कोरोना के डर और लौकडाउन ने पुरानी धार्मिक परंपराओं को बदलने पर मजबूर किया है. दानदक्षिणा के लोभ में विज्ञान की पीठ पर सवार हो कर संतपुजारी भी हाईटैक हो गए हैं. कस्टमर छूट न जाए, इस के लिए औनलाइन पूजापाठ व वैबसाइटों की भरमार होने लगी है. सवाल यह है कि धर्म के नाम पर मुफ्त का माल उड़ाने वाली इस जमात पर भरोसा क्यों किया जाए?
पूजा सेवाएं, कैरियर, नौकरी, लव मैरिज, दूसरी जाति में विवाह, शादी में रुकावट, पतिपत्नी में अनबन, मांगलिक दोष, काल सर्प दोष, संतान दोष, श्रापित दोष, तिल दोष, मनचाहा जीवन साथी, शीघ्र धन प्राप्ति के लिए कुबेर की पूजा, पूर्णिमा को सामूहिक ब्राह्मण भोज आदि के लिए पुजारी, ज्योतिषी से औनलाइन संपर्क करें और घरबैठे ही पूजा का लाभ उठाएं.
कोरोनाकाल में धार्मिक क्लासेस, बच्चों की पढ़ाई, शादीविवाह, डाक्टर्स की सलाह से ले कर पूजापाठ भी औनलाइन हो गया. पूजा और दान जैसे महत्त्वपूर्ण धार्मिक कार्य, जैसे मन्नत पूरी करनी हो, घर में सत्यनारायण की कथा करवानी हो, हवन या अन्य कोई भी धार्मिक अनुष्ठान करवाना हो, कोरोना के खतरे में पुजारी को अपने घर बुलाने की कोई जरूरत नहीं, बस सर्च कीजिए आप को हजारों पुजारियों के नंबर मिल जाएंगे. कौल कर आप अपनी समस्याएं बताएं और वे समाधान बताएंगे. वे वीडियोकौलिंग के जरिए घर बैठे ही पूजा भी करवा देंगे और फिर तय रेट के अनुसार दानदक्षिणा आप उन के अकाउंट में औनलाइन, पेटीएम या नैट बैंकिंग द्वारा दे सकते हैं. यहां जैसी पूजा वैसा रेट तय है. आप औनलाइन पर्सनल पूजा के लिए भी आवेदन कर
सकते हैं. लेकिन उस का रेट थोड़ा ज्यादा होगा.
क्या है औनलाइन पूजा सेवाएं
औनलाइन पूजा सेवाओं के माध्यम से आप घर बैठे बस एक क्लिक पर देश के किसी भी कोने से प्रतिष्ठित मंदिरों में पूजन आयोजित करवा सकते हैं. विद्वान पंडित वैदिक अनुष्ठान के अनुसार पूजन कर के आप को देवता का दिव्य आशीर्वाद प्राप्त करने व आप की इच्छाओं को पूर्ण करने में मदद करेंगे. वैसे भी आज कई ऐसी वैबसाइट खुल गई हैं जहां आप पूजा के लिए संपर्क कर सकते हैं.
पुजारी हुए हाईटैक पूजा और दान जैसे महत्त्वपूर्ण धार्मिक कार्य भी अब दुनियाभर में डिजिटलीकरण, विशेष रूप से भारत में होने से पूजापाठ भी औनलाइन होने लगा है. पूजा हजारों प्रकार की होती है. हिंदू धर्म में हर साल अनगिनत व्रतत्योहार होते हैं. ऐसे में कोरोना के डर व लौकडाउन ने परंपराओं को बदलने पर मजबूर कर दिया. संक्रमण न फैले, इस के लिए पंडेपुजारी घर बैठे ही सारे धार्मिक अनुष्ठान वीडियोकौलिंग के जरिए करवाने लगे हैं.
भगवान भी हुए हाईटैक
सिर्फ पुजारी और यजमान ही नहीं, बल्कि कोरोनाकाल में भगवान भी हाईटैक हो गए हैं. कोरोना के कहर को देखते हुए भगवान के मंदिरों में भी दानदक्षिणा का काम औनलाइन ट्रांजैक्शन से होने लगा है. यानी कि अब डिजिटल लेनदेन से भगवान का डर भी जुड़ गया है. भगवान को चढ़ाया जाने वाला दान भी क्यूआर कोड स्कैन कर चढ़ाया जाने लगा है. वैसे भी, जब हर लेनदेन औनलाइन हो रहा है तो दानदक्षिणा कैसे पीछे रह सकता है. दानपेटी और औनलाइन आने वाले कुल दान में हर माह करीब 35 से 40 फीसदी राशि औनलाइन ट्रांसफर की जाती है और यह अब बदलते दौर की नई तसवीर है.
प्रांतीय पुजारी महासभा के अध्यक्ष पंडित संजय पुरोहित बताते हैं, ‘‘25 से ज्यादा विद्वान आचार्य इन दिनों औनलाइन पूजन करा रहे हैं. यजमान के कल्याण के लिए वे सारे जप, अनुष्ठान, संकल्प अपने घर से ही वीडियोकौलिंग द्वारा कराते हैं. पूजा के बाद ब्राह्मण भोज की जगह गाय को हरी घास या कन्या भोजन करा कर यजमान ब्राह्मण के भोजन के विधान से मुक्त हो जाता है. यहां यह भी देखने वाली बात है कि गाय और कन्या में कोई खास फर्क नहीं है. दोनों में से किसी एक को खिला दो, पूजा संपन्न मानी जाएगी. आखिर दोनों बने तो हैं खूटे से बंधने के लिए ही. मनमाफिक दानदक्षिणा मिल पाने से पुजारी तो खुश हैं ही, साथ में यजमान भी खुश हैं कि वीडियोकौलिंग के जरिए ही सही पर शुभ मुहूर्त पर उन के घर में पूजा, गृहप्रवेश आदि हो पा रहे हैं.
इंटरनैट में भी घुसपैठ
आज औनलाइन पूजा और दानदक्षिणा का ऐसा ट्रैंड चला है कि लोग बाकायदा इस की ट्रेनिंग लेने लगे हैं. सिर्फ पुरुष ही नहीं बल्कि कई महिलाएं भी ज्योतिष गुरु बन गई हैं जो आप को आप की समस्याओं से छुटकारा दिलवाने का दावा करती हैं.
वर्तमान में ज्योतिष विद्या के कई भिन्नभिन्न रूप प्रचलित हो गए हैं. लेकिन अब इस विद्या के जानकार कम और इस विद्या से धनलाभ प्राप्त करने वाले ज्यादा देखे जा सकते हैं जो मनमाने उपाय बता कर लोगों को भटकाने, डराने का काम ज्यादा करते हैं. सच कहें तो आज इंसान ज्यादा डरपोक हो गया और जिस का फायदा ये पुजारी, ज्योतिष उठाते हैं और यह फायदे का सौदा है. तभी तो आज दुनिया में पुजारी और ज्योतिषियों की भरमार सी हो गई है. एक ढूंढि़ए तो हजार मिल जाएंगे.
मोहन शुक्ला ने अनिच्छा से ही पर अपने पिता की विरासत संभालते हुए पंडिताई का काम शुरू तो कर दिया पर यह काम उन्हें बड़ा मुश्किल जान पड़ता था क्योंकि इस में कोई खास कमाई नहीं होती थी और मुंबई जैसे बड़े शहर के लिए इतनी थोड़ी सी कमाई पर्याप्त नहीं थी उन के लिए. इसलिए पंडिताई छोड़ उन्होंने एक प्राइवेट फर्म में जौब पकड़ ली. लेकिन अब वे फिर जौब छोड़ पूजा कराने के काम में लग गए. वे ‘व्हेयर इज माई पंडित’ नामक पोर्टल से जुड़ गए. यह पोर्टल उसी तर्ज पर काम करता है जिस तरह से ज्यातदार सर्विस एग्रीगेटर्स करते हैं. पूजा के लिए अनुरोध हासिल होने के बाद क्लाइंट की जरूरतों और पंडित की काबिलीयत के हिसाब से उन्हें बुलाया जाता है.
ऐसी ही एक और ऐप है, ‘माय ओम नमो’. यहां लोग घर बैठे पूजाअनुष्ठान करवाते हैं. इस ऐप के जरिए ही पंडित बुक किए जाते हैं और ई-स्टोर से पूजा सामग्री और्डर भी की जा सकती है. यहां तक कि फूलमाला, केले के पत्ते और प्रसाद का जिम्मा भी ‘माय ओम नमो’ ऐप लेती है. ‘माय ओम नमो’ कंपनी के पास रजिस्टर्ड पुरोहित होते हैं जो 12 भाषाओं में पूजा करा सकते हैं. 2016 में स्पिरीच्युअल इंडस्ट्री के वन स्टौप ‘माय ओम नमो’ शुरुआत की गई थी. आज इस ऐप पर ग्राहकों के लिए पूजा करने के कई विकल्प मौजूद हैं.
‘एम पंचांग’ द्वारा भी औनलाइन पूजा सेवाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं. यहां प्रशिक्षित पुजारियों की एक टीम है जो आप को स्वास्थ्य, कैरियर, शिक्षा, व्यवसाय, विवाह, वित्त और कानूनी लड़ाई से संबंधित आप की सभी परेशानियों के लिए औनलाइन पूजा कराते हैं.
कोरोना कहर के बाद से इस तरह की कई और वैबसाइटें लौंच की गईं. ‘बुक योर पंडित’ के बिजनैस हैड ऋषिकेश कहते हैं कि औनलाइन पोर्टल्स के जरिए पंडितों को अपनी पहुंच बढ़ाने, बेहतर कस्टमर हासिल करने और इनकम में बढ़ोतरी करने में मदद मिली है. यहां तक कि ये पुजारी रूस और नीदरलैंड में रह रहे श्रद्धालुओं के लिए भी औनलाइन पूजा कराते हैं. ब्रिटेन और अमेरिका जैसे देशों में रहने वाले भारतीय समुदाय के लोग ऐसे पोर्टल के जरिए लोकल पंडितों की सेवाएं लेते हैं.
जब से औनलाइन पूजा का ट्रैंड बना है तब से बाबाओं की भरमार हो गई. क्या दर्जी, क्या कुम्हार, जिस का मन चाहे पुजारी बनने की ट्रेनिंग ले सकता है और इसे अपनी कमाई का जरिया बना सकता है. ज्योतिष पुरुषमहिलाएं टीवी चैनलों पर, सोशल मीडिया पर प्रवचन करते नजर आ जाते हैं. उन के पास चेलों की भीड़ और श्रद्धालु भक्तों की फौज खड़ी है और इसी अंधश्रद्धाओं की बढ़ती भीड़ का ये लोग फायदा उठाते हैं.
अंधविश्वास और ढोंग
अंधविश्वास से वशीभूत लोग ज्योतिष, बाबाओं के फेर में पड़ कर अपनी मेहनत की कमाई लुटाते हैं. लेकिन उन्हें यह बात पता होनी चाहिए कि ये चमत्कारी बाबा और ज्योतिष तब कहां थे जब कोरोना से लोगों की मौत हो रही थी. जब लोग घुटघुट कर सांसें ले रहे थे तब उन के मंत्रजाप कहां भुला दिए गए थे? क्यों नहीं इन ज्योतिषी बाबाओं ने लोगों को कोरोना से बचाने का कोई उपाय सु?ाया?
अमित को जब कहीं जौब नहीं मिला तब उस ने बाबा का दामन थामा. बाबा ने उसे ढेरों उपाय बताए, रंगबिरंगी अंगूठियां पहनने को बताईं, पूजा बताई, जप बताया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. अफसोस कि आज भी वह बेरोजगार घूम रहा है.
सच कहें तो लोगों में अंधविश्वास इतना घर कर गया कि उन्हें लगता है इन बाबाओं के पास हर मर्ज की दवा है, वे फूंक मारेंगे और चमत्कार हो जाएगा. लेकिन अंधविश्वास और सफलता का दूरदूर तक कोई मेल दृष्टिगोचर नहीं है.
जहां अंधविश्वास है वहां सफलता के लिए कोई स्थान नहीं है और जहां सफलता है वहां अंधविश्वास के लिए कोई जगह नहीं है. अंधविश्वास व्यक्ति को केवल भ्रमित करता है. हमारा कर्म तो तभी सार्थक होगा जब हम सफल होने के लिए पूरी मेहनत, लगन और अपना पूरा आत्मबल, विश्वास उस कार्य को करने में लगा देते हैं और यह कैसी आस्था जहां हमारा विश्वास ही अंधा हो?
अभिताभ बच्चन ने अपने बुरे वक्त के समय आस्था का दामन पकड़ा था और कई तरह की अंगूठियां पहनी थीं. वे सफल भी हुए लेकिन उन्हें सफलता अपनी मेहनत की बदौलत मिली. उस समय उन्हें जो भी काम मिलता गया, करते गए और सफल भी हुए. लेकिन आज इंसान पलभर में कुबेर का खजाना पा लेना चाहता है. बिना मेहनत के नौकरी पा लेना चाहता है और इस के लिए वह मंत्रजाप, पूजा, हवन, रत्नअंगूठी में हजारों रुपए स्वाहा करने से भी बाज नहीं आता. उसे लगता है पूजापाठ से सब संभव है. लेकिन उसे नहीं पता कि यहां फायदा पुजारी बाबाओं का हो रहा है. तिजोरी उन की भर रही है और जेब आप की खाली हो रही है.
संत और बाबाओं को जनता हमेशा से ही भगवान का दर्जा देती आई है. लेकिन यही बाबासंत आम लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ करते रहे हैं. कभी मंदिर के नाम पर तो कभी धर्मशाला के नाम पर लोगों की मेहनत की कमाई ऐंठते रहे हैं.
क्या जनता को नहीं पता कि इन होटलनुमा धर्मशालाओं में होता क्या है? कितने ऐसे संतबाबा हुए जिन्होंने कभी पैसे नहीं मांगे, लेकिन आज के पंडेपुजारी लोभी बन गए हैं. वे सुखसुविधाओं से लैस घरों में रहते हैं, बड़ीबड़ी लग्जरी गाडि़यों में घूमते हैं. उन के बच्चे विदेशों में पढ़ाई करते हैं और लोग यहां अपने बच्चों के सुनहरे भविष्य के लिए उन्हीं ढोंगी बाबाओं के जाल में फंस कर अपनी जिंदगीभर की मेहनत की कमाई लुटा डालते हैं तो इसे मूर्खता नहीं तो और क्या कहेंगे?
औनलाइन द्वारा पूजा, हवन, जाप, बाबाओं का मोटा धन कमाने का जरिया बन चुका है. धनलोलुपता में फंसे बाबाओं को लोगों के दुखदर्द से नहीं, बल्कि अपनी दानदक्षिणा से मतलब है. पहले तो कम से कम यह था कि लोग जेब से निकाल कर जो मन में आता दानदक्षिणा दे दिया करते थे, लेकिन औनलाइन पूजापाठ के कारण अब दानदक्षिणा का रेट भी तय हो गया तो लोगों के पास देने के सिवा और कोई चारा नहीं बचा.
दूसरों को दान देने का क्या तात्पर्य
दान देना अच्छी बात है पर दान उसी को दो जिस की उसे सच में जरूरत है. बिना जरूरतमंदों को कुछ देना विशेष महत्त्व नहीं रखता. कुपात्रों को धन देना व्यर्थ ही है. जिस का पेट भरा हुआ है उसे जब ठूसठूस कर और भोजन कराया जाए तो वह बीमार पड़ जाएगा.
हिंदू शास्त्र एक स्वर में कहते हैं कि मनुष्य जीवन में परोपकार ही सार है. हमें जितना संभव हो सके, परोपकार में रत रहना चाहिए. लेकिन आज परोपकार के नाम पर लोगों को ठगा जाने लगा है. आज दानदक्षिणा और भिक्षा का स्वरूप ही बदल चुका है. आजकल दानवृत्ति से अनुचित लाभ उठाने वाले अनेक अकर्मण्य भिखमंगे, ठग, दुष्ट व्यक्ति आम लोगों को ठगते फिर रहे हैं. वे स्वयं परिश्रम करना नहीं चाहते, मुफ्त का माल उड़ाना चाहते हैं. आज पढे़लिखे लोग भी भिक्षावृत्ति में पड़ चुके हैं ताकि उन्हें कोई परिश्रम न करना पड़े और बैठेबैठे भोजन की व्यवस्था होती रहे.
हमारे भारत देश में दानधर्म की परंपरा सदियों पुरानी है. हिंदू धर्म में दान का बहुत महत्त्व बताया गया है. ऐसा माना जाता है कि दान देने से व्यक्ति को पुण्य की प्राप्ति होती है. दान देने से व्यक्ति का लोक के बाद परलोक भी सुधर जाता है. शास्त्रों में 5 दानों को महादान बतलाया गया है. जिन में भूमि दान, गोदान, अन्न दान, कन्या दान और विद्या दान शामिल हैं. वैसे और भी कई दान बतलाए गए हैं जिन से व्यक्ति को स्वर्ग की प्राप्ति होती है.
उदाहरण के तौर पर एक कथा आज भी सोशल मीडिया पर मिल जाएगी जो षटतिला एकादशी से संबंधित है. षटतिला एकादशी में तिल के दान का बहुत महत्त्व है. इस दिन तिल के उपयोग का बहुत महत्त्व है. इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु का पूजन तिल से करने का महत्त्व है. नहाते समय जल में तिल मिला कर स्नान करने से आरोग्य का वरदान मिलता है तथा तिल का दान, हवन और तर्पण आदि करना चाहिए. इस दिन तिल का अधिक से अधिक उपयोग करने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है.
धार्मिक शास्त्रों के अनुसार, एकादशी के दिन श्रीहरि विष्णु के पूजन से इंसान की हर मुराद पूरी होती है, दरिद्रता दूर होती है, घर में सुखशांति बनी रहती है, आरोग्य तथा सुखी दांपत्य जीवन का आशीर्वाद मिलता है, इसलिए इस दिन तिल का दान अवश्य करना चाहिए.
एक कथा के अनुसार, प्राचीनकाल में मृत्युलोक में एक ब्राह्मणी रहती थी. वह सदैव व्रत किया करती थी. एक समय वह एक मास तक व्रत करती रही जिस से उस का शरीर दुर्बल हो गया. लेकिन उस ने कभी भी देवताओं या ब्राह्मणों को अन्नधन दान नहीं किया. ब्राह्मणी को लगा कि व्रतउपवास से उस ने अपना शरीर शुद्ध कर लिया तो अब उसे विष्णुलोक मिल ही जाएगा. परंतु उस ब्राह्मणी ने कभी भी अन्नधन का दान नहीं किया था, इसलिए उसे इस की तृप्ति होना कठिन था.
एक रोज भगवान स्वयं उस ब्राह्मणी के घर भिखारी के वेश में पहुंच गए तो उस ब्राह्मणी ने एक मिट्टी का ढेला उठा कर उन के भिक्षापात्र में डाल दिया और भगवान उसे ले कर स्वर्गलोक लौट गए. कुछ समय बाद वह ब्राह्मणी भी अपना शरीर त्याग कर स्वर्गलोक पहुंच गई. वहां उसे एक बहुत ही सुंदर महल मिला क्योंकि उस ने मिट्टी का दान किया था. लेकिन उस महल में अन्नधन नदारद थे. ब्राह्मणी के पूछने पर कि उस ने तो कितने व्रतउपवास किए, फिर भी उस का घर अन्न आदि वस्तुओं से शून्य है. इस पर भगवान बोले कि उस ने षटतिला पर कभी तिल का दान नहीं किया, इसलिए वह अन्नधन रहित है.
लेकिन जब उस ब्राह्मणी ने षटतिला एकादशी का व्रत कर तिल का दान किया तब इस के प्रभाव से वह रूपवती हो गई और उस का घर अन्न आदी समस्त सामग्रियों से युक्त हो गया. इस कथानुसार इंसान को मूर्खता त्याग कर षटतिला एकादशी के दिन लोभ न कर के व्रत और तिल आदि का दान करना चाहिए. इस से इंसान के कष्ट, दुर्भाग्य, दरिद्रता दूर हो कर मोक्ष की प्राप्ति होती है.
दान और भिक्षा
हिंदू धर्मशास्त्रों में कुछ काम हर व्यक्ति के लिए अनिवार्य बताए गए हैं. उन में अपने सामर्थ्य अनुसार दान करना भी एक महत्त्वपूर्ण काम है. अपनी कमाई का कुछ भाग जरूरतमंद को दान करना एक तरह से सेवा ही है. दान का शाब्दिक अर्थ है ‘देना’. जो वस्तु स्वयं की इच्छा से दे कर वापस न ली जाए उसे हम दान कहते हैं. दान में आप कुछ भी दे सकते हैं, जो आप की इच्छा हो.
परंपरा में दान को कर्तव्य और धर्म माना जाता है. शास्त्रों में इस के बारे में लिखा है,
दानं दमो दया क्षन्तिर् सर्वेषां धर्मसधानम याज्ञवल्क्यस्मृति गृहस्थ अर्थात, कृदान, अंत:करण का संयम, दया और क्षमा सभी के लिए धर्म साधन है.
वैसे दान का विधान हर किसी के लिए नहीं है. जो धनधान्य से संपन्न हैं वे ही दान देने के अधिकारी हैं. जो निर्धन हैं और बड़ी कठिनाई से अपने परिवार का पालनपोषण कर रहे हैं, उन के लिए दान देना जरूरी नहीं माना गया है.
प्राचीनकाल में ऐसे निस्वार्थ लोकहित निरत ऋषिमुनि, ब्राह्मण, पुरोहित, योगी, संन्यासी हुआ करते थे जो समस्त आयु लोकहित के लिए दे डालते थे. कुछ विद्यादान और पठनपाठन में ही आयु व्यतीत करते थे. मानवीय स्वभाव में जो सत तत्त्व हैं, उन्हीं की वृद्धि में वे अपना अधिकांश समय व्यतीत करते थे. ये ज्ञानी, उदार महात्मा अपनेआप में जीवित-कल्याण की संस्थाएं थे, यज्ञरूप थे. जब ये जनमानस की इतनी सेवा करते थे, तब बदले में वे भी अपना कर्तव्य सम?ा कर उन के भोजन, निवास और वस्त्र का प्रबंध करते थे. जैसे, लोक हितकारी संस्था आज भी कई जगह सार्वजनिक चंदे से चलाई जाती है, उसी प्रकार ये ऋषिमुनि, ब्राह्मण, पुजारी भी दानपुण्य आदि द्वारा निर्वाह करते थे.
प्राचीन भारतीय ऋषिमुनियों का व्यक्तित्व इतना उच्च, पवित्र और प्रवृत्ति इतनी सात्विक होती थी कि उन के संबंध में किसी प्रकार के संदेह की कल्पना तक नहीं की जा सकती थी. उन्हें दानदक्षिणा के तौर पर पैसा आदि दे कर लोग निश्ंिचत रहते थे कि इस का कोई दुरुपयोग न होगा. पहले के पंडितपुरोहित दानदक्षिणा द्वारा जनता की सर्वतोमुखी उन्नति का प्रबंध किया करते थे और दान द्वारा उन की आवश्यकताओं को पूरी करने का विधान उचित था. वे परमार्थ और लोकहित में इतने तन्मय रहते थे कि उन के भरणपोषण की चिंता जनता को करनी पड़ती थी. लेकिन आज वह सब नहीं रहा. आज बाबाओं को अपने भविष्य की चिंता ज्यादा है, तभी तो वे जैसेतैसे कर के अपनी तिजोरी जल्द से जल्द भर लेना चाहते हैं.
शास्त्रों में दान 2 प्रकार के बतलाए गए हैं, एक जो ऋषिमुनियों को दिया जाता था और दूसरा, जो जरूरतमंदों को. ऋषिमुनियों, ब्राह्मणों, पुरोहितों, आचार्यों, संन्यासियों को दी जाने वाली आर्थिक सहायता का नाम दान रखा गया और अपंग, लंगड़ा, लूला, अपाहिज या हर प्रकार से लाचार व्यक्ति को दी जाने वाली सहायता को भिक्षा का नाम दिया गया.
दान और भिक्षा दोनों का तात्पर्य दूसरों की सहायता करना ही था. लेकिन आज इस का मतलब बदल चुका है. लोगों की भावनाओं का फायदा उठाया जाने लगा है. आजकल दानवृत्ति से अनुचित लाभ उठाने वाले अनेक अकर्मण्य भिखमंगे, ठग, दुष्ट व्यक्ति लोगों को ठगते फिर रहे हैं. वे स्वयं परिश्रम करना नहीं चाहते, बस मुफ्त का माल उड़ाना चाहते हैं. आज पढे़लिखे लोग भी भिक्षावृति में पड़ चुके हैं ताकि उन्हें कोई परिश्रम न करना पड़े और बैठेबैठे भोजन की व्यवस्था होती रहे.
धर्म के नाम पर नाना प्रकार के आडंबर, घृणित मायाचार और असत्य व्यवहार होते हैं. धर्म के नाम पर हमारे समाज में विषैला, अनिष्टकारी वातावरण फैल रहा है. धर्म के नाम पर व्यापार चलाया जा रहा है. आज पूजा का रेट तय हो चुका है तो सोचिए कि यह व्यापार नहीं तो और क्या हुआ.
आज ?ाठ, पाखंड, ढोंग का बोलबाला हो गया है. धर्म के नाम पर मुफ्त का माल उड़ाने वालों की एक जमात है. दानदक्षिणा के नाम पर पंडेपुजारी लोगों को लूट रहे हैं. ग्रहनक्षत्रों का भय दिखा कर पूजा, हवन, जाप कर वे लोगों से मनमरजी पैसे ऐंठ रहे हैं. यहां तक कि टीका लगाने और कलावा बांधने तक का भी रेट तय है. उस के लिए भी आप को पैसे देने होंगे.
आध्यात्मिक चैनलों पर ज्योतिषबाबाओं की ऐसी फौज खड़ी है जो अध्यात्म के नाम पर लूटखसोट कर रही है. बाबाओं की चलने वाली यह औनलाइन कक्षा सिर्फ लोगों को उल्लू बना रही है. धनलोलुपता में गरदन तक धंसे चैनलों के स्वामी भी बाबाओं के पंडाल में बैठ कर उन के गुणगान करते रहते हैं. ये बाबा लोगों को मोहमाया छोड़ने का आह्वान करते हैं और खुद गले तक मोहमाया में फंसे हुए हैं.