाकथित बाबाओं से चिढ़ सी हो गई. तकरीबन 60 साल के इंजीनियर राधेश्याम शांतमन से बैठे थे. उन के मन से ऊहापोह के बादल छंट चुके थे. तभी टीवी में एक बाबा द्वारा तरहतरह के रोगों के उपचार और भूतप्रेत को उतारने का समाचार आने लगा. उस खबर को सुन कर राधेश्याम के मन में खुद की एक कहानी जीवंत हो उठी.
उन्हें बंद आंखों से खुद की फिल्म दिखाई देने लगी थी जब वे सोनोग्राफी की रिपोर्ट के लिए बड़ी चिंता में बैठे थे. रिपोर्ट के मुताबिक उन की किडनी में 2 पथरियां थीं. उन्होंने डाक्टर को दिखाया, मगर डाक्टर का कहना था कि आप की ओपन हार्ट बाईपास सर्जरी हो चुकी है. जब तक आप को ये पथरियां तंग न करें, आप इन्हें मत छेडि़ए. अभी औपरेशन की आवश्यकता नहीं है. राधेश्याम को कुछ राहत मिली थी, लेकिन वे पथरी के तेज दर्द से वाकिफ थे. बचपन के दिनों में एक बार लाख कोशिश करने पर भी पेशाब नहीं हुआ था. बहुत दर्द हुआ था. तब उन की सम?ा में कुछ नहीं आ रहा था कि आखिर हो क्या रहा है. तब तो गूगल बाबा भी नहीं थे कि गूगल सर्च कर के कुछ कारण ढूंढ़ लें. राधेश्याम रोंआसे हो गए थे. पिताजी को बताने की हिम्मत नहीं हो रही थी.
फिर बड़ी हिम्मत कर के उन्होंने अपनी माताजी को अपनी तकलीफ बताई. माताजी ने पिताजी से कहा, ‘सुनोजी, पता नहीं क्यों राधेश्याम को बहुत दर्द हो रहा है और पेशाब नहीं हो रहा. खाने में तो उस ने कुछ ऐसा खाया नहीं है.’ पिताजी को स्थिति कुछकुछ सम?ा आ रही थी. वे राधेश्याम को डांटते हुए बोले, ‘रात से तकलीफ में हो तो बताया क्यों नहीं? चलो तुरंत डाक्टर के पास.’ दर्द के मारे परेशान राधेश्याम तुरंत पिता के साथ चल दिए. जब डाक्टर के पास पहुंचे तो डाक्टर ने परीक्षण किया और बताया, ‘ब्लैडर में एक स्टोन फंस गया है, तुरंत औपरेशन करना होगा.’ डाक्टर ने उन्हें एक नली की सहायता से पेशाब करवाया. राधेश्याम ने राहत की गहरी सांस ली जैसे एक बड़ा संकट टल गया हो. उस के बाद औपरेशन किया गया और पथरी निकाल दी गई. फिर कभी पथरी नहीं हुई पर अब जीवन की संध्या में फिर पता नहीं कैसे किडनी में पथरी बन गई.
राधेश्याम अपने स्वास्थ्य के लिए बड़े चिंतित रहते. उन्होंने पथरी को निकालने के लिए होम्योपैथिक, आयुर्वेदिक, एलोपैथिक सभी तरह की दवाइयां लीं, पर वे दोनों पथरियां टस से मस नहीं हुईं. वे यूट्यूब पर तरहतरह के उपचार सुनतेदेखते. क्या खाएं क्या न खाएं की लिस्ट तैयार करते. पत्नी को खास निर्देश देते, ‘मेरे खाने में टमाटर मत डालना, पालक मत डालना. टमाटर के बीजों से पथरी बनती है.’ सभी सावधानियां बरती जातीं. कभी थोड़ा भी पेट में दर्द होता तो उपचार की गति और भी तेज हो जाती. सभी रिश्तेदारों से भी उपचार पूछे जाते. राधेश्याम हर साल सोनोग्राफी करवाते पर वे पथरियां यथावत ही मिलतीं. राधेश्याम को उन पथरियों ने मानो चुनौती दे दी थी पर राधेश्याम भी कहां हार मानने वाले थे.
वे थे इंजीनियर, समस्या को समूल नष्ट करने में चतुर. वे भी किसी न किसी तरह उन को मिटा देना चाहते थे. आखिर कोई तो इलाज होगा. कोई सी पैथी, कोई बाबा, पीरफकीर… वे सोच ही रहे थे कि उन के भतीजे विपुल का फोन आया, ‘अंकल, आप की पथरी का मैं ने सौ टका इलाज ढूंढ़ लिया है. हमारे पड़ोसी अभी उज्जैन के पास मंदिर में एक महिला के पास गए थे. उस महिला को बहुत बड़ी सिद्धि प्राप्त है. उस ने लोगों की बड़ी से बड़ी पथरी निकाली है, वह भी बिना कोई चीरफाड़ के. ‘अंकल, आप की पथरी तो बहुत छोटी सी है. आप चिंता न करें, सब ठीक हो जाएगा. बस, आप एक बार उस के पास चले जाओ.’
राधेश्याम की इंजीनियर बुद्धि कह रही थी कि ये सब ?ाठी बातें हैं पर बचपन से सुनी चमत्कारों की कहानियां कह रही थीं कि शायद सच हो. राधेश्याम के मन में ऊहापोह चलती रही थी कि आखिर क्या करें. एक तरफ पथरी निकलने का लालच मन में था, दूसरी ओर वैज्ञानिक मस्तिष्क ऐसी ऊलजलूल बातों को मानने को तैयार न था. उन्होंने अपनी पत्नी प्रियंका से पूछा, ‘क्या करना चाहिए?’ प्रियंका पढ़ीलिखी महिला थी. कहने लगी, ‘आप भी क्या बात करते हो, यह भी कोई विचारणीय बात है. ऐसे ढकोसलों में पड़ने की कोई आवश्यकता नहीं है.’
राधेश्याम बोले, ‘सुनो, अपने विपुल के पड़ोसी बिलकुल ठीक हो गए हैं. मु?ो तो लग रहा है कि कोई चमत्कारी औरत है. वह चूस कर पेट से पथरी निकाल लेती है. निकाल कर पथरी दिखाती भी है.’
प्रियंका ने कहा, ‘बहुत से लोग जादू भी दिखाते हैं न पर इस का मतलब यह तो नहीं कि वह सच होता है. मु?ो ऐसी किसी बात पर विश्वास नहीं है.’
राधेश्याम बोले, ‘चलो ठीक है, तुम कहती हो तो नहीं जाते.’ प्रियंका चाय बना कर ले आई. चाय के साथ गरमगरम पकौड़े लाजवाब लग रहे थे. राधेश्याम ने प्रियंका की तारीफ करते हुए कहा, ‘तुम तो साक्षात अन्नपूर्णा हो. क्या स्वाद है तुम्हारे हाथों में.’
चाय खत्म भी नहीं हुई थी कि मोबाइल बज उठा. फोन विपुल का ही था. वह कहने लगा, ‘अंकल, आज एक और सज्जन पत्थर वाली माई के यहां हो कर आए हैं. वे दर्द से तड़प रहे थे. उस माई ने पता नहीं क्या किया कि उन का दर्द अब बिलकुल गायब हो गया है. आप कहें तो मैं आप के लिए समय ले लूं? वैसे उन का दरबार रोज सजता है.’
जो बात खत्म सी हो गई थी, विपुल के फोन से उसे फिर से हवा मिल गई थी. फिर मन में उथलपुथल होने लगी थी. प्रियंका का बिलकुल भी मन नहीं था पर राधेश्यामजी का मन डगमगाने लगा था. वे कहने लगे, ‘प्रियंका, हम बचपन से सुनते आ रहे हैं कि कई लोगों को सिद्धियां प्राप्त होती हैं. वे असाधारण काम करने में सक्षम होते हैं. मु?ो लगता है कि एक बार जा कर तो देखें कि वहां क्या हो रहा है? आखिर कुछ लोग तो ठीक हो ही रहे हैं. शायद अपना संकट भी टल जाए.’
प्रियंका का मन नहीं था, उसे लग रहा था कि लोग क्या कहेंगे. पढ़ेलिखे उच्च पद पर आसीन लोग भी ऐसी मूर्खता करेंगे तो फिर बिना पढ़ेलिखे लोगों को क्या दोष देना? ये ढोंगी बाबा और तरहतरह की माई तो अपना धंधा चला कर अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं. घर में बहुत बहस हुई पर निर्णय जाने का ही हुआ. प्रियंका ने अपनी बात तरहतरह से रखी पर पुरुष की इच्छा को ही प्रधानता मिली. राधेश्याम बोले, ‘प्रियंका, उज्जैन में मेरे प्रिय मित्र नरेश रहते हैं. मैं उन से अभी बात करता हूं और पूछता हूं कि उन के घर से यह मंदिर कितनी दूर है? रास्ता कैसा है, उन की क्या राय है?’
प्रियंका यह सब सुन कर ?ां?ालाने लगी थी. उस ने गुस्से से कहा, ‘आप करोगे तो वही जो आप ने सोच लिया है. ठीक है, जो करना है करो.’ ‘अरे, गुस्सा क्यों होती हो, इस बहाने उज्जैन में महाकाल के दर्शन कर आएंगे,’ राधेश्याम ने प्यार जताते हुए कहा. राधेश्याम ने नरेश से बात की. उन्होंने कहा, ‘मैं ने सुना तो है कि कुछ लोग ठीक हो रहे हैं. तुम आ जाओ, फिर चलते हैं,’ जाने का कार्यक्रम सुनिश्चित हो गया. उज्जैन पहुंच कर राधेश्याम और प्रियंका, नरेश व उन की पत्नी नीरा के साथ महाकाल दर्शन के लिए गए. उज्जैन घूमे. वहां के स्वादिष्ठ व्यंजनों का लुत्फ उठाया. दूसरे दिन सुबह के कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार की जाने लगी. प्रियंका ने नीरा से कहा, ‘कल आप भी हमारे साथ चलना. आप के साथ अच्छी कंपनी रहेगी.’
नीरा ने कहा, ‘आप लोग हो कर आइए. मैं आप के लिए खाना तैयार कर के रखूंगी. वैसे भी, मु?ो इन बातों पर विश्वास नहीं है.’
प्रियंका बोली, ‘विश्वास तो शायद पूरी तरह किसी को भी नहीं है. फिर भी दुख में मनुष्य कुछ आशा बना लेता है.’
नीरा ने कहा, ‘विश्वास और अंधविश्वास की सीमा तय करना भी बहुत मुश्किल हो जाता है. खैर, जब आप लोग यहां तक आए हैं तो सहीगलत को भी अपनी आंखों से देख लें. दूसरे दिन सुबह 7 बजे नरेश
राधेश्याम और प्रियंका को अपनी कार से उस स्थान पर ले गए जहां वह औरत यह ‘करिश्मा’ करती थी. रास्ता ऊबड़खाबड़ था. खेतों का सौंदर्य मन मोह रहा था पर बरसात के कारण जगहजगह कीचड़ था. जब राधेश्याम, प्रियंका और नरेश उस स्थान पर पहुंचे, तब उन्होंने देखा कि उस ग्रामीण परिवेश में छोटी सी जगह में 40-50 लोग बैठे थे. वहां एक छोटा सा मंदिर भी था. कुछ लोग कीर्तन में मगन थे. कुछ मन ही मन भगवान को मना रहे थे, ‘हे भगवान, यदि मेरी पथरी निकल जाएगी तो आप को 501 रुपए का प्रसाद चढ़ाऊंगा…’ माई पर लोगों की आस्था साफ नजर आ रही थी.
कुछ देर बाद कानाफूसी शुरू हो गई, ‘माई आने वाली हैं, माई आने वाली हैं,’ घंटे और शंख की ध्वनि से वातावरण गुंजायमान हो उठा. लगभग 50 साल की आयु की एक महिला नाटकीय अंदाज में आई. भक्तों ने जयकारा लगाया. दोनों हाथ उठा कर उस ने भक्तों को आशीर्वाद दिया.
एक भक्त बोला, ‘अब माई आ गई हैं, सब के कष्ट दूर हो जाएंगे.’ माई ने कुछ विविध प्रकार की मुद्राएं बनाईं, फिर अपने सिंहासन पर बैठ गईं. अपना मुंह खोल कर सब को दिखाया. मुंह में कुछ नहीं था. माई ने 2-3 व्यक्तियों की पथरी निकालने के बाद राधेश्याम को उपचार के लिए बुलाया. माई के साथी ने राधेश्याम को जमीन पर ही एक ओर लिटा दिया और पूछा, ‘कहां दर्द है? पथरी कहां है? कितनी पथरी है?’ राधेश्याम के मुख पर चिंता और जिज्ञासा के भाव थे. उन्होंने पेट पर हाथ रख कर बताया, ‘2 पथरियां किडनी में हैं.’
माई का साथी बोला, ‘‘आप चिंता मत करो. अब आप माई के कुशल हाथों में हैं. आप अपने कपड़े ऊपर कर लीजिए और बाईं करवट लेट जाइए.’’ राधेश्याम अपनी शर्ट व बनियान ऊपर कर लेट गए. माई राधेश्याम के किडनी वाले भाग पर ?ाकीं और चूस कर पथरी निकालने लगीं. लगभग एक मिनट यह प्रक्रिया चली. चूसने वाला स्थान एकदम लाल हो गया था. उस ने मुंह से एक छोटा सा पत्थर का टुकड़ा निकाला और राधेश्याम के हाथ पर रख दिया. बोलीं, ‘बच्चा, अभी एक ही पथरी निकली है. आप को एक बार और आना होगा. चिंता मत करो.’
राधेश्याम ने उत्सुकता से पूछा, ‘कोई दवा लेनी होगी क्या?’ वे बोलीं, ‘नहीं, कोई आवश्यकता नहीं है.’ माई का दूसरा साथी राधेश्याम, प्रियंका और नरेश को मंदिर ले गया. तिलक लगाया, फिर कहने लगा, ‘माई की इच्छा है कि यहां भव्य मंदिर और आश्रम बने. सब भक्त आराम से रह सकें. आप अपनी श्रद्धा से 5-10 हजार रुपए दान कर दीजिए. राधेश्याम, प्रियंका और नरेश एकदूसरे का मुंह देख रहे थे. कहां फंस गए. राधेश्याम ने 1,000 रुपए निकाले और दे दिए. एक व्यक्ति उन्हें छोड़ने बाहर तक आया.
हजारों प्रश्न किए वे वहां से निकल गए. राधेश्याम के मन में उथलपुथल मची हुई थी. एक ओर यह सब उन्हें ढोंग लग रहा था क्योंकि आजकल तो ढोंगी बाबाओं और इन औरतों ने धर्म की आड़ में कई धंधे चला रखे हैं. जंत्र, मंत्र, तंत्र को बिना जाने ही ढोंग कर के कहीं किसी का भूत उतार रहे हैं तो कहीं बीमारियां ठीक कर रहे हैं. उजले कार्यों के पीछे न जाने कितनी काली करतूतों को बढ़ावा दे रहे हैं. साधुसंतों के पावन देश भारत में इन ढोंगियों के कारण सीधेसादे करोड़ों मनुष्य मूर्ख बन रहे हैं. दूसरी ओर राधेश्याम को चमत्कार की बातें भी प्रभावित कर रही थीं. वे अपने मन को शांत करना चाहते थे, सो, अपने प्रिय मित्र नरेश से बोले, ‘नरेश, मैं दोबारा सोनोग्राफी कराना चाहता हूं. क्या पास में कोई अस्पताल है?’ नरेश ने कहा, ‘तुम्हारे सामने ही तो एक स्टोन निकाला है. खैर, पास में ही एक अस्पताल है. चलो वहां चलते हैं.’
राधेश्याम ने डाक्टर से सोनोग्राफी कराई. जब रिपोर्ट आई तब सब असलियत से वाकिफ हो सोच में पड़ गए. दोनों पथरियां अपनी जगह पर शांत बैठी थीं. रत्तीभर भी अंतर नहीं था. उन्हें जिस चमत्कार की आशा थी, वहां केवल ढोंग, दिखावा और छल ही मिला था. राधेश्याम बारबार यही सोच रहे थे जब हम पढ़ेलिखे, संपन्न लोग ऐसे ढोंगियों के चक्कर में फंस सकते हैं तो बिना पढ़ेलिखे, गरीब, दुखी लोगों को फंसाना तो सहज ही संभव है. इन ढोंगी बाबाओं और माइयों की करतूतें जब प्याज की परतों की तरह खुलती हैं तब इन की सारी असलियत भी सामने आ जाती है.
उस दिन राधेश्याम को अपनी मूर्खता पर बहुत शर्मिंदगी हुई थी, लेकिन उस दिन से उन्होंने यह बीड़ा उठाने की कसम खाई थी कि वे इन ढोंगियों से गरीब जनता को बचाएंगे. वे उन्हें इन की वास्तविकता से परिचित कराएंगे. उन्होंने गांव में, शहर में जा कर अंधविश्वास एवं कुरीतियों की जड़ों को काटना आरंभ कर दिया था. वे जनजन में सजगता लाने की राह पर चल पड़े थे. वे लोगों से यह भी कहते कि मंदिर जाने से कष्ट दूर नहीं किया जा सकता, मेहनत और कर्म से पैसा कमाया जा सकता है. इसलिए उज्जैन का मंदिर हो या कहीं का, न भगवान कुछ कर सकते हैं न ही पीरफकीर.
अचानक एक बिल्ली आई और दूध का कटोरा गिरा दिया. खन्न से आवाज हुई. उन के विचारों की लड़ी टूट गई थी. राधेश्याम ने बिल्ली को भगाया और फिर सामाजिक जागरूकता की राह पर चल पड़े.