‘वंदना के पति अरुण का तबादला कानपुर हो गया है, अगले सप्ताह वे लोग कालोनी छोड़ कर चले जाएंगे.’ यह खबर सविता को अपनी पड़ोसिन आंचल से मिली.

‘‘विदाई पार्टी देने के लिए तुम वंदना को अपने घर आमंत्रित करोगी.’’ मुसकराती हुई आंचल ने सविता को जानबूझ कर छेड़ा.

‘‘उसे पार्टी देगा मेरा ठेंगा,’’ सविता एकदम चिढ़ उठी.

‘‘2 साल पहले तक तुम दोनों कितनी अच्छी सहेलियां हुआ करती थीं.’’

‘‘अब वह मुझे फूटी आंख नहीं भाती. उस के जाने की बात सुन कर मेरे कलेजे में बहुत ठंडक पड़ी है.’’

‘‘अपने पति के साथ तुम्हारा नाम जोड़ कर उस ने तुम्हें बदनाम करने की जो कोशिश की थी उस के लिए आज तक माफ नहीं किया तुम ने उसे.’’

‘‘ऐसा गलत और गंदा आरोप क्या कभी कोई भुला सकता है. बहुत बार कोशिश की उस ने फिर से मेरे साथ दोस्ती करने की पर मैं ने ही उसे घास नहीं डाली,’’ सविता की आंखों से नफरत और गुस्से की चिनगारियां फूटने लगीं.

सविता को थोड़ा और भड़का कर आंचल ने उस के मुंह से कुछ अन्य चटपटी बातें वंदना के खिलाफ उगलवाईं और फिर उन्हें अपनी सहेलियों के बीच बताने को विदा हो गई.

आंचल के जाने के बाद सविता के मन में उस दिन की कड़वी यादें उभरीं जिस दिन वंदना ने उसे उस की सहेलियों के बीच बदनाम व अपमानित करने की कोशिश की थी.

उस दिन सविता के घर आंचल, नीलम और निशा वहीं थीं. सविता का मूड शुरू से खराब था. उस ने न चाय पी न कुछ खाया.

‘कल शाम तुम मेरे घर किसलिए आई थी.’ वंदना के बोलने का लहजा झगड़ा शुरू करने का इरादा साफ दिखा रहा था.

‘तुम से यों ही मिलने आई थी लेकिन इतने अजीब ढंग से यह सवाल क्यों पूछ रही हो तुम.’ सविता नाराज हो उठी थी.

‘मुझे आए आधा घंटा हो गया है मगर अब तक तुम ने मुझे क्यों नहीं बताया कि तुम मेरे घर आई थीं?’

‘क्या ऐसा कहना जरूरी है.’

‘मेरे सवाल का जवाब दो, सविता.’

‘मैं भूल गई थी तुम्हें बताना.’

‘भूल गईं या इस बात को छिपाना चाह रही हो?’ वंदना ने चुभते लहजे में पूछा.

‘मैं मामूली सी तुम्हारे घर जाने की बात भला क्यों छिपाना चाहूंगी?’ गुस्साए सविता की आवाज ऊंची हो गई.

‘अपनी गंदी हरकतों पर कौन परदा नहीं डालना चाहता?’

‘क्या मतलब?’

‘मतलब यह कि तुम अरुण पर डोरे डाल रही हो. कल शाम खिड़की से मैं ने तुम्हें अरुण के गले लगते अपनी आंखों से देखा. अपनी सहेली के साथ विश्वासघात करते हुए तुम्हें शरम नहीं आई?’ वंदना ने उसे सब के सामने अपमानित किया था.

‘क्या बकवास कर रही हो. ऐसा झठा आरोप मुझ पर मत लगाओ,’ सविता और ज्यादा जोर से चिल्लाई.

‘जो मेरी आंखों ने देखा है वह झठ नहीं है. खबरदार जो तुम कभी मेरे घर मेरी पीठ पीछे गईं या अरुण से अकेले में मिलने की कोशिश की. मेरी तुम्हारी दोस्ती आज से खत्म, सुना तुम ने,’ प्रश्नवाचक मुद्रा में देखा वंदना ने. फिर गुस्से से पैर पटकती हुई उस के घर से चली गई थी.

उस के जाने के बाद सविता खूब रोई. उसे पता था कि उस की सहेलियां इस घटना को चटखारे लेले कर पूरी कालोनी में फैला देंगी. अपनी छवि के खराब हो जाने की कल्पना ने उस के आंसुओं को कई दिन तक थमने नहीं दिया था.

इस घटना से 3 दिन पहले सविता का सोने का हार चोरी हो गया था. चोर कौन था, इस का उसे बिलकुल अंदाजा नहीं था पर अपनी सहेलियों के बीच वंदना को नीचा दिखाने के लिए उस दिन उस ने चोरी का इलजाम वंदना के मत्थे मढ़ दिया.

‘इतनी चालाक और काइयां औरत मैं ने अपनी जिंदगी में पहले कभी नहीं देखी,’ सविता ने आंखों में आंसू भर आहत भाव से कहा था, ‘आज की उस की जलील हरकत देख कर मेरा शक विश्वास में बदल गया है कि मेरा हार वंदना ने ही चुराया है. अब झठा लांछन लगा कर मुझ से लड़ रही है. मुझ से संबंध तोड़ कर बारबार मेरे सामने शर्मिंदा होने के झंझट से मुक्ति पा गई चोट्टी.’

कुछ देर उस की हां में हां मिला कर उस की सहेलियां विदा हो गई थीं. सिर्फ 24 घंटे के अंदर इस घटना की जानकारी पूरी कालोनी को हो गई.

सविता ने वंदना को आज तक कभी दिल से माफ नहीं किया. यों कुछ महीनों बाद उन के बीच औपचारिक सा वार्त्तालाप हो जाता, लेकिन न उन का एकदूसरे के घर आनाजाना शुरू हुआ और न ही कभी दोस्ती के संबंध फिर से कायम हुए.

अगली शाम सविता का वंदना से आमनासामना बाजार में हुआ. तब तक सविता अपनी दसियों सहेलियों के घरों में जा कर हार चोरी हो जाने व अपनी झठी बदनामी वाली बातों की चर्चा कर आई थी. वंदना की बुराई करने व अपनी सहेलियों की सहानुभूति पाने में उसे अब भी अजीब सा सुख व शांति मिलती थी. पिछले 2 सालों में ऐसा कम ही हुआ था कि वह कालोनी में किसी से मिली हो और इन दोनों घटनाओं की चर्चा कर वंदना को भलाबुरा न कहा हो.

‘‘सुना है अगले सप्ताह कानपुर जा रही हो.’’ सविता ने जबरदस्ती वाले अंदाज में मुसकरा कर वंदना से पूछा.

‘‘अरुण का तबादला हो गया है, इसलिए जाना तो पड़ेगा ही,’’ वंदना भी बेचैन नजर आ रही थी.

‘‘नई जगह जा कर नई सहेलियां बनाना अच्छी बात ही है.’’

‘‘नए को पुराना होते और दोस्ती को दुश्मनी में बदलते ज्यादा देर नहीं लगती,’’ वंदना कुछ उदास सी हो कर बोली.

‘‘ताली दोनों हाथों से बजती है, एक से नहीं,’’ सविता चुप न रह सकी.

‘‘अरे, अब छोड़ो भी ऐसी बातों को. मुझे बहुत सी पैकिंग करनी है. मैं चलती हूं,’’ वंदना ने हाथ मिलाने को अपना हाथ उस की तरफ बढ़ाया.

कल रात को तुम सब घर आ जाओ न,’’ अचानक यों आमंत्रित कर के सविता खुद भी हैरान हो उठी.

‘‘कल तो आंचल ने बुलाया है, ‘गुड बाय’ कहने के लिए मैं वैसे तुम्हारे यहां आऊंगी जरूर. अब चलती हूं,’’ वंदना इस अंदाज में अपने घर की तरफ चली मानो आगे कुछ कहने में उसे बहुत कठिनाई होती.

इस मुलाकात ने सविता के सोच और यादों की धारा को मोड़ दिया. वंदना के साथ झगड़ने से पहले के समय की बहुत सी मुख्य घटनाएं उस के जेहन में घूमने लगीं.

अपने बेटे राहुल के होने के समय वह 3 दिन तक नर्सिंगहोम में रही थी. तब और बाद में भी उस की घरगृहस्थी संभालने में वंदना ने पूरा योगदान दिया था.

सप्ताह में 3-4 बार वह एकदूसरे के यहां जरूर खाना खाते. कई बार पिकनिक मनाने व फिल्में देखने साथ ही गए. जन्मदिन या शादी की वर्षगांठ जैसे समारोहों में बिलकुल अपनों की तरह शामिल होते.

वंदना को अपनी ससुराल वालों की नियमित रूप से आर्थिक सहायता करनी पड़ती थी. इस कारण उस का हाथ कभीकभी बहुत तंग हो जाता. ऐसे मौकों पर 5-10 हजार रुपए की आर्थिक सहायता उस की कई बार सविता ने की थी.

एक समय सविता को लगता था कि उस ने वंदना के रूप में बहुत अच्छी सहेली पा ली थी. फिर एक ही झटके में उन की दोस्ती दुश्मनी में बदल गई.

सविता के दिल में वंदना के प्रति नफरत भी उतनी ही गहरी बनी जितना गहरा कभी प्यार होता था. उसे बदनाम करने या उस का काम बिगाड़ने का कोई मौका सविता कभी नहीं चूकी.

वंदना की आंखों में भी वह अपने प्रति सदा नाराजगी व नफरत के भाव पाती. झगड़े के बाद एकदूसरे से सिर्फ नमस्ते शुरू करने में उन्हें 6 महीने से ज्यादा का समय लगा. उन की सहेलियों ने उन के बीच मनमुटाव बनाए रखने में पूरा योगदान दिया. वह एक के मुंह से दूसरे के खिलाफ निकली बातों को नमकमिर्च लगा कर इधर से उधर पहुंचातीं. इन्हीं औरतों के सामने अपनी नाक ऊंची रखने के लिए वह बढ़ाचढ़ा कर एकदूसरे की बुराई करतीं व आमनासामना होने पर सीधे मुंह बात न करतीं.

जैसेजैसे वंदना के जाने का समय नजदीक आता गया, सविता की बेचैनी व उदासी बढ़ने लगी. ऐसा क्यों हो रहा है, यह वह खुद भी नहीं समझ पा रही थी.

‘वंदना जा रही है तो मैं क्या करूं. मैं ने तो बहुत पहले उस से दोस्ती का संबंध तोड़ डाला था,’ किसी भी परिचित महिला के सामने अब भी वह बड़ी बेरुखी से कहती लेकिन उस के दिल की इच्छा कुछ और थी.

झगड़ा होने के बाद से अब तक वंदना का खयाल उस के दिलोदिगाम पर छाया रहा. अब वह उस की जिंदगी से निकल कर बहुत दूर जा रही थी, इस बात से खुशी या राहत महसूस करने के बजाय वह अजीब सी बेचैनी, चिढ़ व गुस्सा महसूस कर रही थी. खुद को वंदना के हाथों ठगा गया सा महसूस कर रही थी.

दिन गुजरते गए और वंदना उस से न मिलने आई और न ही किसी और जगह दोनों का आमनासामना हुआ. सविता ने कई बार सोचा कि वह खुद वंदना के घर चली जाए, लेकिन हर बार मन ने उस के कदम रोक लिए. उस का आंतरिक तनाव उस की शांत रहने की हर कोशिश को विफल कर बढ़ता गया.

वंदना को जिस रात गाड़ी पकड़नी थी. उस दिन दोपहर को वह सविता से मिलने अकेली आई.

‘‘आखिर मुझ से मिलने आने की तुम ने फुरसत निकाल ही ली.’’ शिकायत करने से सविता खुद को रोक नहीं पाई.

‘‘पैकिंग का काम निबटने में ही नहीं आ रहा था,’’ वंदना मुसकराई.

‘‘अभी कुछ नहीं, पहले वह सब सुन लो जो मैं तुम से आज कहने आई हूं,’’ वंदना के मुंह से शब्द फंसेफंसे से अंदाज में निकले.

‘‘तुम से बहुतकुछ कहने की इच्छा मेरे मन में भी है, वंदना,’’ सविता भावुक हो उठी.

‘‘पहले मैं कहूं.’’

‘‘कहो.’’

‘‘आज के बाद न जाने कब मिलूंगी. अतीत में जिन गलतियों और भूलों के कारण मैं ने तुम्हारा दिल दुखाया है उन सब के लिए माफी मांगने आई हूं मैं,’’ वंदना का गला रूंध गया.

सविता की आंखों में आंसू छलक आए, ‘‘हमारी इतनी अच्छी दोस्ती को न जाने किस की नजर लग गई. पिछले 2 सालों में हमारे दिलों के बीच कितनी दूरियां हो गईं.’’

‘‘वह जो तुम्हारा हार चोरी हो गया.’’

‘‘उसे चुराने का झठा इलजाम मैं ने गुस्से में आ कर तुम पर लगाया था, वंदना. उस दिन मैं अपने आपे में नहीं थी. उस गंदे झठ के लिए मुझे माफ कर दो.’’

‘‘लेकिन तुम्हारा आरोप सच था सविता. हार मैं ने ही चुराया था,’’ अपना पर्स खोल कर 2 साल पहले चोरी किया हार वंदना ने सविता को पकड़ा दिया.

‘‘लेकिन… उफ, मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा है. आखिर, तुम ने हार की चोरी क्यों की थी?’’ सविता गहरी उलझन का शिकार बन गई.

‘‘तुम्हें चोट पहुंचाने के लिए. तुम्हारा नुकसान करने के लिए.’’

‘‘तुम्हारे पति से मेरे गलत संबंध हैं, ऐसा सोच कर ही तुम ने मुझे चोट और नुकसान पहुंचाने की कोशिश की थी न.’’

‘‘हां.’’

‘‘लेकिन तुम्हारा वैसा सोचना गलत था,’’ सविता की आवाज में गहन पीड़ा के भाव उभरे, ‘‘तुम ने मुझे अरुण के गले से लगे हुए जरूर खिड़की से देखा होगा, लेकिन उस में मेरा दोष नहीं था.’’

‘‘मैं जानती हूं इस बात को,’’ गहरी सांस छोड़ते हुए वंदना बोली.

‘‘तुम जानती हो.’’ सविता हैरान हो उठी, ‘‘लेकिन उस दिन तो मुझे ही दोषी मान रही थीं.’’

‘‘गुस्से में आदमी कुछ का कुछ कह जाता है. मैं अरुण की दिलफेंक आदत से परिचित हूं. पता नहीं सुंदर औरतों के पीछे जीभ निकाल कर घूमने की उस की आदत कब और कैसे छूटेगी.’’

‘‘मेरे खुल कर उस के साथ हंसनेबोलने का अरुण ने गलत मतलब लगाया. शायद बहुत ज्यादा खुला व्यवहार कर के मैं ने ही उन्हें शह दी.’’

‘‘और मैं चाह कर भी तुम्हें आगाह नहीं कर सकी कि अरुण से कुछ दूरी बनाए रखना. अपने पति की कमजोरी बता कर तुम्हारे सामने मैं छोटी नहीं पड़ना चाहती थी. बस, तुम्हें उस के साथ खुल कर हंसनाबोलता देख कर मन ही मन किलसती रही. दोषी अरुण है, यह अच्छी तरह समझते हुए भी इसी कुढ़न के कारण तुम्हें चार औरतों के सामने बेकार की अपमानित कर गई,’’ वंदना अचानक ही हाथों में मुंह छिपा कर रोने लगी.

सविता वंदना के पास जा बैठी और उस की पीठ प्यार से थपथपाते हुए दुखी लहजे में बोली, ‘‘मुझे भी अपने खुले व्यवहार पर काबू रखना चाहिए था. तुम्हारे दिल की चिंता, तनाव और ईर्ष्या को पढ़ने की संवेदनशीलता मुझ में होनी चाहिए थी. अगर तुम मुझे जरा सा भी इशारा कर देती तो अरुणा को मैं किसी भ्रम का शिकार कभी न होने देती.’’

‘‘अपनी मूर्खता और नादानी के कारण मैं ने तुम्हारी जैसी अच्छी दोस्त को खो दिया,’’ कहतेकहते वंदना सविता के गले लग कर रोने लगी.

‘‘समझदार मैं भी नहीं निकली. अपनी दोस्ती की ढेर सारी अच्छी यादों को नजरअंदाज कर, बस, एक घटना के कारण तुम्हारे प्रति गुस्से और नफरत से भर कर कितनी दूर हो गई तुम से.’’

‘‘मुझे बहुत अफसोस है कि जैसे हम आज आमनेसामने बैठ कर अपने दिल की बातें एकदूसरे से कह रहे हैं, ऐसा हम ने पहले क्यों नहीं किया.’’

‘‘जिंदगी के पिछले 2 सालों में प्यार व दोस्ती का आनंद उठाने के बजाय नफरत और गुस्से की आग में सुलगते रहने का मुझे भी बेहद अफसोस है, वंदना,’’ वंदना को छाती से लगा सविता भी हिचकियां ले कर रोने लगी.

करीब घंटाभर और बैठ कर वंदना चली गईं. आपस में गले मिलते हुए दोनों ही बहुत उदास और थकीहारी सी नजर आ रही थीं.

कालोनी की औरतों को यह देख कर बेहद आश्चर्य हुआ कि एकदूसरे से पक्की दुश्मनी रखने वाली वंदना और सविता अंतिम विदाई के क्षणों में खूब रोईं. पिछले 2 सालों से नफरत उन की जीवनशक्ति को सक्रिय कर रही थी.

अब तबादले के कारण वह नफरत समाप्त हो गई. भीतर का खालीपन

और 2 साल तक प्यार व दोस्ती से वंचित रहने का अफसोस उन्हें इतना ज्यादा रुला रहा है, यह बात वहां उपस्थित कालोनी की औरतें नहीं समझ सकती थीं.

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