एक दिन मैं अपने मित्र को फोन मिला रहा था कि इत्तिफाक से रौंग नंबर लग गया. दूसरी तरफ से एक लड़की ने फोन उठाया. आमतौर पर ऐसी स्थिति में रौंग नंबर कह कर फोन काट दिया जाता है, लेकिन यहां ऐसा नहीं हुआ. हम दोनों के बीच कुछ ही देर टेलीफोन सर्विस की गड़बड़ी को ले कर कुछ बातें हुईं. लेकिन उन चंद बातों ने ही मेरे दिलोदिमाग में हलचल मचा दी. उस की आवाज मेरे दिमाग में सितार की झंकार की तरह गूंज रही थी. वह बात करतेकरते बीचबीच में हंसती थी तो ऐसा लगता था, जैसे पत्थर की विशाल शिलाओं पर उछलकूद मचाते हुए कोई पहाड़ी झरना बह रहा है. मेरी वह सारी रात बेचैनी के आलम में गुजरी.

उस का फोन नंबर मेरे मोबाइल फोन में आ ही गया था. अगले दिन सुबहसुबह मैं ने उस का नंबर मिला दिया.

‘‘क्या बात है…?’’ वह खिलखिला कर हंसी, ‘‘आज फिर रौंग नंबर लग गया.’’

‘‘नहीं,’’ मैं ने अपनी तेज होती धड़कन को नियंत्रित करते हुए कहा, ‘‘आज मैं ने जानबूझ कर मिलाया है.’’

‘‘वाह, क्या बात है,’’ वह हंसते हुए बोली, ‘‘आज की सुबह का आगाज कुछ खास लग रहा है.’’

निस्संदेह उस की हंसी में जैसे कोई जादू था, नशा था, मैं ने सकुचाते हुए पूछा, ‘‘तु… तुम्हारा नाम क्या है?’’

यह पूछ कर मुझे डर लगा कि कहीं वह मेरा सवाल सुन कर फोन न काट दे या नाराज न हो जाए, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. मेरा सवाल सुन कर वह फिर हंसी और बड़े अलमस्त अंदाज में बिना किसी लागलपेट के अपना नाम बता दिया, ‘‘दीपाली.’’

उस की आवाज मेरे दिलोदिमाग में बस गर्ई थी. बिना उसे देखे, बिना उसे जाने दिल के किसी कोने में मुहब्बत के अंकुर फूटने लगे थे. सचमुच मुहब्बत एक खूबसूरत अहसास है. जवां दिलों का वह नगमा, जो दिल में बजता है और उस की स्वर लहरियां पूरे तनबदन को रोमांचित कर देती हैं.

उस दिन दीपाली से मेरी काफी देर तक बात हुई, रंगों के बारे में, किताबों के बारे में, वेस्टर्न म्यूजिक और देश की पौलिटिक्स के बारे में. लगता था, जैसे हर सब्जैक्ट पर उस की गहरी पकड़ थी.
इस क बाद हमारे बीच फोन पर बातचीत का सिलसिला चल निकला.

मैं रोज उसे फोन मिलाता और देर तक बातें करता. हम दोनों के बीच जो बातें होतीं, उन का कोई आधार नहीं होता था. कह सकते हैं कि हमारे बीच अधिकतर बेसिरपैर की बातें होती थीं. मुझे उस से बातें करना बहुत अच्छा लगता था. मेरा बस चलता तो मैं बिना थके उस से चौबीसों घंटे लगातार बातें करता रहता था. कुछ ही दिनों में हम दोनों एक अच्छे दोस्त बन गए. कभीकभी दीपाली भी मुझे फोन करने लगी थी. बातोंबातों में हमारे बीच जितनी नजदीकियां बढ़ती जा रही थीं, मेरी यह जानने की उत्सुकता बढ़ती जा रही थी कि दीपाली देखने में कैसे होगी. जब जिज्ञासा बढ़ती गई, तो एक दिन मैं ने उस से पूछ ही लिया, ‘‘तुम देखने में कैसी हो…? मेरा मतलब, तुम्हारी सुंदरता से है.’’

दीपाली की खनकदार हंसी मेरे तनमन को रोमांचित कर गई. वह शायराना अंदाज में बोली, ‘‘तुम ने कभी शिलाखंडों पर बिखरी चांदनी को देखा है.’’

मेरी कल्पनाओं में पाषाण शिलाओं पर फैली चांदनी का दृश्य घूम गया और मैं ने बिना सोचेसमझे हां कर दिया.

‘‘समझ लो, मैं बिलकुल वैसी ही हूं. बर्फ के पहाड़ों पर बिखरी चांदनी सी सुंदर, स्वच्छ और दिलकश. अब यह बताओ कि तुम कैसे हो?’’ जवाब के साथसाथ उस ने बिना मौका दिए सवाल कर दिया.

‘‘मैं, उस चांद की तरह हूं, जो चांदनी बिखेरता है. जिस के बिना चांदनी का कोई अस्तित्व नहीं है,’’ मेरा जवाब सुन कर दीपाली पहले से भी ज्यादा जोर से खिलखिला कर हंसी. उस दिन के बाद पहले बीच और भी नजदीकियां बढ़ गईं. कह सकते हैं कि बातों के फैलते दायरे चाहत के द्वार खोलने लगे.

अभी हमारी बातचीत के सिलसिले को एक सप्ताह ही हुआ था कि मैं ने दीपाली से एक गंभीर मजाक कर दिया. उस दिन फर्स्ट अप्रैल था और रात को ही मैं योजना बना चुका था कि सुबह उठ कर सब से पहले दीपाली को ही अप्रैल फूल बनाऊंगा. मैं ने यह किया भी. मैं ने सुबह 8 बजे दीपाली को फोन किया.
मैं ने घबराई आवाज में कहा, ‘‘दीपाली, मैं अचानक एक भारी मुसीबत में फंस गया हूं, इसलिए तुम्हें 2-3 दिन तक फोन नहीं कर सकूंगा. तुम भी मुझे फोन मत करना.’’

‘‘कैसी मुसीबत…? तुम किस मुसीबत में फंस गए हो?’’ दीपाली ने परेशान हो कर पूछा.

‘‘एकाएक मेरी बीवी की तबीयत खराब हो गई है. मैं उसे ले कर अस्पताल जा रहा हूं. उस की फर्स्ट डिलीवरी होने वाली है. तुम दुआ करना कि सबकुछ ठीक हो जाए और वह खूबसूरत बच्चे को जन्म दे.’’

दूसरी तरफ सन्नाटा छा गया. लगा जैसे दीपाली की आवाज गले में फंस गई हो. फोन डिस्कनेक्ट कर के मैं यह सोच कर खुश हुआ कि मैं ने दीपाली को अप्रैल फूल बना दिया है. मैं ने पहले ही सोच रखा था कि उसे कम से कम एक घंटा कुछ नहीं बताऊंगा. उस के बाद फोन कर के बता दूंगा कि मैं ने उसे अप्रैल फूल बनाया था.

एक घंटे बाद मैं ने दीपाली को फोन किया, तो मेरी आवाज सुनते ही उस ने फोन डिस्कनेस्ट कर दिया.

मैं ने फिर से उसे फोन मिलाया. फिर वही हुआ, मेरी आवाज सुनते ही उस ने फोन काट दिया. इस के बाद मुझे एक और नई मुश्किल का सामना करना पड़ा. तीसरी बार जब मैं ने नंबर डायल किया, तो दूसरी ओर घंटी बजती रही, लेकिन फोन उठाया नहीं गया. इस के बाद फोन स्विच्ड औफ हो गया. मैं बेचैन हो कर पागलों की तरह अपने बेडरूम में घूमने लगा. मेरी हालत उस कबूतर जैसी हो गई थी, जिस के पंख कट गए हों, लेकिन वह उड़ना चाहता हो. मैं रात के 1 बजे तक उसे फोन मिलाता रहा, लेकिन दीपाली का फोन स्विच्ड औफ था.

मेरी हालत खराब हो गई थी. मैं पूरी रात एक पल के लिए भी नहीं सो सका. सुबह होते ही मैं ने फिर दीपाली को फोन मिलाया. इस बार दीपाली ने फोन रिसीव तो कर लिया, लेकिन मुझे ऐसा लगा, जैसे वह फोन काटनेे वाली हो. मैं चीख पड़ा, ‘‘दीपाली, प्लीज, फोन मत काटिएगा, तुम्हें मेरी कसम दीपाली.’’

वह बोली तो कुछ नहीं, लेकिन उस पर मेरी बात का माकूल असर पड़ा. उस ने फोन डिस्कनेक्ट नहीं किया. मैं ने गिड़गिड़ाते हुए कहा, ‘‘मेरे छोटे से मजाक की इतनी बड़ी सजा मत दो दीपाली. तुम नहीं जानतीं, मैं सारी रात नहीं सोया हूं.’’
इस के बाद एक ही सांस में मैं ने दीपाली को फर्स्ट अप्रैल वाली पूरी बात बता दी. मैं बहुत जल्दीजल्दी बोल रहा था. मुझे डर था कि कहीं दीपाली फोन डिस्कनेक्ट न कर दे और मेरी बात अधूरी रह जाए.

दीपाली ने मेरी पूरी बात सुन तो ली, लेकिन बोली कुछ नहीं. उस ने बिना कुछ कहे फोन डिस्कनेक्ट कर दिया.
उस दिन के बाद दीपाली जैसे बदल भी गई. मैं उस से फोन पर बातें करता, तो वह मेरे सवालों का जवाब सिर्फ हूं, हां में देती. उस की चंचल बातें और मदमस्त हंसी एकदम से गायब हो गई थी. मैं उसे नएनए चुटकुले सुनाता. तरहतरह की मजाकिया बातें करता. लेकिन वह कभी नहीं हंसती. वह झील के पानी के तरह शांत हो चुकी थी. मैं फोन करता, तो वह पत्थर बनी चुपचाप मेरी बातें सुनती रहती. उस की चुप्पी से मेरी बेचैनी और बढ़ जाती.

मैंं दीपाली में आए इस परिवर्तन की वजह समझ नहीं पा रहा था. उसी बीच एक रोज रात को दीपाली का फोन आया. वह बड़े ही गंभीर स्वर में बोली, ‘‘मैं तुम से मिलना चाहती हूं.’’

‘‘क्यों नहीं,’’ मेरे दिल में खुशियों के कमल खिल उठे, ‘‘मैं खुद तुम से मिलना चाहता हूं. बताओ, कहां मिलोगी.’’

‘‘कल शाम 7 बजे मैं वहां पहुंच जाऊंगा, लेेकिन तुम्हें पहचानूंगा कैसे?’’ मैं ने मन की खुशी जाहिर करते हुए सवाल किया, तो वह बोली, ‘‘मैं होटल ताज लैंंड्स एंड के रिसेप्शन हौल में लाल रंग के कपड़ों में बैठी मिलूंगी. मेरी टेबल पर सफेद गुलाब रखा होगा, पहचान लेना.’’

मैं कुछ और कहता, उस के पहले ही दीपाली ने फोन काट दिया. सफेद गुलाब की बात मुझे कुछ अटपटी सी लग रही थी. प्रेम का प्रतीक तो लाल रंग होता है, फिर दीपाली ने टेबल पर सफेद गुलाब रखने की बात क्यों कहीं. किसी बात को ले कर मन अनिश्चितता से भरा हो, तो तरहतरह की आशंकाएं जन्म लेने लगती हैं. सोचसोच कर मेरा दिल अजीब सी आशंका से धड़कने लगा.

अगले दिन शाम 7 बजे बनठन कर मैं होटल ताज लैंड्स एंड पहुंंच गया. मैं ने अपना पसंदीदा डबल ब्रेस्टेड नीला सूट पहना था. प्रचलन के मुताबिक टाई लगाई थी. कोट पर सितारों वाला ब्रोच लगाया था. मैं सीधा ताज लैंड्स एंड के रिसेप्शन हौल में जा पहुंचा.
दीपाली को ढूंढ़ने में मुझे कोई परेशानी नहीं हुई. कहे अनुसार उस ने अपनी टेबल पर सफेद गुलाब रख रखा था और वह सुर्ख साड़ी में थी. उस के मेकअप और साजश्रृंगार से लग रहा था कि जैसे वह शादीशुदा हो. मैं हैरान सा उसे देखता रह गया. वह सचमुच श्वेत चांदनी की तरह स्वच्छ, निर्मल और मनमोहिनी थी.
मैं ने कुरसी खींच कर दीपाली के सामने बैठते हुए अपना परिचय दिया. थोड़ी देर वह मुझे अपलक देखती रही. फिर गंभीर स्वर में वह बोली, ‘‘तुम ने पिछले कुछ दिनों से मुझ में परिवर्तन महसूस किया होगा. मैं ने तुम्हें आज उसी सिलसिले में बुलाया है.’’

‘‘हां, तुम सचमुच काफी बदल गई हो,’’ मैं उस की खामोश आंखों में झांकते हुए बोला, ‘‘क्या मैं इस की वजह जान सकता हूं, कहीं तुम मेरी अप्रैल फूल वाली बात का बुरा तो नहीं मान गई?’’

‘‘नहीं, ऐसा कुछ नहीं है,’’ दीपाली अपने खुले बालों को पीछे की ओर झटकते हुए बोली, ‘‘दरअसल, जब तुम ने मजाक में यह कहा कि तुम्हारी शादी हो चुकी है और तुम्हारी पत्नी की फर्स्ट डिलीवरी होने वाली है, तो मुझे झटका तो लगा, लेकिन खुशी भी हुई.’’

‘‘खुशी,’’ मैं ने चौंकते हुए पूछा, ‘‘खुशी क्यों हुई?’’

‘‘क्योंकि, तुम ने तो अपनी शादी की बात मजाक में कही थी, जबकि मैं सचमुच पहले से शादीशुदा थी. मेरा 2 साल का एक बेटा भी है.’’

उस की बात सुन कर मैं स्तब्ध रह गया. मुझे लगा, जैसे किसी ने अचानक मेरी छाती में खंजर घोंप दिया हो.

मेरे मुंह से घुटीघुटी सी आवाज में चंद शब्द निकले, ‘‘तु… तुम्हारी शादी हो चुकी है.’’

‘‘हां, आज मेरी शादी की चौथी सालगिरह है. मैं अपने पति और बेटे के साथ ही यहां सेलीब्रेशन के लिए आई हूं.’’

मुझे एक और झटका लगा. मैं ने मन मसोस कर पूछा, ‘‘तुम्हारा पति और बेटा, क्या वे भी यहां आए हैं?’’

‘‘बस अपने ही वाले हैं. लेकिन तुम्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है. दरअसल, मैं मजाकिया स्वभाव की हूं. तुम से जब मजाकमजाक में बात आगे बढ़ी, तो मैं ने मजाक में झूठ बोल दिया. इस तरह बात आगे बढ़ती गई और मैं ने तुम से दोस्ती कर ली,’’ दीपाली धाराप्रवाह बोलती गई, ‘‘लेकिन, तब मैं नहीं जानती थी कि तुम सचमुच मुझ से प्रेम करने लगोगे और मजाकमजाक में शुरू हुआ यह सिलसिला इतना गंभीर मोड़ ले लेगा. अपने पति के ही कहने पर मैं ने आज तुम्हें यहां बुलाया है. और पति सबकुछ जानते हैं और हम दोनों चाहते हैं कि इस प्रेमकथा का यहीं अंत हो जाए, क्योंकि इस का कोई भविष्य नहीं है.’’

मैं पत्थर का बुत बना बैठा विस्मय से दीपाली को देख रहा था. तभी एक सुंदर से बच्चे को गोद में संभाले उस का पति भी रिसेप्शन हौल में आ गया. मेरे नजदीक आ कर उस ने मुझ से इस तरह मित्रतापूर्वक ढंग से हाथ मिलाया, जैसे वह मुझे पहले से जानता हो. चंद बातों के बाद उन दोनों ने मेरी उपस्थिति में ही शादी की वर्षगांठ की खुशी में शैंपेन खोली और उस का पहला पैग बना कर मुझे दिया. मैं उसे एक ही घूंट में पी गया.

होटल से लौट कर मैं सीधे घर पहुंचा और बेहाल सा हो कर बिस्तर पर पड़ गया. मेरी आंखें धुआंधुआं हो रही थीं और सिर चकरा रहा था. जिस दीपाली को मैं ने अपनी दुनिया मान लिया था, जिस के आगे मैं कुछ सोच ही नहीं सकता था, आज पता चला कि उस की पहले ही शादी हो चुकी है. मैं उसे ले कर गंभीर था और वह मेरे साथ मजाक कर रही थी. मुझे खुद पर गुस्सा भी आ रहा था और तरस भी. तभी मेरी निगाह सिरहाने साइड टेबल पर रखे मोबाइल पर पड़ी. सबकुछ उसी की वजह से हुआ था. न उस दिन रौंग नंबर लगता और न बात यहां तक पहुंचती.

मैं ने गुस्से मे मोबाइल उठा कर दीवार पर दे मारा. उस के टुकड़े कमरे में इधरउधर बिखर गए. मैं ने तकिए में मुंह छिपा लिया. मेरी आंखों से झरझर आंसू बह रहे थे. पता नहीं, मैं कब तक रोता रहा. तभी मैं ने महसूस किया, जैसे बेडरूम में कोई आया हो, मैं ने पलट कर देखा, तो चौंका. सामने दीपाली अपने पति के साथ खड़ी थी.

‘‘यह क्या हाल बना लिया तुम ने?’’ दीपाली का पति आगे बढ़ कर मुझे उठाते हुए बोला, ‘‘इतने से मजाक का इतना बुरा मान गए.’’

‘‘मजाक,’’ मैं चौंका.

‘‘बेवकूफ हो तुम, इतनी लंबीलंबी बातों के बावजूद दीपाली को नहीं समझ पाए. बहुत शैतान है ये. तुम ने इसे अप्रैल फूल बनाया था, इसीलिए इस ने भी तुम से बदला लेेने के लिए यह नाटक रचा था.’’

‘‘न… नाटक,’’ मैं ने लड़खड़ाती आवाज में पूछा, ‘‘क… क्या यह सब नाटक था? इस का मतलब कि तुम इस के पति नहीं हो.’’

‘‘मैं दीपाली का पति कैसे हो सकता हूं. अभी तो इस की शादी ही नहीं हुई. मैं इस की बड़ी बहन का पति हूं और जिस बच्चे को तुम ने देखा था, वह मेरा बेटा है.

“दरअसल, दीपाली ने ही मुझे शादी की सालगिरह का यह सारा नाटक रखने के लिए कहा था, ताकि तुम से तुम्हारे ही अंदाज में बदला ले सके.’’

मैं ने दीपाली की ओर देखा. वह मुझे देख कर बड़े ही मनमोहक ढंग से मुसकरा रही थी.

‘‘दोस्त,’’ दीपाली के जीजा ने हंसते हुए कहा, ‘‘प्रेम के मामले में तुम्हारा रौंग नंबर नहीं, बल्कि सही नंबर लगा था. जितना प्रेम तुम दीपाली से करते हो, उतना ही दीपाली भी तुम से करती है.’’

हकीकत बताने के बाद दीपाली के जीजा हम दोनों को अकेला छोड़ कर बाहर चले गए. मैं उठ कर दीपाली के नजदीक पहुंचा. लाज से उस का चेहरा गुलाबी हो गया था. उस के चेहरे पर वैसी लुनाई थी, जैसी अपने प्रेमी का साथ पा कर किसी कुंआरी लड़की के चेहरे पर आ जाती है.

‘‘क्या तुम सचमुच मुझ से प्रेम करती हो?’’ मैं ने दीपाली के चेहरे पर नजरें जमाते हुए पूछा, तो दीपाली ने नजरें झुका कर स्वीकृति में सिर हिला दिया.

‘‘मुझ से शादी करोगी,’’ मैं ने गंभीर हो कर पूछा, तो वह धीरे से बोली, ‘‘हां, मैं तैयार हूं.’’

मैं ने दीपाली को अपनी बांहों में भर लिया. वह भी मुझ से लिपट गई. हम दोनों के दिल के साज पर मुहब्बत का राग बज उठा. हम देर तक एकदूसरे की बांहों में समाए रहे. उस वक्त ऐसा लग रहा था, जैसे हम अनंत आकाश में उड़ रहे हों. सचमुच इस दुनिया में मुहब्बत से ज्यादा खूबसूरत कोई चीज नहीं है… कुछ भी नहीं.

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