अव्वल तो पंडित के पहले ही कश्मीरी शब्द लगा होने से लगता है कि वे मुख्यधारा के पंडित नहीं हैं. ठीक वैसे ही जैसे कश्मीरी मुसलमान खुद को न हिंदुस्तानी मानते और न ही पाकिस्तानी मानते. केंद्र सरकार ने जम्मूकश्मीर से जुड़े जो 2 बिल लोकसभा में पेश किए हैं उन में से एक है जम्मू कश्मीर पुनर्गठन ( संशोधन ) विधेयक, जिस के तहत वहां विधानसभा सीटों की संख्या बढ़ कर 114 हो जाएगी.

इस अधिनियम के मुताबिक विधानसभा में पहली बार विस्थापित कश्मीरी पंडितों के लिए 2 और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर यानी पीओके के लिए एक सीट आरक्षित रहेगी. इन्हें उपराज्यपाल नामांकित कर सकेंगे और नामांकन में यह यह सुनिश्चित किया जाएगा कि एक प्रतिनिधि महिला हो.

लोकसभा में इस मसले पर हुई लंबीचौड़ी गरमागरम बहस में मुद्दे की बात के बजाय पंडित जवाहरलाल नेहरु की तथाकथित गलतियों का जिक्र और नरेंद्र मोदी द्वारा उन्हें कथित रूप से सुधारने का बखान होता रहा. अनुच्छेद 370 पर भी टीएमसी के सौगात राय और गृह मंत्री अमित शाह के बीच तीखी बहस हुई.

बकौल सौगात राय जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 के खत्म होने के बाद भी राज्य में कोई बदलाव नहीं हुआ है. कांग्रेस के मनीष तिवारी ने तो इस विधेयक को ही असंवैधानिक करार दे डाला क्योंकि 370 के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अभी तक कोई फैसला नहीं दिया है.

बहस में महाराजा हरि सिंह का जिक्र भी मंत्री अनुराग ठाकुर ने किया कि क्या उन का कोई योगदान नहीं है. एक ही परिवार की भक्ति करते रहने वाले लोग उन्हें भूल गए.

मंशा, नीयत और नतीजे

कश्मीर को ले कर भाजपा की मंशा कहने को तो बहुत साफ है कि वह वहां के विस्थापित पंडितों को दोबारा बसा कर उन्हें पुराने दौर में लाना चाहती है. यह काम विधानसभा में आरक्षण से हो पाएगा इस में शक है क्योंकि उस की नीयत अपनी सियासी ताकत बढ़ाने भर की है. दरअसल में कश्मीर को जरूरत प्रोत्साहन, शांति और रोजगार की है.

5 दिसंबर को जब लोकसभा में पंडित जवाहरलाल नेहरु, हरिसिंह और नरेंद्र मोदी को ले कर आरोपप्रत्यारोप लग रहे थे ठीक उसी वक्त में श्रीनगर में भारतीय सेना अपने नारी शक्ति कार्यक्रम के तहत उन 25 महिलाओं को सम्मानित कर रही थी जिन्होंने लगातार मेहनत कर समाज को एक बेहतर मुकाम देने में अहम रोल निभाया. इन महिलाओं ने शिक्षा खेल और रोजगार के क्षेत्र में कश्मीर के लिए नई संभावनाएं पैदा की हैं. उल्फत बशीर, सादिया तारिक, आबिदा वार और सैयद हमेरिया इन में चंद उल्लेखनीय नाम हैं.

कश्मीरी पंडितों को विधानसभा में आरक्षण कहीं इस तरक्की और अमन में खलल न डाले इस पर सोचा जाना जरुरी है और इस के लिए जरुरी है कि पूरा देश और सभी वर्गों के लोग मुल्ला और पंडित जैसे तंग शब्दों के दायरे से बाहर आएं जिस से कश्मीर जलता रहा है.

370 को बेअसर करना भाजपा के हिंदू राष्ट्र का एजेंडा था जिस के पूरे होने के बाद भी भाजपा को चैन नहीं पड़ रहा. वह अपनी हिंदू और पंडित हितेषी इमेज चमकाने अब फूट डालने का काम कर रही है क्योंकि कश्मीरी पंडितों को अब जरूरत रोजगार और स्थायित्व की ज्यादा है जिस का रास्ता विधानसभा से हो कर तो कतई नहीं जाता. यह बात बजाय जज्बातों के व्यवहारिकता कश्मीरी पंडितों सहित सभी भारतीयों को समझने की जरूरत है.

यह आरक्षण हिंदुओं में फूट डाल कर वोट हासिल करने की साजिश है जिसे भाजपा ने पश्चिम बंगाल में भी ट्राई किया था, जब चुनावी दिनों में नरेंद्र मोदी ने वहां के मतुआ समुदाय को लुभाने उन के पूजा स्थलों पर जाना शुरू किया था.

2019 के लोकसभा चुनाव में तो मतुआ समुदाय ने भाजपा को थोड़ा भाव दिया लेकिन मंशा भांपते ही विधानसभा चुनाव में टीएमसी और ममता बनर्जी पर फिर से भरोसा जताया. कर्नाटक में भी भाजपा ने यही चाल चली थी जब उस ने अति पिछड़े दलितों को अलग से आरक्षण देने की बात कही थी लेकिन वहां भी उसे मुंह की खानी पड़ी थी.

कौन करता है हिंदू मुसलमान

कश्मीर के इतिहास को छोड़ दें तो आजादी के बाद से वहां चुनी गई राज्य सरकारें ही राजकाज संभालती रही हैं जिन्हें भाजपा हिंदू विरोधी और मुसलमान हिमायती बता कर पूरे देशभर के हिंदुओं का समर्थन सहानुभूति और वोट बटोरती रही है. क्योंकि वहां के मुख्यमंत्री मुसलमान ही रहे लेकिन ममता बनर्जी और विजयन तो मुसलमान नहीं हैं. इस सियासी गणित पर भाजपा चुप्पी साध जाती है कि वहां के हिंदू क्यों ममता और विजयन को चुनते रहते हैं.

यह दरअसल में फूट डालने की मुहिम और साजिश है. हालिया मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद सोशल मीडिया पर ऐसी पोस्टें वायरल हो रही हैं जिन में यह बताया जा रहा है कि इतने मुसलिम बाहुल्य बूथों पर मुसलमानों ने कांग्रेस को वोट किया जबकि भाजपा को वहां हिंदुओं के ही वोट मिले.

इन पोस्टों में सवाल किया जा रहा है कि क्या कांग्रेस को वोट करने वाले मुसलमान ‘लाड़ली बहना’ सहित दूसरी सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं लेते हैं. पहले दिल्ली में आम आदमी पार्टी की जीत और फिर कर्नाटक में कांग्रेस की जीत पर वहां के हिंदुओं को गद्दार और बिकाऊ तक कहा गया था. इस पर तरस खाने वाला सवाल तो इन सनातनियों पर यह उठता है कि ‘लाड़ली बहना’ के तहत भाजपा को वोट करने वाली महिलाएं इस पैमाने और लिहाज से बिकाऊ क्यों न कही जाएं. यानी हिंदू ही हिंदू को कोस रहा है. मुसलमान तो उन की इस सनातनी और पौराणिक फूट पर मजे ले रहा है.

इस कट्टर और भड़काऊ मानसिकता से समाज में तनाव अलगाव और दहशत का माहौल बनता है. यही शुरुआत जम्मू कश्मीर में चुनाव के पहले ही शुरू हो गई है जिस से वहां तनाव और बढ़ेगा.

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