भारतीय जनता पार्टी लोकसभा चुनाव में मिशन उत्तर प्रदेश में 80 सीटें हासिल करने का लक्ष्य ले कर चल रही है. भाजपा का हर नेता यह कह रहा है कि यह लक्ष्य हासिल हो ही गया है. इस के बाद भी उसे इंडी गठबंधन में तोड़तोड़ करनी पड़ रही है. इस से साफ है कि भाजपा के अंदर आत्मविश्वास नहीं है. ऐसे में वह छोटे दलों को लालच दे रही है. बिहार में नीतीश कुमार के पालाबदल से बिहार में भाजपा का विरोध खत्म नहीं हो जाएगा. अब वोटर किसी नेता की जेब में नहीं रहता है.

2019 का लोकसभा चुनाव इस का उदाहरण है. उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और लोकदल एकसाथ चुनाव लड़े. इस के बाद भी केवल 15 सीटें ही हासिल हुईं. सपा और बसपा दोनों ने ही माना कि उन के वोट ट्रांसफर नहीं हुए. इसी बात को ले कर सपा-बसपा अलग हो गए. लोकदल और सपा कई चुनावों में साथसाथ रहे हैं. इस के बाद भी दोनों दलों को चुनावों में सफलता नहीं मिली. इस की वजह यह है कि सपा और लोकदल के वोटर आपस में वोट शेयर नहीं करते थे. अजित सिंह और जयंत दोनों एसपी और बीएसपी के समर्थन के बाद भी जाटबहुल अपनी मजबूत सीटों पर चुनाव हार गए.

जाट और यादव कभी एकसाथ वोट नहीं करते. यादव और जाट का यह बंटवारा अजीत सिंह और मुलायम सिंह यादव के समय से शुरू हुआ था. इस की वजह यह थी कि चौधरी चरण सिंह के बाद उन का उत्तराधिकार बेटे अजित सिंह को मिलना था. लेकिन लोकदल पर अधिकार मुलायम सिंह यादव का हो गया. लोकदल 2 हिस्सों में बंट गया. लोकदल ‘अ’ अजित सिंह के साथ था और लोकदल ‘ब’ मुलायम सिंह यादव के साथ. अजित सिंह को जब उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने का अवसर आया तो उस में लंगड़ी मुलायम सिंह यादव ने मारी.

इस धोखे की वजह से जाट कभी यादव के साथ खड़ा नहीं होता है. चौधरी अजित सिंह भाजपा के एनडीए गठबंधन में रहे थे. कुछ समय वे मुलायम सिंह यादव के साथ रहे. इस के बाद जयंत चौधरी और अखिलेश यादव साथ रहे. साथ रहने के बाद भी दोनों के वोटबैंक शेयर नहीं हो पाए. जाट वोट सपा के साथ नहीं खड़ा हो सकता पर वह भाजपा विरोध में कांग्रेस के पक्ष में खड़ा हो सकता है. ऐेसे में जयंत चौधरी के इंडी गठबंधन छोड़ने से कांग्रेस को लाभ हो सकता है. भाजपा के विरोध का वोट है और वह उस के विरोध में ही जाएगा. जितने दल कम होंगे, उतना ही यह वोट एकजुट होता जाएगा.

अखिलेश के साथ सीट शेयरिंग करने वाले जयंत का इंडी गठबंधन से मोह भंग क्यों हुआ, इस की वजह यह बताई जा रही है कि जयंत, अखिलेश के प्रस्ताव से नाराज हैं. अखिलेश का प्रस्ताव है कि लोकदल लोकसभा चुनाव 7 सीटों पर लड़े, लेकिन कैराना, मुजफ्फरनगर और बिजनौर की सीटों पर उम्मीदवार का चेहरा समाजवादी पार्टी से होगा और निशान आरएलडी का. अखिलेश के इस फैसले ने जयंत चौधरी को नाराज कर दिया है.

अखिलेश और जंयत के बीच दरार का लाभ भाजपा ने उठाया. उत्तर प्रदेश की 10 से 12 सीटों पर जाटों का प्रभाव है. पश्चिमी यूपी में करीब 17 फीसदी आबादी जाटों की है. विधानसभा की करीब 50 सीटों का फैसला भी जाट वोटर्स ही करते हैं. इस के अलावा जयंत के आने से बीजेपी किसान आंदोलन से हुई जाटों की नाराजगी को भी दूर करने में कामयाब हो सकती है. ये वोटर जंयत के साथ जाएंगे या नहीं, यह सवाल मुख्य है ?

जयंत ही नहीं, अखिलेश और मायावती भी अगर भाजपा के साथ खड़े हो जाएं तो भी इंडी गठबंधन को नुकसान नहीं होगा क्योंकि भाजपा के विपक्ष में खड़े वोट उस के विरोध में ही रहेंगे. छोटेछोटे दलों के साथ रहने से विरोध का वोट बंटेगा. इस से इंडी गठबंधन मजबूत होगा. जयंत के जाने से इंडी गठबंधन को लाभ होगा. नुकसान नहीं होगा.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...