मैं उबले आलू की भरावन तैयार करते हुए सामने वाली कंपनी के गेट को भी देखे जा रहा था, दोनों अभी तक आए नहीं. मैं ने मन में उन दोनों का नाम भेलपुरी और सैंडविच रख लिया है. आज औफिस आए भी हैं या नहीं, 10 तो बज रहे हैं. इतने में दोनों आते दिख ही गए, मेरे हाथ जल्दीजल्दी चलने लगे, अभी लड़की आते ही कहेगी, “भैया, जरा जल्दी से एक कप चाय और एक सैंडविच दे दो.”

वही हुआ भी. लड़की ने आते ही कहा, “भैया, जरा जल्दी से एक कप चाय और एक सैंडविच दे दो.”

मैं ने मुसकराते हुए बस सिर हिला दिया, ‘कैसे कहूं, मैं उन के लिए चाय का पानी चढ़ा चुका हूं. और सैंडविच बनाने की तैयारी भी कर चुका हूं.’

मैं ने 2 ब्रेड स्लाइस के बीच में आलू की भरावन रखी, पतले गोल प्याज के टुकड़े रखे, एक टमाटर का गोल कटा टुकड़ा रख कर उस पर चाट मसाला छिड़का, ब्रेड के दोनों तरफ खूब मक्खन लगा कर जलते स्टोव पर सैंडविचर में रख कर उलटपुलट कर सेंकने लगा. 3-4 मिनट में ही सैंडविच अच्छी तरह से सिंक गया, फिर मक्खन लगाया, एक पेपर प्लेट में रख कर उस के 4 टुकड़े किए, एक कप में चाय छानी और उन्हें दे दी.

लड़की इस समय बस चाय पीती है, लड़का सैंडविच खाता है. दोनों एक साल से मेरे ठेले पर आते हैं, सामने की कंपनी में ही साथ काम करते हैं. रोज दिखने वाले चेहरे इतने परिचित हो जाते हैं कि कोई रिश्ता न होते हुए भी सब एकदूसरे को जानते चले जाते हैं.

मुझे तो इन दोनों की इतनी आदत हो गई है कि चाहे ठेले पर कितनी भी भीड़ हो जाए, मुझे इन का इंतजार रहता है. इन के साथ के बाकी लोग आतेजाते रहते हैं, कभी आते हैं, कभी नहीं.

यह लड़की घर से नाश्ता कर के आती है, लड़का शायद अकेला रहता है, यहीं नाश्ता करता है. दोनों शाम को एक बार फिर 6 बजे आते हैं. लड़की उस समय भेलपूरी खाती है. दोनों की बातों से मुझे इतना अंदाजा लग चुका है कि लड़का दिल्ली से आया हुआ है और लड़की यहीं की है, फोन पर घर वालों से मराठी बोलती है. मैं भी मराठी समझने लगा हूं. लड़के को मराठी नहीं आती.

“आज तुम क्या नाश्ता कर के आई?” लड़का पूछ रहा था.

“वही, पोहा. हर दूसरे दिन पोहा बनता है घर में, बाबा तो रोज खा सकते हैं.”

“अरे, मुझे तो पोहा बहुत पसंद है. तुम कितनी लकी हो, सब कियाकराया मिल जाता है. यहां तो न बनाना आता है, न टाइम है. तुम्हें पता है, अनिल ने कल रात मुझे फोन किया था, उस क्लाइंट ने मेरा जीना हराम कर रखा है, यार. यह अनिल मैरिड है, इस की कोई फैमिली लाइफ है या नहीं. इस की वाइफ इसे कुछ कहती नहीं क्या? यह मेरे साथ रात 11 बजे तक फोन पर था.”

मैं और लोगों के लिए चाय और सैंडविच बनाता जा रहा था, पर मेरे कान हमेशा की तरह इन दोनों की बातों पर थे. ये मेरे थोड़ा पास ही साइड में खड़े होते हैं.

यह सुनते ही लड़की हंसी, “अब जब तक यह डील फाइनल नहीं करवा लेगा, तुम ही हो इस की वाइफ. यार, ये जितने भी सीनियर हैं, इन के चेहरे देखे हैं, आजकल उड़े ही रहते हैं. काम ही नहीं खत्म हो रहा है.”

“तुम लड़कियों के साथ कम से कम हंसता तो है अनिल. हमें देख कर तो जम्हाइयां लेता है.”

दोनों इस बात पर खूब हंसे और फिर मुझे रोज की तरह पैसे दे कर चले गए. अब ये शाम को आएंगे. शाम को मेरी बनाई भेलपुरी खाने के लिए औफिस से निकलते हुए कई लोग आते हैं, जो घर जाते हुए यहां खड़े हो कर गप्पें मारते हुए दिनभर की भड़ास निकालते हैं. कोईकोई तो भेलपुरी पैक करवा कर घर भी ले जाता है.

मुझे इन दोनों को साथ देखना अच्छा लगता है, इन की बातें सुनना और भी अच्छा लगता है. ज्यादा पढ़ालिखा तो हूं नहीं, वरना गांव से यहां आ कर यह ठेला क्यों लगाता. 2 बजे तक ही मैं यहां खड़ा होता हूं, उस के बाद कोई आता नहीं. शाम को मैं सैंडविच और चाय के साथ भेलपुरी भी रखता हूं.

इस जगह खड़े होने से फायदा होता है, सामने औफिस ही औफिस हैं, यह एक छोटी सी सड़क है, इस के आगे एक मौल है, मौल के अंदर जाने वाले वहां के महंगे खाने से बचने के लिए कई बार यहीं कुछ खा कर आगे बढ़ते हैं. इस सड़क पर बस एक मैं हूं और थोड़ी दूर पर एक डोसे वाला. वह दीपक भी मेरे ही गांव का है. पूर्वी उत्तर प्रदेश के जौनपुर से 20 किलोमीटर दूर गांव है हमारा, मरियाहू. यहां हम ने एक कमरा किराए पर लिया है, जहां हम 4 लोग रहते हैं. साल में 2 बार हम गांव जाते हैं.

गांव में मेरी पत्नी है रमा, जो मेरी अम्मांबाबू के साथ रहती है. अब उस के 5 महीने का पेट है, बच्चा होने के टाइम मैं जाऊंगा. हम ठीकठाक गुजारे लायक कमा लेते हैं. यहां मुंबई में कई लोग ऐसे हैं, जिन का पेट हमारे जैसे खानों से ही भरता है. कुछ को सस्ता लगता है, कुछ टाइमपास में खाते हैं, कुछ जवान बच्चों को घर का खाना नहीं पसंद. शाम को लड़केलड़कियां खूब आते हैं. जवान लड़के तो दरियादिली से लड़की से ऐसे पूछते हैं कि बोलो, क्या खाओगी, अरे, और खाओ न. इतना कम क्यों? पहले ही इतनी शेप में हो.

थोड़ी बहुत अंगरेजी मैं भी समझने लगा हूं. शादीशुदा आते हैं, आदमी हमेशा ही जल्दी में रहता है, आते ही कहता है, जरा जल्दी देना. उन्हें साथ टाइम बिताने की तो कोई जल्दी होती नहीं है. उन के पास घर है ही. वहीं उस की पत्नी इतने शौक से खा रही होती है, लगता है, आज कुछ बनाने से इस की जान छूटी.

सारे ग्राहक एक तरफ, इन दोनों से मुझे खास लगाव हो गया है. अब शाम हो गई है, मैं फिर सामने देख रहा हूं, अब दोनों आने ही वाले हैं. दोनों आ रहे हैं. लड़की अभी आ कर कहेगी, “भैया, जरा तीखी भेल बना देना.” लड़का फिर कहेगा, “मेरे लिए मीडियम.”

लड़की ने पास आते हुए कहा, “भैया, जरा तीखी भेल बना देना.” लड़का बोला, “मेरे लिए मीडियम.”

यह सुन मैं मन ही मन मुसकराता हुआ दोनों के लिए भेलपूरी बनाने लगा. तैयारी तो सब कर के ही लाता हूं, छोटाछोटा प्याज, हरी मिर्च, धनिया घर से ही काट कर ले आता हूं, खट्टीमीठी चटनी तो बना कर रख लेता हूं. बस सब यहां मिलाना ही होता है. गांव जाता हूं, तो कई बार घर में सब को बना कर भी खिला देता हूं.

रमा को आजकल तीखा बहुत भाता है. उस के दिन ही ऐसे हैं. कमाने के चक्कर में दूर पड़ा हुआ हूं सब से, फिर सोचता हूं, जो भी ठेले पर खाने आते हैं, उन में से काफी लोग घर से दूर ही तो हैं. यह लड़का भी तो अकेला ही रहता है.

आज दोनों का मूड खराब लग रहा है, शायद झगड़ा हुआ हो. पर झगड़ा होता तो साथ क्यों आते. दोनों बात ही नहीं कर रहे, मैं ने उन दोनों को उन की भेलपुरी दी, दोनों ने चुपचाप पकड़ ली. लड़के ने लड़की को इतना तीखा खाने पर छेड़ा भी नहीं. बस थोड़ी देर बाद उस ने धीरे से पूछ लिया, “मतलब, तुम्हारी फैमिली मना करेगी तो हमारी शादी नहीं होगी?”

“अरशद, कैसे होगी, बताओ? आईबाबा बिलकुल तैयार नहीं.”

“मैं एक बार मिल लूं?”

“नहीं, तुम्हारी इंसल्ट कर देंगे, तो मुझे बहुत दुख होगा.”

“तुम ने पहले क्यों नहीं यह सब सोचा, नेहा?”

“प्यार सोचसमझ कर होता है क्या?”

यह सुन लड़के का मुंह लटक गया था. दोनों मेरे पीछे ही एक तरफ हट कर बात कर रहे थे. मेरे हाथों की स्पीड कम हो गई. कान पीछे ही लगे थे. इतना सुंदर जोड़ा… इतने बड़े शहर में पढ़ेलिखों में भी यह सब आज भी चलता जा रहा है, फिर हम गांव के लोगों की तो बात ही क्या सोचूं…

दोनों पैसे दे कर उखड़े से वापस चले गए. लड़का बाइक पर शायद लड़की को उस के घर के पास छोड़ता होगा. अगला पूरा हफ्ता दोनों साथ नहीं आए. मेरा दिल तो उन्हीं में रमा था, वे दोनों मेरे जीवन का ऐसा हिस्सा हो चुके थे कि मुझे पता ही नहीं चला था. आतेजाते दोनों अलगअलग दिखते, बिलकुल उदास, उतरे चेहरे.

धीरेधीरे एक महीना बीत गया. मुझे घर जा कर भी उन दोनों के बारे में सोच कर दुख होता रहा. क्या जाति, धर्म की बातें हमेशा ऐसे ही जवां दिलों के प्यार भरे दिलों को तोड़ती रहेगी. इतने पढ़ेलिखे बच्चों की बात इन के मातापिता के लिए माने नहीं रखती? इस लड़की के घर वालों को इस के चेहरे की उदासी नहीं दिखती? अरशद नाम है तो क्या हुआ, कितना प्यार करता है इस लड़की को. यह लड़की अरशद के साथ कितनी खुश रहती थी. इस की शादी इस के घर वाले किसी और के साथ कर देंगे, तो क्या इसे अरशद की याद नहीं आया करेगी?

दोनों मेरे दिलोदिमाग पर हावी रहने लगे, मैं हर समय उन दोनों को साथ देखने का इंतजार करता रहा. कितने ग्राहक आते, चले जाते. पर ऐसा लगाव मुझे किसी से न हुआ था.

मैं ने रमा को फोन पर उन की कहानी सुनाई. उस ने इतना ही कहा, “यह तो लड़कियों के साथ होता ही रहता है. यह कौन सी बड़ी बात है.”

रमा समझदार है, कम शब्दों में बहुतकुछ कह जाती है. मैं ने उसे छेड़ा, “तुम्हारे साथ तो यह नहीं हुआ न…?”

अब की बार रमा हंस दी, “नहीं, किसी और को पसंद करने का कभी मौका ही नहीं मिला. अब तो तुम ही सबकुछ हो,” उस की आवाज भर्रा गई, जानता हूं, वह मुझे बहुत प्यार करती है.

दिन गुजरते गए. बीचबीच में तो कभी अरशद और लड़की दिख भी जाते थे, अब तो कई दिन से नहीं दिखे थे. अब आतेजाते लोगों की भीड़ में कहीं गुम से हो जाते होंगे.

अचानक सुबह एक बाइक जब ठेले के सामने आ कर रुकी, मेरे हाथ रुक गए, मैं मुंहबाए उन्हें देखता रहा. लड़की नई दुलहन जैसी दमक रही थी, हाथों में मेहंदी लगी थी, आज जींसटौप नहीं, एक सुंदर सी साड़ी में थी. अरशद का चेहरा चमक रहा था. दोनों ने पास आ कर कहा, “दो चाय, दो सैंडविच देना भैया.”

मैं हंस दिया, पूछ ही लिया, “भैयाजी, बहुत दिनों बाद आए हो?”

“हां, हम ने शादी कर ली.”

“बधाई हो.”

दोनों ने हंसते हुए ‘थैंक यू’ कहा.

इतने में उन के एक साथी ने आ कर पूछा, “नेहा के घर वाले आराम से तैयार हो गए?”

नेहा हंसी, “अभी नाराज हैं. टाइम लगेगा. उन के तैयार होने में अपना टाइम खराब नहीं कर सकते थे. इतना पढ़लिख कर भी अगर धर्मजाति के चक्कर में पड़ कर एकदूसरे को खो दिया, तो हमारे समझदार होने पर लानत है.”

‘शाबाश नेहा,’ मैं ने मन ही मन कहा. और साथी आते गए, उन्हें बधाई दे कर पार्टी मांगते रहे. हंसीमजाक चलता रहा.

अरशद मुझे पैसे देने लगा, तो मैं ने कहा, “नहीं भैयाजी, आज नहीं. आज मेरी तरफ से,” कह कर वह हंस दिया. मेरे कंधे पर हाथ रख आ कर ‘ओके, दोस्त. थैंक यू…’ कह कर नेहा का हाथ पकड़ कर सामने अपने औफिस चला गया.

मैं उन्हें देखता रहा, मुसकराता रहा. पता नहीं क्यों, आज मैं बहुत खुश था.

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