आने वाले समय में संभवतया पीढ़ियां यह पढ़ेंगी- “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बनाम मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल वाया पाकिस्तान.”
सार संक्षेप यह कि नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में लोकतांत्रिक ढंग से चुने हुए जनप्रतिनिधियों को एकएक कर के जेल भेज दिया गया और तानाशाही का आगाज हुआ.
दरअसल, किसी पर भी आरोप लगाना बहुत ही आसान है. मनीष सिसोदिया हों या संजय सिंह या फिर सत्येंद्र जैन लंबे समय से जेल में हैं और कम से कम इन्हें जमानत का तो अधिकार है मगर आज यह भी मुश्किल है.
हमारे देश का कानून यह कहता है कि 100 आरोपी बच जाएं मगर एक निर्दोष को सजा नहीं होनी चाहिए. मंत्री और मुख्यमंत्री को परेशानहलकान किया जा रहा और जेल के रास्ते दिखाए जा रहे हैं, यह लोकतांत्रिक शासन पद्धति के लक्षण नहीं हैं. ठीक है, कानून सब से ऊपर है, मगर इस का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए. इसे आखिर कौन देखेगा और कौन देख रहा है? कोई तो ऐसा होगा जो सब से ऊपर होता है और हमारे लोकतांत्रिक पद्धति में केंद्र और राज्य शासन की अलगअलग व्यवस्थाएं हैं जिस के तहत दिल्ली में अरविंद केजरीवाल अगर मुख्यमंत्री के पद पर हैं तो हो सकता है उन से गलतियां हों.
यह भी संभव है कि जानबूझ कर गलतियां हों मगर जिस तरह लंबे समय तक आम आदमी पार्टी के संजय सिंह, मनीष सिसोदिया जैसे चेहरों को जेल में ठूंस दिया जाता है और फिर जमानत नहीं होती है तो ऐसा लगता है कि ये लोग कोई बड़े अपराधी हैं, जो रुपए ले कर देश छोड़ कर भाग जाएंगे. यह सब घटनाक्रम आने वाले समय में लोकतंत्र के हमारी झोंपड़ी को क्षतिग्रस्त करेगा, हो सकता है जला कर भस्म कर दे.
लोकतंत्र तानाशाही की ओर
भारत जब आजाद हुआ और संविधान बना तो कार्यपालिका, व्यवस्थापिका, न्यायपालिका को अपनाअपना दायित्व दिया गया ताकि हमारा लोकतंत्र आमजन को विकास के रास्ते पर स्वतंत्रता के साथ जीने का हक दे. जिस तरह आज नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में राज्यों की सरकारों के चुने हुए जनप्रतिनिधियों के साथ व्यवहार हो रहा है वह ज्यादती कहा जा सकता है और तानाशाही भी.
अब प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को दिल्ली आबकारी नीति मामले में पूछताछ के लिए तलब किया है. यह सच है कि इस मामले में दाखिल आरोपपत्र में एकाधिक जगह अरविंद केजरीवाल का नाम है. मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को ईडी ने धनशोधन रोकथाम अधिनियम के तहत समन जारी किया है.
सनद रहे कि पिछले साल जनवरी में दिल्ली की एक अदालत में दायर अपने प्रारंभिक आरोपपत्र में ऐजेंसी ने कहा था कि केजरीवाल ने मुख्य आरोपियों में से एक समीर महेंद्र के साथ वीडियो कौल में कथित तौर पर बात की थी और उसे सह आरोपी विजय नायर के साथ काम करना जारी रखने के लिए कहा था.
तो क्या केजरीवाल भी जेल जाएंगे ?
इस से पहले शराब घोटाले की जांच कर रही सीबीआई ने अप्रैल में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से पूछताछ की थी. सीबीआई ने केजरीवाल से 9 घंटे तक पूछताछ की थी. यही नहीं, उन से 56 सवाल पूछे गए. यहां यह भी महत्त्वपूर्ण तथ्य है कि नागरिक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 135 के तहत प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री, लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य, मुख्यमंत्री, विधानसभा और विधान परिषद के सदस्यों को गिरफ्तारी से रियायत मिली है.
मगर यह रियायत सिर्फ दीवानी मामलों में है, फौजदारी के मामलों में नहीं. ऐसे में ऊंट किस करवट बैठेगा यह देखने लायक बात होगी. इधर ईडी ने आरोपपत्र में दावा किया है कि ऐजेंसी ने भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) की नेता के. कविता के करीबी बुचीबाबू का बयान दर्ज किया था, जिस में उन्होंने बताया था कि के. कविता, केजरीवाल और मनीष सिसोदिया के बीच तालमेल था. इस दौरान कविता ने मार्च 2021 में विजय नायर से भी मुलाकात की थी. इस मामले में एक और आरोपी दिनेश अरोड़ा ने भी ईडी को बताया है कि उस ने केजरीवाल से उन के आवास पर मुलाकात की थी.
ईडी का कहना है कि वाईएसआर कांग्रेस के सांसद मंगुटा श्रीनिवासुलु रेड्डी और केजरीवाल के बीच कई बैठकें हुई थीं. केजरीवाल ने दिल्ली के शराब कारोबार में रेड्डी के प्रवेश का स्वागत किया था.
पूछताछ में बुचीबाबू और आरोपी अरुण पिल्लई ने खुलासा किया है कि वे शराब नीति को ले कर केजरीवाल और सिसोदिया के साथ मिल कर काम कर रहे थे. साथ ही आरोपी विजय नायर ने वीडियो कौल के जरिए केजरीवाल और गिरफ्तार आरोपी समीर महेंद्र में बात भी करवाई थी.
जनमानस में चर्चा
इस दौरान केजरीवाल ने समीर से कहा था कि विजय उन का आदमी है और उसे उस पर भरोसा करना चाहिए. इन सब तथ्यों के आधार पर अब गेंद प्रवर्तन निदेशालय के हाथ में है और जिस तरह भारत की राजनीति अंगड़ाई ले रही है उस के सही माने कोई भी निकाल सकता है.
यह भी आज जनमानस में चर्चा का विषय बना हुआ है कि अगर ये चेहरे भारतीय जनता पार्टी के सरपरस्ती में होते तो क्या ऐसे ही केंद्रीय जांच का सामना करते, जेल जाते?