दरवाजे की घंटी की आवाज सुनते ही सुलोचना हड़बड़ा कर खड़ी हो गई.

‘’इतनी देर हो गई बातों में, समय का पता ही न चला. 6 बज गए और यह आ गए.’’

उन के साथ बैठी प्यारी ननद गीता ने आखें नचा कर कहा,”तो क्या हो गया? 6 ही तो बजे हैं, आप सब तो 9 बजे खाना खाने वालों में से हो.’’

“वह तो ठीक है लेकिन आज राजेश सीमा को ले कर आने वाला जो है. मैं ने तो अभी तक कोई तैयारी भी नहीं की है.”

राजेश सुलोचना का इकलौता लड़का है जो 5 साल पहले इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर हैदराबाद नौकरी करने चला गया था और 6 महीने पहले ही ट्रांसफर ले कर अपने शहर इंदौर वापस आया था.

उस की उम्र 27 वर्ष की हो चुकी थी और न सिर्फ सुलोचना और उन के पति बल्कि उन के सभी रिश्तेदार और पड़ोसी राजेश के लिए एक पत्नी की तलाश में लगे हुए थे.

आजकल के बच्चों के विचारों से वाकिफ सुलोचना और मनोहरलाल राजेश पर अपनी पसंद नहीं लादना चाहते थे और इस कारण जब राजेश ने उन के सुझाए 10-12 प्रस्तावों को मना कर दिया तो उन्हें उन्होंने उस से सीधी तरह उस की अपनी पसंद के बारे में पूछ लिया.

राजेश ने बताया कि वह यहीं इंदौर में उस के औफिस में काम करने वाली अपनी जूनियर सीमा को पसंद करता है लेकिन अभी तक उस ने सीमा से इस बारे में कोई बात नहीं की है. सुलोचना ने राजेश को कहा कि वह सीमा को घर ले कर आए. यह पिछले हफ्ते की ही बात थी और आज राजेश सीमा को ले कर घर आ रहा था.

आज ही सवेरे सुलोचना की ननद गीता भी 3 महीने बाद भोपाल से आई थी और अपनी प्यारी भाभी के पिछले 3 महीनों का हिसाब विस्तारपूर्वक लेने में लगी हुई थी.

गीता सुलोचनाजी के पति मनोहरलाल की लाङली 8 साल छोटी बहन थी. सुलोचना, मनोहर लाल और राजेश के अलावा घर में सुलोचना की सास मनोरमा देवी भी रहती थीं. मनोरमा देवी ने काफी तकलीफों का सामना करते हुए मनोहरलाल और गीता का पालनपोषण किया था. वह बेहद मेहनती और दिखावेबाजी से दूर रहने वाली महिला थी. घर के सभी सदस्य उन का बहुत सम्मान करते थे.

सीमा के आने की बात सुनते ही गीता देवी तुरंत नहाने और तैयार होने को चल पड़ी और सुलोचना देवी ने किचन की राह संभाली.

किचन में सारा काम बिखरा पड़ा था. औफिस से घर आए पति को चाय बना कर देना भी आवश्यक था और यह सब करतेकरते घड़ी में 6:30 बज गए. सुलोचना फिर से बाहर ड्राइंगरूम में आई और सामान थोड़ा सजाया. फिर किचन की तरफ बढ़ी ही थी कि दरवाजे की घंटी फिर से बज गई.

दरवाजे पर राजेश एक शालीन संकोची दिखने वाली लड़की के साथ खड़ा था,”नमस्ते आंटी,” लड़की ने मीठी आवाज में सुलोचना का अभिनंदन किया.

“नमस्ते बेटी. अंदर आओ, अंदर आओ,” कहते हुए सुलोचना ने सीमा को बैठने का इशारा किया और राजेश से बोली,”अरे बेटा, रोज तो 7:15 – 7:30 घर आते हो, आज 6:45 बजे ही पहुंच गए. क्या सीमा को घर लाने की इतनी जल्दी थी?”

“नहीं, यह बात नहीं, रोज तो मैं शेयर टैक्सी से आता हूं पर आज सीमा के साथ इस की स्कूटी पर निकल पड़ा इसलिए जल्दी पहुंच गया.”

सीमा को देख कर सुलोचना को राजेश की पसंद पर गर्व हो आया. सीमा दिखने में तो आकर्षक थी ही उस की बातचीत और कपड़े पहनने के लहजे से शालीनता स्पष्ट नजर आ रही थी. सुलोचना सीमा से उस की पढाई, शौक और घरपरिवार के बारे में बात करने लगी. हालांकि सीमा काफी खुशमिजाजी से ही बात कर रही थी फिर भी सुलोचना को पता नहीं क्यों उस के चेहरे पर कई बार गंभीरता के लक्षण आतेजाते नजर आए, खासकर जब सुलोचना उस के परिवार के बारे में पूछ रही थी.

मनोहरलाल और गीता ने ड्राइंगरूम में प्रवेश किया और राजेश ने सीमा से उन का परिचय कराना आरंभ किया.
सुलोचना झटपट किचन में जा कर नाश्ते की तैयारी में लग गई.

कढ़ाई में समोसे डालने के बाद सुलोचना ने मिक्सी में चटनी पीसना शुरू किया ही था कि चीं… चीं…की आवाज के साथ मिक्सी बंद हो गई .

सुलोचना ने झल्लाते हुए मनोहरलाल को आवाज लगाई,”अजी जरा बिल्डिंग के इलैक्ट्रीशियन को तो बुलाओ, यह मिक्सी फिर से खराब हो गई.”

“अभी पिछले हफ्ते ही तो ठीक करवाई थी,” मनोहर लाल बोले,”अभी शाम को 7:00 बजे इलैक्ट्रिशियन कहां से मिलेगा. अब तो मिक्सी कल ही ठीक होगी.”

“पर बिना चटनी के तो समोसे का कोई मजा ही नहीं आएगा,” सुलोचना का मुंह लटक गया,”बेटा राजेश, तू एक बार देखेगा क्या?”

“मम्मी, आप को तो पता ही है कि यह सब काम मुझ से नहीं होते. आप चिंता न करो आप के हाथ के समोसे तो इतने बढ़िया होते हैं कि हम बिना चटनी के तो क्या बिना तले ही खा लेंगे.”

सुलोचना ने सीमा की ओर देखा और कहा,”इन दोनों बापबेटों से घर का कोई काम कहो तो इन का जवाब ऐसा ही होता है. हमारी बिल्डिंग का इलैक्ट्रिशियन भी बहुत ढीला काम करता है. चलो, अब टोमैटो सौस के साथ ही समोसे खा लेंगे.” यह सुन कर सीमा उठ खड़ी हुई और बोली, “आंटी, मैं एक बार देखूं ?”

“अरे नहीं बेटी, यह तो बिजली मिस्त्री का काम है. मिक्सी भी कितनी पुरानी है, कब से बदलने की सोच रही हूं.”

“कोई बात नहीं आंटी, एक बार मुझे देखने तो दीजिए,” सीमा ने किचन में पड़ा चाकू उठाया और तार के जले हुए हिस्से को साफ करने में जुट गई. उसे यह करता देख राजेश ने कहा “बहुत बढ़िया, तुम्हें यह काम भी आता है यह तो मुझे पता
ही न था. हमारी आयरन पर भी जरा एक नजर डाल लो.”

सीमा ने मुसकराते हुए कहा, “जरूर मैं वह भी कर दूंगी पर फिलहाल आप मुझे एक स्क्रूड्राइवर और थोड़ा टेप खोज कर दीजिए.” जब तक राजेश स्क्रूड्राइवर खोज कर लाता सीमा ने मिक्सी को उठा कर देखा और कहा “आंटी तार जलने में न तो मिक्सी का दोष है और ना इलैक्ट्रिशियन का. इस के हवा के सारे छेद बंद हो गए हैं और इस वजह से मिक्सी गरम हो कर खराब हो जा रही है. कोई पुराना टूथब्रश मिलेगा क्या?”

5 मिनट के अंदर सीमा ने तार का जला हुआ हिस्सा वापस जोड़ दिया और मिक्सी की पूरी सफाई कर डाली,“लीजिए, आंटी आप की मिक्सी फिर से सेवा में हाजिर है.”

सुलोचना ने जैसे ही मिक्सी का बटन दबाया मिक्सी चल पड़ी. “अरे मिक्सी की आवाज भी बहुत कम हो गई, बहुत बढ़िया.”

“और क्या आंटी, आज के जमाने में इतनी बढ़िया मिक्सी नहीं मिलती. आप इस का वजन तो देखो असली तांबे के तारों से इस की मोटर बनी है,”अपनी प्यारी मिक्सी की तारीफ सुन कर सुलोचना प्रसन्न हो गई. “चलो बेटी तुम बाहर सब के
साथ बैठो, मैं अभी आती हूं.”

“नहीं आंटी, मैं भी आप का साथ देती हूं. मुझे भी समोसे बनाना आ जाएगा,” सीमा के हाथों में गजब की फुरती थी और सुलोचना के बताए तरीके से उस ने फटाफट समोसे बना डाले. दोनों नाश्ते की प्लेटें ले कर बाहर आईं.

राजेश जा कर मनोरमा देवी को बुला लाया और सभी ने अच्छे से नाश्ता किया. मनोरमा देवी ने सीमा से बातें तो थोड़ी ही कीं लेकिन उसे लगातार देखती जरूर रहीं.

“अच्छा आंटी, 8:00 बज गए हैं, मैं चलती हूं. आप सभी के साथ बातों में सवा घंटा कैसे निकल गया पता ही न
चला.”

“क्या खाना नहीं खाओगी, सीमा?”

“नहीं आंटी, खाना तो मेरा घर पर तैयार पड़ा होगा. फिर कभी प्रोग्राम
बनाती हूं,” सब को नमस्कार कर सीमा निकल पड़ी.

सीमा के जाने के बाद सुलोचना और गीता ने एकसाथ उस की बढ़ाई करनी शुरू कर दी. वास्तव में दोनों ने अपनी आंखों से सीमा की कुशलता और सुंदरता को देख लिया था और अभी तक उन्होंने राजेश के लिए जितने भी रिश्ते देखे थे उन की तुलना में सीमा उन्हें बहुत ही बेहतर लगी.

गीता ने कहा,”दोनों की जोड़ी बहुत अच्छी बन पड़ेगी मनोहर भैया, अब तो चट मंगनी पट ब्याह कर डालो.”

उन की बातें सुनकर राजेश ने कहा,”बुआजी, मैं आप को सीमा के बारे में कुछ और भी बताना चाहता हूं. ऐसा करें हम डिनर के बाद बात करते हैं, नहीं तो दादी को सोने में देर हो जाएगी.”

राजेश की बात सुन कर सुलोचना और गीता चकरा गए फिर भी उन्होंने कहा,”ठीक है, तुम लोग चेंज कर के आओ. 9:00 बजे खाना टेबल पर तैयार रहेगा.”

खाना बनाते बनाते सुलोचना और गीता देवी के दिमाग में प्रश्न ही प्रश्न चक्कर लगा रहे थे. एक बात तो स्पष्ट थी कि बात गंभीर ही है और राजेश दादी के सामने इस विषय पर चर्चा नहीं करना चाहता है. खाने का काम 9:30 बजे पूरा हुआ और मनोरमा देवी अपने कमरे में चली गई.

“हां बेटा राजेश, बोलो क्या सरप्राइज़ दे रहे हो ?” मनोहरलाल ने जबरन अपने चेहरे पर मुसकान लाते हुए वातावरण को हलका करने की चेष्टा की हालांकि उन का मन भी अंदर से धकधक कर रहा था कि राजेश पता नहीं क्या बात बताने वाला है. वास्तव में राजेश ने जो कहा वह सुन कर सब का दिमाग घूम गया.

राजेश ने कहा, “मां सीमा एक विधवा है. आज से 2 साल पहले इस का विवाह यहीं इंदौर में धूमधाम से एक व्यवसायी परिवार में हुआ था. देर रात तक विवाह की रस्में पूरी करने के बाद बारात सवेरे ग्वालियर पहुंची. बहू का ग्रहप्रवेश करवाया गया. बाराती अपनेअपने सामान को सजाने में जुट गए और लड़कियां सीमा से बातें करने में.

सीमा का पति भी वहीं बारबार आजा रहा था और लड़कियां उस का मजाक उड़ा रही थीं,“अरे भैया कुछ देर हम भी तो बातें कर लें, आप के पास तो यह हमेशा रहने वाली है, आप को इतनी क्या जल्दी है?”

इतने में सीमा की सास ने सीमा के पति को आवाज दी,”अरे बेटा, शादी की मिठाई ले कर ज्ञानदेव बाबा के आश्रम चला जा.”

उस परिवार में ज्ञानदेव बाबा को जीताजागता देवता माना जाता था और घर का हर काम उन के आदेशों पर ही होता था.

“मां, मैं तो बहुत थका हुआ हूं. क्या अभी जाना जरूरी है? शाम को तो सीमा को ले कर वहां बाबा का आशीर्वाद लेने जाना ही है.”

सीमा की सास ने गरम होते हुए कहा,”और अगर ज्ञानदेव बाबा को पता चल गया कि बारात सवेरे आई लेकिन मिठाई उन के यहां शाम को पहुंची है तो क्या वह बासी मिठाई पर नजर भी डालेंगे? बैठ जा मुन्नू के पीछे मोटरसाइकिल पर और मिठाई पहुंचा कर आजा.”

पीछे से लड़कियों ने आवाज लगाई,”हां ताई, भैया को तो भाभी से बातें करनी है इसलिए इन्हें आलस आ रहा है.”

सीमा का पति झेंपते हुए मिठाई के थैले ले कर अपने चचेरे भाई के पीछे मोटरसाइकिल पर बैठ गया. घंटे बाद दरवाजे पर काफी आवाज हुई. जब लोगों ने दरवाजे पर पुलिस को खड़ा देखा तो सब के होश गुम हो गए.
पता चला कि आधी नींद में मोटरसाइकिल चलाता हुआ मुन्नू ज्ञानदेव बाबा के आश्रम के बाहर एक ट्रक से टकरा गया था.

मुन्नू बुरी तरह घायल हो गया था और सीमा का पति जिस ने अपनी नवविवाहिता पत्नी की शक्ल तक ठीक से नहीं देखी थी, आश्रम के दरवाजे के सामने निर्जीव पड़ा था. घर में हाहाकार मच गया. चारों ओर रोनेधोने की आवाज गूंजने लगी. सीमा तो यह खबर सुनते ही बेहोश हो गई. जब उसे होश आया तो उस के आसपास कोई नहीं था. किसी ने यह देखने की जरूरत नहीं समझी कि सीमा पर क्या गुजर रही होगी.

दोपहर तक सीमा कमरे में एक जिंदा लाश की तरह पड़ी रही. करीब 3:00 बजे उस के भाई ने कमरे में कदम रखा. भाई को देखते ही सीमा चीख कर भाई से लिपट गई और फूटफूट कर रोने लगी. पता चला कि सीमा के पति की मृत्यु की खबर मिलते ही सीमा के ससुर ने उन के घर फोन किया और कहा कि वह आ कर
सीमा को ले जाएं.

रोतीबिलखती सीमा जब घर से निकल रही थी तब घर का कोई सदस्य न तो उसे संभालने आया न किसी के मुंह से उस के लिए सहानुभूति के 2 शब्द निकले. गनीमत यही थी कि किसी ने उसे कोसा नहीं, कम से कम उस के सामने तो नहीं कुछ नहीं कहा.

अगले दिन सीमा की ससुराल वालों ने उस का सारा सामान वापस भेज दिया और हमेशा के लिए रिश्ता खत्म कर लिया. सुनने में आया कि ज्ञानदेव बाबा ने इस हादसे की जिम्मेदारी सीमा के सिर पर थोपी थी नकि सीमा की सास की बेवकूफी पर जिस ने बच्चों को जिद कर कर बाबा को मिठाई पहुंचाने भेजा था जबकि वह पूरी रात सोए नहीं थे और थके हुए थे.

धीरेधीरे सीमा ने खुद को संभाला. किसी तरह उसे अच्छी कंपनी में नौकरी मिल गई जिस से उस का समय गुजरने लगा और बीती बातों को भूलने में मदद मिली. अकलमंद और मेहनती तो वह थी ही, जल्दी ही कंपनी में उसका कंफर्मेशन भी
हो गया. कहते हैं न कि समय सब घावों को भर देता है. राजेश जब हैदराबाद से इंदौर वापस आया तो संयोगवश उस की पोस्टिंग उसी डिपार्टमैंट में हुई जहां सीमा काम करती थी. वह सीमा की मेहनत से बहुत प्रभावित हुआ क्योंकि सीमा अकेले ही उस के 2 मातहतों के जितना काम कर लेती थी और उसे कभी सीमा के काम में गलतियां नहीं मिलीं.

काम के मामले में सीमा से उस की रोज ही बात हो जाती थी. धीरेधीरे उसे सीमा अच्छी लगने लगी और वह उसे भावी जीवनसंगिनी के रूप में देखने लगा. तब तक उसे भी सीमा के जीवन का यह अध्याय पता नहीं था. जब उस ने सीमा के प्रोमोशन की सिफारिश एचआर डिपार्टमैंट से की तब उसे सीमा के जीवन में घटी इस दुर्घटना का पता चला.

यह सब बता कर राजेश ने कहा, “पापा, मम्मी, बुआजी, अब निर्णय आप के हाथों में है. मुझे जो कुछ पता था वह मैं ने आप को साफसाफ बता दिया है. बाकी आप किसी भी तौर पर देखें तो सीमा मेहनती है, गुणवती है और मुझे बहुत पसंद भी है. उस का छोटा सा परिवार उस से बहुत स्नेह करता है और उस के भाईभाभी उसे बहुत अच्छी तरह रखते हैं. उस
पर दूसरी शादी करने का परिवार वालों की तरफ से कोई दबाव नहीं है और आर्थिक रूप से भी वह स्वतंत्र है.”

“नहीं बेटा, यह तू क्या कह रहा है. यह कैसे हो सकता है?” सुलोचना और गीता दोनों के मुंह से यही शब्द साथ साथ निकले.

गीता ने कहा,”हमारा इकलौता बेटा एक विधवा से शादी करेगा? अरे बेटा दुनिया में लड़कियों की क्या कमी है? मैं एक से एक रिश्ते तेरे लिए खोज कर लाऊंगी. मानती हूं कि सीमा बहुत सुंदर भी है और गुणवती भी, लेकिन दुनिया में और भी ऐसी लड़कियां मिलेंगी और वह भी कुंआरी.”

सभी ने मनोहरलाल की तरफ देखा तो उन का चेहरा गुस्से से तमतमा रहा था. उन्होंने लगभग गुर्राते हुए कहा,”हरगिज नहीं, यह कभी नहीं होगा. तुझे कुछ हो गया तो?“ मनोहरलाल का रुख गीता और सुलोचना से भी ज्यादा कड़ा था.

“पर पापा…“ राजेश कुछ कहना चाहता था पर उस की बात काटते हुए मनोहरलाल बोले, “और तुम ने यह सोचा है नालायक कि मां क्या कहेगी? मां की उम्र का पता है तुझे? अगर यह बात उन्होंने सुन भी ली तो उन की तबीयत बिगड़ सकती है. अगर उन्हें कुछ हो गया तो मैं अपने हाथों से तेरा गला दबा दूंगा.”

“अरे आप धीरे तो बोलिए. आप की आवाज से ही मांजी की नींद खुल जाएगी,” सुलोचना ने कहा.

राजेश और गीता कुछ बोलने लगे इतने में मनोरमा देवी के कमरे का दरवाजा खुला. सभी लोग बोलतेबोलते चुप हो गए.

“राजेश इधर मेरे कमरे में आओ. तुम सब यहीं बैठो और हमारा इंतजार करो,” मनोरमा देवी ने बहुत पहले की कड़क आवाज में जब यह कहा तो किसी के मुंह से एक शब्द भी नहीं निकला.

करीब 15 मिनट बाद मनोरमा देवी राजेश के साथ बाहर निकलीं और आ कर सब के साथ सोफे पर बैठ गईं. राजेश के चेहरे पर कोई भाव नहीं थे. गीता, सुलोचना और मनोहरलाल एकटक मनोरमा देवी की ओर देख रहे थे.

मनोरमा देवी ने कहा,“ राजेश की शादी सीमा के साथ ही होगी. मुझे यह जान कर बहुत खुशी है कि राजेश ने अपने लिए बिलकुल उपयुक्त पत्नी खोज ली है, जो हम सब मिल कर भी कभी न कर पाते.”

“मां आप क्या कह रहे हो?” मनोहरलाल बोले “आप को पता है सीमा एक विधवा है? हम एक विधवा को बहू बना कर लाएं, यह कैसे हो सकता है? लोग क्या कहेंगे? आप दुनिया की बातें, शगुनअपशगुन, रीतिरिवाज का कुछ तो खयाल करो,” मांबेटे के विरोधी विचार देख सुलोचना और गीता को चुप रहने में ही भलाई लगी.

मनोहरलाल की बात सुन कर मनोरमा देवी 2 मिनट बिलकुल शांत रहीं. इस के बाद उन्होंने जो कहा वह घर के सभी सदस्यों के लिए राजेश की बातों से भी ज्यादा चौंकाने वाला था, “ बेटा, मनोहर तू भी एक विधवा मां की संतान है.”

मां की बात सुन कर मनोहरलाल को लगा कि मनोरमा देवी अपने खुद के बारे में बोल रही हैं.

“मां, पिताजी का 72 वर्ष की उम्र में निधन हो गया था तो वह बिलकुल अलग बात है.”

“नहीं बेटा, मैं यह नहीं कह रही. मैं आज तुझ से जो कहने वाली हूं यह सचाई मैं तुझे अपने जीतेजी नहीं बताने वाली थी. पर आज मुझे बोलने पर मजबूर होना पड़ा नहीं तो तुम बहुत बड़ा अनर्थ कर बैठते.”

“कैसा अनर्थ, कैसी सचाई? मां, तुम क्या कह रही हो मुझे तो कुछ समझ में नहीं आ रहा?” गीता के मुंह से बरबस निकल पड़ा. मनोरमा देवी ने कहा, “तुम सब विमला चाची के बारे में क्या जानते हो?”

विमला मनोरमा की देवरानी थी और उन का घर में अकसर आनाजाना लगा रहता था. बचपन से ही मनोहरलाल और गीता ने उन को स्नेह की प्रतिमूर्ति के रूप में जाना था. मनोरमा देवी के दोनों बच्चों से वह उतना ही स्नेह करती थीं जितना अपने बच्चों से.

“बेटा ,तुम्हारी चाची बनने से पहले विमला का एक विवाह और हुआ था और सीमा की ही तरह शादी के कुछ दिनों बाद उस का पहला पति बीमार हो कर गुजर गया. यह बात आज से 55 वर्षों पहले की है. विमला तुम्हारे दादाजी के घनिष्ठ मित्र की पुत्री थी और उस का दुख देख कर उन्होंने तुम्हारे चाचाजी से उस का पुनर्विवाह करने का निर्णय लिया.

घर के सदस्यों ने जब उन का विरोध किया तब उन्होंने भूख हड़ताल कर दी और 3 दिनों तक अन्न का एक दाना भी मुंह में नहीं लिया. आखिरकार घर वालों को उन की बात माननी पड़ी और विमला तुम्हारी चाची बन कर हमारे घर आ गई. बहुत थोड़े ही समय में विमला ने अपने अच्छे व्यव्हार से घर में सभी को अपना बना लिया और हमारा परिवार बहुत
अच्छे से चलने लगा. हमारी चिंता के विपरीत 1-2 सालों में ही लोगों ने इस बात को आयागया कर दिया.

विमला को मुझ से थोड़ा ज्यादा ही लगाव था क्योंकि जब तुम्हारे दादाजी ने इस रिश्ते का प्रस्ताव किया था तब पूरे घर में सिर्फ मैं ने इस का समर्थन किया था और तुम्हारे चाचा को भी इस के लिए प्रेरित किया था. शादी के 2 साल बाद विमला ने तुम्हें जन्म दिया.

मेरी गोद तब तक सूनी ही थी हालांकि मेरी शादी को 5 वर्ष हो चुके थे. अस्पताल से घर आने के बाद विमला सीधे मेरे पास आई और तुम्हें मेरी गोद में डाल दिया. मैं चकित हो कर उस की तरफ देखने लगी. बहुत मना भी किया पर विमला ने मेरी एक न मानी. उस के बाद विमला की 2 संताने और हुईं और मैं ने भी गीता के रूप में संतानसुख प्राप्त किया. तो बेटा, अब यह बताओ तुम्हें विमला चाची में क्याक्या खामियां, दोष और गलतियां दिखाई पड़ती हैं? तुम तो
उन्हें बचपन से देखते आ रहे हो. क्या तुम्हें कभी यह लगा कि विमला की वजह से तुम्हारे चाचा पर या तुम बच्चों पर किसी किस्म की आंच आई है? तुम्हें तो पता है कि तुम्हारा ब्लड ग्रुप इतना रेयर है कि लाखों में एक इंसान ही तुम्हें खून दे सकता है. जब तुम्हें कालेज में चोट लगी थी तब विमला ने 2 बोतल खून दे कर तुम्हारी जान बचाई थी. नहीं तो पूरे मध्य प्रदेश में डोनर खोजतेखोजते बहुत देर हो जाती. क्या तुम ने कभी सोचा कि उन का खून तुम से इतनी आसानी पूर्वक कैसे मैच कर गया?”

मनोहर लाल, गीता और सुलोचना के मुंह से कोई शब्द नहीं निकला. राजेश सोफे से उठ कर अपनी दादी के पावों के पास बैठ गया और तीनों की तरफ देखने लगे. मनोहर लाल उठे और अपने कान पकड़ते हुए बोले,“मां, आज आप ने मुझे बहुत बड़ी गलती करने से बचा लिया. आप जो कह रही हैं वही होगा. दुनिया की मुझे कुछ नहीं पड़ी, जो जिसे जो कहना है वह कहता रहे. सीमा ही इस घर में बहू बन कर आएगी. हमें उस के जीवन में घटी दुखद घटना के बारे में उसे एक शब्द भी कभी नहीं कहना है.”

मनोरमा देवी ने कहा, “एक और बात बेटा, अभी जो कुछ मैंने तुम्हें बताया वह राज हमारे बीच में ही रहे. तुम में से कोई इस का जिक्र विमला से कभी न करना और न ही विमला के प्रति तुम्हारे व्यवहार में कोई परिवर्तन आए.”

मनोहरलाल जोरजोर से सिर हिला कर सहमति जता रहे थे क्योंकि शब्द उन के गले में अटक गए थे. गीता और सुलोचना की आंखों से जारजार आंसू बह रहे थे पर यह आने वाली खुशियों के स्वागत के आंसू थे.

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