सोशल मीडिया पर 2 खबरें बड़ी तेजी से वायरल हुईं. पहली खबर फिल्म अभिनेत्री और मौडल पूनम पांडेय की मौत से जुड़ी है और दूसरी किरन बेदी को पंजाब का राज्यपाल बनाने की खबर भी सच की तरह से देखी गई. यह हाल के एकदो दिनों की घटनाएं हैं, ऐसे उदाहरण भरे पड़े हैं.

जनवरी 2011 में विद्रोहियों ने राष्ट्रपति होस्नी मुबारक की सत्ता को उखाड़ फेंका था. इस विद्रोह को आगे बढ़ाने वाले लोग सोशल मीडिया पर सक्रिय थे. इस क्रांति के पीछे सोशल मीडिया की ताकत थी. क्रांति का बिगुल फूंकने का श्रेय गोनिम को जाता है. उन्होंने ‘हम सब खालिद सईद हैं’ नाम का फेसबुक पेज शुरू कर लोगों से विरोध प्रदर्शन में शामिल होने की अपील की थी. सोशल मीडिया से एकजुट हुए लोगों के 3 दिनों के प्रदर्शनों के बाद सेना ने मिस्र में पहली बार लोकतांत्रिक तरीके से चुने गए राष्ट्रपति को पद से हटा दिया. इस के बाद सत्ता और भी अधिक कट्टरवादियों के हाथ आ गई.

मिस्र में क्रांति का कोई मकसद पूरा नहीं हुआ. 2011 की क्रांति को जोरदार धक्का लगा है. देश में दमन का राजनीतिक माहौल है. मुबारक युग की वापसी हो रही है. क्रांति का मकसद पूरा नहीं हुआ है. लोगों को रोटी, आजादी और सामाजिक न्याय मिले. कुछ लोग मानते हैं कि क्रांति में मेरा भरोसा अडिग है. देश की स्थिति सुधारने के लिए वह निहायत ही जरूरी था. क्रांति का कोई मकसद पूरा नहीं हुआ. आजादी का मुद्दा आज भी बना हुआ है. सोशल मीडिया ने क्रांति तो करवा दी पर जिम्मेदारी नहीं संभाल पाई. जिस की वजह से देश और भी खराब हालात में फंस गया.

मिस्र जैसा उदाहरण ही भारत में भी देखने को मिला है. अन्ना आंदोलन भी कुछ उसी तरह का था. जिस ने उस समय की यूपीए सरकार और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की छवि को खराब किया. उस में सोशल मीडिया की भूमिका सब से अधिक थी. देश में अन्ना आंदोलन पहला था जिस में सोशल मीडिया और सामाजिक क्षेत्र में काम करने वालों की भूमिका प्रमुख थी. इस आंदोलन को बड़ी सफलता दिल्ली के निर्भया कांड के कारण मिली. पूरे देश ने निर्भया को न्याय दिलाने के लिए आवाज उठाई.

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी निर्भया से मिलने अस्पताल गए. इलाज के लिए विदेश भेजा लेकिन उस को बचाया नहीं जा सका. उस समय की यूपीए सरकार ने निर्भया को ले कर अलग से बजट बनाया जिस से महिला सुरक्षा के लिए काम किया जा सके. महिलाओं को ले कर नया कानून भी बनाया गया. इस के बाद भी सोशल मीडिया में जो प्रचार हुआ उस का प्रभाव 2014 के लोकसभा चुनाव पर पड़ा और कांग्रेस की अगुआई वाली यूपीए सरकार चुनाव हार गई. एनड़ीए की अगुआई में नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बन गए.
सोशल मीडिया ने यूपीए सरकार हटाने की दिशा में बड़ा प्रचार अभियान चलाया. भ्रष्टाचार प्रमुख मुद्दा बना. देश को भ्रष्टाचारमुक्त रखने के लिए लोकपाल कानून बनाने की मांग की गई थी. यूपीए की सरकार हटने के बाद लोकपाल और भ्रष्टाचार पर बात होनी बंद हो गई.

देश की राजनीति ‘दानदक्षिणा पंथी’ विचारधारा की तरफ बढ गई. ‘दक्षिणा बैंक’ मजबूत करने के लिए मंदिर और धर्म की राजनीति होने लगी. महिला कानून और भ्रष्टाचार जैसे मुददे दरकिनार हो गए. जिस सोशल मीडिया ने इन को ले कर हल्ला मचाया था वह इस को भूल कर ‘दक्षिणा पंथी’ हो गई. अन्ना आंदोलन के प्रमुख अन्ना हजारे और उन के लोग अलगअलग गुटों में बंट गए. जो राजनीति को बदलने की बात करते थे वे खुद बदल गए.

मुद्दों को हल करने की ताकत नहीं :

सोशल मीडिया की सब से बड़ी कमजोरी या दिक्कत यह है कि वह मुद्दों को उठा सकती है. किसी भी विरोध को हवा दे सकती है लेकिन उस को हल नहीं कर सकती. मिस्र में मुबारक सरकार के खिलाफ हवा देने की बात हो या भारत में यूपीए सरकार के खिलाफ माहौल बनाने की, सोशल मीडिया ने हवा तो बनाई लेकिन बदलाव की दिशा को सही करने का काम नहीं किया. कारण यह है कि विरोध को हवा दे कर नाकारात्मक माहौल तो बनाया जा सकता है, सोशल मीडिया या भीड़ निर्माण का काम नहीं कर सकती.

अयोध्या में विवादित ढांचे के खिलाफ आंदोलन कर के कारसेवा करने वालों को एकजुट तो किया जा सकता है जो ढांचे को गिरा सकता था. वहां पर निर्माण करना भीड़ के वश का नहीं था. सोशल मीडिया जो फैलाता है वह पूरा सच नहीं होता. उस में 90 फीसदी झूठ होता है. लोग सच को नहीं जानना चाहते, झूठ के पीछे भाग लेते है. पूनम पांडेय ने अपनी मौत का झूठ सोशल मीडिया पर फैलाया, सब ने सही मान लिया. भाजपा नेता ने किरन बेदी को पंजाब का राज्यपाल बनाया, लोगों ने सच मान लिया.

पहले परखें, फिर आगे बढाएं :

ऐसे में जरूरी है कि सोशल मीडिया के सच को पहचानें. सोशल मीडिया पर बहुत सारे इन्फ्लुएंसर है जो तरहतरह के प्रचार कर के देखने वालों को बेवकूफ बनाते है. सोशल मीडिया पर इन को फौलो करने वाले यह भी नहीं देखते कि ये लोग हैं कौन? इन की अपनी विश्वसनीयता कितनी है. सोशल मीडिया पर जब कोई पोस्ट देखते हैं तो सब से पहले यह देखना जरूरी है कि पोस्ट करने वाला कौन है, उस की अपनी विश्वसनीयता क्या है.

ऐसी बहुत सारी पोस्ट होती हैं जिन को किस ने भेजा, हमें पता नहीं होता है. हम उस को आगे फौरवर्ड करने लगते हैं. इस से सोशल मीडिया पर झूठ को बढ़ावा मिलता है. पैसे कमाने के लिए इन्फ्लुएंसर्स झूठ बोलते है. हम उन को सही मान कर यकीन कर लेते हैं. ये ज्यादातर ऐसे लोग होते हैं जिन का काम किसी तरह से अपने फौलोअर्स को बढ़ाने का होता है. फौलोअर्स बढ़ाने के साथ ही वे झूठे प्रचार कर पैसे कमाने लगते हैं.

आज बहुत सारे अच्छे लोग और उन के चैनल सोशल मीडिया पर हैं. भले ही उन के फौलोअर्स अधिक न हों पर वे झूठ नहीं परोसते. ऐसे लोगों को फौलो करिए. उन के कमैंट देखिए. पत्रपत्रिकाओं के भी सोशल मीडिया प्लेटफौर्म हैं, जहां कुछ भी पोस्ट करने से पहले संपादक की नजर से हो कर गुजरना पड़ता है. उन की पोस्ट पर यकीन करें. अखबार और पत्रिकाएं पढ़ेंगे तो आप के अंदर तर्क करने की क्षमता का विकास होगा. आप लिखना समझेंगे, सोशल मीडिया के झूठ को फैलाने का हिस्सा नहीं बनेंगे.

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