मोटापा सिर्फ शरीर में चरबी का भर जाना नहीं है, बल्कि मोटापे से जन्मती हैं कई शारीरिक, सामाजिक और मानसिक समस्याएं, जिन के चलते पीडि़त व्यक्ति गहरे अलगाव और अवसाद में चला जाता है. उस के लिए जीना दूभर हो जाता है.
ललित चौधरी की ट्रेन आज फिर छूट गई. अब शेयरिंग टैक्सी से औफिस जाना पड़ेगा. कम से कम 2 घंटे लग जाएंगे. उन के चेहरे पर चिंता की रेखाएं साफ दिखने लगीं. वे भोपाल से 40 किलोमीटर दूर रहते थे और ट्रेन से घंटेभर में पहुंच जाते थे.
जल्दीजल्दी उन्होंने शेयरिंग टैक्सी की. ड्राइवर को तेज चलाने की हिदायत दी पर बाकी लोगों ने कहा कि यहां की सड़कें खराब हैं, रिस्क मत लें.
9.30 की जगह 11.10 पर औफिस के गेट के पास उतरे. हांफते हुए लिफ्ट की ओर बढ़े. ‘लिफ्ट खराब है’ की तख्ती देख उन का तो जैसे सिर ही चकरा गया. कलाई घड़ी देखते हुए वे मन ही मन बुदबुदाए, ‘फिर सीढ़ी से चौथी मंजिल तक जाना होगा, 20 मिनट और लेट.’
किसी तरह हांफते और पसीने से लथपथ, चेहरे पर चुहचुहा आए पसीने को रूमाल से पोंछते हुए औफिस पहुंचे तो वर्मा और पटेल सहित कई सहकर्मियों के चेहरों पर मुसकराहट की रेखाएं खिंच गईं. काजल बाबू ने पटेल को इशारा करते हुए व्यंग्य कसा, ‘‘आ गए अप्पू राजा. मालगाड़ी आज फिर 2 घंटे लेट है.’’
ललित चौधरी इन व्यंग्यबाणों की परवा किए बगैर कुरसी पर बैठे ही थे कि बड़े साहब का चपरासी आ कर बोला, ‘‘शर्मा साहब तीसरी बार आप को याद कर रहे हैं.’’ ललित बाबू मुंह लटकाए साहब के चैंबर की ओर चल दिए.
‘‘यह क्या तमाशा है चौधरीजी, 2 घंटे से मैं आप को ढूंढ़ रहा हूं और आप अब आ रहे हैं? विशाल कंस्ट्रक्शन की फाइल तैयार हुई?’’
‘‘नहीं, टाइम नहीं मिला.’’
‘‘टाइम नहीं मिला? आप काम ही क्या करते हैं कि टाइम नहीं मिलता? आप का दिमाग भी मोटा हो गया है. कोई भी काम करने के लिए कहो तो आप से होता ही नहीं. ऊंघने और सोने से फुरसत मिले तब न?’’
ललित क्या जवाब देते, गरदन ?ाकाए खड़े रहे. जब साहब का बोलना बंद हुआ तो चुपचाप बाहर निकल गए.
22-23 कर्मचारियों के बीच वे अकेले ऐसे क्लर्क हैं जो मोटापे के शिकार हैं. पेट निकला हुआ, मोटीमोटी बांहें और गरदन का तो पता ही नहीं चलता. ये अपने को जिम्मेदार क्लर्क मानते हैं किंतु किसी काम को निबटाने में इन्हें अच्छाखासा समय लग जाता है. लाइन कटी नहीं कि पसीने से लथपथ. कमीज, बनियान तक भीग जाती है. बदबूदार पसीने के कारण सहकर्मियों के बीच हमेशा उपहास का पात्र बनना पड़ता है उन्हें. उन के ऊंघने और खर्राटा भरने से भी लोग परेशान रहते हैं. टिफिन खाया नहीं कि खर्राटे भरने लगते हैं वे.
उन की पत्नी और बच्चे परेशान रहते हैं इस आदत से. ये आदतें उन्होंने गांव से सीखी थीं जहां उन के पिता व दादा रहते थे, पर अब 20 साल से भोपाल से कुछ दूर इस शहर में रहते हैं क्योंकि भोपाल में घर छोटे भी हैं और महंगे भी.
कार्यकुशलता : शक के घेरे में
मोटे और भारीभरकम बदन वाले लोगों के साथ परेशानी यह है कि इन की कहीं भी इज्जत नहीं होती, न औफिस में, न घर में और न ही समाज में. इन की कार्यकुशलता को शक की निगाह से देखा जाता है. इन की मानसिक क्षमता को भी गंभीरता से नहीं लिया जाता. सम?ा जाता है कि ऐसे लोगों का दिमाग भी मोटा होता है.
ललित चौधरी की ही बात ले लीजिए. अपनी ओर से औफिस का काम जिम्मेदारी और ईमानदारीपूर्वक निभाना चाहते हैं. कोशिश भी करते हैं पर न तो इन के सहकर्मी और न ही इन के औफिसर इन के काम को गंभीरता से लेते हैं. पतले और छरहरे बदन वालों की तरह इन में वह फुरती नहीं, थोड़ा सा चलने, भारी सामान उठाने, 10-20 सीढि़यां चढ़ने से हांफने लगते हैं. इन की जाति भी कई बार आड़े आने लगती है.
ऐसे लोग गाढ़ी नींद नहीं सो पाते. पेट निकले होने और गरदन मोटी होने के कारण सांस लेने में कठिनाई होती है, इस से नींद टूट जाती है इन की. फलस्वरूप दिन में मूड फ्रैश नहीं रहता ऐसे लोगों का. इन में दिनभर आलस, थकान और सुस्ती बनी रहती है.
किशोर बाबू की समस्या तो और भी जटिल है. घुटनों और कमर में हमेशा दर्द रहता है जिस से वे ठीक से चल नहीं पाते. पैर फैला कर लंगड़ाते हुए चलते हैं वे. सांस लेते हैं तो उन का पेट धौंकनी की तरह आगेपीछे होता है. उम्र तो 40 से अधिक नहीं, पर उन के चेहरे पर हमेशा बारह बजे रहते हैं.
आर्थ्रइटिस होने के कारण उन के जोड़ों में दर्द रहता है. पिछले साल उन्हें हार्टअटैक हो चुका है. चिकित्सक ने तैलीय व मसालेदार चीजें खाने से मना किया है पर खानेपीने के शौकीन किशोर बाबू का दिल नहीं मानता. सुबह के नाश्ते से ले कर रात के खाने तक कई तरह की गोलियां उन्हें गटकनी पड़ती हैं. औफिस पहुंचते हैं तो पहले आधा घंटा सुस्ताते हैं वे, फिर कोई काम शुरू करते हैं. दूसरे कर्मचारी इन के काम को कभी गंभीरता से नहीं लेते. इन्हें लोग ‘लंबदोर भैया’ कहते हैं.
पीडब्लूडी के दफ्तर में काम करने वाले वर्माजी को लोग ‘टुनटुन बाबू’ कहते हैं. भारीभरकम शरीर वाले इन बाबू के शरीर से निकलने वाले पसीने की बदबू से लोग खासे परेशान रहते हैं. इन्हें गरमी इतनी लगती है कि लाइट कटी नहीं कि कुरसी छोड़ कर बालकनी में चले जाते हैं और तब तक नहीं लौटते जब तक लाइट नहीं आ जाती और एसी चल नहीं जाता.
इन की एक और परेशानी है. खुजलाने की. खुजली, फोड़ेफुंसी से परेशान रहते हैं ये. इन के हाथ, बांह, निकले पेट और जांघों के बीच हमेशा खुजली होती रहती है. मौका मिलते ही वे खुजलाने से बाज नहीं आते. इन्हें गैस की भी शिकायत रहती है.
जो दिखता है, वही बिकता है
बदलते दौर में आजकल मार्केट का बस एक ही सूत्र है- ‘जो दिखता है वही बिकता है.’ इसे उलट कर ऐसे कह सकते है, ‘जो बिकता है वही दिखता है.’ आज के जमाने में हर चीज प्रोडक्ट बन गई है यहां तक कि बचपन, जवानी, संवेदना, गरीबी भी. ग्राहकों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए हर तरह के हथकंडे अपनाए जाते हैं. इसीलिए सभी जगह छरहरे, स्मार्ट और गुडलुकिंग युवकयुवतियों की मांग ज्यादा है. इन का मानना है कि ऐसे लोग फुरतीले, ऐक्टिव और कार्यकुशल तो होते ही हैं, आत्मविश्वासी व जल्दी काम निबटाने में निपुण भी होते हैं.
दूसरी ओर, मोटे थुलथुल लोग देखने में आकर्षक और गुडलुकिंग नहीं होते, इसलिए उन की पूछापाछी कहीं नहीं होती- न औफिस में, न घर में और न ही समाज में. ऐसे लोगों को कोई गंभीरता से नहीं लेता. इन के काम ही नहीं, इन के विचार तक को कोई स्वीकारने को तैयार नहीं होता.
नौकरी के लिए कोई भी विज्ञापन पलट लीजिए. एक ही भाषा होती है, ‘आवश्यकता है छरहरे और स्मार्ट युवकयुवतियों की.’ यही कारण है कि अपनेआप को स्मार्ट और सुंदर दिखाने के लिए महिलाएं ही नहीं, पुरुष भी इस होड़ में शामिल हैं. इस के लिए वे कौस्मैटिक सर्जरी, बेरियाट्रिक सर्जरी और लाइपो सक्शन तक कराने को तैयार रहते हैं. इसीलिए फिगर ठीक करने और मसल्स बनाने के लिए छोटेछोटे शहरों व कसबों तक में जिम, हैल्थ क्लब, ऐक्सरसाइज सैंटर और जैंट्स पार्लर खुल गए हैं, जहां अमीर युवकयुवतियों के साथसाथ मध्यवर्गीय वर्ग के नौजवान बेधड़क आ रहे हैं. यानी छोटेछोटे कसबों के युवा भी लुक को ले कर काफी सचेत हो गए हैं.
आजकल स्मार्टनैस के 3 सूत्र सर्वमान्य हैं- लुक, बातचीत और रिलेशनशिप. लुक अच्छा हो तभी
बातें करने का मन करता है और रिलेशनशिप भी तभी विकसित होती है. इस में मोटे लोग पिछड़ जाते हैं.
‘‘मेरी कोई गर्लफ्रैंड नहीं. कोई मु?ा से बात तक करना नहीं चाहती,’’ अशोक काव कहते हैं, ‘‘काफी ग्लानि और डिप्रैशन होता है. मेरे सभी साथियों की गर्लफ्रैंड्स हैं लेकिन…’’ अशोक गहरी सांस खींचते हैं, फिर आगे कहते हैं, ‘‘मेरी कोई नहीं है.’’ ऐसे युवक आत्ममुखी, आत्मकेंद्रित और अंतर्मुखी होते हैं.
चूंकि लड़कियां अपनी फिगर को ले कर काफी सचेत रहती हैं, सो मोटी लड़कियों में डिप्रैशन कुछ ज्यादा ही होता है. वे हमेशा उल?ान और तनाव में रहती हैं. यदि कोई उन के मोटापे को ले कर टोक देता है तो जैसे उन पर पहाड़ टूट पड़ता है.
सीमा कहती है, ‘‘पता नहीं क्यों, मैं कैसी हो गई हूं? खानपान पर ध्यान देती हूं, डाइटिंग करती हूं, जिम भी जाती हूं, पर अभी तक कुछ भी फर्क नहीं आया. घर में सभी दुबलेपतले हैं, मांपिताजी, भाईबहन सभी के सभी, पर मैं सम?ा ही नहीं पाती हूं कि मैं कैसे ऐसी हो गई.’’
मोटे लोगों का न तो पढ़ाई में मन लगता है और न कोई काम करने में. सीमा कहती है, ‘‘परफौरमैंस में भी काफी फर्क आया है. मन एकाग्र नहीं रहता. मम्मी हमेशा चिंतित रहती हैं, पता नहीं इस की शादी कैसे होगी? कोई लड़का पसंद करेगा भी या नहीं.’’
ऐसी लड़कियों की शादी में भी काफी परेशानी होती है. मैट्रिमोनियल में हर जगह लिखा होता है, ‘गोरी, छरहरी और लंबी लड़की चाहिए.’ ऐसी लड़कियों को लड़के वाले भी पसंद नहीं करते. आशीष वर्मा के शब्दों में, ‘‘ऐसी लड़कियां दक्षता एवं कुशलता के अभाव में काम के प्रति सुस्त और लापरवाह होती हैं. इन के मां बनने में भी दिक्कत होती है. सब से बड़ी बात यह है कि इन की संतान भी मोटी होती है.’’
रोग का घर
मिसेज वर्मा की उम्र होगी यही कोई 38 वर्ष. वे 2 सालों से घुटनों के दर्द से परेशान हैं. डाक्टर कहते हैं, ‘मोटापा घटाओ.’ लेकिन, उन की जीभ पर लगाम ही नहीं है. दोचार दिन डाइटिंग करती हैं, फिर कोई पार्टी या बाजार जाती हैं तो सारी डाइटिंग धरी की धरी रह जाती है. ठूंसठूंस कर खा लेती हैं. सोचती हैं, ‘आज भर खा लेती हूं. एक दिन खाने से क्या होगा.’ इसीलिए शरीर एकदम भारी और थुलथुल हो गया है. चलनेफिरने में काफी परेशानी होती है. शर्मा आंटी का भी यही हाल है. उन के जिस्म में हमेशा कौलेस्ट्रौल बढ़ा रहता है. डाक्टर के साथसाथ उन के घर के लोग भी परेशान रहते हैं. कम खाने के लिए कितना भी कहो, पर वे सुनती ही नहीं हैं.
मोटे लोगों के शरीर में वसा की अधिकता होती है जिस से रक्त में कौलेस्ट्रौल का स्तर बढ़ जाता है जो रक्तनलियों की भीतरी दीवार में जमा हो कर उसे मोटा और सख्त बना देता है. इन के छिद्र पतले हो जाने के कारण रक्त का आवागमन बाधित हो जाता है जिस से उच्च रक्तचाप, कोरोनरी आर्टरी डिजीज, स्ट्रोक, हृदयाघात आदि की संभावना बढ़ जाती है. ऐसे मरीज डाइबिटीज के भी शिकार ज्यादा होते हैं. पुरुषों में प्रौस्टेट, महिलाओं में ब्रैस्ट कैंसर, सर्विक्स तथा छोटी आंत के कैंसर की प्रबल संभावना होती है.
मोटापे के कारण : लगभग 35 प्रतिशत महिलाएं बां?ापन का शिकार हो जाती हैं. ऐसा ओवरी की एक विशेष तरह की बीमारी, जिसे पोलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम कहते हैं, के कारण होता है. इस बीमारी में ओवरी की भीतरी और बाहरी दीवार पर कौलेस्ट्रौल के जमाव के कारण रचनागत खराबी आ जाती है. इस कारण इस से स्त्रावित होने वाला एस्ट्रोजन और प्रोजैस्ट्रौन नामक हार्मोनों का स्त्राव भी बाधित हो जाता है. इस से मस्तिष्क से स्त्रावित हार्मोन का स्त्राव भी बाधित हो जाता है. फलस्वरूप गर्भधारण में परेशानी होती है. ऐसी मरीज की माहवारी में भी गड़बड़ी होती है, जैसे मासिक का कम होना, अत्यधिक स्त्राव या 2 मासिकों के अंतराल का कम हो जाना. मोटी महिलाओं में पित्त की थैली में पथरी, औस्टियो आर्थ्रइटिस और प्रीमैच्योर डैथ की भी संभावना बनी रहती है.
ऐसे लोगों को गरमी अपेक्षाकृत ज्यादा लगती है. थोड़ी सी गरमी में पसीनेपसीने हो जाते हैं. गंजी, शर्ट, चेहरा ही नहीं, जांघिया, मोजे तक भीग जाते हैं. बारबार और ज्यादा पसीना आने से बदबू भी आने लगती है, जिस से त्वचा रोग, खुजली और फोड़ेफुंसी हमेशा होती रहती हैं. फलस्वरूप गंदगी की वजह से वे सहकर्मियों के बीच घृणा, उपेक्षा और तिरस्कार के पात्र बनते हैं सो अलग.
ऐसे लोग थोड़ा सा भी शारीरिक श्रम करने, सीढि़यां चढ़ने, भारी सामान उठाने में ही नहीं, तेज कदमों से चलने मात्र से भी हांफने लगते हैं. पेट व गरदन में वसा के जमाव के कारण श्वसन तंत्र और फेफड़े पर दबाव पड़ता है. फलस्वरूप सांस लेने में कठिनाई होती है और गति तीव्र हो जाती है.
अपने ही शरीर से विरक्ति
एक मनोचिकित्सक एवं सैक्स विशेषज्ञ के शब्दों में, ‘‘मोटापे के संबंध में सब से दुखद और पीड़ादायक बात यह है कि ऐसे लोग अपने शरीर व अपनेआप से घृणा करने लगते हैं. उन के मस्तिष्क में रहरह कर वितृष्णा व अवसादपूर्ण विचार आते रहते हैं. शरीर की बनावट और बेढंगेपन के कारण वे दुखी, चिंतित तथा आत्म विध्वंसात्मक विचार रखते हैं.
‘‘आईने के सामने वे अपने हर अंग की आलोचना करते रहते हैं. उन की सोच हमेशा नकारात्मक होती है. वे अपने बाल, अपनी आंखें, गाल, छाती, होंठ, गरदन, पेट, जांघ, कमर यानी हर अंग को निहारते हुए व्यंग्य कसते हैं. इतना ही नहीं, अपनेआप को वे एकदम से बीमार सम?ाने लगते हैं. प्रतिरोधात्मक सोच, गुस्सा तथा अवसाद के कारण वे सारी चीजें खाने लगते हैं जिन के लिए उन्हें मना भी किया जाता है, जिन खाद्य पदार्थों से उन का वजन बढ़ता है.’’
एक दूसरे मनोचिकित्सक की नजर में, ‘‘ऐसे लोगों के दिलोदिमाग में यह बात घुस जाती है कि वे आकर्षक नहीं हैं, बल्कि कुरूप हैं. वे यह भी सोचते हैं कि प्रत्येक वह आदमी जो मु?ा से मिलता है, मेरे बारे में यही धारणा रखता है.’’
ड्यूक यूनिवर्सिटी के डाइट एंड फिटनैस विभाग के एक विशेषज्ञ के शब्दों में, ‘‘उन्हें इस बात की चिंता नहीं होती कि उन के शरीर के साथ क्या बुरा हो रहा है, बल्कि इस बात की चिंता होती है कि लोग उन के बारे में क्या सोच रहे हैं.’’
ऐसा देखा गया है कि मोटापे के शिकार लोग अपने मोटापे को ले कर हमेशा मानसिक दबाव, तनाव और अवसाद से पीडि़त होते हैं. ऐसे लोग आत्ममुखी, एकांतवासी और आत्मकेंद्रित होते हैं. वे कोलाहल, भीड़ से दूर भागते हैं. वे परिवार, समाज तथा दोस्तमित्रों से भी ज्यादा संपर्क नहीं रखते. उन्हें अपना जीवन एकदम नीरस और उबाऊ लगने लगता है.
ऐसे लोगों का सब से दुखद पहलू यह होता है कि उन में अपने शरीर के प्रति आत्मविश्वास की काफी कमी होती है. मानसिक उल?ान के कारण वे दृढ़तापूर्वक कोई ठोस निर्णय लेने की स्थिति में नहीं होते. उन में हमेशा एक अज्ञात डर बना रहता है. ऐसा लगता है कि वे जो निर्णय लेने जा रहे हैं उस में किंतुपरंतु है. क्या ठीक है क्या गलत है, वे यह सम?ा नहीं पाते. उन पर अपने लोगों का भी विश्वास नहीं होता. ऐसे लोगों को समाज ही नहीं, परिवार के दूसरे सदस्य भी किसी विशेष निर्णयात्मक विचारविमर्श में शामिल करना नहीं चाहते.
ये अपने शरीर की आकृति और बनावट को स्वीकार नहीं कर पाते. इन्हें अपने शरीर से प्यार नहीं होता. ये लोग अपने शरीर की सचाई को स्वीकार नहीं कर पाते. ऐसे लोग इस मानसिकता और सोच को बदल नहीं पाते या फिर बदलने की स्थिति में नहीं रहते. ये लोग अपने शरीर से आगे बढ़ कर न तो सोच पाते हैं और न ही उस में सुधार लाने की दिशा में कोई सकारात्मक पहल ही कर पाते हैं.
महिलाओं की स्थिति तो और भी नाजुक होती है. अधिकतर महिलाएं मानसिक, मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक रूप से दुखी होती हैं. पासपड़ोस में उपहास और व्यंग्यबाण का शिकार तो होती ही हैं, अपने परिवार में भी वे इस से अछूती नहीं होतीं. न तो इन को, न इन के विचार और न ही इन के द्वारा किए काम को कोई गंभीरता से लेता है. शरीर की तरह इन की बुद्धि भी मोटी होती है. इस कारण ये हमेशा उपेक्षा, घृणा और तिरस्कार महसूस करती हैं.
धीरेधीरे इन में मानसिक अवसाद घर कर जाता है और फिर ये भावनात्मक रूप से अपने को शांत, स्थिर और संतुलित नहीं रख पातीं. इस के कारण इन के स्वभाव में परिवर्तन भी आने लगता है. मन चिड़चिड़ा तो हो ही जाता है, ये अपनेआप को अकेला भी महसूस करने लगती हैं. यदि कामकाजी महिलाएं हैं तो दफ्तर में भी इन के कामों को गंभीरता से नहीं लिया जाता, न तो सहकर्मी और न ही बौस. इन को जिम्मेदारी वाले काम नहीं दिए जाते क्योंकि ऐसे लोग शरीर से ऊपर उठ कर कुछ सोच ही नहीं सकते या फिर सोचने की स्थिति में नहीं रहते. इन के पास क्षमता या खासीयत होने के बावजूद इन को उभरने का मौका नहीं मिलता.
दांपत्य जीवन में तनाव
यह सच है कि मोटे लोग देखने में अट्रैक्टिव नहीं होते. ऐसी काया किसी को आकर्षित भी नहीं करती. जो काया आंखों को भाती ही नहीं, उस के प्रति प्यार कहां, इच्छा कहां, चाहत कहां, न पत्नी की आंखों में और न प्रेमिका की ही आंखों में.
पेट में, जांघ में, छाती में हर जगह वसा का जमाव. अंगप्रत्यंग थुलथुल.
10 कदम चले नहीं कि धौंकनी की तरह हांफने लगना. ऐसी स्थिति में सहवास की इच्छा क्या होगी? बिस्तर पर जाने के बाद शरीर इतना थक कर चूर कि मन में कोई दूसरा खयाल आता भी नहीं है. उधर पति की शिकायत कि वह इतनी मोटी है कि एक तो मन ही नहीं करता और मन किया भी तो संतुष्टि नहीं मिलती. कंपलीट इंटरकोर्स नहीं हो पाता.
मोटी लड़कियों या औरतों को मासिक में गड़बड़ी तथा सैक्स हार्मोन में अनियमितता के साथसाथ उत्तेजना में कमी होना आम बात है. इस कारण वे अवसाद, वितृष्णा व मानसिक तनाव से हमेशा घिरी रहती हैं. उन में सैक्स के प्रति कोई आकर्षण नहीं होता, इच्छा नहीं होती. धीरेधीरे सैक्स से विरक्ति होने लगती है उन्हें. इस कारण उन के दांपत्य जीवन में तनाव और बिखराव होना आम बात है.
मोटापे के कारण लोगों में कई तरह की दिक्कतें और परेशानियां होती हैं. शारीरिक कष्ट तो होता ही है, मानसिक परेशानियां भी कम नहीं होतीं. आज के जमाने में ऐसा भी नहीं है कि इस का इलाज नहीं है या फिर इस से छुटकारा पाया नहीं जा सकता. यदि समय रहते इस के प्रति सचेत रहा जाए तो निश्चितरूप से इसे नियंत्रित किया जा सकता है. बस, जरूरत है इस के लिए पहल करने की.