रागिनी पाठक

“राधिका सुनो, कल सुबह आयुष के साथ रचना और अखिलेश घर पर आएंगे,” राधिका के पति अजय ने फोन टेबल पर रखते हुए कहा.

गिलास में पानी भरती राधिका ने आश्चर्य से पूछा, “क्या…? क्या कहा आप ने? रचना और जीजाजी घर आ रहे हैं?”

“हम्म… अभी उन्हीं का फोन था,” अजय ने कहा.

इतना सुनते ही राधिका के हाथ से पानी भरा गिलास छूट गया, “क्या…?”

‘लेकिन, इतने सालों बाद कैसे याद आ गई उन को हमारी?’ राधिका ने मन ही मन में सोचा. और यह खबर सुनते ही उसे उन से जुड़ी पुरानी कड़वी यादें भी ताजा हो गईं कि उस को कैसेकैसे ताने सुनाए जाते थे.

राधिका की दूसरी बेटी होने पर ननदोईजी ने उस के पूर्व जन्मों के खराब कर्म बताए थे और ननद ने तो उस की मां की परछाईं को ही बुरा बता कर हायतोबा पूरे अस्पताल में मचा दी थी.

उस के अतीत के पन्नों में ननद और ननदोई से जुड़े वाकिए याद करने के लिए सिर्फ ताने ही थे. उसे उन की सभी बातें आज याद आ रही थीं, कैसे मायके वालों के सामने उन्होंने कहा था, “अब ये तो अपनेअपने कर्म हैं. जिन के कर्म अच्छे होते हैं, उन के ही वंश आगे बढ़ते हैं.

“खैर, अब तो साले साहब की जिम्मेदारी और बढ़ गई. चलिए… कोई बात नहीं. हमारे दोनों बेटे आप की बेटियों के लिए भाई होने का फर्ज निभाएंगे. मेरे बच्चों की जिम्मेदारी बढ़ गई. उस पर से जमाना इतना खराब है.”

सास भी बेटीदामाद का ही साथ देती थीं. उन्होंने कभी भी उस की बेटियों को दादी के हिस्से का प्यार नहीं दिया. अजय के कहने पर राधिका हमेशा चुप ही रही.

अजय हमेशा उस से एक ही बात कहता, “राधिका, कुछ बातों का जवाब समय दे तो ज्यादा बेहतर होता है.”

अजय और राधिका पारिवारिक झगड़े और तनाव से बचने के लिए पूना रहने आ गए, ताकि वे अपनी बेटियों को एक खुशहाल माहौल दे सकें.
लेकिन उस दिन के बाद से राधिका ने अपने ननदननदोई से सिर्फ बात करने की फार्ममैलिटी ही निभाई. इतने सालों में न ससुराल में कोई फंक्शन हुआ, न ननद के घर जा कर कभी मिलना होता. आखिरी बार बाबूजी की तेरहवीं पर मिलना हुआ था.

“राधिका, क्या सोचने लगी हो?” अजय ने कहा.

अजय की बात सुन कर राधिका अपनी यादों से बाहर आई.

“कुछ नहीं, बस कुछ पुरानी बातें याद आ गईं. समय कितनी जल्दी बदल गया. पता नहीं, वे लोग बदले की नहीं.”

“ओह राधिका, अब समय बदल गया है, तो निश्चित ही उन की सोच भी बदली होगी. पुराने जख्म कुरेदने पर सिर्फ दर्द ही होगा, समझी. तो बेहतर होगा कि हम उन्हें भूल ही जाएं.”

“पता नहीं, अब तो यह मिलने के बाद ही पता चलेगा कि कितना बदलाव आया है, लेकिन जहां तक उन से जुड़ा मेरा अनुभव कहता है कि कुछ लोग कभी नहीं बदलते…”

“वैसे, आ क्यों रहे हैं?” राधिका ने पूछा.

“मैनेजमैंट कालेज में आयुष का एडमिशन कराना है,” अजय ने बताया.

“किस कालेज में?” राधिका ने फिर सवाल किया.

“उसी कालेज में, जहां अपनी श्रद्धा लैक्चरर है.”

“क्या…?” सुन कर राधिका चौंक पड़ी.

“आयुष अभी पढ़ाई ही कर रहा है. लेकिन, वह तो श्रद्धा से 2 साल बड़ा है.”

“हां, हाईस्कूल और 12वीं में कई बार फेल हुआ. इस वजह से वह पीछे रह गया.”

अजय ने यह बात अपनी बेटियों श्रद्धा और आर्या को भी बताई. दोनों बहुत खुश हुईं. दोनों बेटियां शांत, संस्कारी और बहुत ही समझदार थीं. दोनों बहनों में सिर्फ एक साल का ही अंतर था. एक बेटी लैक्चरर थी और दूसरी बेटी वकालत कर रही थी.

अगले दिन रविवार था. अजय अपनी कार से लेने एयरपोर्ट पहुंचे. कार को श्रद्धा ही ड्राइव कर रही थी. दोनों बापबेटी बहुत ही खुश दिख रहे थे. अजय के चेहरे पर बेटियों के लिए चिंता की कोई शिकन या अफसोस न देख कर अखिलेश और रचना आश्चर्य में हो गए.

बेटियों ने पूरी जिम्मेदारी उठा रखी थी. घर बाहरअंदर सबकुछ अच्छे से व्यवस्थित था. घर के काम के लिए राधिका ने कोई बाई नहीं रखी थी.

घर पहुंचने पर राधिका ने सब का स्वागत खुशीखुशी किया.

उसी दिन आर्या शाम को 7 बजे घर आई. उस ने आ कर बूआफूफा के पैर छुए. देर से आने की बात सीमा और अखिलेश को अच्छी नहीं लगी.

तभी रचना ने आंखें दिखाते हुए कहा, “भैया, आप ने तो बेटियों को बहुत छूट दे रखी है. ये ऐसे ही रात को हमेशा अकेले आतीजाती हैं क्या? तो यह सब इन के लिए अच्छा नहीं… आएदिन देखिए न्यूज में लड़कियों के साथ कैसीकैसी घटनाएं होती रहती हैं.”

अजय अपने चिरपरिचित अंदाज में चुप ही रहे, क्योंकि उन का मानना था कि ऐसे लोगों को कुछ बोलने का फायदा नहीं, जिन की मानसिकता संकीर्ण हो.

इतना सुन कर आर्या का मन हुआ कि पलट कर जवाब दे दे, लेकिन राधिका की तरफ नजर गई, तो उस ने उसे इशारे से चुपचाप अंदर जाने के लिए कहा.

रात को सब काम खत्म कर के राधिका अपने कमरे में जा ही रही थी कि उस की नजर अपनी बेटियों के कमरे की तरफ गई, जहां से उसे बात करने की आवाज आ रही थी. वह कमरे के बाहर से ही खड़ी हो कर दोनों बेटियों की बातों को सुनने लगीं.

आर्या बोली, “दीदी, बूआजीफूफाजी किस जमाने की और कैसी बातें कर रहे हैं? आज तो मुझे उन की बातें सुन कर बहुत गुस्सा आया. मन तो हुआ कि पलट कर जवाब दे दूं, लेकिन मां की वजह से चुप हो गई.

“मुझे तो लगा था कि वे पापा की बहन हैं, तो उन की ही तरह अच्छे विचारों की होंगी.”

श्रद्धा ने कहा, “तू क्यों इतना अपने दिमाग पर जोर दे रही है? कौन सा वे हमारे साथ रहने वाले हैं? हमें क्या मतलब उन के विचारों से, कुछ ही दिनों की बात है बस. वैसे भी मम्मीपापा कहते हैं न कि मेहमान का अपमान कभी नहीं करना चाहिए.”

“हम्म…”

इधर आयुष फेसबुक और व्हाट्सएप पर अपने स्टेटस अपडेट करने में व्यस्त था. दोपहर में राधिका अपने ननदननदोई को कमरे से दोपहर के खाने के लिए बुलाने गई, जहां उस ने अपने ननदननदोई को बात करते सुना, “चलो, अब हमारी टैंशन खत्म. आयुष को अब आराम से खाना और कपड़े प्रैस कर के सब मिल जाएंगे. होस्टल में रहता तो हमारी चिंता और खर्चा दोनों बनी और बढ़ी रहती.”

उसी दिन रात के खाने पर अपनी आदत से मजबूर अखिलेश ने कहा, “देखिए, अजय हम ने तो आप की बहन से कहा कि आयुष को होस्टल में रख देते हैं, लेकिन आप की बहनजी हमारे पीछे ही पड़ गईं. कह रही हैं, नहीं आखिर आयुष का भी कुछ फर्ज है अपनी बहनों के लिए. अब भाई की उम्र थोड़ी न रही, जो हर जगह बेटियों के साथ आजा सके. तो इसी बहाने भैयाभाभी की मदद हो जाएगी और बेटियों को भी सुरक्षा मिल जाएगी. आखिर भाई को कोई बेटा होता तो हमें यह सब न सोचना होता.”

“क्यों भाभीजी… सही कहा न मैं ने? आखिर आप बेटियों की मां हैं, तो आप को बेहतर पता होगा,” एक तरफ ननदननदोई की व्यंग्यात्मक मुसकान, तो वहीं दूसरी तरफ राधिका ने खीर परोसते हुए दोनों बेटियों की तरफ देखा, जिन की बूआफूफा से मिलने की खुशी नाराजगी और दुख में बदल गई थी.

तभी राधिका ने मुसकराते हुए कहा, “जीजाजी, यह खीर लीजिए, बिलकुल सही कहा आप ने. मैं तो सोच रही थी कि आप का ही फैसला सही है. आयुष को आप होस्टल में ही रख दीजिए, क्योंकि ध यहां रहेगा तो उस के बहाने उस के चार दोस्त भी मिलने आतेजाते रहेंगे. ये तो सामान्य सी बात है. अब न तो हम, न ही बेचारा आयुष उन्हें घर आने से मना भी नहीं कर सकते. क्योंकि अच्छा नहीं लगेगा दोस्तों को यों मना करते, क्यों आयुष बेटा? सही कह रही हूं न मैं. और जैसा कि आप ने अभी कहा कि मैं बेटियों की मां हूं, तो उन की सुरक्षा की दृष्टि से बाहरी लड़कों का घर में आनाजाना ठीक नहीं. क्यों जीजाजी, सही कहा न मैं ने?

“और दूसरी तरफ एकसाथ कालेज के लिए निकले तो लोगों के हजार सवाल भी होंगे कि छोटी बहन लेक्चरर और बड़ा भाई अभी मैनेजमैंट कोटे से एमबीए करने जा रहा है, तो अच्छा नहीं लगेगा.

“अब सब के सामने यह सब सुन कर आयुष को भी अच्छा नहीं लगेगा, इसलिए माफी चाहूंगी कि मैं अपने घर में आयुष को नहीं रख पाऊंगी. लेकिन, आप बिलकुल चिंता मत कीजिए. जब भी उस को कोई मदद चाहिए होगी, हम सब जरूर कर देंगे.

“तो आप कल ही होस्टल जा कर देख लीजिए. चाहे तो श्रद्धा आप के साथ चली जाएगी. अनजान शहर में आप की मदद भी हो जाएगी. ठीक है न बेटा?”

अपनी मां के मुंह से इस तरह का मीठा प्रहार सुन कर दोनों बेटियों के चेहरे पर खुशी छा गई.

राधिका अच्छी तरह जानती थी कि उन लोगों को उस की बेटियों से ज्यादा अपने बेटे की चिंता थी कि कहीं उन का बेटा शहर की चमकधमक में बिगड़ न जाए या रैगिंग वगैरह का शिकार न हो. लेकिन, यह बात स्वीकार कैसे करें? उन का अहम जो बीच मे आड़े आ रहा था.

राधिका की बातें सुन कर अखिलेश और रचना निरुत्तर नजरें झुकाए गुस्से से उसे घूरते देखते रह गए. लेकिन कुछ भी बोल न पाए.

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