‘‘इ हा, यह क्या किया तुम ने?’’

‘‘धरम, यह सिर्फ मैं ने किया है, तुम ऐसा कैसे कह सकते हो? क्या तुम इस में शामिल नहीं थे?’’

‘‘वह तो ठीक है, पर मैं ने कहा था न तुम्हें सावधानी बरतने को.’’

‘‘सच मानो धरम, मैं ने तो सावधानी बरती थी. फिर यह कैसे हुआ, मु?ो भी आश्चर्य हो रहा है.’’

‘‘तुम कोई भी काम ठीक से नहीं कर सकती हो.’’

‘‘डौंट वरी. कोई न कोई हल तो निकल ही आएगा हमारी प्रौब्लम का.’’

‘‘हम दोनों को ही सोचविचार कर कोई रास्ता निकालना होगा.’’

इहा मार्टिन और धर्मदास दोनों उत्तरी केरल के एक केंद्रीय विश्वविद्यालय से बायोकैमिस्ट्री में मास्टर्स कर रहे थे. इहा धर्मदास को धरम कहा करती थी. वह कैथोलिक क्रिश्चियन थी जबकि धर्मदास उत्तर प्रदेश के साधारण ब्राह्मण परिवार से था. उस के पिता का देहांत हो गया था और उस की मां गांव में रहती थी. पिता वहीं स्कूल मास्टर थे. धरम के पिता कुछ खेत छोड़ गए थे. गांव में उन की काफी इज्जत थी. उस गांव में ज्यादातर लोग ब्राह्मण ही थे, पिता की पैंशन और खेत की आय से मांबेटे का गुजारा अच्छे से हो जाता था.

करीब एक साल पहले ही इहा और धरम में दोस्ती हुईर् थी. धरम बीमार पड़ा था और अस्पताल में भरती था. इहा की मां नर्स थीं और पिता कुवैत में किसी कंस्ट्रक्शन कंपनी में काम करते थे. इहा की मां ने अस्पताल में धरम का विशेष खयाल रखा और अच्छी तरह देखभाल की थी. इसी दौरान दोनों दोस्त बने और यह दोस्ती कुछ ही दिनों में प्यार में बदल गई.

इसी प्यार का बीज इहा की कोख में पल रहा था. उन दोनों के फाइनल एग्जाम निकट थे. अचानक ऐसी परिस्थिति उत्पन्न हो सकती है, इस के बारे में दोनों को तनिक भी उम्मीद नहीं थी. एग्जाम खत्म होने को थे. एक दिन धरम ने इहा से कहा, ‘‘मैं परीक्षा के बाद मां के पास गांव जा रहा हूं. उन से सारी बात बता कर तुम से शादी करने की अनुमति मांगूंगा. तुम ने भी अपनी मम्मी को नहीं बताया होगा अभी तक?’’

‘‘नहीं, मैं ने अभी तक तो कुछ नहीं कहा है पर औरतों के साथ यही तो परेशानी है कि यह बात ज्यादा दिनों तक छिपाई नहीं जा सकती है. तुम ने अभी अनुमति की बात कही है तो क्या यह सब करने से पहले तुम ने उन से अनुमति ली थी?’’

‘‘अब तुम ताने न मारो. मु?ो पूरी उम्मीद है, मां मेरी बात मान लेंगी.’’

‘‘अगर नहीं मानीं, तब क्या करोगे?’’

‘‘फिर तो हमें कोर्ट मैरिज करनी होगी.’’

‘‘हां, यह हुई न मर्दों वाली बात. अपना वादा भूल न जाना, मैं इंतजार करूंगी.’’

‘‘नहीं, भूल कैसे सकता हूं? एक भूल तो कर चुका हूं, दूसरी भूल नहीं करूंगा.’’

इहा को आश्वासन दे कर धरम अपने गांव चला गया. इहा को तो उस ने भरोसा दिला रखा था पर उसे खुद अपनी मां पर इस बात के लिए भरोसा नहीं था. वहां उस ने मां को इहा के बारे में बताया और अपनी शादी का इरादा भी जताया. पर मां यह सब सुनते ही आगबबूला हो उठीं. वे बोलीं, ‘‘तुम्हें पता है कि हम ब्राह्मण हैं और यह गांव भी ब्राह्मणों का है. तुम्हारे पिता की यहां कितनी इज्जत थी और आज भी उन का नाम लोग यहां आदर के साथ लेते हैं. ऐसा कदम उठाने से पहले तुम ने एक बार भी नहीं सोचा कि ईसाई से तुम्हारी शादी नहीं हो सकती है.’’

‘‘मां, अब जमाना बदल चुका है. ये सब पुरानी बातें हैं.’’

‘‘जमाना बदल गया होगा पर हम अभी नहीं बदले हैं और न बदलेंगे. मेरे जीतेजी यह नहीं हो सकता. हां, तुम चाहो तो मु?ा से नाता तोड़ कर या मु?ो मरा सम?ा कर उस बदजात से शादी कर सकते हो.’’

‘‘मां, पर उस बेचारी का क्या होगा? कुसूर तो सिर्फ उस का नहीं था?’’

‘‘जिस का भी कुसूर हो, मैं कुछ नहीं जानती. अगर उस से शादी करनी है तो तुम मु?ो और इस गांव को सदा के लिए छोड़ कर जा सकते हो.’’

‘‘नहीं मां, मैं तुम्हें भी नहीं छोड़ सकता हूं.’’

‘‘उस लड़की को बोलो, अबौर्शन करा ले और यह सब भूल कर अपनी जातिधर्म में शादी कर ले.’’

‘‘मां, यह इतना आसान नहीं है. वह कैथोलिक ईसाई है. उस का समाज ऐसा करने की इजाजत नहीं देता है.’’

‘‘मैं ने अपना फैसला बता दिया है, अब आगे तेरी मरजी.’’

इस बीच इहा ने धरम को फोन कर पूछा, ‘‘तुम्हारी मां ने क्या फैसला किया है?’’

‘‘मैं अभी तक उन्हें मना नहीं सका हूं, पर थोड़ा और समय दो मु?ो. कोशिश कर रहा हूं.’’

‘‘पर तुम ने तो कहा था कि ऐसी स्थिति में कोर्ट मैरिज कर लोगे?’’

‘‘कहा तो था, मां ने भी मेरे लिए बहुत कष्ट सहे हैं. इस उम्र में उन्हें म?ाधार में छोड़ भी नहीं सकता हूं. तुम ने अपनी मम्मी को कुछ बताया है या नहीं?’’

‘‘नहीं, पर अब छिपाना भी मुश्किल है. तीसरा महीना चढ़ आया है.’’

‘‘थोड़ी और हिम्मत रखो. मैं वहां आने की कोशिश करता हूं.’’

धरम की मां के गिरने से उन के कमर की हड्डी टूट गई और वे बिस्तर पर आ गईं. डाक्टर ने कहा कि कम से कम 3 महीने तो लग ही जाएंगे. इधर इहा की हालत देख कर उस की मम्मी को कुछ शक हुआ और उन्होंने बेटी से पूछा, ‘‘सच बता, क्या बात है? तुम कुछ छिपाने की कोशिश कर रही हो?’’

इहा को सच बताने का साहस नहीं हुआ. उसे चुप देख कर मम्मी का शक और गहराने लगा और वह बोली, ‘‘तु?ो मेरी जान की कसम. तुम क्या छिपा रही हो?’’

इहा ने रोतेरोते सचाई बता ही दी. मां बोली, ‘‘तुम ने समाज में मु?ो सिर उठा कर चलने लायक नहीं छोड़ा है. कलमुंही, तेरे पापा यह सुनेंगे तो उन पर क्या बीतेगी. दिल की बीमारी के बावजूद विदेश में वे दिनरात मेहनत कर पैसे इकट्ठा कर रहे हैं ताकि तेरी पढ़ाई का कर्ज उतार सकें और तेरी शादी भी अच्छे सेकर सकें.’’

‘‘सौरी मम्मी, मैं ने आप लोगों को दुख दिया है.’’

‘‘तेरे सौरी कहने मात्र से क्या होने वाला है. तेरे पापा का कौंट्रैक्ट भी 10 महीने में खत्म होने वाला है. वे यह सब देख कर क्या कहेंगे?’’

‘‘मैं धरम से बात करती हूं,’’ इहा रोते हुए बोली.

इहा ने धरम को फोन किया तो वह बोला, ‘‘फिलहाल 3 महीने तक मैं नहीं आ सकता हूं. तुम किसी तरह अबौर्शन करा लो. उस के बाद मैं आ कर सब ठीक कर दूंगा.’’

‘‘तुम जानते हो कि हमारा धर्म इस की इजाजत नहीं देता है. और अगर मैं गलत तरीके से अबौर्शन करा लेती हूं, तब तुम आ कर क्या कर लोगे? और तुम क्या सम?ाते हो, मैं तुम पर आगे भरोसा कर सकूंगी?’’

‘‘मैं भी मजबूर हूं, इहा.’’

‘‘भाड़ में जाए तुम्हारी मर्दानगी और मजबूरी,’’ बोल कर इहा ने गुस्से में फोन काट दिया.

फिर उस ने मम्मी से कहा, ‘‘मम्मी, मैं किसी तरह से मैडिकल इमरजैंसी के तहत अबौर्शन की कोशिश करती हूं.’’

उस की मम्मी ने कहा, ‘‘बेटा, हमारा समाज अबौर्शन की इजाजत नहीं देता है. यह अपराध है, मैं ऐसा नहीं करने दूंगी.’’

‘‘तब क्या करें? मु?ो हैदराबाद के अस्पताल से जौब औफर भी मिला है. मु?ो 6 महीने बाद नौकरी जौइन करनी है.’’

‘‘तुम उन से और 3-4 महीने की मोहलत ले लो. तुम कोवलम के निकट अपनी बड़ी मौसी के पास चली जाओगी. वे भी रिटायर्ड नर्स हैं. वे जैसा कहें करना.’’

इहा कोवलम चली गई. उस की मौसी ने भी उसे अबौर्शन की अनुमति नहीं दी. उस ने इहा की मां से बात कर उसे कोवलम में रोक लिया. उन्होंने इहा से कहा, ‘‘तुम घबराओ मत. बस, तुम्हें जौइनिंग की एक्सटैंशन मिल जाए, उस के बाद धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा.’’

2 सप्ताह बाद इहा को जौइनिंग की एक्सटैंशन मिल गई. अब 6 महीने के बजाय उसे 9 महीने बाद जौइन करना था. दरअसल, उसे 6 महीने की ट्रेनिंग लेनी थी तो अस्पताल ने उसे अगले बैच के लोगों के साथ ट्रेनिंग लेने की अनुमति दी. उस ने मौसी को जब यह खबर दी तो उन्होंने कहा, ‘‘तू बच्चे को जन्म देगी और मैं उसे पालने में तेरी पूरी मदद करूंगी.’’

‘‘और जमाना उसे नाजायज बच्चा कह कर सारी उम्र ताने मारेगा.’’

‘‘हो सकता है तेरे बच्चे को ऐसी स्थिति का सामना न करना पड़े.’’

‘‘वह कैसे संभव है?’’

‘‘वक्त के साथ सब ठीक हो जाएगा. बस, तू हिम्मत न हार. मेरे जेठ का बेटा जेम्स दुबई में नौकरी कर रहा है. एक पैथोलौजिकल लैब में अच्छी पोस्ट पर है. शादी के 6 महीने के अंदर ही उस की पत्नी की वहीं कार ऐक्सिडैंट में मौत हो गई थी. हम लोग उस के लिए एक लड़की ढूंढ़ रहे हैं?’’ मौसी बोलीं.

‘‘और वह मेरे बेटे को स्वीकार करेगा? मु?ो अब मर्दों पर भरोसा नहीं है,’’ इहा ने कहा.

‘‘सभी मर्द एक से नहीं होते हैं और सुन, तू जहां तक सोचती है तेरी मौसी उस से चार कदम आगे की सोचती है. मैं ने उस से तेरी चर्चा कर रखी है. उसे तेरे बारे में सब बता भी दिया है.’’

‘‘और वह मु?ो बच्चे के साथ स्वीकार करेगा? मु?ो तो शक है.’’

‘‘वह हंस कर स्वीकार करेगा, इतनी अच्छी लड़की उसे कहां मिलने वाली है. वह भी तो विधुर है, उस का भी एक वीक पौइंट है.’’

इहा के प्रसव का समय नजदीक आ रहा था. इसी बीच एक बार धरम इहा की मम्मी से मिलने गया और बोला, ‘‘आंटी, इहा कैसी है और आजकल कहां है?’’

‘‘तुम ने शादी कर ली न, अब उसे भूल जाओ. उस की शादी हो गई है और वह खुश है. तुम तो बुजदिल निकले. जीवनसाथी की सही पहचान तभी होती है जब वह जीवन की अग्निपरीक्षा से गुजरता है.’’

‘‘सौरी आंटी, मैं ने कभी भी इहा को धोखा नहीं देना चाहा है. वैसे मैं ने अभी तक शादी नहीं की है. खैर, खुशी की बात है कि उस की शादी हो गई है, वह जहां रहे, खुश रहे. वैसे उस का बच्चा?’’

‘‘उसे मैडिकल इमरजैंसी हुई और अबौर्शन कराना पड़ा था.’’

‘‘ओह, सौरी. मेरे कारण उसे बहुत दुख हुआ.’’

धरम चला गया. इहा की मम्मी ने उस से दो ?ाठ बोले. इहा की शादी के बारे में और अबौर्शन के बारे. उन्होंने एक तीसरा ?ाठ इहा के पापा से कहा था इहा और जेम्स के बारे में. जेम्स इंडिया आया था तब दोनों में प्यार हो गया था और दोनों की सगाई भी हो गई है. इस बात के लिए उन्होंने अपनी बड़ी बहन इहा की मौसी को भी विश्वास में ले लिया था. इस बात से आश्वत हो कर दोनों से एक भूल हो गई. इसलिए उन दोनों की शादी जल्द करनी है और आजकल जेम्स भी इंडिया आया हुआ है.

इहा के पापा ने कहा, ‘‘मेरा पासपोर्ट तो कंपनी के पास जमा है और 2 महीनों से मु?ो पगार नहीं मिली है. कंपनी बोल रही है कि अब तो जल्द ही मेरा कौंट्रैक्ट खत्म होने वाला है. एक ही साथ फाइनल कर देंगे. तुम लोग इहा और जेम्स की शादी करा दो. मेरा प्यार कहना.’’

इहा की मां और मौसी दोनों ने मिल कर ?ाठ का सहारा तो लिया था, पर यह सिर्फ इसलिए कि इहा अपने जीवन में आए भूचाल का सामना कर सके. और इस ?ाठ से किसी का बुरा भी नहीं हो रहा था.

इहा ने एक बच्चे को जन्म दिया. जेम्स भी दुबई से आया था. उस ने बेटे का नाम डैनी रखा. इहा, उस की मम्मी, मौसी और जेम्स सभी खुश थे. 2 महीने बाद इहा के पापा भी कुवैत से लौट आए. पूरा परिवार जश्न मना रहा था.

इहा की ट्रेनिंग शुरू होने वाली थी. अब उस के सामने समस्या थी डैनी की परवरिश की. डैनी इतना छोटा था कि उसे मां की जरूरत थी. उसी समय इहा को खबर मिली कि ट्रेनिंग के लिए उसे त्रिवेंद्रम के ही एक अस्पताल में रिपोर्ट करना है. इस खबर से सभी को राहत मिली. कोवलम त्रिवेंद्रम के निकट ही है, इहा को कोई परेशानी नहीं होगी और उस की ट्रेनिंग खत्म होतेहोते डैनी भी कुछ बड़ा हो जाएगा. फिर तो मौसी और मां मिल कर उस की देखभाल कर लेंगी.

इधर धरम को चेन्नई में दवा बनाने वाली कंपनी में नौकरी मिली. उस की मां ठीक हो चली थी, अब वे वौकर के सहारे आराम से चल लेती थीं. डाक्टर ने कहा कि अपनी थेरैपी जारी रखें तो एक महीने के अंदर ही वे स्वयं अपने पैरों पर चल सकेंगी. जब से धरम इहा के घर से लौटा था उस की मां उसे जल्द ही शादी करने पर जोर दे रही थीं. उन्होंने एक लड़की भी देख रखी थी. लड़की सुंदर भी थी और अपनी बिरादरी की थी. उन्हें तो इहा की शादी के बारे में सुन कर बहुत संतोष हुआ क्योंकि धरम उस के लिए उदास रहने लगा था. एक दिन वे बोलीं, ‘‘बेटे, अब तो उस लड़की की शादी भी हो गई है, वह अपने परिवार में खुश है. अब तुम्हें उस को ले कर चिंतित होने की कोई जरूरत नहीं है और अब अपनी गृहस्थी बसाने की सोच. मु?ो भी तो दादी बनने का शौक है. आखिर शादी तो करनी है तु?ो एक न एक दिन.’’

कुछ माह बाद धरम की शादी अपनी जाति की एक लड़की सुधा से हुई. वह अपनी पत्नी और मां के साथ चेन्नई में रहने लगा था. सुधा उस समय एमए कर रही थी. दोनों ने मिल कर फैसला लिया कि जब तक सुधा की पढ़ाई समाप्त नहीं होती वह मां नहीं बनेगी. 2 साल के बाद सुधा ने एमए किया. फिर उस ने बीएड करना चाहा तो धरम ने कोई एतराज नहीं किया. पर उस की मां बोलीं, ‘‘जिंदगीभर पढ़ती ही रहेगी तो मैं दादी कब बनूंगी?’’

‘‘मां, घबराओ नहीं, उस के लिए अभी बहुत समय है.’’

सुधा बीएड करने के बाद एक स्कूल में टीचर बनी. कुछ समय बाद जब दोनों बच्चे के लिए तैयार हुए तो सुधा का लगातार 2 बार मिसकैरिज हुआ और वह मां न बन सकी. इस बीच 2 साल और बीत गए.

एक दिन सुधा और धरम दोनों डाक्टर से मिलने गए तो डाक्टर ने कहा, ‘‘आप दोनों के कुछ टैस्ट करने होंगे.’’

‘‘मेरे टैस्ट की कोई जरूरत नहीं है. सुधा के लिए जो भी टैस्ट्स जरूरी हों, आप करा लें,’’ धरम ने कहा.

‘‘खराबी दोनों में से किसी को भी हो सकती है या फिर दोनों को भी. आप इतने विश्वास के साथ कैसे कह सकते हैं?’’ डाक्टर बोला.

‘‘आप पहले सुधा के सभी टैस्ट्स कर लें. बाद में जरूरी हुआ तो मैं भी करा लूंगा.’’

सुधा ने कहा, ‘‘एक साथ दोनों के टैस्ट्स हो जाएं तो बेहतर है. कहीं आप के टैस्ट्स की जरूरत हुई और तब बेवजह हम समय बरबाद कर देंगे.’’

‘‘मैं ने कहा न. जरूरत पड़ने पर मैं बाद में करा लूंगा.’’

सुधा को धरम की यह दलील अच्छी नहीं लगी थी, फिर भी वह चुप रह गई. सुधा के टैस्ट्स की रिपोर्ट आ गई थी. डाक्टर ने बताया कि सुधा के गर्भाशय में कुछ ऐसी बीमारी थी कि वह मां बनने में अक्षम है.’’

सुधा के चेहरे पर घोर निराशा छा गई. डाक्टर ने कहा, ‘‘आप को इतना निराश होने की जरूरत नहीं है. आप दोनों संतान के लिए आधुनिक तरीके अपना सकते हैं.’’

‘‘कौन सा तरीका डाक्टर?’’ सुधा ने जिज्ञासा जाहिर करते हुए कहा.

‘‘अगर आप के पति चाहें तो सैरोगेट मदर की मदद से आप बच्चा पा सकती हैं. आप के पति ने उस समय अपना टैस्ट नहीं कराया था. बस, आप के पति का एक टैस्ट करना होगा. उम्मीद है, नतीजा ठीक ही होगा. तब बच्चा किसी सैरोगेट मदर के गर्भ में पलेगा.’’

‘‘नहीं, मु?ो यह तरीका ठीक नहीं लग रहा है.’’

‘‘क्यों?’’ डाक्टर ने पूछा.

‘‘डाक्टर, अभी हम चलते हैं. बाद में ठीक से सोच कर फैसला लेंगे,’’ धरम ने कहा और दोनों डाक्टर के क्लिनिक से निकल पड़े.

रास्ते में धरम ने सुधा से पूछा, ‘‘आखिर सैरोगेट मदर से तुम्हें क्या परेशानी है?’’

‘‘आप का अंश किसी गैर औरत की कोख में पले, मु?ा से बरदाश्त नहीं होगा?’’

‘‘यह क्या दकियानूसी की बात हुई. वह औरत हमारी मदद करेगी, हमें तो उस का कृतज्ञ होना चाहिए.’’

‘‘जो भी हो, मु?ो तो वह सौतन लगेगी.’’

‘‘क्या पागलपन की बात कर रही हो? मेरा उस से कोई शारीरिक संबंध नहीं होगा.’’

‘‘फिर भी, मु?ो मंजूर नहीं है.’’

‘‘तब दूसरा एकमात्र रास्ता है कि हम किसी बच्चे को गोद ले लें,’’ धरम ने थोड़ा नाराज होते हुए कहा.

‘‘हां, इस पर मैं सोच कर बता दूंगी.’’

इधर, जेम्स और इहा दोनों ने मिल कर चेन्नई में अपना एक लैब खोला था. यह लैब शहर में मशहूर हो गया था. कुछ महीने बाद सुधा और धरम दोनों ने एक बच्चा गोद लेने का फैसला लिया. धरम तो मन ही मन खुश था कि अब उसे अपने टैस्ट कराने की जरूरत नहीं रही. वे अनाथालय गए. धरम ने एक बच्चे को देखा और सुधा से पूछा, ‘‘यह ठीक रहेगा न?’’

‘‘मैं तो एक लड़की चाह रही थी.’’

‘‘ठीक है, तुम जैसा कहो वही होगा.’’

अंत में अनाथालय से एक बच्ची को अडौप्ट करने पर दोनों तैयार हुए. उस के लिए उन्होंने कानूनी प्रक्रिया शुरू कर अनुमति ले ली. उस बच्ची को घर लाने से पहले धरम ने उस का पूरा ब्लड टैस्ट कराने की इच्छा व्यक्त की तो सुधा ने पूछा, ‘‘इस बच्ची का इतने सारे टैस्ट क्यों कराना चाहते हो?’’

‘‘अकसर अनाथालय में लावारिस या नाजायज बच्चे आते हैं, किसी वेश्या का बच्चा भी हो सकता है जिस में बुरे रोग की आशंका होती है.’’

बच्ची का सैंपल जिस लैब में भेजा गया वह इहा की लैब थी. सुधा और धरम दोनों बच्ची की रिपोर्ट लेने लैब गए थे. उन्होंने रिसैप्शन पर बैठी महिला से कहा, ‘‘मु?ो अपनी बच्ची के ब्लड टैस्ट की रिपोर्ट चाहिए.’’

‘‘प्लीज, बच्चे का नाम बताएं,’’ रिसैप्शनिस्ट ने पूछा.

‘‘आशा पाठक,’’ सुधा बोली.

‘‘मैम, आप को तो 2 बजे के बाद बुलाया गया था, अभी तो 12 बजे हैं. टैस्ट्स हो चुके हैं. रिपोर्ट भी तैयार है. इंचार्ज के पास सिग्नेचर के लिए भेजा हुआ है. कुछ समय लगेगा आने में. अभी वे अपने बेटे के साथ व्यस्त हैं.’’

‘‘क्या उन का बेटा भी यहीं काम करता है?’’

‘‘नो, वह तो 15-16 साल का होगा. उस ने स्कूल बोर्ड की परीक्षा में पूरे स्टेट में टौप किया है. उन का चैंबर सैकंड फ्लोर पर है.’’

‘‘आप इंचार्ज से मेरी बात कराएं. मैं उन्हें बधाई भी दे दूंगा और शायद वे साइन कर चुकी होंगी या जल्दी साइन कर दें. हम लोग काफी दूर से आए हैं.’’

रिसैप्शनिस्ट ने लैब इंचार्ज से फोन पर पूछा, ‘‘मैम, आशा पाठक की रिपोर्ट के लिए उस के पेरैंट्स आए हैं. अगर साइन हो गए हों, तो मैं आ कर ले लेती हूं?’’

‘‘नहीं, तुम्हें आने की जरूरत नहीं है. मैं ने अभीअभी साइन कर दिया है. खुद ले कर आती हूं. डैनी को घर भी ड्रौप कर दूंगी.’’

कुछ मिनटों बाद सीढि़यों से उतरती हुई इहा रिसैप्शन के पास आई. उस का बेटा डैनी भी साथ में था. उन्हें आते देख कर रिसैप्शनिस्ट बोली, ‘‘लीजिए, आप की रिपोर्ट ले कर खुद मैम आ गईं.’’

धरम ने इहा की ओर देखा तो वह आश्चर्य से देखता रहा. उस के पीछे उस का बेटा डैनी था, उसे देख कर सुधा को काफी ताज्जुब हुआ. डैनी की शक्ल धरम से मिलती थी. इहा को देख कर धरम बोला, ‘‘व्हाट ए सरप्राइज, तुम यहां?’’

‘‘हां, मेरा ही लैब है तो मैं यहां रहूंगी ही. इस में सरप्राइज की क्या बात है़’’

‘‘आप इन्हें जानते हैं?’’ सुधा ने धरम से पूछा.

‘‘हां, कभी हम साथ पढ़ते थे और अच्छे दोस्त भी थे.’’

डैनी का चेहरा अलबम में धरम की बचपन की तसवीर से हूबहू मिलता था, जिसे सुधा बारबार देख चुकी थी. उसे देख कर सुधा बोली, ‘‘इन के बच्चे का चेहरा तुम से काफी मिलता है.’’

‘‘यह मात्र संयोग है. कहा जाता है कि एक चेहरे जैसे दुनिया में कम से कम 2 इंसान होते हैं,’’ इहा ने कहा.

रिपोर्ट दे कर इहा ने बेटे से कहा, ‘‘चल, तेरे पापा इंतजार कर रहे होंगे.’’ और वह अपने बेटे के साथ चली गई.

उस के जाने के बाद सुधा ने रिसैप्शनिस्ट से पूछा, ‘‘क्या डैनी आप की मैम का सगा बेटा है?’’

‘‘हां, उन का अपना बेटा है. मेरी मां और इन की मौसी एक ही हौस्पिटल में नर्स थीं और अच्छी सहेली भी. डैनी बाबा की डिलीवरी मेरी मां ने ही कराई थी और यह भी कहा था कि इन के बौयफ्रैंड ने धोखा दिया था.’’

‘‘चलो, हमें अब देर हो रही है,’’ धरम ने कहा.

धरम और सुधा दोनों कार से जा रहे थे. सुधा के मन में रहरह कर रिसैप्शनिस्ट की बात याद आ रही थी, किसी ने इहा को चीट किया है, डैनी का चेहरा धरम से मिलना और धरम का अपने टैस्ट से इनकार करना. क्या सभी महज इत्तफाक ही है. उधर धरम भी मन में सोच रहा था, ‘डैनी मेरा बेटा होते हुए भी जेम्स का बेटा कहलाता है और उस का नाम रौशन कर रहा है. काश, मैं ने उसे अपनाया होता तो मु?ो किसी अन्य बच्चे को गोद लेने की नौबत नहीं आती और डैनी आज मेरा नाम रौशन कर रहा होता.’

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