सरकार किस तरह जनता को टैक्सों से चूस रही है, इस का एक उदाहरण जीएसटी में बढ़ती बढ़ोतरी है. सरकार ने अपनी पीठ थपथपाते हुए कहा है कि अक्तूबर 2023 में जीएसटी का कलैक्शन पिछले माह से 9 लाख करोड़ रुपए बढ़ गया है और अब वह 1.72 लाख करोड़ रुपए पहुंच गया है. सितंबर में 1.63 लाख करोड़ रुपए था. पिछले साल इसी माह सरकार ने 1.52 लाख करोड़ रुपए जुटाए थे.

सरकार की आमदनी सिर्फ जीएसटी, सेल्स टैक्स या नमक कानून से ही नहीं होती है जिस का विरोध करने के लिए महात्मा गांधी ने वर्ष 1930 में डांडी यात्रा की थी, बल्कि आयात करों, पैट्रोल पर कर, ठेकों पर सरकारी जमीनें देने, सरकारी जमीनें, खानें. बंदरगाहों, एयरपोर्टों, रेल आदि सैकड़ों दूसरे तरीकों से होती है. और तभी तो भारीभरकम सरकारी मशीनरी चलती है. सरकार का मोटा पैसा जनसेवा में भी खर्च होता है. वहीं, सरकार के मुखिया नरेंद्र मोदी की इच्छापूर्ति के लिए आठआठ हजार रुपए के 2 वीआईपी विमानों में सरकारी धन का  दुरुपयोग होता है.

अगर एक माह में 9 लाख करोड़ रुपए और एक साल में 20 लाख करोड़ रुपए का कर बढ़ गया है तो क्या कहीं से यह दिखता है कि आम आदमी की आय इसी रफ्तार से बढ़ी है. आम आदमी की आय का कोई पैमाना नहीं बताता कि वह पिछले साल से ज्यादा खुशहाल है. यह अतिरिक्त कर असल में जनता को बिना बंदूक से लूटने जैसा है. आज करों का ढांचा ऐसा बनाया गया है कि सरकार जमींदारों की तरह बिना पुलिस कार्रवाई के गरीबों से पैसा लूट सकती है.

इस के 2 बड़े तरीके हैं. एक तरीका यह है कि जो आधुनिक चीजें बन रही हैं वे केवल बड़ी फैक्ट्रियों मं बनें ताकि वहां से टैक्स वसूलना आसान रहे. इस के लिए सरकार ने ऐसा ढांचा बना दिया है कि अब कोई छोटा कारोबारी उद्योगपति बन ही नहीं सके. टैक्नोलौजी पर दुनियाभर में कुछ अमीरों का कब्जा है और उन्होंने यह उपहार सरकार को दिया है कि वह हर काम टैक्नोलौजी से जोड़ दे ताकि टैक्स के फंदे से कोई बच न सके.

पहले जो छोटे उद्योगपति रहते थे, उन को सरकार ने तरहतरह फंदों में फांस दिया है. आज छोटे उद्योग केवल बड़े उद्योगों के लिए या बड़े ब्रैंड्स के लिए काम कर रहे हैं. रिटेलिंग भी अब औनलाइन हो गई है, जिस से टैक्स वसूलना बहुत आसान हो गया है. यहां तक कि अब टैक्सी, थ्रीव्हीलर और टूव्हीलर भी किराए पर लेना हो तो इसे भी टैक्नोलौजी से जोड़ दिया गया है, ताकि हर उत्पादन, हर सेवा पर कर वसूला जा सके.

दूसरा बड़ा तरीका यह है कि हर दुकान, व्यापारी, कर्मचारी, पैसा पाने वाले आदि से पहले ही टैक्स वसूल लिया जाए. आयकर में टीडीएस जैसे तरीके निकाल लिए गए हैं जिन में भुगतान के समय पैसे देने वाले को कर कटवाना पड़ता है. हर जगह कर लगाना असल में पुरानी कहानी की लहरें गिनने जैसा है ताकि हर लहर पर कर वसूला जा सके.

टैक्स विशेषज्ञ तो इस बारे में और साफसफाई से बच सकते है. पर आमतौर पर सभी यह समझ लें कि जब हर कदम पर टैक्स देना पड़ रहा हो तो यह सरकार का जनता को निचोडऩे का एक हथकंडा है. लोकतंत्र के दौर में मौजूदा सरकार तो आज पुराने राजाओं, रजवाड़ों, जमींदारों से भी बढ़ कर वसूली कर रही है और इस के लिए उस ने अपने पास कुख्यात ठग व डकैत भी पाल रखे हैं जो टैक्स कलैक्शन में उसे मदद करते हैं. औनलाइन टैक्स भरने वालों की फौज, पैन कार्ड बनवाने वालों की फौज, संपत्ति रजिस्ट्रेशन में सुविधा दिलाने वालों की फौज आदि एक तरह से सरकारी एजेंट हैं जो सरकार के टैक्स लूट कृत्य में उस के लिए काम करते हैं.

सरकार के टैक्स कलैक्शन में वृद्धि पर हर नागरिक को डर लगना चाहिए कि वह और ज्यादा गरीब हो गया है. हर नया टैक्स सुधार असल में टैक्स बढ़ाता है. ‘हफ्तावसूली’ का सरकार का यह नया तरीका होता है जिस पर अब संसद व विधानसभाएं चुप रहती हैं क्योंकि पार्टी चाहे कोई हो, उसे पैसे आते दिखते हैं तो चुप रहती है. हम जिन्हें चुन कर भेजते हैं वे असल में हमारे टैक्स वसूली एजेंट व उन के सहायक होते हैं, हमारे बचाव की ढाल नहीं.

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