हरियाणा की रहने वाली 29 साल की विनेश फोगाट महिला पहलवान हैं. विनेश राष्ट्रमंडल और एशियाई खेलों में स्वर्ण जीतने वाली पहली भारतीय महिला पहलवान हैं. इसके अलावा विश्व कुश्ती चैंपियनशिप में कई पदक जीतने वाली एकमात्र भारतीय महिला पहलवान भी वे हैं. फोगाट 2019 में लौरियस वर्ल्ड स्पोर्ट्स अवार्ड्स के लिए नामांकित होने वाली पहली भारतीय ऐथलीट भी हैं. कुश्ती से विनेशका पारिवारिक रिश्ता सा है. उनके चचेरे भाई अंतर्राष्ट्रीय पहलवान और राष्ट्रमंडल खेलों के पदक विजेता रहे हैं. विनेश के पिता राजपाल फोगाट भी पहलवान रहे हैं. पहलवान गीता और बबीता विनेश की चचेरी बहनें हैं.

कुश्तीमें आने के लिए विनेश के परिवार को काफी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा. उन्हें हरियाणा में अपने गांव में समुदाय के भारी दबाव और विरोध का सामना करना पड़ा. लड़कियों का पहलवानी में आगे आना मुश्किल था. इसके बाद भी विनेश ने हर मुश्किल से लड़ कर पहलवानी की और पदक जीत कर अपने को श्रेष्ठ साबित भी किया. इसके बाद उन्होंने अपनी पंसद के लड़के पहलवान सोमवीर राठी से शादी की.

कुश्ती महासंघ के खिलाफ विरोध प्रदर्शन

विनेश फोगाट सहित 30 भारतीय पहलवानों, ओलिंपिक पदक विजेता साक्षी मलिक, अंशू मलिक और बजरंग पुनिया सहित अन्य ने जनवरी 2023 में एक विरोध प्रदर्शन आयोजित किया. इसके बाद भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्ल्यूएफआई) को भंग करने की मांग की. इन सभी का आरोप था कि कोच और अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह वर्षों से महिला खिलाड़ियों का यौन उत्पीड़न कर रहे हैं. दावों की जांच के लिए एक निगरानी समिति बनाने की सरकार की पहल के बाद विरोध प्रदर्शन खत्म कर दिया गया.

इसके बाद अप्रैल 2023 में विनेश और महिला पहलवानों ने कहा कि बृजभूषण द्वारा प्रधानमंत्री मोदी और खेल मंत्री अनुराग ठाकुर को रिपोर्ट करने के बादउन्हें मानसिक रूप से परेशान किया जा रहा है. उनको प्रताड़ित किया गया और जान से मारने की धमकी दी गई. विरोध कर रही महिला पहलवान यह चाहती थीं कि बृजभूषण शरण सिंह को कुश्ती महासंघ से हटाया जाए. उनके खिलाफ मुकदमा कायम हो. किसी महिला को कुश्ती महासंघ का अध्यक्ष बनाया जाए. सरकार ने हर मांग मान ली तो खिलाड़ियों ने भी अपना विरोध छोड़ दिया.

चुनाव में जीता बृजभूषण का सहयोगी

कुश्ती महासंघ से बृजभूषण के बाहर होने के बाद नए चुनाव हुए. उसमें महिला पहलवान अनीता को केवल 7 वोट मिले. 40 वोट पाकर बृजभूषण के करीबी संजय सिंह चुनाव जीत गए. इसके बाद महिला पहलवानों का विरोध फिर से शुरू हो गया. संजय सिंह के कुश्ती महासंघ का चुनाव जीतने के बाद साक्षी मलिक ने भी कुश्ती से संन्यास की घोषणा कर दी.

साक्षी मलिक प्रैस कौन्फ्रेंस में संवाददाताओं से बात करने के बाद अपने जूते वहीं टेबल पर छोड़कर चली गईं. साक्षी मलिक ने कहा, ‘अगर प्रैसिडैंट बृजभूषण जैसा आदमी जो उसका सहयोगी है, उसका बिजनैस पार्टनर है, फैडरेशन में रहेगा तो मैं अपनी कुश्ती को त्यागती हूं. मैं आज के बाद आपको कभी भी वहां नहीं दिखूंगी.’

साक्षी मलिक के खेल से संन्यास लेने की घोषणा के बाद पहलवान बजरंग पुनिया ने भी अपना पद्मश्री पुरस्कार सरकार को लौटा दिया. बजरंग पुनिया ने पद्मश्री पुरस्कार लौटाते हुए कहा, ‘जब तक न्याय नहीं मिलता उन्हें सम्मान नहीं चाहिए.’ अपने सोशल मीडिया हैंडल पर बजरंग पुनिया ने लिखा, ‘हमें सिर्फ भगवान पर भरोसा है. मैंने अपना पद्मश्री सम्मान बहनबेटियों के लिए वापस किया था, उनके सम्मान के लिए वापस किया था और जब तक उन्हें न्याय नहीं मिल जाता तब तक मुझे कोई सम्मान नहीं चाहिए.’ प्रधानमंत्री के नाम सोशल मीडिया पर एक खुला खत लिखा, ‘महिला पहलवानों को अपमानित किए जाने के बाद मैं सम्मानित होकर अपनी जिंदगी नहीं जी पाऊंगा.’

विनेश ने उठाया बड़ा कदम

विनेश फोगाट प्रधानमंत्री तक अपनी बात पहुंचा कर अपने सम्मान वापस करना चाहती थीं. विनेश फोगाट ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर अपने फैसले की घोषणा की थी. विनेश फोगाट ने अपने पुरस्कार लौटाने के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय पहुंचने का प्रयास किया. पुलिस ने उन्हें रोक दिया. विनेश का कहना था कि ऐसे समय में इस तरह के सम्मान बेमतलब हो गए हैं जब पहलवान न्याय पाने के लिए जूझ रहे हैं.

विनेश फोगाट ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम लिखे पत्र को अपने सोशल मीडिया हैंडल पर पोस्ट किया. इसमें उन्होंने लिखा, ‘साल 2016 में जब साक्षी ओलिंपिक में मैडल जीतकर आई थी तो उसे बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का ब्रैंडएंबेसडर बना दिया गया. लेकिन अब उन्हें कुश्ती छोड़नी पड़ रही है. क्या महिला खिलाड़ी सरकार के विज्ञापनों में छपने के लिए ही बनी हैं ? हम न्याय के लिए बीते एक साल से सड़कों पर हैं, लेकिन कोई हमारी सुध नहीं ले रहा.

‘हमने अपने न्याय के लिए आवाज उठाई तो हमें देशद्रोही बताया गया. बजरंग ने जिस हालत में अपना पद्मश्री वापस करने का फैसला लिया होगा, मुझे नहीं पता, लेकिन मैं उसकी फोटो देखकर अंदर दी अंदर घुट रही हूं. अब मुझे भी अपने पुरस्कारों से घिन्न आने लगी है. मुझे मेजर ध्यानचंद खेलरत्न और अर्जुन पुरस्कार दिया गया था लेकिन अब इसका मेरी जिंदगी में कोई मतलब नहीं रह गया है. मैं ये पुरस्कार वापस करना चाहती हूं ताकि सम्मान से जीने की राह में ये पुरस्कार हम पर बोझ न बनें.’

व्यवस्था के खिलाफ विनेश की जंग

उस दौर में जब शासनसत्ता के डर से विरोध में कोई भी कुछ भी कहने से डर रहा हो वहां विनेश फोगाट ने अपनी बात कहने के लिए प्रधानमंत्री से मिलकर बात कहने का साहस दिखाया. वे पीएमओ तक जाने के लिए निकलीं. उनके हाथ में खेल सम्मान थे जो वे पीएम को वापस करना चाहती थीं. लेकिन उनको यह मौका नहीं मिला. इसके बाद भी विनेश फोगाट ने हार नहीं मानी.

वे अपने पुरस्कार लेकर ‘कर्तव्य पथ’ पर गईं. वहां पुलिस ने उनको मना किया. तब विनेश ने ‘कर्तव्य पथ’ पर ही अपने पर पुरस्कार छोड़ दिए. इसके बाद दिल्ली पुलिस सम्मान उठा ले गई. विनेश फोगाट ने ‘कर्तव्य पथ’ का चुनाव इसलिए किया क्योंकि मोदी सरकार ने ‘राजपथ’ का नाम बदल कर ‘कर्तव्य पथ’ रखते समय देश का कर्तव्य याद दिलाया था. सरकार अपने कर्तव्य भूल गई, जिसके कारण विनेश जैसी महिला पहलवान को यह कदम उठाना पड़ा.

क्या है ‘कर्तव्य पथ’ ?

‘कर्तव्य पथ’ देश की सबसे महत्त्वपूर्ण स्ट्रीट का नाम है. इसका नाम 3 बार बदल चुका है. रायसीना हिल परिसर से इंडिया गेट तक जाने वाली सड़क का नाम पहले ‘किंग्सवे’ था. इसके बगल ‘क्वीन्सवे‘ था. ब्रिटिशकाल में किंग जौर्ज पंचम द्वारा जब राजधानी को कलकत्ता (कोलकाता) से दिल्ली लाया गया तब इसका निर्माण किया गया था. किंग जौर्ज पंचम के निर्देश पर वास्तुकार सर एडविन लुटियन और सर हर्बर्ट बेकर ने नई राजधानी का निर्माण किया. किंग जौर्ज पंचम और उनकी पत्नी क्वीन मैरी ने 15 दिसंबर, 1911 को ब्रिटिशराज की ‘नई राजधानी’ की आधारशिला रखी थी.

किंग के निर्देश पर वास्तुकार सर एडविन लुटियन और सर हर्बर्ट बेकर ने नई राजधानी का निर्माण किया, जिसकी भव्यता और स्थापत्य कला ने यूरोप और अमेरिका के सर्वश्रेष्ठ शहरों को टक्कर दी. इस राजधानी का केंद्र बिंदु रायसीना हिल परिसर था. ‘किंग्सवे’ पर वायसराय हाउस (राष्ट्रपति भवन) और नौर्थ ब्लौक और साउथ ब्लौक शाही सचिवालय थे. ‘क्वीन्सवे‘ पर ग्रेट प्लेस (विजय चैक) से इंडिया गेट तक एक भव्य मार्ग बनाया गया, जिसके दोनों तरफ हरेभरे लौन, फौआरे और सजावटी लैंप पोस्ट थे.

बेकर ने राष्ट्रपति भवन के पास एक गोलाकार संसद भवन बनाया, जिसका उद्घाटन जनवरी 1927 में तत्कालीन वायसराय लौर्ड इरविन ने किया था. 2 विश्वयुद्धों के बीच शहर का निर्माण किया गया था और इसे बनने में 20 साल से अधिक का समय लगा था. वायसराय इरविन ने ही 13 फरवरी, 1931 को इसका उद्घाटन किया था. राजाओं के चलने के लिए ‘किंग्सवे’ और उनकी रानियों को चलने के लिए ‘क्वीन्सवे‘ का प्रयोग होता था.

15 अगस्त, 1947 को भारत के आजाद होने पर रायसीना हिल से इंडिया गेट तक के मार्ग किंग्सवे का नाम बदलकर ‘राजपथ’ कर दिया गया. भारत 26 जनवरी, 1950 को गणतंत्र बन गया और राजपथ 1951 से सभी गणतंत्र दिवस समारोहों का स्थल बन गया. केवल पहला गणतंत्र दिवस समारोह इंडिया गेट परिसर के पीछे इरविन स्टेडियम (कैप्टन ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम) में आयोजित किया गया था, जहां राजपथ समाप्त होता है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रपति भवन से इंडिया गेट तक जाने वाली सड़क का नाम ‘राजपथ’ से बदल कर ‘कर्तव्य पथ’ कर दिया. इस तरह से तीसरी बार इसका नाम बदला गया. नाम बदलने के बाद भी इसका काम नहीं बदला. यहां आज भी गणतंत्र दिवस समारोह आयोजित होते हैं. जिनमें पहले की तरह राष्ट्र प्रमुख सेना की सलामी लेते हैं. जनता केवल दर्शक की तरह होती है. पहले आम जनता यहां गणतंत्र दिवस समारोह को देखने आ भी जाती थी, अब सुरक्षा कारणों से आम जनता कम ही आ पाती है.

‘राजपथ’ का नाम बदल कर ‘कर्तव्य पथ’ रखने से नेताओं, अफसरों में कोई कर्तव्यबोध बढ़ गया हो, ऐसा भी नहीं है. अगर सरकारी अफसरों, खासकर पीएमओ के अफसरों, का कर्तव्यबोध बदला होता तो विनेश फोगाट का अपने खेल सम्मान वापस करने के लिए ‘कर्तव्य पथ’ तक न आना होता. इससे साफ है कि नाम बदलने से हालात नहीं बदलते. विनेश के पक्ष में पूरा भारत खड़ा है. इसके बाद खेल मंत्रालय ने डब्ल्यूएफआई के नवनिर्वाचित पैनल को निलंबित कर दिया. भारतीय ओलिंपिक संघ (आईओए) ने कुश्ती संघ का कामकाज देखने के लिए एक तदर्थ समिति का गठन कर दिया. कुश्ती संघ को भंग नहीं किया गया है. जिससे साफ है कि कुछ दिनों के बाद इसको बहाल किया जा सकता है.

विनेश फोगाट के पक्ष में राहुल गांधी

कर्तव्य पथ पर विनेश फोगाट का एक वीडियो साझा करते हुए राहुल ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में लिखा कि ‘देश की हर बेटी के लिए आत्मसम्मान पहले है, अन्य कोई भी पदक या सम्मान उसके बाद. आज क्या एक घोषित बाहुबली से मिलने वाले राजनीतिक फायदे की कीमत इन बहादुर बेटियों के आंसुओं से अधिक हो गई है? राहुल गांधी ने विनेश फोगाट के खेलरत्न और अर्जुन पुरस्कार लौटाने के बाद पीएम मोदी की आलोचना की है. राहुल ने कहा कि ‘प्रधानमंत्री देश के अभिभावक होते हैं और उनकी तरफ से ऐसी निष्ठुरता देखकर दुख होता है.’

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...