पतिपत्नी के बीच होने वाले झगड़ों के मुकदमे देशभर की अदालतों में तेजी से बढ़ रहे हैं. बीते 3 वर्षों में करीब सवा 3 लाख से अधिक मुकदमे अदालतों में दाखिल हुए हैं. तेजी से निबटारे के बावजूद पारिवारिक विवाद के लंबित मामले घट नहीं रहे हैं. अब तो पतिपत्नी छोटीछोटी बातों को ले कर भी अदालतों में पहुंचने लगे हैं.

वर्ष 2021 में देश की पारिवारिक अदालतों में 4,97,447 मामले घरेलू विवाद के दाखिल हुए थे. वर्ष 2022 में 7,27,587 मामले दाखिल हुए जबकि 2023 में यह संख्या बढ़ कर 8,25,502 हो गई. हाल ही में कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने लोकसभा में पारिवारिक विवादों से जुड़े आंकड़े प्रस्तुत किए हैं.

इन आंकड़ों के मुताबिक अदालतों द्वारा मुकदमों के अधिक निबटारे के बावजूद लंबित मामले बढ़ रहे हैं क्योंकि नए मामले अधिक दाखिल हो रहे हैं. इस की वजह पतिपत्नी के बीच अहंकार को बताया जा रहा है. हालांकि, यह सिर्फ अहंकार का मामला नहीं है. इस के पीछे कई अन्य वजहें हैं. देश की राजधानी दिल्ली में हर साल 8 से 9 हजार तलाक के मामले आते हैं, जो देश में सब से ज्यादा हैं. इस के बाद मुंबई और बेंगलुरु है, जहां 4 से 5 हजार तलाक के मामले हर वर्ष दर्ज होते हैं.

इस समय भारत में 812 पारिवारिक अदालतें कार्यरत हैं. इन में 11 लाख से अधिक मामले लंबित हैं. इन मामलों में घरेलू हिंसा, दहेज़ उत्पीड़न, तलाक, बच्चों की कस्टडी, दांपत्य अधिकारों की पुनर्स्थापना, किसी भी व्यक्ति की वैवाहिक स्थिति की घोषणा, वैवाहिक संपत्ति का मामला, गुजाराभत्ता, पतिपत्नी में विवाद होने पर बच्चों से मिलने के अधिकार से संबंधित मामले और बच्चों के संरक्षण से जुड़े मामलों की सुनवाई शामिल हैं. सब से अधिक दहेज उत्पीड़न, घरेलू हिंसा और तलाक के मामले दर्ज होते हैं.

भले ही भारत में पारिवारिक विवाद के मामले बढ़े हैं लेकिन अभी भी दुनियाभर में सब से कम तलाक भारत में होते हैं. भारत में रिश्ते ज्यादा चलने की वजह पितृसत्तात्मक व्यवस्था, औरतों की पुरुषों पर निर्भरता और धार्मिक-सांस्कृतिक पहलू जिम्मेदार हैं. इन में परिवार के साथ चलने पर ज्यादा जोर दिया जाता है. इस के अलावा बड़ी संख्या में मामले ऐसे भी हैं जो कानूनी प्रक्रिया में नहीं जाते और खुद पतिपत्नी ही अलग रहने लगते हैं. इस के चलते सही आंकड़ा सामने नहीं आ पाता. दुनियाभर में तलाक को ले कर शोध करने वाली एक निजी वैबसाइट के अनुसार पूरी दुनिया में तलाक की सब से कम दर भारत में लगभग एक फीसदी है, जबकि सब से अधिक तलाक मालदीव में 5.52 फीसदी होते हैं.

कमजोर होती विवाह संस्था

पश्चिमी देशों में स्त्रीपुरुष को साथ रहने और शारीरिक संबंध बनाने के लिए विवाह करना आवश्यक नहीं है. उन की संस्कृति में स्त्री विवाह करके भी बच्चा पैदा कर सकती है और बिना विवाह के भी मां बन सकती है. बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी वह उठा सकती है तो वह उठाती है वरना उस का पार्टनर उठाता है या दोनों मिल कर उठाते हैं या फिर सरकार उठाती है.

स्त्रियां पढ़ीलिखी और अच्छे पदों पर कार्यरत हैं. वे आर्थिक रूप से किसी पुरुष पर निर्भर नहीं हैं. मातापिता, सासससुर के फैसलों और दबावों से मुक्त अपने जीवन के फैसले लेने के लिए वे स्वतंत्र हैं. पार्टनर के साथ उस की अच्छी बन रही है तो दोनों एक छत के नीचे रहते हैं. जब विचार नहीं मिलते तो दोनों आराम से अलग हो जाते हैं.

भारत में विवाह संस्था काफी मजबूत रही है. धर्म ने स्त्रियों को अनेकानेक नियमों में जकड़ कर स्वतंत्र रूप से विचार करने, बोलने या कोई कदम उठाने लायक नहीं रखा. स्त्री आर्थिक रूप से हमेशा पुरुष पर आश्रित रही, लिहाजा पति से न बनने के बावजूद सदियों तक औरत विवाह संस्था से बाहर नहीं निकल पाई. वह घर में पिटती रही, गालियां खाती रही, नौकरानी की तरह घर के कामों में खटती रही, मशीन बन कर बच्चे पैदा करती रही मगर शादी को तोड़ने की हिम्मत नहीं कर पाई. तोड़ कर जाती भी कहां?

जिस समाज में लड़की को विदाई के वक्त यह कहा जाता रहा कि- आज से पति का घर ही उस का घर है, वहां से अब उस की अर्थी ही उठेगी, तो ऐसा समाज उस स्त्री को कैसे बरदाश्त करता जो पति से अलग रहने निकली हो या जिस ने तलाक लिया हो? आखिर कौन उस का बोझ उठाएगा, कौन खाना देगा? समाज में बेइज्जती से भी उस का अपना परिवार उस को नहीं अपनाता था. यही वजह रही कि लंबे समय तक भारत में तलाक के मामले न के बराबर रहे और आज भी दुनिया के अन्य देशों की तुलना में मात्र एक फीसदी तलाक भारत में होते हैं.

हालांकि, जैसेजैसे औरतें शिक्षित हुईं, नौकरी या व्यवसाय में आगे बढ़ीं, उन्हें अपने खिलाफ होने वाली गलत बातों पर आवाज उठाना भी आने लगा. आर्थिक मजबूती इंसान में हिम्मत लाती है. यही औरतों के साथ भी हुआ. अब पति की मारगालियां जब बरदाश्त नहीं होतीं तो वे तलाक का रास्ता अपनाने से गुरेज नहीं करतीं. मायके वालों ने नहीं अपनाया तो वे अकेले भी रह लेती हैं.

पहले पत्नी से नहीं बनती थी तो पति बाहरी औरतों से रिश्ते बना लेता था. पत्नी रोतीकलपती रहती, घुटघुट कर जीती, परिवार की देखभाल और बच्चों की परवरिश में खुद को स्वाहा करती मगर पति पर कोई असर न होता. मगर आज नौकरीपेशा पत्नी ऐसे पति को लात मर कर न सिर्फ उस से अलग हो जाती है बल्कि अनेक मुकदमों में उस की गरदन फंसा कर सालों कोर्ट में घसीटती है.

पहले संयुक्त परिवार में रहने पर धर्म-संस्कार और सामाजिक इज्जत के नाम पर पति द्वारा त्यागी और दुत्कारी गई औरत को भी ससुराल में ही बने रहने पर मजबूर किया जाता था. अब ऐसा नहीं है. संयुक्त परिवार टूट चुके हैं. एकल परिवारों में ज्यादा से ज्यादा सासससुर ही कुछ दबाव बनाते हैं, परंतु पतिपत्नी में अगर ज़्यादा मतभेद और लड़ाइयां होती हैं तो वे भी पीछे हट जाते हैं, बल्कि अलग होने की सलाह दे देते हैं.

पतिपत्नी में मतभेद और मनभेद की अनेक वजहें हैं. सिर्फ औरत का आर्थिक रूप से मजबूत होना या अपने निर्णय स्वयं करना ही वजह नहीं है. अगर पति का आचरण ठीक है तो आर्थिक रूप से अपने पैरों पर खड़ी स्त्री अपने परिवार को हरगिज तोड़ना नहीं चाहती है. आइए देखें ऐसी कौन सी वजहें हैं जो एक औरत को रिश्ता तोड़ने के लिए मजबूर करती हैं-

चीटिंग

रिलेशनशिप और शादी के बाद लोगों का चीट किया जाना बेहद दुखद होता है. तलाक के कई मामले ऐसे होते हैं जिन में पति या पत्नी में से किसी ने चीट किया. कोई बात छिपाई या बाहर अन्य से रिश्ता बनाया. ऐसे में पार्टनर द्वारा तलाक की पहल की जाती है. आजकल शादी के बाद भी दूसरी जगह अफेयर के कारण तलाक के मामले बढ़े हैं. इसलिए जरूरी है कि पतिपत्नी दोनों को अपने पार्टनर के प्रति ईमानदार रहना चाहिए.

मानसिक स्थिति सही न होना

कई बार अरेंज मैरिज में यह देखा गया है कि पति या पत्नी की मानसिक स्थिति सही नहीं रहती है. अरेंज मैरिज में घर वालों द्वारा शादी करवाने के बाद पता चलता है कि पार्टनर, मानसिक रूप से कमजोर है, जिस की वजह से वह कई तरह के गलत क्रियाकलाप करता है जिस के कारण तलाक की स्थिति बन जाती है.

धार्मिक मतभेद होना

आजकल दूसरे धर्म में शादी के कारण भी तलाक के मामलों में वृद्धि देखने को मिली है. कई बार यह देखा गया है कि प्रेम में पड़ कर दूसरे धर्म के व्यक्ति से शादी तो कर ली मगर बाद में दूसरे के घर में होने वाले धार्मिक क्रियाकलापों से तारतम्य नहीं बिठा पाए. कभीकभी दूसरे धर्म में शादी करने के बाद पार्टनर पर धर्म परिवर्तन का दबाव बनाया जाता है. ऐसे में हमेशा एकदूसरे के धर्म को ले कर बहस बनी रहती है, जिस के कारण आगे चल कर साथ रहना मुश्किल हो जाता है और आखिरकार तलाक की नौबत आ जाती है.

मानसिक व्यवहार

शादी के बाद मानसिक व्यवहार बहुत माने रखता है. कई मामलों में देखा गया पति या पत्नी अपने पार्टनर को ले कर बेहद पजेसिव रहते हैं. वो उन पर दिनभर शक करते हैं. उन के हर काम में हस्तक्षेप करते हैं. वो औफिस में हों या अपने बौस के साथ हों, उन के पार्टनर को हर बात जाननी रहती है. इस कारण आगे चल कर दोनों के बीच खटास पैदा होने लगती है और धीरेधीरे रिश्तों में दूरी बन जाती है.

शराब का सेवन

नशे को नाश का कारण माना जाता है. कई मामलों में देखा गया है कि शराब के सेवन के कारण तलाक की नौबत आ जाती है. अधिकांश औरतों को नशेड़ी पति के साथ असुरक्षा की भावना रहती है. महिला को लगता है कि वह सारी जमापूंजी शराब में उड़ा देगा. ऐसे में अपने और बच्चों के भविष्य के लिए नशेड़ी आदमी से दूर होने में ही भलाई नजर आती है.

सासससुर का बहू से गलत व्यवहार

जिन घरों में बहू अपने सासससुर के साथ रहती हैं वहां अकसर सास बहू के बीच झगड़े होते रहते हैं. बहू के आने के बाद अकसर सास में असुरक्षा की भावना बढ़ जाती है. वह अपनी स्थिति मजबूत रखने के चक्कर में बहू को अपने हुक्म का गुलाम बनाने की कोशिश में लग जाती है. हर काम में उस की गलतियां निकालती है.

कहींकहीं तो सास का रूखा व्यवहार बहू के लिए बड़ा मानसिक कष्ट बन जाता है. कहींकहीं सासें बहू-बेटे के बीच लड़ाइयां करवा देती हैं. अगर बहू कमाऊ है तो वह सास के तानेउलाहने बरदाश्त नहीं करती. अगर उस का पति अपनी मां की साइड लेता है तो बहू तुरंत उस को न सिर्फ तलाक का नोटिस थमा देती है बल्कि घरेलू हिंसा और दहेज के मामले में पूरे परिवार को फंसा भी देती है.

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