जंगलों की अथाह कटाई और अंधाधुंध खदानों में ब्लास्ट से जंगली जानवरों का रहवास खतरे में है. नतीजतन, छतीसगढ़ में हाथी समस्या बढ़ने लगी है जहां भोजनपानी की तलाश में वे घरों और फसलों का नुकसान करने लगे हैं. छत्तीसगढ़ में बेसहारा मवेशियों के लिए गौठान बनाए गए हैं. शहरों में भटकने वाले गायबैल को पकड़ कर गौठानों में ले जाया जाता है. वहां उन्हें पाला जाता है. उन के गोबर से खाद बना कर बेची जाती है.

ग्रामीणों से भी सरकार गोबर खरीदती है. इस से पशुपालकों को रोजगार मिल गया है. जो गोबर मिलता है, उस से स्वसहायता समूह से जुड़ी महिलाएं खाद के साथ ही राखी, पेंट तैयार कर के बेचती हैं. पिछले साल मुख्यमंत्री भूपेश बघेल गोबर से निर्मित सूटकेस ले कर बजट पेश करने विधानसभा में गए थे. इस की चर्चा पूरे देश में हुई थी. इसी तरह गोबर से बनी राखियां राज्य में तो बिकी ही हैं, उन की इतनी लोकप्रियता बढ़ी कि उन्हें अन्य राज्यों के लोगों ने भी पसंद किया और मंगवाया. बेसहारा मवेशियों के हित में तो काम हो रहा है, लेकिन हाथी संकट में हैं.

हाथियों के रहवास क्षेत्र तक आदमी पहुंच गया है. वहां लोग बस गए, खेती करने लगे. जंगलों की कटाई और पत्थर खदानों में अंधाधुंध ब्लास्ट रुक नहीं रहा है. ऐसे में हाथी कहां जाएं? वे भोजन और पानी की तलाश में गांवों में घुस आते हैं तथा फसलों व घरों को तो नुकसान पहुंचाते ही हैं, लोगों की जान भी ले लेते हैं. कई हाथियों की भी मौत हो चुकी है. खेतों की सुरक्षा के लिए कुछ किसान बाड़ी में बिजली का करंट फैलाए रहते हैं. करंट में फंस जाने के कारण कई हाथियों की मौत हो चुकी है. यह अत्यंत चिंता की बात है. वन विभाग का अमला हाथी समस्या दूर नहीं कर पा रहा है. हालांकि हाथियों को गांवों में आने से रोकने के लिए कई प्रयोग किए गए लेकिन वे सफल नहीं हुए.

हाथी समस्या सरकार के सामने चुनौती बनी हुई है. राज्य के हाथी प्रभावित जिले 1990 के दशक में हाथी मध्य प्रदेश, ?ारखंड और ओडिशा से छत्तीसगढ़ में घुसे. पहले वे सरगुजा जिले में आए. वहां से उन का 4 और जिलों कोरबा, कोरिया, रायगढ़, जशपुर में फैलाव हुआ. अब तो हाथी समस्या से राज्य के 10 जिले प्रभावित हैं. हाथी अब महासमुंद, बलौदाबाजार, गरियाबंद, बलरामपुर और सूरजपुर में भी आ गए हैं. सिर्फ इतना ही नहीं, वे राजधानी रायपुर के कई निकटवर्ती गांवों में पहुंच कर भी उपद्रव मचाते हैं. राज्य का धमतरी जिला भी हाथी पीडि़त होता जा रहा है.

फिलहाल 36 हाथी घूम रहे हैं. ये 2 ?ांडों में हैं. एक ?ांड में 2 दंतैल हैं तो दूसरे में 34 हाथी. इन में 2 दंतैल वाला ?ांड ज्यादा खतरनाक है. इन दंतैलो ने बीते डेढ़ साल में 10 लोगों की जानें ले ली हैं. वैसे तो जंगली हाथी इंसानों से दूरी ही रखते हैं, लेकिन इन 2 दंतैलों को कोई इंसान दिख जाए तो ये उसे छोड़ते नहीं हैं. उस की जान ले कर मानते हैं. धमतरी जिले में ही ये 2 दंतैल 10 लोगों को बेरहमी से मार चुके हैं. ये 2 दंतैल फिलहाल धमतरी फौरेस्ट रेंज के अकला डोंगरी इलाके में घूम रहे हैं.

इन की दहशत के कारण आसपास के गांवों में लोग रतजगा कर रहे हैं और पहरा दे रहे हैं. रात के समय ये हाथी बस्तियों में चले आते हैं. इसलिए जिन के मकान पक्के हैं, वे छत पर ही सो रहे हैं. राज्य में कितने हाथी छत्तीसगढ़ में वर्तमान में 339 जंगली हाथी हैं. इन में से सिर्फ 90 हाथी अभयारण्य क्षेत्र और टाइगर रिजर्व में हैं. 22 साल में मरे 21 हाथी जिले में हाथियों की मौत की बात करें तो वर्ष 2000 से 2022 तक 21 हाथियों की मौत हो चुकी है. इन में 11 नर हाथी, 4 मादा हाथी और 6 शावकों की मौत हुई है. सब से अधिक 9 मौतें बिजली करंट की चपेट में आने से हुई है.

वहीं दलदल, गड्ढे आदि में फंसने से भी मौतें हो चुकी हैं. 5 साल में 263 जानें लेने के साथ सिर्फ 2019 में 750 से अधिक मकान तोड़ चुके हाथियों ने 2,850 से अधिक हैक्टेयर फसल रौंद डाली है. कैसे हो हाथियों से बचाव ऐसा माना जाता है कि हाथियों को तेज रोशनी दिखा कर, पटाखे फोड़ कर, मिर्च पाउडर से युक्त गोबर के कंडे जला कर, मधुमक्खी जैसी तेज भनभनाहट वाली आवाज निकाल कर और ढोल बजा कर भगाया जा सकता है. ये उपाय छत्तीसगढ़ में किए जा रहे हैं. हाथियों को कौलर आईडी भी वनविभाग ने लगाया था, ताकि उन के लोकेशन का पता लग सके.

कई हाथियों के कौलर आईडी गिर गए हैं, दोबारा लगाए जाएंगे. सर्वाधिक नवाचार वर्ष 2016 से 2019 के बीच 3 वर्षों तक चला. परिस्थितियों के अनुरूप रणनीति बदलती चली गई, लेकिन समस्या आज भी वही है जो नवाचार आरंभ होने के पहले दिन थी. हाथियों से जानमाल की सुरक्षा के लिए सरगुजा वनवृत्त में इतने अधिक नवाचार हुए कि वर्तमान अधिकारियों को सबकुछ याद भी नहीं रह गया है. हर एक घटना के बाद एक नए प्रयोग के साथ वन विभाग हाथी प्रभावित क्षेत्र में सामने आया. कुछ दिनों तक रणनीति सफल होती नजर आई.

उस के बाद ऐसी कुछ घटनाएं हुईं जिन से विभाग को अपनी रणनीति बदलनी पड़ी. हाथियों से जानमाल की सुरक्षा को ले कर वर्ष 2019 तक जो कोशिशें हुईं, वे अब नजर नहीं आती हैं. प्रभावित क्षेत्र में मैदानी कर्मचारियों को ही हाथियों से जनधन का नुकसान बचाने के लिए जू?ाते देखा जा सकता है. वनवृत्त और वनमंडल स्तर के अधिकारियों से मिलने वाली वाहवाही भी अब बंद हो चुकी है. हर नवाचार की तोड़ जंगली हाथी भी निकालते रहे हैं. अभी भी हाथी समस्या चिंतनीय बनी हुई है.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...