आज मुख्यधारा के अधिकतर न्यूज चैनल जनता के हितों की खबरें दिखाने की जगह धर्म और सत्ता पक्ष का प्रचार करने में जुटे हैं. यह बिना सरकार, नेताओं और पूंजीपतियों के संभव नहीं. ऐसा कर के वे देश के लोकतंत्र को खाई में धकेलने का काम ही कर रहे हैं. 11 अक्तूबर, 2022 : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मध्य प्रदेश के उज्जैन जिले में महाकाल मंदिर में जय महाकाल मंदिर के श्रीमहाकालेश्वर मंदिर कौरिडोर’ का उद्घाटन करने गए थे. इस को खबरिया चैनलों ने ‘श्री महाकाल लोक’ के रूप में स्थापित करने का काम किया. यह भी बताया गया कि इस कौरिडोर के बनने से पर्यटकों की संख्या में बड़ा बदलाव हुआ है.
‘न्यूज 24’ ने कौरिडोर के लोकापर्ण कार्यक्रम को ‘मोदी के महादेव’ नामक टाइटल के साथ दिखाया. 20 मिनट के इस प्रसारण में एंकर पूजा ने महाकाल की पूजा, इतिहास और प्रभाव के साथ मंत्र और आरती के साथ दर्शकों को मोदी की पूजापाठ को दिखाया. ‘जी न्यूज’ ने ‘महाकाल के मंदिर में पीएम मोदी’ नाम से 15 मिनट का कार्यक्रम दिखाया. इस में मोदीमय हो कर एंकर ने लोगों से बात की. ‘जी न्यूज’ ने ही अपने दूसरे कार्यक्रम ‘मोदी का जय महाकाल’ नामक कार्यक्रम दिखाया. इसी तरह से ‘न्यूज नेशन’ ने ‘मोदी का महाकाल कौरिडोर’ का प्रसारण किया. 10 मिनट के इस कार्यक्रम में मोदी महात्मय का विवरण किया गया. वे कितने धार्मिक हैं यह बताया गया. ‘इंडिया न्यूज’ ने ‘पीएम मोदी इन महाकाल’ नाम से लाइव प्रसारण किया. 30 मिनट के इस प्रसारण में भव्य महाकाल, दिव्य महाकाल और मोदी का जिक्र हुआ. ‘इंडिया न्यूज’ पर ही दूसरा कार्यक्रम ‘महाकाल में बाबा के भक्त’ का प्रसारण किया गया. एक ही समाचार को अलगअलग ‘टाइटल’ और ‘थंबनेल’ बना कर पूरेपूरे दिन दिखाया गया. समाचारों की जगह सासबहू के सीरियल की तरह इस को दोदो दिन तक खींचने का काम किया गया.
इस की वजह से दर्शक यह सम?ा नहीं पा रहे थे कि यह न्यूज पहले दिखाई जा चुकी है या नई दिखाई जा रही है. यात्रा से 2 दिनों पहले और 2 दिनों बाद तक खबर दिखाने वाले चैनलों को देख कर यह सम?ा नहीं आ रहा था कि यह खबर दिखाने वाले चैनल हैं या बाबाओं का प्रवचन करने वाले चैनल. पूजा, आरती और पूरे विधिविधान का प्रसारण किया जा रहा था. मोदी, केदारनाथ और बद्रीनाथ का माहात्म्य 22 अक्तूबर, 2022 : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दीवाली के पहले केदारनाथ और बद्रीनाथ धाम की यात्रा पर थे. इस को ले कर यात्रा एक सप्ताह पहले से खबरिया चैनलों ने धार्मिक चैनलों की तरह से खबरों के कार्यक्रम दिखाने शुरू कर दिए. प्रधानमंत्री के दौरे की वीडियो फुटेज एएनआई न्यूज एजेंसी से ले कर अपने संवाददाताओं के साथ केदारनाथ मंदिर से सामने से 3-3 घंटे की लाइव कवरेज दिखाने की पूरी होड़ सी लगी रही. प्रधानमंत्री ने किसी भी चैनल से बात नहीं की.
इस के बाद भी चैनल के रिपोर्टर ने मंदिर के पुजारियों, पंडों और संतों से बात करते हुए पूजा विधि से ले कर उस के प्रभाव तक का पूरा खाका खींचने का काम किया. प्रधानमंत्री की इस कवरेज को टुकड़ोंटुकड़ों में अलगअलग कार्यक्रम बना कर भी दिखाया गया. इस में उदाहरण के लिए कुछ चैनलों के विश्लेषण दिखे. वैसे, हर चैनल का एकजैसा ही हाल था. ‘एबीपी न्यूज’ ने ‘बाबा केदारनाथ की शरण में पीएम मोदी’ नाम से 30 मिनट का एक कार्यक्रम पेश किया. इस में केदारनाथ के महाभारत काल से महत्त्व की चर्चा के साथ ही साथ पूजा और मंदिर का पूरा धार्मिक प्रसारण किया गया.
‘जी न्यूज’ ने 19 मिनट की लाइव कवरेज ‘मोदी के महादेव’ में अपने संवाददाता अमित प्रकाश से बातचीत के साथ कई धार्मिक लोगों से बात की, जिस से पूरा प्रसारण समाचार की जगह पर धार्मिक चैनल सा लग रहा था. ‘एबीपी न्यूज’ में ही ‘मोदी के नाथ’ नाम से अलग प्रसारण भी किया गया. यह मोदी की केदारनाथ यात्रा की तैयारी को ले कर तैयार किया गया था. ‘न्यूज लाइव’ ने 15 मिनट के अपने कार्यक्रम ‘बद्रीनाथ धाम रवाना हुए पीएम मोदी’ का प्रसारण किया और ब्रदीनाथ धाम का पूरा धार्मिक विवरण पेश किया. इसी कार्यक्रम में यह भी बताया गया कि नरेंद्र मोदी की यह दूसरी बद्रीनाथ धाम की यात्रा है. ‘न्यूज इंडिया’ के अपने कार्यक्रम ‘मोदी का भक्ति पर्व’ में एंकर अनुपमा ?ा ने बताया कि पीएम नरेंद्र मोदी ने 6 बार केदारनाथ धाम की यात्रा की है.
30 मिनट के कवरेज में यह बताया गया कि मोदी पूजा के बाद किस से मिलेंगे, किस गुफा में ध्यान लगाएंगे, कितनी देर तक ध्यान में रहेंगे. अयोध्या में मोदीयोगी उत्सव 23 अक्तूबर, 2022 : उत्तर प्रदेश के अयोध्या में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने रामलला की पूजा और दीपउत्सव में हिस्सा लिया. यहां भी खबरिया चैनलों ने खबर कम और धर्म का महत्त्व अधिक बताया. दीपउत्सव में 17 लाख दीये जलाने का विश्व रिकौर्ड बनाया गया. रामलीला में राम, सीता और लक्ष्मण का किरदार निभाने वाले कलाकारों को रूस से खासतौर पर बुलवाया गया था. भगवान के पहनावे में इन का विमान अयोध्या की धरती पर उतारा गया. भगवान का स्वरूप मान कर इन की आरती की गई. राष्ट्रवाद की बात करने वालों से किसी ने यह नहीं पूछा कि विदेशी कलाकारों में ही राम का स्वरूप क्यों दिखा? ‘इंडिया टीवी’ ने ‘अयोध्या दीपउत्सव में मोदी’ नाम से अपना कार्यक्रम पेश किया. इस लाइव प्रसारण में अयोध्या की पूरी कवरेज दिखाई गई.
‘इंडिया टीवी’ ने ही ‘मोदी चले अयोध्या’ कार्यक्रम भी पेश किया. ‘इंडिया टीवी’ ने ‘अयोध्या में रामराज्य’ के टाइटल से भी प्रसारण किया. इस को 1990 के मोदी के राममंदिर आंदोलन की भूमिका से शुरू किया गया. यह बताया गया कि मोदी का सपना कैसे साकार हुआ. अयोध्या को सनातन धर्म से जोड़ कर बताया गया कि यह मोदी की पूजा की सफलता है. मोदी ने मंदिर निर्माण देखा और मुख्यमंत्री को इस को भव्य बनाने के निर्देश दिए. ‘आर भारत’ ने ‘अयोध्या से विहंगम कवरेज’ पेश की. इस में ‘पीएम मोदी इन अयोध्या’ को लाइव दिखाया गया. यह बताया गया कि मोदी ने केवल दर्शन ही नहीं किए, मंदिर में दान भी दिया. मंदिर निर्माण की तैयारियों से ले कर किसकिस तरह से पीएम मोदी रुचि ले रहे हैं, इस का सविस्तार विवरण पेश किया गया. रामकथा पार्क के बारे में बताया गया. ‘न्यूज 18’ ने ‘राम जानकी मंदिर में योगी’ नाम से भी कार्यक्रम प्रसारण पेश किया.
‘न्यूज-18’ ने ‘पीएम ने की रामलला की पूजा’ टाइटल से पूरी पूजा को दिखाया. ‘जी न्यूज’ ने ‘अयोध्या के विकासपथ पर मोदी का महामंथन’ नाम से कवरेज किया. अक्तूबर माह में धार्मिक कवरेज की धूम अक्तूबर माह में खबरिया चैनलों में खबरों की जगह पर धर्म पूरी तरह से छाया रहा. इस माह के त्योहारों में जो कवरेज दिखाई गई उस में महंगाई, बेरोजगारी, डेंगू जैसी बीमारियां और गुजरात में मोरबी पुल हादसे जैसी खबरों को वह जगह नहीं मिल पाई जो धार्मिक कार्यक्रमों और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महाकाल, केदारनाथ और अयोध्या की कवरेज को मिली. एक समय प्रवचन वाले धार्मिक चैनल अलग होते थे और खबर दिखाने वाले चैनल अलग. आज के दौर में खबर दिखाने वाले चैनल धार्मिक चैनलों से अधिक धर्म का प्रचार कर रहे है. इस के अलगअलग कारण हैं.
प्राइम टाइम यानी रात 8 बजे से 10 बजे तक के समय का 90 फीसदी हिस्सा प्रधानमंत्री मोदी के नाम रहता है. चैनल उन को महाभारत और रामायण काल से जोड़ते हैं. हर चैनल पर वहीवही बातें अलगअलग एंकरों द्वारा बताई जाती हैं. अगर रिमोट से चैनल बदलबदल कर देखें तो बातें वही होती हैं. बस, बताने वालों के चेहरे बदले दिखते हैं. अक्तूबर माह में कई त्योहार भी होते हैं तो उन के बहाने भी खबरिया चैनलों पर धार्मिक प्रवचन जारी रहते हैं. बुद्विजीवी नहीं धार्मिक चेहरे न्यूज के रूप में जो बहस या डिबेट होती हैं, उन के विषय भी धार्मिक होते हैं. उन में वाराणसी का ज्ञानवापी मसला सब से प्रमुख रहा. इस की आड़ में तमाम डिबेट में मथुरा का नाम भी सामने आता रहा. अगर यहां कुछ नया नहीं मिला तो पाकिस्तान-भारत, जनसंख्या और नागरिकता संशोधन कानून को ले कर होने वाली बहस को धार्मिक रूप दे दिया जाता है. कुल मिला कर खबर दिखाने वाले ये चैनल खबर कम, धर्म का प्रचार अधिक करते हैं. डिबेट में पहले बुद्धिजीवी, समाजशास्त्री लोगों को हिस्सा लेने के लिए बुलाया जाता था लेकिन धर्म का प्रचार बढ़ने के बाद डिबेट में धार्मिक चेहरों को अधिक महत्त्व दिया जाने लगा है. पार्टियों और निजी जीवन में हर तरह की गतिविधियां करने वाले एंकर लोगों को धर्म की राह पर चलने की इस तरह से शिक्षा देते जैसे वे खुद इस पर चलते हों. धार्मिक कवरेज करने वाले कई एंकर तो अपना हुलिया भी धार्मिक बना लेते हैं, जिस से वे एंकर कम, पुजारी अधिक नजर आने लगते हैं.
खबरिया चैनलों का काम खबरें दिखाना होता है लेकिन वे खबर कम, प्रवचन अधिक करने लगे हैं. राजनीतिक वजहों से बदली रणनीति अचानक खबर दिखाने वाले चैनलों ने अपना हुलिया कैसे और क्यों बदला, इस को देखें तो पता चलता है इस की वजहें कुछ और हैं. खबर दिखाने वाले इन चैनलों को चलाने के लिए जिस बजट की जरूरत होती है वह बिना सरकार, नेताओं और पूंजीपतियों के बिना संभव नहीं है. 2014 के बाद देश की राजनीति में एक बड़ा बदलाव आया. देश पर धार्मिक विचारधारा हावी होने लगी. इस विचारधारा के प्रचारप्रसार के लिए खबरिया चैनलों का भी सहारा लिया गया. इस का व्यापक असर देखने को मिला. 2014 के बाद देश में बेरोजगारी, महंगाई, खराब अर्थव्यवस्था किसी चुनाव का मुद्दा नहीं बनी. देश का पूरा चुनावी माहौल धर्म के चारों तरफ घूमने लगा.
2017 में जब उत्तर प्रदेश में विधानसभा के चुनाव हुए, उस के पहले नोटबंदी, जीएसटी और कर सुधार के कई नए कानून लागू हो चुके थे. जनता उन से त्राहित्राहि कर रही थी. सभी यह मान रहे थे कि भाजपा चुनाव जीत नहीं पाएगी. अगर जीत भी गई तो बिना किसी सहयोगी के सरकार नहीं बना पाएगी. चुनावी माहौल धर्म के तरफ मोड़ने का काम शुरू हो गया. नोटबंदी, जीएसटी, महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दे दब गए. भाजपा बहुमत से चुनाव जीत गई. धर्म को और चमकदार बनाए रखने के लिए भाजपा ने अपने नेताओं को दरकिनार कर योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बना दिया. 2019 के लोकसभा चुनाव में धर्म के रथ का ही सहारा लिया गया. धर्म की चमक को बढ़ाने लिए अनुच्छेद 370, नागरिकता संशोधन कानून और राममंदिर निर्माण की दिशा में काम किया गया. इस बीच पूरे देश में कोरोना जैसी महामारी हुई. इस से लगा कि अब भाजपा की हार तय है.
इस के बाद 2022 में देश के सब से बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में विधानसभा के चुनाव हुए. कोरोना जैसी त्रासदी का शिकार होने के बाद भी लोगों ने भाजपा को वोट दिया और योगी आदित्यनाथ ने दोबारा यूपी के सीएम बन कर इतिहास रच दिया. इस से यह बात साफ हो गई कि धर्म का मुद्दा सफल है. इस मुद्दे को आगे बढ़ाने के लिए देश के बड़े मंदिरों के कायाकल्प करने की योजना तैयार की गई. इस योजना को जनजन तक पहुंचाने के लिए खबरिया चैनलों को धार्मिक चैनल बनाना जरूरी था. सामने लक्ष्य 2024 का लोकसभा चुनाव है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जीत को सुनिश्चित करने का रोडमैप यही है कि धर्म का मुद्दा प्रभावी बना रहे. जनता को केवल और केवल मंदिरों की चमक दिखे, उस का ध्यान महंगाई, बेरोजगारी, खराब अर्थव्यवस्था, अस्पतालों में मरते लोगों की तरफ न जाए.
खबरिया चैनलों ने जो धार्मिक माहौल देश के सामने रख दिया है उस में विपक्ष भी चकाचौंध हो कर रह गया है. वह भी मोदी और भाजपा को घेरने के बजाय नोट पर लक्ष्मीगणेश की फोटो लगाने की वकालत कर के खुद को धर्म का रक्षक बताने लगे हैं. कांग्रेस के नेता राहुल गांधी भी जनेऊ पहनने लगे हैं. ढह गया चौथा स्तंभ संविधान ने पत्रकारिता को लोकतंत्र में चौथे स्तंभ की संज्ञा दी थी. इस को ताकत देने का काम जनता पर छोड़ दिया था. राज और सरकार चलाने वालों ने ‘लोकतंत्र के चौथे स्तंभ’ को पंगु करने का काम किया. जनता ने उस को ताकत नहीं दी. लिहाजा, पत्रकारिता सरकार के रहमोकरम पर निर्भर हो गई.
सरकार ने अपने रहमोकरम की कीमत कुछ इस कदर वसूल की कि जिस से चौथा स्तंभ ढह गया. वह सरकार की रोटी देख कर दुम हिलाने लगा है. उस ने जनता के हित की जगह पर सरकार के हित को देखना और उस को लाभ पहुंचाना शुरू कर दिया है. जिस का विस्तार रूप यह है कि जो सरकार दिखाना और सम?ाना चाहती है वह जनता देख और सम?ा रही है. इस का सब से बड़ा नुकसान यह है कि वोट देने के लिए जनता अपने मुद्दे को भूल कर सरकार की उस चमक में फंस रही है जो खबरिया चैनल दिखा रहे हैं. जनता टीवी और मोबाइल पर दीपउत्सव, केदारनाथ और महाकाल की चमक में खोई है. उसे मोरबी के टूटे पुल, डेंगू में मर रहे मरीजों की परवा ही नहीं है. वह भूल गई कि नोटबंदी और तालाबंदी में क्या हुआ? उसे यह भी नहीं पता कि उस के घर में बेटाबेटी बेरोजगार भटक रहे हैं.
निजीकरण की आंधी जेब काट रही है. पैंशन और सुरक्षा खत्म हो गई है. उस को यह सम?ाया जा रहा है कि सब समय की बात है. जैसे कर्म पूर्वजन्म में किए हैं वही भोग रहे हैं. यह खतरनाक है. जनता की आंखों पर धर्म की पट्टी बंधी है. वह आपस में धार्मिक आधार पर बंट चुकी है. उस को साथ रहने की जगह, आपस में ?ागड़ने की शिक्षा दी जा रही है. इस में चौथे स्तंभ की भूमिका सब से अधिक विवादास्पद है. जो कुछ लोग सच बयान करने का काम कर रहे हैं, उन की आवाज को बंद करने, दबाने और उन को अप्रासंगिक बनाने का काम किया जा रहा है. जनता भी सोने के हिरन को देख कर चकाचौंध है. वह यह भूल चुकी है कि सोने के हिरन के कारण ही सीता का हरण हुआ था. वह धार्मिक मृगमरीचिका से बाहर निकलने को तैयार नहीं है.