ग्लोबल हंगर इंडैक्स 2023 की रिपोर्ट में भारत 4 अंक नीचे खिसक गया है. इस रिपोर्ट में कुल 125 देशों को शामिल किया गया. 2022 में भारत 107वें स्थान पर था. 2023 में भारत 111 वें स्थान पर पहुंच गया है. ग्लोबल हंगर इंडैक्स तैयार करने का काम यूरोपीय एनजीओ का समूह करता है. इसे अलायंस 2015 के नाम से जानते हैं. इस में आयरलैंड की संस्था कंसर्न वर्ल्ड वाइड और जर्मनी की संस्था वेल्ट हंगर लाइफ मुख्य भूमिका में हैं. यह रिपोर्ट अब तक कुल 16 बार जारी की जा चुकी है.

इस की शुरुआत साल 2000 में हुई थी. इस रिपोर्ट के जरिए वैश्विक, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर भूखमरी का पता लगाने का काम होता है. इस को अलगअलग पैमानों के जरिए देखा जाता है. इस में कुपोषण को मुख्यरूप से देखा जाता है. इस में देखा जाता है कि किसी देश की आबादी के कितने हिस्से को उतना भोजन नहीं मिल पा रहा है, जो स्वस्थ रहने के लिए शरीर की जरूरत है. इसे मापने का आधार कैलोरी तय है.

चाइल्ड वेस्टिंग एवं चाइल्ड स्टनटिंग इस पैरामीटर को 5 साल के बच्चों पर लागू किया जाता है. उम्र के हिसाब से बच्चे दुबले या कमजोर हैं, जिन का वजन उम्र एवं लंबाई के हिसाब से बहुत कम है और बाल मृत्युदर क्या है ? यह देखा जाता है. बाल मृत्युदर यानि 5 साल से कम उम्र के कितने बच्चों की असमय मौत हुई है.

यह रिपोर्ट व्यापक स्तर पर छानबीन करती है. इस में बच्चों के साथ ही साथ महिलाओं के स्वास्थ्य को भी देखा जाता है. भारत में महिलाओं की एक बड़ी आबादी एनीमिया यानी खून की कमी की शिकार है.

इंडैक्स रिपोर्ट के अनुसार 15 से 24 साल की लड़कियों में एनीमिया की दर 58.1 फीसदी है. इस का सीधा असर नवजात बच्चों पर पड़ता है. अगर मां कमजोर होगी तो तय है कि बच्चा भी कमजोर होगा. मां की उम्र कम होगी यानी किशोर उम्र में शादी होने पर भी बच्चे कमजोर ही पैदा होते हैं.

ग्लोबल इंडैक्स बनाने के लिए कुल 100 नंबर तय किए गए हैं. इस का मतलब यह है कि 0-100 नंबर के बीच ही नंबर मिलेंगे. इस बार की रिपोर्ट में 125 देश शामिल किए गए है. स्कोर कम होना बेहतर स्थिति का संकेतक है और ज्यादा होना खराब हालात को दर्शाता है. साल 2023 की रिपोर्ट में भारत का स्कोर 28.7 है. खास बात यह है कि इस इंडैक्स में भारत लगातार कई सालों से पिछड़ता नजर आ रहा है.
भारत की रैंक 2021 में 101, 2022 में 107 और 2023 में 111 है. परेशानी की बात यह है कि भारत से अपेक्षाकृत गरीब देश श्रीलंका, पाकिस्तान, नेपाल जैसे अपेक्षाकृत गरीब देश भी इंडैक्स में भारत से आगे हैं.

भारत सरकार इस रिपोर्ट को गलत बताती है. इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि भारत की बड़ी आबादी, अमीर गरीब के बीच में बढ़ती खाई, ग्रामीण इलाकों में शिक्षा का अभाव, बाल विवाह, नतीजा कम उम्र में बच्चे आज भी चुनौती हैं. केंद्र सरकार कोरोना के बाद से ही करीब 81 करोड़ के अधिक लोगों को मुफ्त राशन दे रही है. अगले 5 साल के लिए इस योजना को आगे बढ़ा दिया गया है. देश की 140 करोड़ आबादी में से 81 करोड़ भूखे हो तो हंगर इंडैक्स को गलत कैसे माना जा सकता है.

गरीब जनता पर देश अमीर

भले ही भारत की 81 करोड़ जनता को मुफ्त राशन की जरूरत पड़ रही हो पर देश पांचवी बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश है. इस का मतलब यह है कि देश की पूंजी कुछ कारोबारी घरानों तक ही सीमित होती जा रही है, जिस से एक तरफ देश की अर्थव्यवस्था का आकार बढ़ रहा है, दूसरी तरफ सरकार को 81 करोड़ लोगों के लिए मुफ्त राशन की व्यवस्था करनी पड़ रही है.

जी-20 समिट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत मंडपम में अपने भाषण में इस बात पर जोर दिया कि 2030 तक भारत दुनिया की तीसरी सब से बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा. आंकड़े भी इस बात की गवाही देते हैं. एस एंड पी के नवीनतम पीएमआई आंकड़ों के अनुसार भारत 2030 तक दुनिया की तीसरी सब से बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है. एस एंड पी ग्लोबल मार्केट इंटेलिजैंस के अनुसार 2021 और 2022 में भारत की मजबूत आर्थिक वृद्धि कैलेंडर वर्ष 2023 में भी जारी रह सकती है.

आज के दौर में भारत टौप 5 अर्थव्यवस्था वाले देश की लिस्ट में पांचवे स्थान पर है. एस एंड पी ग्लोबल के मुताबिक 2030 तक 7.3 ट्रिलियन अमेरिकी डौलर की जीडीपी के साथ भारत, जापान को पछाड़ कर दुनिया की तीसरी सब से बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की दिशा में बढ़ रहा है. एस एंड पी का अनुमान है कि साल 2030 तक भारत की जीडीपी जर्मनी से भी आगे निकल सकती है. पिछले साल ही भारत, ब्रिटेन को पछाड़ दुनिया की पांचवी सब से बड़ी अर्थव्यवस्था बना था.

आज अमेरिका 25.5 ट्रिलियन अमेरिकी डौलर की जीडीपी के साथ दुनिया की सब से बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश है. दूसरे स्थान पर चीन है जो जिस की जीडीपी 18 ट्रिलियन अमेरिकी डौलर है. 4.2 ट्रिलियन अमेरिकी डौलर के साथ जापान तीसरे स्थान पर है. इस के बाद 4 ट्रिलियन अमेरिकी डौलर के साथ जर्मनी चैथा देश है. पांचवे नंबर पर भारत आता है. एक तरफ देश अमीर दिख रहा दूसरी तरफ जनता गरीब है. इस के लिए सारी सोच और नीतियां जिम्मेदार है.

2024 के लिए बढ़ी मुफ्त राशन की योजना

लोकतंत्र में सरकार चलाने के लिए वोट की जरूरत होती है. वोट तभी मिलता है जब जनता यह समझती है कि सरकार उस के लिए कुछ कर रही है. यही वजह है कि चुनाव के समय मुफ्त वाली योजनाओं की संख्या बढ़ जाती है.

सरकार चाहती है कि अमीरों से टैक्स ले, चुनावी चंदा ले उसे ज्यादा से ज्यादा जनता को दे और बदले में वोट ले कर सत्ता पर कब्जा करे. इस नीति के चलते ही देश भले अमीर दिख रहा हो पर जनता गरीब है और भुखमरी में जी रही है. 2024 के लोकसभा चुनाव को देखते हुये मोदी सरकार ने मुफ्त राशन की योजना को आगे बढ़ा दिया है. अब यह योजना 2029 तक जारी रहेगी.

2014 में जब लोकसभा चुनाव हो रहे थे नरेंद्र मोदी ने देश से वादा किया था कि कालेधन की वापसी होगी उस से इतना पैसा आएगा कि हर भारतीय के हिस्से में 15-15 लाख रूपए आ जाएंगे. वादा तो 15 लाख का था और जब जनता ने वोट दे दिया तो उस के हिस्से में हर माह 5 किलो राशन ही आ रहे हैं. हर किसान को साल भर के लिए 6 हजार रूपये देने पड़ रहे हैं. 81 करोड़ से अधिक को खाने की परेशानी को देखते हुए 5 किलो मुफ्त राशन देना पड़ रहा है.

किसानों से सरकार का वादा था कि 2022 तक उन की आय दोगुनी हो जाएगी. अगर आय दोगुनी हो गई होती तो किसान सम्मान निधि के पैसे क्यों देने पड़ रहे हैं. 81 करोड़ मुफ्त राशन पाने वालों में सब से बड़ी संख्या खेतिहरों की है. इस का अर्थ है कि देश के अन्नदाता की यह हालत है कि उसे खाने के लिये 5 किलो मुफ्त राशन की जरूरत है फिर किस के लिए हम विश्व की 5वीं सब से बड़ी अर्थव्यवस्था बने हैं. इस नजरिए से देखें तो हंगर इंडैक्स के आंकड़े सही हैं.

भारी पड़ेगी मुफ्त की रेवड़ी

चुनाव जीतने अमीरों से पैसे की वसूली और गरीबों को मुफ्त की रेवड़ी देने की योजना भारी पड़ेगी. 2004 में कांग्रेस की यूपीए सरकार भी इसका शिकार हो चुकी है. रोजगार गांरटी कानून के तहत मनरेगा को चलाया गया. 2009 के लोकसभा चुनाव के बाद बढ़ते आर्थिक बोझ को कम करने के लिए इस के बजट में कटौती की गई. जिस का प्रभाव 2014 के लोकसभा चुनाव के समय देखने को मिला. मुफ्त की रेवड़ी पा रहे लोगों को लगा कि अगर आगे कांग्रेस जीती तो मनरेगा बंद कर देगी जिस से लोगों का मोह मनरेगा से भंग हो गया और कांग्रेस चुनाव हार गई.

भाजपा ने इस बात को समझा और जनता के कल्याण के नाम पर मुफ्त की रेवड़ी वाली योजनाएं शुरू की. 2019 में कोविड ने मौका दिया और मुफ्त राशन की योजना शुरू हो गई. जिस का प्रभाव यह हुआ कि 2022 में भाजपा उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में चुनाव जीतने में सफल हो गई.

इस योजना को पहले 2 साल के लिए शुरू किया था. इस के बाद फिर 2 साल के लिए बढ़ाया. अब सीधे 5 साल के लिये बढ़ा दिया है. जिस से जनता को यह न लगे कि 2024 के चुनाव जीतने के बाद इस को खत्म किया जा सकता है.

मुफ्त की योजना जनता को हमेशा लुभाती रही है. समाजवादी पार्टी ने 2012 में मुफ्त लैपटौप और टेबलेट के सहारे चुनाव जीता. दक्षिण भारत में जयललिता की ‘अम्मा कैंटीन’ बहुत मशहूर रही है. दिल्ली में आप पार्टी ने मुफ्त बिजली और पानी दे कर सरकार बना ली. तेलंगाना में मुख्यमंत्री चन्द्रशेखर राव ने तमाम इस तरह की योजनाएं चला रखी है. इन में ‘रायथु बंधू’ प्रमुख है जो मोदी के किसान सम्मान निधि जैसी योजना है. राजस्थान सरकार भी इंदिरा कैंटीन जैसी योजनाएं चला रखी है.

मुफ्त की योजना पर रिजर्व बैंक से ले कर सुप्रीम कोर्ट तक अपनी टिप्पणी कर चुकी है. इस के बाद भी नेता मानने को तैयार नहीं है. इस का प्रभाव देश के आर्थिक स्तर पर पड़ रहा है. देश में अमीर और गरीब के बीच की खांई चौड़ी होती जा रही है.

देश अमीर हो रहा है और जनता गरीब होती जा रही है. जिस देश में अमीर और गरीब में बहुत अंतर होता है वह कभी खुशहाल नहीं होता. वहां अपराध बढ़ते हैं. हिंसा होती है. इस तरह से सब का साथ सब का विकास नहीं हो सकता. ऐसे में केवल कारोबारी घराने तरक्की करते हैं. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कारोबारी घरानों के साथ साठगांठ के आरोप इन्ही कारणो से सच लगते हैं.

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