2 स्टार

आज से 10 साल पहले आई अनुराग कश्यप की फिल्म (गैंग्स आफ वासेपुर) को सब से हिंसक फिल्म माना जाता था लेकिन अब निर्देशक संदीप रेड्डी वांगा ने हिंसा के मामले में (गैंग्स औफ वासेपुर) को पीछे छोड़ दिया है. अब ‘एनिमल’ को बौलीवुड की सब से ज्यादा हिंसक फिल्म माना जा रहा है.

इस फिल्म में नायक रणबीर कपूर को खूंखार जानवर की तरह दिखाया गया है जो खून की होली खेलने से भी पीछे नहीं हटता. कमजोर दिल वालों को यह फिल्म नहीं देखनी चाहिए. खूनखराबे के मामलों में यह फिल्म ‘गोडफादर’ और ‘कल बिल’ जैसी फिल्मों की याद दिलाती है. मारकाट वाली फिल्मों के शौकीन दर्शकों को यह फिल्म अच्छी लग सकती है.

कहते हैं हर इंसान के अंदर एक जानवर होता है जो वैसे तो किसी को कुछ नहीं कहता मगर कोई उसे या उस के परिवार वालों पर जानलेवा हमला करे तो वह हमला करने वालों के खून का प्यासा हो जाता है.

इस फिल्म में नायक को हिंसक दिखाया गया है. नायक विजय (रणवीर सिंह) अपने अरबपति पिता बलबीर सिंह (अनिल कपूर) को दीवानगी की हद तक चाहता है मगर पिता रातदिन बिजनैस में बिजी रहने के कारण बेटे को प्यार व समय नहीं दे पाता. पिता का ध्यान आकर्षित करने के लिए वह हिंसा का सहारा लेता है. तंग आ कर पिता उसे होस्टल में डाल देता है. मगर जब विजय अपने जीजा के साथ बदतमीजी करता है तो पिता को लगता है उस में कोई बदलाव नहीं आया है.

विजय खुद को सब से शक्तिशाली पुरुष कहलाना पसंद करता है. उसे गीतांजलि (रश्मिका मंदाना) से प्यार हो जाता है. मगर विजय का पिता उस के खिलाफ होता है तो विजय गीतांजलि को ले कर अमेरिका चला जाता है.

अमेरिका में 8 साल रहने के बाद एक दिन विजय को पता चलता है कि उस के पिता को किसी ने गोली मार दी है तो विजय वापस इंडिया लौटता है. पिता का बदला लेने के लिए वह जानवर बन कर खूनी खेल में शामिल हो जाता है.

अपने पिता की आन बान और शान के लिए विजय सभी से टकरा जाता है. खुद संदीप का मानना है कि यह फिल्म ‘कभी खुशी कभी गम’ जैसी नहीं है. अपने पिता पर जानलेवा हमला होने से वह ऐलान करता है कि जिस किसी ने भी मेरे पापा पर गोली चलाई है उस का गला मैं अपने हाथ से काटूंगा. लेकिन लगने लगता है कि घर का भेदी ही लंका ढा रहा है. कहानी में असली मोड़ तब आता है जब यह दुश्मनी खानदानी निकलती है.

खलनायक की भूमिका बोबी देओल ने निभाई है. उस का किरदार गूंगा है. विजय इस किरदार से अपने खानदान का बदला लेता है. विजय ने वहशी और खूंखार का किरदार शानदार तरीके से निभाया है. उस का अभिनय फिल्म के हर दृश्य में लाजवाब है. अपनी प्रेमिका के साथ विजय के अंतरंग दृश्य दिल को छूते हैं.

बतौर निर्देशक संदीप रेड्डी की यह तीसरी और हिंदी में दूसरी फिल्म है रश्मिका मंदाना ने एक सनकी टाईप के लड़के से शादी करने से ले कर 2 बच्चों की मां तक का किरदार बहुत खूबसूरती से निभाया है.

विजय के शारीरिक संबंध किसी और महिला से बन चुके हैं तो उस के बाद के दृश्य में रश्मिका ने अपनी बेहतरीन अभिनय प्रतिमा का प्रदर्शन किया है. पति कोमा से लौट कर घर आता है और उस के सारे अंग शिथिल हो चुके हैं तब वह घर में काम कर रही सहायिका के सामने ही पत्नि के साथ अंतरंग होने की कोशिश करता है और रश्मिका इस सीन में अपने कपड़े उतार कर पति के पास आती है. इस सीन को करने के लिए रश्मिका तारीफ की हकदार है.

अनिल कपूर ने रणबीर कपूर के पिता का किरदार शिद्दत से निभाया है. फिल्म में शक्ति कपूर, सुरेश ओबराय और प्रेम चोपड़ा ने भी अपने किरदार मजबूती से निभाए हैं. बोबी देओल का किरदार फिल्म खत्म होने से थोड़ी देर पहले ही आता है और कहानी को ऊंचाई तक ले जाता है.
फिल्म की सब से बड़ी कमजोरी इस का लंबा होना है. फिल्म 3 घंटे से भी अधिक लम्बी है. फिल्म का निर्देशन अच्छा है. संगीत भी अच्छा है. दो गाने ‘अर्जन वैल्ली’, ‘पापा मेरी जां’ पहले ही हिट हो चुके हैं. फिल्म का क्लाईमैक्स शानदार है.

फिल्म के सीक्वल बनने का इशारा फिल्म में कर दिया गया है. फिल्म का संपादन अच्छा है. फिल्म मंहगे बजट वाली है और ये बजट पर्दे पर साफ दिखता है. फिल्म की सिनेमेटोग्राफी और लोकेशन अच्छी है. कम्प्यूटर ग्राफिक्स बेहद अच्छे हैं और एक बात रणबीर कपूर का हर वक्त सिगरेट पीते रहने से कईयों को एतराज हो सकता है.

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