“यार, इस में इतना परेशान होने की क्या बात है? तुम दोनों पहले सोच कर फैसला  कर लो कि तुम अपने पापामम्मी की मरजी के बिना शादी कर सकते हो या नहीं?” रौनक ने अपने दोस्त विमल से कहा.

 

“तुम सभी लोग जानते हो कि मैं और निर्मला कालेज के फर्स्ट ईयर से ही एकदूसरे को चाहते हैं, फिर भी सामाजिक मर्यादाओं की सीमा में ही रहे हैं.  मुश्किल तो यह है कि हम दोनों में से किसी का परिवार गैरजातीय शादी के लिए  तैयार नहीं है,” विमल बोला.

 

“अब आगे से प्यार करने के पहले हमें एक दूसरे की जाति और  धर्म पूछ लेना चाहिए वरना आगे चल कर हमारा भी यही हश्र हो सकता है,” निर्मला की एक सहेली ने कहा.

 

इस पर वहां मौजूद सभी दोस्त हंस पड़े.

 

“तुम लोग हंस रहे हो और हम दोनों कितने परेशान हैं, शायद इस का अंदाज़ा तुम्हें नहीं है,” निर्मला बोली.

 

“अरे नहीं. हम सभी तुम्हारे साथ हैं और चाहते भी हैं कि तुम दोनों की शादी हो, पर पहले तुम दोनों में इतना साहस हो कि अपने परिवार की मरजी के खिलाफ जा कर शादी कर सको.  तुम अब मैच्योर्ड हो और अपने पैरों पर खड़े हो,” कुछ दोस्तों ने कहा.

 

“मेरे मामू वकील हैं, तुम दोनों बोलो तो मामू को  बोल कर तुम्हारी कोर्ट मैरिज की औपचारिकताएं शुरू करा दें. गवाही के लिए हम लोग तैयार हैं ही,” रौनक बोला.

 

सभी लोगों ने कुछ देर आपस में सलाहमशवरा किया. विमल और निर्मला कोर्ट मैरिज के लिए तैयार हो गए. सभी दोस्तों ने फैसला किया कि यह बात दोनों परिवारों तक नहीं पहुंचनी चाहिए. रजिस्ट्रार के औफिस में कोर्ट मैरिज के लिए 30 दिन की नोटिस दी गई. विमल और निर्मला दोनों अपने मातापिता की इकलौती संतानें थीं, उन की जाति अलग थीं. दोनों के मातापिता उन की शादी के लिए रिश्ते तलाश रहे थे. उन्हें अपनी जाति में मनलायक अच्छे रिश्ते भी मिल रहे थे पर विमल और निर्मला दोनों ही किसी न किसी बहाने शादी टाल रहे थे.

 

एक महीने बाद विमल और निर्मला ने कोर्ट मैरिज कर ली. शादी के बाद उन्होंने अपने दोस्तों के साथ होटल में लंच लिया. इस के बाद विमल और निर्मला अपनेअपने घर चले गए. उसी दिन शाम को विमल मिठाईयां और कुछ उपहार के पैकेट ले कर निर्मला के घर पहुंचा. उस के पापामम्मी  दोनों बाहर लौन में ही बैठे थे. निर्मला घर के अंदर थी.

 

वह बोला, “नमस्ते अंकल, नमस्ते आंटी. आप लोग कैसे हैं?”

 

“ नमस्ते, हम ठीक हैं. और यह सब क्या है, कैसे आना हुआ?”  निर्मला के पिता महेश दूबे ने पूछा.

 

“अंकल, आंटी, अब मुझे आप दोनों को मम्मीपापा बोलना होगा. आज कोर्ट में मैं ने निर्मला से शादी कर ली है. उसे विदा कराने आया हूं. मेरे मातापिता इसे बहू स्वीकार करने के लिए तैयार हैं.”

 

“लगता है तुम्हारा दिमाग ठिकाने नहीं है, चलो भागो यहां से,” बोल कर दूबेजी गुस्से से आगबबूला हो कर उठ खड़े हुए और उन्होंने मिठाई व गिफ्ट पैकेट्स को जमीन पर फेंक  दिया.

 

फिर दूबेजी ने बेटी को चिल्ला कर आवाज़ दी, “निर्मला, इधर आओ.”

 

निर्मला को इस स्थिति का आभास पहले से ही था. वह चुपचाप आ कर दूबेजी के सामने खड़ी हो गई.

 

“देखो, यह क्या बके जा रहा है. यह बोल रहा है कि तुम दोनों ने शादी कर लिया है,” विमल की ओर इशारा करते हुए वे बोले.

 

निर्मला कुछ देर तक सिर झुकाए खामोश खड़ी  रही. तब फिर दूबेजी ने गरजते हुए कहा, “मैं ने  तुम से कुछ पूछा है, जवाब दो.”

 

पर निर्मला से कुछ बोलते नहीं बना, वह अभी भी खामोश थी. तभी विमल ने आगे बढ़ कर कोर्ट मैरिज का सर्टिफिकेट उन्हें देते हुए कहा, “यह क्या बोलेगी,  खुद ही देख लीजिए मैरिज रजिस्ट्रेशन का सर्टिफिकेट है यह.”

 

दूबेजी ने सर्टिफिकेट पढ़ा और फाड़ कर फेंक दिया.

 

“यह तो सिर्फ एक जेरौक्स कौपी है.”

 

दूबेजी ने पत्नी पर गुस्सा उतारते हुए कहा, “देखा तुमने, दुलार में बेटी को कितना बिगाड़ दिया है. मैं ने कहा था न कि इसे कालेज भेजने की जरूरत नहीं है. 12वीं के बाद ही इस के लिए अच्छे अच्छे रिश्ते आने लगे थे.”

 

उस समय विमल और निर्मला के कुछ मित्र वहां आए और वे एकसाथ बोले, “अंकल, शादी मुबारक.”

 

“काहे की शादी? मैं नहीं मानता इस शादी को.”

 

“पर कानून तो मानता है. आप कानून को नहीं मानते हैं तो इस में गलती आप की है. जरा ठंडे दिमाग से सोचिए, इन दोनों ने कोई गलत काम नहीं किया है. इन्होंने मर्यादा के विरुद्ध कोई काम नहीं किया है. कोर्ट मैरिज ही इन के लिए आखिरी रास्ता था. इस रिश्ते को स्वीकार करने में ही सब की ख़ुशी  है.”

 

दूबेजी अपनी पत्नी और बेटी निर्मला को ले कर अंदर चले गए. उन्होंने फोन कर स्थानीय रिश्तेदार व दोस्त को बुलाया. विमल अपने दोस्तों के साथ बरामदे में कुरसी और झूले पर बैठा था. उस के दोस्त रौनक ने भी फोन कर अपने वकील मामू को बुला लिया. आधे घंटे के अंदर 2 कारें  आईं जिन में दूबेजी के मित्र और रिश्तेदार थे. कार से उतर कर  वे सभी सीधे घर के अंदर गए. इस के दस मिनट बाद एक अन्य कार से वकील मामू सादे लिबास में आए. वे विमल और उस के मित्रों के बीच  बैठ गए. घर के अंदर से कभी दूबेजी की गुस्से वाली तेज आवाज आती तो कभी उन के मित्रों या रिश्तेदारों की धीमी आवाज में उन्हें समझाने की.

 

कुछ मिनट इंतजार के बाद वकील ने पूछा, “क्या मैं भी अंदर आ सकता हूं?”

 

“आप की तारीफ़?” दूबेजी ने पूछा.

 

“मैं ने ही इन दोनों की कोर्ट मैरेज कराई है.”

 

“तो आप जले पर नमक छिड़कने आए हैं?”

 

“जी नहीं, मुझे क्या पड़ी है. मैं तो सिर्फ आप को समझाने आया हूं. मैं वकील हूं, मेरे बेटे ने भी घर से भाग कर  कोर्ट मैरिज की थी. बाद में जब उस के ससुर बेटी को उस के साथ नहीं जाने दे रहे थे तब बेटे ने पुलिस की मदद ली और वह अपनी पत्नी को साथ  ले गया. हम मानें या न मानें,  ऐसी शादी को कानून की मान्यता है. मुझे भी अपनी बहू को स्वीकार करना ही पड़ा था. इसलिए मेरी सलाह है कि कोर्टकचहरी के चक्कर में न पड़ें, इसी में सब की भलाई है. मुझे बस इतना ही कहना था, बाकी आप की मरजी.”

 

कुछ देर तक सब लोग आपस में बातें करते रहे. ज्यादातर लोग दूबेजी को ही समझा रहे थे कि इस रिश्ते को मान लेना ही सही होगा. तभी वकील ने फिर कहा, “ठीक है भाईसाहब, मैं अब चलता हूं. एक बार फिर ठंडे दिमाग से सोचिए, आप खुद एक सरकारी नौकर हैं, कानून तो आप भी जानते ही होंगे.”

 

दूबेजी को फिर लोगों ने समझाया कि अब इस रिश्ते को कबूल करने में ही उन की भलाई है वरना अपनी इकलौती संतान से भी हाथ धो बैठेंगे. उन का गुस्सा धीरेधीरे ठंडा पड़ने लगा. वकील मामू तब तक जा चुके थे. उन के जाने के कुछ देर बाद विमल ने कहा, “तब निर्मला मेरे साथ चल रही है न?”

 

दूबेजी ने कहा, “बेशर्म, चल भाग यहां से. जा कर बाप को बोल, बरात ले कर आए और अपनी बहू को विदा करा के ले जाए.”

उन की बात सुन कर सभी ख़ुशी से झूम उठे. विमल ने भी निर्मला को आंख मारी और अपने दोस्तों के साथ लौट गया.

 

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