बाला साहब ठाकरे द्वारा बनाई गई शिवसेना आज संक्रमण काल से गुजर रही है. महाराष्ट्र की राजनीति में रुचि रखने वाले देश भर के जानकारों के बीच यह चर्चा जोरों पर है कि क्या शिवसेना को भारतीय जनता पार्टी एक “राजनीतिक चक्रव्यूह” के तहत खत्म कर रही है. हम बात कर रहे हैं शिवसेना कि जो महाराष्ट्र में भाजपा के लिए बड़े भाई की भूमिका में हुआ करती थी, जब तलक बाला साहब ने शिवसेना का नेतृत्व किया उसके समक्ष भाजपा हमेशा बौनी रही.

मगर विगत विधानसभा चुनाव में जब उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस के साथ खड़े होकर सत्ता की बागडोर संभाल ली मुख्यमंत्री बन गए तो भारतीय जनता पार्टी माने आकाश से जमीन पर गिर गई और उसके बाद शुरू हुआ शिवसेना और उद्धव ठाकरे को खत्म करने का महा अभियान. जिसके तहत यह प्रचारित किया गया कि उद्धव ठाकरे बाला साहब के बताए रास्ते से भटक गई है कांग्रेस से हाथ से हाथ मिला कर के मानौ उद्धव ठाकरे दे बहुत बड़ा अपराध कर लिया हो, यहां यह भी दृष्ट्या है कि भाजपा यह चाहती थी कि मुख्यमंत्री तो हमारा होना चाहिए जिस पर उद्धव ठाकरे ने साफ पीछे हटने से इंकार मना कर दिया और राजनीति की नई बिसात बिछा दी जिससे भारतीय जनता पार्टी तिलमिला गई और केंद्र की ताकत के सहारे यात्रा शुरू हो गई कि उद्धव ठाकरे और शिवसेना को खत्म कर दिया जाए.

आखिरकार आज परिस्थितियां ऐसी विपरीत हो गई है कि शिवसेना का नाम और चुनाव चिन्ह दोनों ही उद्धव ठाकरे के हाथों से निकल गया है अब लाख टके का सवाल यह है कि आने वाले चुनावी महासमर में उद्धव ठाकरे क्या अपना अस्तित्व बचा पाएंगे या फिर राजनीति से हाशिए चले जाएंगे. ——————

उद्धव ठाकरे : अब संघर्ष का रास्ता _________

यह सारा देश देख रहा है कि किस तरह केंद्र सरकार के बुने गए चक्रव्यूह में आज उद्धव ठाकरे फंस गए हैं. अब उनकी अग्निपरीक्षा है कि वह जनता के बीच जाएं और उनका आशीर्वाद लेकर के एक बार फिर मुख्यमंत्री बन कर दिखाएं .

जिस तरह घटनाक्रम घटित हो गए हैं उससे स्पष्ट है कि उद्धव ठाकरे और उनकी शिवसेना का समय अच्छा नहीं चल रहा है और एक षड्यंत्र के तहत उद्धव ठाकरे का नाम मिटाने का प्रयास जारी है . इसी तारतम्य में शिवसेना के लिए चुनाव चिह्न पर निर्वाचन के फैसले के बाद संसद भवन में आबंटित कार्यालय पर भी एकनाथ शिंदे गुट का हो गया है. संसद भवन सचिवालय ने इस कार्यालय को शिंदे गुट को शिवसेना संचालित करने के लिए आबंटित कर दिया है. सदन में शिंदे के चेहरे राहुल शेवाले के पत्र के जवाब में सचिवालय ने यह कार्रवाई की है . अब शिंदे गुट को कार्यालय आवंटित करने का आदेश जारी कर कहा गया है कि संसद भवन का कमरा 128 शिवसेना संसदीय पार्टी को बतौर आबंटित किया जाता है.
सनद रहे कि निर्वाचन आयोग ने शिंदे गुट को असली शिवसेना के रूप में मान्यता दी है . और इस गुट को ही चुनाव चिह्न ‘तीर-धनुष’ भी आबंटित किया है इस मामले में लोकसभा सचिवालय ने स्पष्ट किया कि यह कक्ष शिवसेना के नाम पर आवंटित है और पार्टी इसका प्रयोग कर सकती है.

समझने वाली बात यह है कि शिवसेना की स्थापना बाला साहब ठाकरे ने की थी वह इसके सुप्रीमो थे इसके पश्चात उद्धव ठाकरे सुप्रीमो बने कोई भी राजनीतिक दल और सत्ता अलग-अलग चीजें हैं अगर किसी राजनीतिक दल के अधिकांश विधायक या सांसद बगावत कर दें या दल बदल कर ले तो स्थितियां क्या होंगी इसका बड़ा ही दिलचस्प उदाहरण शिवसेना उद्धव ठाकरे गुड और शिवसेना एकनाथ शिंदे को को लेकर समझा जा सकता है फिलहाल एकनाथ शिंदे गुट को शिवसेना का नाम, चुनाव चिह्न और महाराष्ट्र विधानसभा में स्थित पार्टी कार्यालय पर कब्जा मिल चुका है. एकनाथ शिंदे ने कहा था कि वह मुंबई स्थित शिवसेना भवन और उद्धव ठाकरे गुट की अन्य संपत्तियों पर दावा नहीं करेंगे.

शिंदे ने कहा कि शिवसेना का नाम और चुनाव चिह्न उन्हें योग्यता के आधार पर दिया गया है. बाला साहेब ठाकरे की विचारधारा हमारी संपत्ति है हम दूसरों की संपत्ति पर निगाह नहीं रखते. शिंदे ने कहा कि करीब 76 फीसद निर्वाचित सदस्य हमें समर्थन दे रहे हैं.और हमारे पास नाम और चुनाव चिह्न भी हैं. महाराष्ट्र में जो परिस्थितियां निर्मित हुई हैं वह है जनादेश की आने वाले चुनाव में यह स्पष्ट हो जाएगा कि कौन बाला साहब ठाकरे की विचारधारा को आगे बढ़ाने के लिए अधिकृत होगा .

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