एयरफोर्स के फाइटर पायलट की बेटी अश्लेषा सावंत ने बारहवीं की पढ़ाई पूरी करते ही सफलतम सीरियल क्योंकि सास भी कभी बहू थी में तिशा का किरदार निभाते हुए अपने अभिनय कैरियर की शुरूआत कर दी थी उसके बाद वह अभिनय में इतना व्यस्त हो गयीं कि आगे पढ़ाई पूरी नहीं कर पायीं इन दिनों वह सीरियल अनुपमा में बरखा के किरदार में नजर आ रही हैं तो वहीं पांच अगस्त को प्रदर्शित हो रही फिल्म ‘हरियाणा’ को लेकर भी वह काफी उत्साहित हैं.
हाल ही में अश्लेषा सावंत से लंबी बातचीत हुई प्रस्तुत है उसका अंश
आपके पिता एयर फोर्स में थे ऐसे में आपका अभिनय के प्रति झुकाव कैसे हुआ था?
मैं आपका धन्यवाद करना चाहॅूंगी कि आपने इस बात का उल्लेख किया क्योंकि इंडियन एयरफोर्स मेरी जिंदगी का अहम हिस्सा है. मेरे पिता फाइटर पायलट थे. अपने कैरियर में उन्होंने काफी उम्दा फ्लाइट की थी. प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी ने उन्हें अपने आफिस में सम्मानित भी किया था एयरफोर्स और अभिनय दोनों का कोई संबंध ही नहीं है. मेरे पिता जी कभी नहीं चाहते थे कि मैं अभिनय करुं क्योंकि उस वक्त मैं बहुत छोटी थी. पुणे में मेरी स्कूल की पढ़ाई पूरी हुई थी. मैंने बारहवीं पास किया था और तभी पुणे में ही एकता कपूर की कंपनी बालाजी टेली फिल्म के सीरियल क्या हादसा क्या हकीकत के लिए ऑडिशन हो रहे थे. मैंने ऑडीशन में हिस्सा लिया और मेरा चयन हो गया था पर मेरे पिता जी मेरे अभिनय करने के खिलाफ थे उनका डर सही था मैंने बारहवीं के बाद आगे पढ़ाई ही नही की मैं तो अभिनय में ही व्यस्त हो गयी थी लेकिन जब मेरे पहले सीरियल क्योंकि सास भी कभी बहू थी में मेरा पहला दृश्य प्रसारित हुआ था तब वह बहुत खुश हुए थे उनको मुझ पर गर्व हो रहा था क्योंकि उन दिनों यह सीरियल नंबर वन सीरियल था. इसकी टीआरपी 26 से भी ज्यादा थी कुछ समय के लिए इसकी टीआरपी 32 तक भी रही इन दिनों तो लोग दो की टीआरपी पर भी खुश हो जाते हैं.
लेकिन आपने तो सीरियल क्या हादसा क्या हकीकत के लिए
ऑडीशन दिया था और आपका चयन भी हो गया था
जी हां! मेरे कैरियर की शुरूआत उसी से होनी थी एकता कपूरए सोनी टीवी के लिए क्या हादसा क्या हकीकत नामक एपीसोडिक सीरियल लेकर आने वाली थी इसका निर्देशन अनुराग बसु जी करने वाले थेण्मुझे इस सीरियल के लिए ही एकता कपूर ने साइन किया था हमने बीस दिन का वर्कशॉप किया दस दिन तक स्क्रिप्ट की रीडिंग की उसके बाद निर्देशक को लगा कि इस किरदार के लिए मैं काफी कम उम्र की यानी कि युवा हूं और यह किरदार एक उम्रदराज नारी का था तो मुझे इस सीरियल से हटाकर क्योंकि सास भी कभी बहू थी में शामिल कर दिया गया था मैंने तीशा गौतम विरानी का किरदार निभाया जहां कई कलाकार थे तो मुझे लगा कि यह तो अच्छा है हमारे किरदार में कई शेड्स है लीड में एक ही ढांचे में बंधे रहना होता है ऐसी वक्त मेरी उम्र महज 18 वर्ष थी तो मुझे यह भी अच्छा लगा कि हम एक ही किरदार में कई किरदार निभा लेंगे.
क्योंकि सास भी कभी बहू थी से मिली शोहरत को आप भुला नहीं पायी?
आपका सवाल काफी जायज व महत्वपूर्ण है क्योंकि हम सफलता टीआरपी व नाम में देखते हैं. दर्शक को लगता होगा कि इसने तो लीड किरदार नहीं किया इसने तो पैरलल किरदार निभाया है तो यह उनकी सोच है . मेरी सोच नहीं है मैंने तो काम करते हुए काफी इंजॉय किया उसके बाद मैंने सात फेरे, कसौटी जिंदगी के, कहीं तो होगा, जिस देश में निकला होगा चांद, पवित्र रिश्ता, ष्पोरसष्एष्आलिफ लैलाष् सहित कई सीरियल किए हैं. इन दिनों सीरियल अनुपमा में मैं बरखा कपाड़िया का किरदार निभा रही हॅूं अब मैंने एक फिल्म हरियाणा की है जो कि पांच अगस्त को सिनेमाघरों में प्रदर्शित होने वाली है एक कलाकार के लिए इससे बड़ा आशिर्वाद क्या हो सकता है कि उसे अलग अलग माध्यम में अपना हूनर दिखाने के लिए अलग अलग तरह के किरदार निभाने के अवसर मिले.
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आपने अभिनय कहां से सीखा?
मैं तुला राशि की हॅूं कुछ संकोची और कुछ बातूनी भी हॅूं मैं कुछ कुछ एक्स्ट्रोवर्ट भी हॅूं लेकिन मेरी खूबी है कि मैं हर चीजएहर इंसान को आब्जर्व बहुत करती हूं मसलन. अभी मैं आपसे बातें कर रही हॅूं दो तीन बार आपसे मुलाकात होगी तो आपसे भी मैं खुलकर बात करने लगूंगी जब भी मैं पहली बार किसी इंसान से मिलती हूं तो चुप रहती हॅू पर मैं उसे आब्जर्व करती रहती हॅूंए कि सामने किस तरह से बात कर रहा हैण्उसके बात करने का लहजा क्या है वह अपनी आंखें कैसे घुमाता है वगैरह वगैरह यह गुण मेरे अंदर बचपन से रहा है मैं किसी को भी मिमिक बहुत आसानी से व अच्छा कर सकती हूं तो मैं जितने भी लोगों से मिलती हॅू वह मेरे अंदर रह जाता है और इस अभिनय कला का सबसे अच्छा सकारात्मक पहलू यह है कि हम तमाम विविध प्रकार के लोगों से मिलते हैं.
सेट पर जो लोग हमारे साथ खाना खाते हैं हम उनसे भी कुछ न कुछ सीखते रहते हैं फिर चाहे वह हेयर ड्रेसर हो या मेकअप वाला हो या स्पॉट वाला हो यह सारी चीजें एक अभिनेत्री या अभिनेता को अभिनय करने में बहुत काम आती हैं कलाकार जितना अधिक आब्जर्व करता है वह उतना ही अधिक ग्रो करता है इसके अलावा टीवी पर काम करते हुए मैंने सुरेखा सीकरीएअपरा मेहताएनीना गुप्ताए परीक्षित साहनी जैसे दिग्गज कलाकारों के साथ काम करते हुए इनसे बहुत कुछ सीखा यह सभी कलाकार अपने आप में अभिनय के इंस्टीट्यूट हैं इन सभी ने लीड किरदारए चरित्र व पैरलल हर तरह के किरदार निभाते हुए अदभुत परफार्मेंस से लोगों को अपना दीवाना बनाया है इन्होंने नगेटिब व पॉजीटिव किरदार भी निभाए हैं सुरेखा सीकरी ने तो श्याम बेनेगल जैसे फिल्मकार के साथ काम किया है इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि मेरी ट्रेनिंग कितनी तगड़ी रही.
आपने सुरेखा सीकरीएअपरा मेहता व नीना गुप्ता का जिक्र किया आपने इन तीनों के साथ काम करके ऐसा क्या सीखा जो आपको हमेशा अभिनय में मदद करता है.
लॉजीविटी यह अंग्रेजी शब्द है इसे हिंदी में दूरदृष्टि दीर्घ जीवी कहते हैं आजकल तो हर कलाकार पहली फिल्म या एक सीरियल से ही स्टार बन जाता है आजकल सभी इंस्टाग्राम पर स्टार हैं सभी पैसा कमाते हैं एक सीरियल सफल होते ही कलाकार के पास बीएमडब्लू तो आ ही जाती है एक फिल्म सफल हो जाए तो 15 करोड़ का फ्लैट आ ही जाता है. लॉजीविटी आपको समझाती है कि अभिनय कैरियर दूर का खेल है इस कैरियर में जो छोटे छोटे पड़ाव या सपने आते हैं वह पानी के बुलबुले की ही तरह होते हैं कलाकार की वास्तविक भूख तो कभी खत्म ही नही होती यह भूख बीएमडब्लू गाड़ी या 15 करोड़ के फ्लैट से भी खत्म नहीं हो सकती यह भूख यात्राएं करके भी खत्म नही हो सकती यह भूख लॉजीविटी से ही खत्म हो सकती है और लांजीविटी होती है किरदार.
आपने अब तक कई सीरियलों में एक ही किरदार को पांच से छह वर्षों तक जिया है ऐसे में कभी किसी किरदार की किसी बात ने आपकी निजी जिंदगी पर असर किया हो
मेरे साथ ऐसा कुछ नही हुआ मेरे अंदर एक बच्चा है जो कभी बड़ा नहीं होना चाहता मैं उससे बहुत प्यार करती हूं उसे खेलने देती हूं उसे इंजॉय करने देती हॅूं सेट पर जैसे ही काम खत्म होता है मैं खुद को किरदार से बाहर ले आती हॅूं मैं काम को दिल से करती हूं हर दिमाग का भी इस्तेमाल करती हूं संवाद की लाइन याद करनी पड़ती हैं.
पिछले दस पंद्रह वर्षों में टीवी इंडस्ट्री में तो बदलाव आया है उसे आप किस तरह से देखती हैं
टीवी में कोई बदलाव नही आयाण्टीवी में बदलाव आना हैएपर यह दर्शकों पर निर्भर है आज भी हम वही दिखा रहे हैं जो हम बीस वर्ष पहले दिखाया करते थे हम आज भी वही किरदार निभा रहे हैं जो पहले निभाया करते थे
सच कह रही हॅूं मैं आज भी वही किरदार निभा रही हॅूं जिन किरदारों को मैने किसी सीरियल में निभाया था या किसी सीरियल में देखा था इसमें सीरियल बनाने वाले निर्माता व निर्देशकों की कोई गलती नही है सब कुछ टीआरपी का खेल है
जब दर्शक देखते हैं तभी टीआरपी बढ़ती है तो जब टीआरपी अच्छी आ रही हो तो निर्देशक उसमें बदलाव की बात नहीं सोचता अगर कुछ नया करना चाहो मसलन. यशराज फिल्मस ने 2008 से 2010 के बीच ष्पावडरष् सहित कुछ अलग तरह के सीरियल बनाने की कोशिश की थीए पर पसंद नही किए गए थे इसी तरह के कई अलग तरह के सीरियल आएएपर सफल नही हुए आजकल दर्शक पूरी तरह से ग्लोबल हो गयी है आज शहर में बैठी लड़की हो या गांव में बैठी लड़की वह सब कुछ देख सकती है जब तक हम वहीं एक ही तरह का परोसा हुआ खाना खाते रहेंगे तब तक बनाने वाले को दोष नहीं दिया जा सकता.
लेकिन आपको नहीं लगता कि दर्शकों ने आपको नकार दिया है पहले 22 से 32 तक की टीआरपी आती थी जबकि अब तो तीन की टीआरपी आना भी मुश्किल हो गया है इसकी वजह यह है कि अब चैनल ढेर सारे हो गए हैं अब दर्शक के पास देखने के लिए कंटेंट भी बहुत है लोग बोर हो रहे हैं और उन्हे कुछ नया चाहिए पर फिर वह वही पुराना देखते हैं आज ओटीटी सफल हैं तो उसकी वजह यह है कि दो वर्ष कोविड के दौरान सफल हुआ इसकी मूल वजह यह भी है कि अब दर्शक केवल हिंदी नहीं अंग्रेजी विदैशी और क्षेत्रीय हर तरह का कंटेंट देखना चाहता है पर ऐसे में कहीं न कहीं कंटेंट कम पड़ जाता है और तब स्तरहीन कंटेंट भी परोसा जाता है जिसे दर्शक देखता रहता है ऐसे में कंटेंट कहीं न कहीं गुम हो जाता है कंटेंट कहीं न कहीं मीडियोकर हो जाता है और अब वही दौर चल रहा है लेकिन टीवी एक अजीब सा बदलाव आया है जहां अब किसी भी सीरियल में किसी भी कलाकार का नाम नहीं दिया जाता है इससे किसका नुकसान हो रहा है जी ऐसा हो रहा हैण्मैं तो आज भी टीवी सीरियल कर रही हॅूं लोग मुझे अति लोकप्रिय सीरियल अनुपमा में बरखा के किरदार मे देख रहे हैं आज की तारीख में बरखा का किरदार सिर्फ मैं ही क्यों कोई भी अभिनेत्री निभा सकती है आज हम उस मुकाम तक पहुंच गए हैं कि अब बरखा के किरदार को निभाने के लिए सिर्फ अश्लेषा की जरुरत नहीं रही पहले हम उस मुकाम पर थे जहां तुलसी का किरदार स्मृति इरानी ही निभा सकती थी उनके अलावा किसी अन्य कलाकार को दर्शक तुलसी के किरदार में देखना नहीं चाहते थे मगर आज ऐसा हो गया है कि अगर मैं बरखा का किरदार नही निभा रही हॅूं तो कोई भी बरखा हो सकती है तो एक वैल्यू ही खत्म हो गयी है अब दर्शक किसी भी चैनल पर कुछ भी देखने लगा है मुझे याद है कि पहले दर्शकों की अपनी पसंद हुआ करती थी जब मैं स्कूल में थी तो मेरी मां सैलाब बनेगी अपनी बात हसरतें हम पांच जैसे सीरियल देखती थी और उनके साथ बैठकर हम भी देखते थेण्वह बहुत ही बेहतरीन सीरियल हुआ करते थे इन सीरियलों की गुणवत्ता का हर कोई कायल था इसी वजह से आज भी लोग उस किरदार को और उन कलाकारों को याद करते हैं आज की तारीख में कितने सारे लोग हैं जिन्हे सेलीब्रिटी बनना हैण्जिन्हे वह चमक चाहिए ही चाहिए उन्हे कला की समझ भले न हो पर सेलीब्रिटी बनना है तभी तो आज ष्सैलाबष् या ष्हसरतेंष् कोई नही बना रहा है अब आप इसे टीवी की गिरावट कहें या कुछ और
टीवी से फिल्मों में आने में इतना वक्त क्यों लगा?
कहीं न कहीं एक वक्त के बाद कलाकार की अंदर की भूख को टेलीवीजन खा लेता है टीवी में लंबे समय तक काम करते हुए कलाकार को इतना कम्फर्ट मिलता है कि वह उसमें खो जाता हैण्तो मैं भी टीवी में गुम हो गयी थी पर इतना भी गुम नही हुई थी कि मैं खुद को ढूंढ़ नहीं पायी मैं मरते दम तक टीवी करते रहना चाहॅूंगी तो मैं भी एक दिन जग गयी और मैंने फिल्म हरियाणा की है जिसमें मेरा किरदार छोटा जरुर है मगर कहानी में इसकी उपस्थिति अनिवार्य है.
फिल्म ‘हरियाणा’ क्या है?
यह तीन भाइयों की बहुत प्यारी कहानी है हरियाणा ऐसा राज्य है जहां बहुत ज्यादा ऐतिहासिक या कल्चरल कहानियां नहीं हैं मसलन महाराष्ट् में छात्रपती शिवाजी महाराज व मराठाओं की कइ कहानियां विद्यमान हैं पंजाब व उत्तर प्रदेश सहित हर राज्य में कई कहानियां मिल जाएंगीए मगर हरियाणा में ऐसा नहीं है .
हरियाणा के बारे में लोगों की सोच यह है कि हरियाणा में खेती है जमीन है कुछ लोग एक जगह बैठकर हंसते हैं और एक दूसरे का मजाक उड़ाते हैं कुछ लोग खेल में व्यस्त रहते हैं कुछ लोग फौज में चले जाते हैं इसके अलावा कुछ नहीं है हरियाणा के लोगों के शौक भी नहीं है लेकिन अकड़ू बहुत हैं यही इस फिल्म की यूएसपी है णएक जाट अपने घर के अंदर खाट पर बैठकर हुक्का फूंकता रहता है यही उसकी जिंदगी है यह हमने सुना है लेकिन फिल्मों मे इसे ठीक से कभी पिरोया नही गया संदीप बसवाना और यश टोंक जी स्वयं जाट हैं तो उन्होंने इस फिल्म में हरियाणा के उसी फ्लेवर को पूरी सच्चाई के साथ पेश किया है इस फिल्म से आपकी समझ में आएगा कि हरियाणा में कैसे लोग रहते हैं कैसे उनके बीच प्रेम व अपनापन है उनकी रोमांटिक जिंदगी कैसी है इसमें तीन भाइयों की प्रेम कहानी के साथ जिंदगी में उनके आगे बढ़ने की कहानी है.
फिल्म ‘हरियाणा’ के अपने किरदार को लेकर क्या कहना चाहेंगी?
मैंने इस फिल्म में विमला का किरदार निभाया है वह हरियाणा के एक गांव में रहती है हरियाणा के गांव में लड़कियों की शादी जल्दी हो जाती है मगर विमला ने शादी के लिए मना कर दिया है जबकि विमला की उम्र तीस से अधिक हो गयी है पर विमला को अभी पढ़ना है उसे पता है कि गांव में उसे घूमने को नहीं मिलता वह शहर में ही रहना पसंद करती है लेकिन जब उसे प्यार होता है उसे उसकी पसंद का हमसफर मिलता हैण्उसे ऐसे हमसफर की तलाश थी जो उससे प्यार करे उससे बातें करें गांव व शहर की जीवनशैली में काफी अंतर है गांव में प्यार रोमांस नाम की चीज बहुत कम देखने को मिलती है.
विमला के किरदार को निभाने के लिए आपने कोई खास तैयारी की?
विमला के किरदार को निभाने के लिए मुझे हरियाणवी भाषा के लहजे को पकड़ना था कस्ट्यूम डिजानयर रेणुका व निर्देशक संदीप बसवाना जी हरियाणा से ही हैं इन दोनो ने मेरे संवादों को लेकर कोचिंग दी संदीप जी के परिवार के सदस्यों से कुछ शब्द मैंने सीखे जितने संवाद थे उन्हें सदीप जी ने रिकार्ड किए फिर मैं उन्हे दिन भर सुनती थी जिससे वह लहजा मेरे कानों तक रह जाए वैसे भी मेरे आब्जर्वेशन की शक्ति कुछ ज्यादा तेज है तो उसने भी मुझे विमला के किरदार को निभाने में काफी मदद की.
पहली बार आपने संदीप बसवाना के निर्देशन में अभिनय किया है जो कि निजी जीवन में आपके पति भी हैं तो कहां असमंजस वाली स्थिति बन रही थी?
टीवी पर मैने संदीप जी के साथ बतौर अभिनेत्री भी काम किया है उस वक्त वह अभिनेता और मैं अभिनेत्री थी तब हम रिलेशनशिप में नही थे हम दोनों ही प्रोफेशनल हैं क्योंकि यह होमप्रोडक्शन हैं तो सेट पर पूरी तरह से प्रोफेशनल माहौल ही होता था संदीप को हर दिन सेट पर अपने वीजन के अनुसार मुझसे काम निकालने के लिए एक कलाकार की ही तरह व्यवहार करना होता था सेट पर मुझे कोई स्पेशल ट्रीटमेंट नहीं मिलता था गलती करने पर सभी के सामने डांट भी पड़ती थी रोना भी आता था वैनिटी वैन में जाकर थोड़ी देर मुंह फुलाकर बैठी रहती थी पर कोई मनाने नहीं आता था संदीप जी ने मुझे जब यह पटकथा सुनायी थी तभी मुझे यह पटकथा बहुत पसंद आयी थीण्और अब जब मैंने यह फिल्म देखी तो मुझे लगा कि जोगी मलंग ने इस फिल्म में मुझे बरखा का किरदार निभाने का अवसर देकर बहुत बड़ा अहसान कर दिया क्योंकि यह किरदार और यह फिल्म दोनों बहुत बेहतर हैं.
इसके अलावा क्या कर रही हैं?
सीरियल अनुपमा में काम कर रही हूं.
अनपुमा के अपने किरदार बरखा को लेकर क्या कहना चाहेंगी?
यह सीरियल अनुपमा यानी कि रूपाली गांगुली का सीरियल है कहानी उन्हीं के इर्द गिर्द घूमती है बरखा का काम केवल लड़ाई लगवाना है तो मैं लड़ाई करवाती रहती हूं.
आपके शौक क्या है?
मैं जिनसे प्यार करती हॅूं उनके साथ समय बिताना ही मेरा शौक है.
अभिनेत्री और पत्नी इन दो रूपों के बीच किस तरह से सामंजस्य बैठाती हैं
प्यार से यदि हर चीज को प्यार से देखा जाए तो वह निभानी नहीं पड़ती अपने आप निभ जाती है अगर प्यार न हो तो हर चीज के लिए प्रयास करने पड़ते हैं. जब कुछ नेच्युरली हो रहा होता है तो वहां प्यार ही होता है.
ओटीटी के लिए कुछ कर रही हैं
जी हां! कुछ बातचीत चल रही है जल्द ही अच्छी खबर दूंगी ओटीटी पर काम करना है क्योंकि मेरी समझ से ओटीटी पर निर्देशक और कलाकार दोनों के सामने कहानी व दृश्यों को लेकर प्रतिबंध कम होते हैं मैं यह बात महज न्यूडिटी और गालियों को ध्यान में रखकर नहीं कह रही हूं हम ओटीटी पर कुछ वास्तविक किरदार निभा सकते हैं.