अगर मुझ से कोई पूछे कि इस दुनिया में विवाह के दिनों का सब से मुश्किल काम क्या है तो आजकल मेरे मुंह से एक आह सी निकल जाती है, मैं कहती हूं, दूल्हादुलहन को स्टेज पर जा कर शगुन का लिफाफा देने से ज्यादा मुश्किल कुछ नहीं है.

पिछले हफ्ते जिस शादी में गई, उस की याद रातों को जगा जाती है. हम पतिपत्नी पास के ही एक रिसौट्र्स में एक रिसैप्शन में गए थे. कोरोना ने कई दावतें मारी थीं, कई खुशियां अपनों के बिना मजबूरी में मना ली गई थीं. इस त्रासदी की लंबी परेशानियों के बाद यह पहला इस तरह का फंक्शन था, बहुत से दोस्त वहां मिलने वाले थे. अति उत्साहित सी मैं भी सजधज कर वहां पहुंची. खूबसूरत से रिसौट्र्स की मनमोहक सजावट बाहर से ही बता रही थी कि बढ़िया पार्टी होने वाली है.

पर हाय, कहां गया पुराना जमाना, जब किसी शादी में जाने पर घर का कोई सदस्य हाथ जोड़ कर स्वागत करता था, मेहमान को स्पैशल फील होता था, यहां तो एक बंदा नहीं, और अंदर गए तो एक बहुत ज्यादा लंबी लाइन दिखी, जिस के आगेपीछे किसी और चीज पर नजर जा ही नहीं पा रही थी, लटके चेहरे, थकी, उबाऊ बौडी लैंग्वेज वाले लोगों की बेचैन लाइन, शानदार बने स्टेज पर खड़े दूल्हा, दुलहन, दोनों के परिवार तक पहुंचने के लिए लालायित लोग.

उस लाइन को देख कर हम ने एकदूसरे को देखा, पति कुछ कहें, इस से पहले मैं ने बाजी मारी, ‘न… यह नहीं हो पाएगा. मैं इस लाइन में नहीं खड़ी होने वाली.”

हम ने इधरउधर नजर डाली, एक दोस्त दिखा, देखते ही बोला, ‘मैं ने तो आते ही बबलू को लाइन में लगा दिया था, वो देखो, सुरेश की बेटी पिंकी भी लाइन में लगी है, वे दोनों खाना खा रहे हैं, बस ऐसे ही काम चलाना पड़ रहा है.”

मैं ने कहा, “भाई साहब, हम क्या करें… हमारे साथ तो कोई पिंकी, बबलू नहीं.”

“फिर तो भाभीजी, आप लोग एकएक कर के खा लो, और दूसरा लाइन में लगा रहे.”

“अरे, खाने का क्या है, खा ही लेंगे. ये तो सब स्टेज पर हैं, इन से तो मिलना ही मुश्किल लग रहा है, स्टेज पर गए बिना इन लोगों को पता भी नहीं चलेगा कि हम आए भी हैं. बड़ी मुश्किल है.”

“हां, आसान तो नहीं है. हम तो आते ही लाइन में लग गए थे.’’

इतने में हमारी बेटी झिलमिल का फोन आ गया, “आप लोग ठीक से पहुंच गए, मम्मी?”

“मुझे तुम पर बहुत गुस्सा आ रहा है, औरों के बच्चे देखो. आ कर कैसे अपने पेरेंट्स की हैल्प कर रहे हैं, एक तुम हो कि घर में ही हो, पर साथ में नहीं आई, कुछ हैल्प हो जाती!”

“अरे, आप दोनों अपने सर्किल में शादी की पार्टी में गए हो, मुझ से वहां क्या हैल्प चाहिए थी?”

“अरे, आ कर कम से कम लाइन में लग जाती.”

“क्या…? कौन सी लाइन में…?”

मुझे अचानक लगा कि अब झिलमिल को कुछ भी कहूंगी तो बस अपना मजाक ही बनवाऊंगी. मैं ने कहा, ‘‘कुछ नहीं, घर आ कर बात करते हैं.’’

हम दोनों को भीड़ से बहुत ही परेशानी होती है, हम उस जगह जाते ही नहीं, जहां हमें इस तरह की भीड़ दिख जाती है. आधा ग्राउंड तो चेयर्स से भरा था, मैं ने कहा, “इतनी चेयर्स रखी  हैं, पर इन पर लोग बैठ ही नही रहे, बेचारे लाइन में खड़े रह कर शगुन का लिफाफा दे कर ऐसे घर भागेंगे कि आ कर गलती कर दी. चलो, हम बैठ कर सोचते हैं कि इस मुसीबत के पलों से कैसे निबटा जाए.”

“हद करती हो, किसी के बच्चे की पार्टी है, तुम्हें ये मुसीबत की घड़ी लग रही है.”

“न भाई, अपना तो जोश ठंडा हो गया, कोई दोस्त भी दिख रहा है तो बस या तो जल्दीजल्दी खाने में लगा है या लाइन में है. मैं तो सोच कर आई थी कि सब के साथ थोड़ी बातें करेंगे, बैठेंगे, यहां तो माहौल ऐसा है कि सब के जीवन का उद्देश्य इस समय है कि बस स्टेज तक पहुंच जाएं, बाकी सब चीजें भाड़ में जाएं.”

“क्या करें…? घर चलें…? कहीं रास्ते में डिनर कर लेंगे.”

“और शगुन का लिफाफा…”

“किसी दिन इन के घर ही चल कर दे आएंगे.”

अपने काम की बात सुनी तो पीछे खड़ा परिचित फौरन हम पतिपत्नी के आइडिया पर बीच में कूद पड़ा, “हां यार, ऐसा ही करते हैं, इन के घर जा कर शगुन दे आएंगे. पर, खाना खा लेते हैं.”

हम दोनों ने आंखों ही आंखों में ‘हां’ किया, अब खाने की लाइन देखी, यह लाइन शगुन वाली से छोटी  थी. हम ने इस लाइन में खड़े होने की हिम्मत की, पता नहीं एक महिला को किस बात की जल्दी थी, उस ने मेरे पीछे से हाथ बढ़ा कर अपनी प्लेट में सब्जी इस तरह से ली कि मुझे लगा, मेरी गरदन पर पीछे सब्जी का कुछ गीलापन है, मैं ने उसे पलट कर जरा घूरा, वो कहीं और देखने लगी, मुझे उस की जल्दबाजी पर गुस्सा आया था. मैं ने उस से साफसाफ पूछ लिया, “मेरी गरदन पर आप की प्लेट से कोई सब्जी लगी है?”

“जरा सी. मैं टिश्यू पेपर से साफ कर देती हूं,” कह कर उस ने मेरी ‘हां’ या ‘ना’ का इंतजार ही नहीं किया, जो भी निशान रहा होगा, झट से पोंछ दिया. मन में सोचा, ‘भई, तुम्हें इतनी जल्दी क्यों मची है, आगे खड़ी महिला का सुंदर ब्लाउज तुम्हें न दिखा…? उस पर गिर जाता तो…?’ फिर अपनेआप ही बोली, “सौरी, जरा शगुन वाली लाइन में खड़े होने की जल्दी है, पति को लाइन में खड़ा कर के आई हूं.”

उस के यह कहते ही मेरा मन उस के प्रति करुणा से भर गया. मैं ने उसे फौरन माफ कर दिया. मैं ने ‘इट्स ओके’ कहते हुए उसे एक प्यारी स्माइल दी. खाना खा कर हम ने फिर एक ठंडी सांस ले कर शगुन वाली भीड़ को देखा, अब तक हमारा आइडिया वायावाया घूम कर काफी लोगों को शांत कर गया था कि जिस का मनोबल कम है, जिस में जोश कम है, वह घर जा कर शगुन आराम से बाद में दे देगा. इतने में मेजबान दोस्त की बहन की नजर बहुत दूर से हम पर पड़ी, उस ने वहां से हाथ हिलाया, हम ने यहां से. उस ने स्टेज पर आने का इशारा किया, हम ने लाइन दिखाते हुए दूर से हाथ जोड़ दिए और इशारा किया कि बाद में मिलेंगे.

चंट बहन फौरन समझ गई कि लोग इस तरह जाने लगे, तो कहीं भाई का नुकसान न हो जाए, हमारे पास लपकी आई, मुझ से गले मिली, “आओ, चलो स्टेज पर.”

मैं ने कहा, “घर पास ही है, बाद में जा कर शगुन दे दूंगी. देखो मीता, इस लाइन में तो मैं खड़ी नहीं होने वाली. या एक काम करो, तुम यह लिफाफा रखो, हमारी तरफ से शगुन दे देना और बता देना कि हम आए थे.”

“अच्छा, चलो, मैं तुम्हें स्पैशल ऐंट्री दिलवाती हूं.”

“कैसे…?”

“अरे यार, एक सेकंड का काम है. जिस तरफ से लोग स्टेज से उतर रहे हैं, तुम लोग उधर से मेरे साथ आ जाओ, शगुन अपने हाथ से दो और वहीं सब से मिलो, फोटो खिंचवाओ, आओ.”

मुझे उस की यह चंट बहन नहीं, इस समय वह मुझे मुश्किलों से उबारने वाली देवदूत सी बहन लगी. हम उस के पीछेपीछे चल पड़े और वह बड़े आराम से हमें उतरने वाली साइड से स्टेज पर ले गई, मेजबान दोस्त अब कहीं जा कर गले मिले, हम ने शगुन का लिफाफा दिया, फाइनली इस लिफाफे का बोझ हमारे दिल से कम हो पाया था. हमारा संघर्ष खत्म हो गया था, पर हमें इस तरह से स्टेज पर जाते देख लाइन में खड़े लोगों ने नाराजगी भरा शोर सा मचाया. हम जल्दी से स्टेज से उतर कर अपनी राह हो लिए, मन में आया, ‘ऐ लोगो, कभी कहीं और भी गलत बातें देख आवाज उठा लिया करो. सब जगह चल रही धांधलेबाजी देख चुप रहते हो, यहां भी फिर चुप ही रहो, अपनी बारी आई तो जरा सी भी गलत बात बरदाश्त नहीं हुई.

हुंह, मैं इठलाती सी किला फतेह जैसी भावना से पति के साथ वापसी के लिए कार में बैठ गई.

“क्या सोच रही हो…?”

“भारत लाइन प्रधान देश बनता जा रहा है, कभी नोटबंदी की लाइन, कभी राशन की लाइन, शादी में शगुन की लाइन, खाने की लाइन, बस की लाइन… शादी के कार्ड में अब अकाउंट नंबर भी देने चाहिए, जिस से लोग कम से कम शादी में आ कर कुछ तो ऐंजौय कर लें, शगुन सीधे अकाउंट में डाल देना चाहिए. आजकल पेटीएम है, फोन पे है, कितना कुछ तो है. यह लाइन खत्म होनी चाहिए.”

“तुम और तुम्हारे आइडिया,” हंसते हुए कह कर उन्होंने कार स्टार्ट कर दी थी, पर आप बताइए कि यह आइडिया अच्छा है न.

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