ओडिशा के बालासोर में हुए भीषण ट्रेन हादसे की गूंज भारत समेत पूरी दुनिया में है. इस हादसे की गिनती इस सदी में सब से बड़े रेल हादसों में हो रही है. इस घटना में अब तक 280 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है, साथ ही 900 से ज्यादा लोगों के घायल होने की खबर है. इस के साथ ही आंकड़ों की मानें तो तकरीबन 100 से ज्यादा ऐसे लोग हैं, जिन की पहचान नहीं हो पाई है. वहीं इस हादसे ने कई सवाल भी खड़े कर दिए हैं.

ट्रेन हादसे को ले कर हमलावर विपक्ष

विपक्ष लगातार इस हादसे को ले कर मोदी सरकार पर हमलावर है. इन सब में सब से बड़े सवाल ट्रेन की कवच प्रणाली पर उठ रहे हैं. वही कवच प्रणाली, जिस का कुछ समय पहले रेल मंत्री अश्विणी वैष्णव द्वारा डैमो दिखाया गया था. इस कवच को ले कर रेल मंत्री ने जीरो ट्रेन ऐक्सीडैंट टारगेट करने का दावा किया था. हालांकि इस टैक्नोलौजी को अब तक देश के सभी रेलवे ट्रैक पर जोड़ा नहीं गया है, जिस में से एक हादसे वाली जगह भी थी.

तो चलिए जानते हैं कि यह कवच प्रणाली या रेलवे कवच प्रोटैक्शन सिस्टम क्या है…

कवच प्रोटैक्शन सिस्टम एक औटोमैटिक ट्रेन प्रोटैक्शन सिस्टम है, जिसे भारतीय रेलवे ने आरडीएसओ यानी रिसर्च डिजाइन ऐंड स्टैंडर्ड और्गेनाइजेशन के जरीए बनाया है. इस सिस्टम पर रेलवे ने साल 2012 में काम करना शुरू किया था.

इस सिस्टम को बनाने के पीछे भारतीय रेलवे का उद्देश्य जीरो ट्रेन हादसे का लक्ष्य हासिल करना है. इस सिस्टम का पहला ट्रायल वर्ष 2016 में किया गया था और पिछले साल ही अश्निवी वैष्णव की मौजूदगी में इस का सफल डैमो भी दिखाया गया था.

कवच सिस्टम लागू करने का काम कितना पूरा हुआ

बताया जा रहा है कि जहां पर यह ट्रेन हादसा हुआ, वहां अभी कवच सिस्टम लागू नहीं हुआ था. अगर यह प्रणाली वहां होती तो हादसे को रोका जा सकता था. कवच प्रणाली सब से पहले उन ट्रैक्स पर लगाया जा रहा है, जहां सब से ज्यादा ट्रेन की आवाजाही है. फिलहाल, यह सिस्टम दिल्लीमुंबई और दिल्लीहावड़ा कौरिडोर पर कवच को ले कर काम चल रहा है. हर साल 4,000 से 5,000 किलोमीटर तक इस तकनीक को लागू करने का लक्ष्य है.

कवच प्रणाली से कैसे रुक सकती थी 2 ट्रेनों की टक्कर

बीते दिनों राज्यसभा में एक सवाल का जवाब देते हुए रेल मंत्री ने कहा था कि भारतीय रेलवे दुर्घटना रोकने के लिए एक प्रणाली ‘कवच’ को विकसित किया है, जिस से देशभर में लागू कर ट्रेनों की टक्कर को रोका जा सकता है.

रेलवे के अनुसार, इस तकनीक की मदद से सिगनल जंप करने पर ट्रेन खुद ही रुक जाती है. यह कवच ट्रेन के आमनेसामने आने पर कंट्रोल कर उसे पीछे ले जाता है और इस के जरीए यदि लोको पायलट ब्रेक लगाने में फेल हो जाता है, तो इस प्रणाली से स्वचालित रूप से ब्रेक लग जाते हैं.

कवच के काम करने की प्रक्रिया

कवच एकसाथ कई इलैक्ट्रोनिक डिवाइस का सैट है. इस में रेडियो फ्रीक्वैंसी आइडैंटिफिकेशन डिवाइसेस को ट्रेन, ट्रैक, रेलवे सिगनल सिस्टम और हर स्टेशन पर एक किलोमीटर की दूरी पर इंस्टाल किया जाता है. यह सिस्टम दूसरे कंपोनैंट्स से अल्ट्रा हाई रेडियो फ्रीक्वैंसी के जरीए कम्युनिकेट करता है. जैसे ही कोई ट्रेन सिगनल जंप करती है तो यह ऐक्टिव हो जाता है. इस के बाद सिस्टम लोको पायलट को अलर्ट करता है और ट्रेन के ब्रेक्स का कंट्रोल हासिल कर लेता है. इस के बाद जैसे ही सिस्टम पर दूसरी ट्रेन के पटरी पर होने का अलर्ट आता है, तो वह पहली ट्रेन के मूवमैंट को रोक देता है. इस तकनीक से सिस्टम लगातार ट्रेन को मौनिटर करते हुए इस के सिगनल भेजता रहता है.

अगर आसान शब्दों में कहें, तो अगर 2 ट्रेन एक ही ट्रैक पर एक समय में आ जाती हैं, तो इस टैक्नोलौजी की मदद से दोनों ट्रेनों को एक निश्चित दूरी पर रोका जा सकता है.

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