यह फिल्म बनाई ही क्यों गई, सब से पहले इसी पर सवाल होने चाहिए. धर्म के नाम पर पैसाउगाई पहले मंदिरों तक सीमित था, आजकल टीवी चैनलों, टीवी धारावाहिकों से ले कर सिनेमा में भी खूब होने लगा है.

न‘आदिपुरुष’ रामायण के राजकुमार राम लक्षमण सीता की कथा है न कोई मनोरंजन देने वाली. ओम के आदिपुरुष में सीता, राम और लक्ष्मण की कहानी नहीं है. उस ने राघव, जानकी, शेष, बजरंग और लंकेश की कहानी को चुना है.

फिल्म की कहानी और पटकथा लिखने वालों ने खूब छूट ली है, जो वैसे फिल्मकारों का हक़ पर पर जो लिखा है वह दर्शक देखना नहीं चाहते हैं क्योंकि वे तो भगवान राम का गुणगान देखना चाहते हैं.

दशकों से रामकथा को मंच पर टीवी धारावाहिकों और फिल्मों में आम जनता को बारबार दिखाया गया है. रामचरितमानस में रामकथा के माध्यम से ब्राह्मण श्रेष्टता के कसीदे गढ़े गए हैं. इस फिल्म में निर्देशक राम की पूरी कहानी नहीं रावण द्वारा सीताहरण से ले कर रावण के मारे जाने तक की कहानी कही है, उस ने किरदारों को अपने नजरिए से पेश किया है, जो भक्ति भाव वालों को पसंद नहीं आएगी और जो रामकथा को एक राजा की कहानी मात्र मानते हैं वे भी संतुष्ट नहीं होंगे.

फिल्म शुरू होते ही ‘सिया रामसियाराम जयजय राम’का स्तुतिगान किया गया है. जो फिल्म की मूल मंशा के खिलाफ है. इस फिल्म में अगर रामनाम का प्रचार करवाने का प्रयास था तो दाल नहीं गली.

निर्देशक ने राम और उस के परम भक्त हनुमान को आज के माहौल का दिखा कर क्रिएटिविटी दिखाने की कोशिश की पर पूरी फिल्म भी ऐसी होनी चाहिए थी जिस में जय श्री राम जय श्री राम के नारों की जरूरत नहीं होती. सड़क छाप संवादों को लेना अपनेआप में गलत नहीं है क्योंकि फिल्म 2023 में बनी है पर जो आदर्श भाव लोगों के मन में बैठा है उस से यह मेल नहीं खाता.

फिल्म की भाषा में जो प्रयोग किए गए हैं अगर पूरी फिल्म में किए जाते तो यह कब की बैन हो चुकी होती. राम लक्षमण सीता हनुमान जैसे पात्रों का जो चित्रण वाल्मीकि रामायण में किया गया है यदि उसे 21वीं सदी में ला कर कहने का प्रयोग ओम राउत करते तो उन्हें धार्मिक भावनाओं के ठेस पहुंचाने के नाम पर वर्षों बिना जमानत जेल भेज दिया जाता. जो शब्द वाल्मीकि रामायण में इन पात्रों ने संस्कृत में कहे हैं उन का पटरी की भाषा में अनुवाद किया जाए तो वैसा सा ही होगा जो आदिपुरुष में होगा पर वह फिल्म राम विरोधी होगी. राम का गुणगान करने और भगवान के पद पर बैठाने वाली नहीं.

हनुमान बने किरदार में अशोक वाटिका में रावण उस से अबेतबे कर के बात करता है, ‘तेरी बूआ का बगीचा है कि टहलने चला आया.’हनुमान का भी मजाक उड़ाया गया है, ‘अपने बंदरों को ले कर निकल यहां से.’

इस तरह के वाक्य कई रामायणों में ही नहीं होते मंचों में होनी वाली रामलीलाओं में भी बोले जाते हैं पर जब फिल्म में जानबूझ कर बारबार जय श्री रामका उद्घोष किया गया है तो लगता है कि निर्देशक पटकथा लेखक एकदम दोगले और दिशाहीन हैं.

मध्यांतर तक फिल्म सुंदर कांड ही पार करती है. मध्यांतर के बाद लंका कांड है जो अपनेआप में एक कांड से कम नहीं है. ‘अवेटार’ जैसी फिल्मों से प्रेरित, चमगादड़ जैसे पुष्पक विमान, चमगादड़ों की फौज दिखा कर कंप्यूटर ग्राफिक्स और वीएफएक्स पर करोड़ों रुपए स्वाहा किए गए हैं. फिर भी ये सीन अपना असर नहीं छोड़ पाते.

गीतसंगीत कमजोर रहा. हां, इस फिल्म को देख कर गलीमहल्लों की रामलीला की याद ताजा हो आती है पर आज का अंधविश्वासी तर्क व तथ्यों से दूर हो चुका दर्शक इसे पचा नहीं पाएगा.

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