यह फिल्म एक लड़की की कहानी है जो चारचार रेपिस्टों से अकेली भिड़ जाती है और उन का काम तमाम कर देती है. फिल्म को क्रिकेट खिलाड़ी विराट कोहली की पत्नी एक्ट्रैस अनुष्का शर्मा ने बनाया है, अनुष्का ने अपनी पहली फिल्म ‘एनएच 10’ बनाई थी.

फिल्म ‘एनएच 10’ में नायिका फिल्म दर्शकों को यह सिखा गई थी कि किसी को इतना मत डराओ कि उस के अंदर का खौफ ही खत्म हो जाए. जब किसी के अंदर का डर खत्म हो जाता है तो उस के पास लड़ने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचता और वह अपने से कई गुना ताकतवर प्राणी से भी भिड़ जाता है.

इस फिल्म ‘अपूर्वा’ की नायिका अपूर्वा (तारा सुतारिया) के साथ भी कुछ ऐसा ही घटा है. चारचार रेपिस्टों ने उसे इतना डराया कि वह अकेली होते हुए भी उन चारों से भिड़ गई. यहां अपूर्वा की हिम्मत की दाद देनी पड़ेगी.

साल 2012 में निर्भया रेपिस्ट कांड ने पूरे भारत वर्ष को हिला कर रख दिया था. इस कांड के चारों रेपिस्टों को सजा दे दी गई थी. यह घटना सभी को यह बताती है कि युवतियों को कमजोर नहीं पड़ना चाहिए. अपनी रक्षा खुद करनी आनी चाहिए. होश में रह कर गुंडों और रेपिस्टों से दोदो हाथ करने वाली युवतियां मुसीबतों से निपट ही लेती हैं.

यह फिल्म मर्दवादी और सामंती सोच को सामना करना सिखाती है. फिल्म एनएच 10 सरीखी ही है. एक अकेली लड़की का गुंडों के बीच फंसना, किसी की मदद न मिलना और उस लड़की का हिम्मत करके उन गुंडों से भिड़ जाना फिल्म में तनाव पैदा करता है. फिल्म यह संदेश देने में सफल है कि आड़े वक्त में होश नहीं खोना चाहिए.

फिल्म की लंबाई बहुत कम है डेढ़ घंटा. इस डेढ़ घंटे में दर्शक खुद को बंधा सा महसूस करते हैं. फिल्म की कहानी 14 साल पहले लिखी गई थी. कहानी इतनी सी है कि शादी तय हो जाने के बाद अपूर्वा अपने प्रेमी के शहर जा कर उस के जन्मदिन पर उसे सरप्राइज देना चाहती है लेकिन रास्ते में ही उस का अपहरण हो जाता है. एक पूरी रात वह इन खूनी हमलावरों से बचने की कोशिशें करती है. इसी पर पूरी फिल्म बनी है.

फिल्म शुरू होती है चंबल, मध्य प्रदेश से. यह एक समय में डाकुओं का गढ़ था. फिल्म में 4 मौडर्न डाकू हैं. इन के नाम भी सुक्खा, छोटा, जुगनू हैं. ये लोग पैसे ले कर लूट मचाते हैं और अपना दिल बहलाने के लिए मर्डर. राजपाल यादव, अभिषेक बनर्जी, सुमित गुलाटी और आदित्य गुप्ता ने इन गुंडों का रोल किया है.

एक तरफ ये लोग बड़े फिगर जैसे दिखना चाहते हैं. किसी की जान ले ली, किसी को बख्श दिया, खुद सामने वाले के भगवान हो गए. ऐसे रफ एंड टफ दिखने वाले लोगों का चरित्र खोखली मर्दानगी पर गढ़ा गया है. कैसे कद पर कमैंट किया, मर्दानगी को लिंग से जोड़ कर देखा, इन बातों पर ट्रिगर हो जाते हैं.

फिल्म में उन चारों के घिनौनेपन की पीछे की जड़ यही खोखली मर्दानगी है. वे बिना सोचेसम झे फैसले लेते हैं. फिल्म इसी मर्दानगी वाले पार्ट पर कमैंट तो करती है पर उस की गहराई में ठीक से नहीं उतर पाती. फिल्म की लैंथ छोटी है और शुरुआती 15-20 मिनट के अंदर ही अपनी बात कहने लगती है.

कम लैंथ वाली फिल्म के साथ यही खामी होती है कि जितनी डैप्थ में जा कर यह अपनी बात कह सकती थी वह कह नहीं पाती. किरदारों के साथ कनैक्शन बन नहीं पाता. जैसे, अपूर्वा एक लड़के से मिली, एक गाना आया और दोनों की सगाई तक हो गई.

पटकथा लेखक ने बहुत ही छोटी कहानी पर अपनी सारी सिनेमाई सीख का इस्तेमाल की है, लेकिन इतनी जल्दी भी चीजें नहीं निपटानी होती हैं. यह पटकथा संवादों के जरिए दर्शकों के मन में डर पैदा करती रहती है.

निखिल का निर्देशन अच्छा है. उस ने कैमरे का संचालन दृश्यप्रकाश संयोजन की अच्छी परिकल्पना की है. फिल्म में राजपाल यादव ने बढि़या काम किया है. अब तक वह कार्टून टाइप का कौमेडी कलाकार के रोल ही किया करता था. इस फिल्म में उस ने खूंखार और क्रूर लुटेरों के गैंग लीडर का किरदार निभाया है.

राजपाल यादव के लिए यहीं से एक नई पारी शुरू हो सकती है. तारा सुतारिया ने इस बार पूरा मन लगा कर काम किया है. उस ने ‘स्टूडैंट औफ द ईयर’ वाली अपनी इमेज को बदलने की अच्छी कोशिश की है. इस से पहले वह हीरो की हीरोइन होती आई थी, जो ग्लैमरस है. लेकिन इस फिल्म में उस ने खुद को चैलेंज किया है. अपहरण के बाद रात में 4 खूंखार दरिंदों से बचने की कोशिशों के दौरान भी उस का अभिनय अच्छा है. अभिषेक बनर्जी इस फिल्म की सब से कमजोर कड़ी है.

फिल्म का संगीत कमजोर है. ऐसी फिल्मों में कम से कम एक ऐसा गाना जरूर होना चाहिए जो दहशत के माहौल को बदल ले. गांवदेहात के युवायुवतियों के साथ किए जाने वाले अपराधों के वीडियो बना कर वायरल होते रहते हैं. संदेश यह है कि हालात कैसे भी हों युवतियों को अपना हौसला नहीं खोना चाहिए.

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