1999 में फिल्म ‘‘दिल्लगी’’ से लकर अब तक परवीन डबास के अभिनय करियर की यात्रा काफी रोचक रही है. परवीन डबास ने पूरे विश्व में सर्वाधिक धन कमाने वाली भारतीय फिल्म ‘‘मानसून वेडिंग’’ में अभिनय कर जबरदस्त शोहरत बटोरी थी. बीच में उन्होंने एक फिल्म ‘‘सही धंधे गलत बंदे’’ का निर्देशन भी किया था, जिसके लिए उन्हे ‘मैक्सिको इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल’’ में पुरस्कृत भी किया गया था. मगर  अस्वस्थता के चलते वह दो वर्ष तक बिस्तर पर पड़े रहे, जिसके चलते उनके करियर में गतिरोध आ गया.

बहरहाल, इन दिनों वह अप्रवासी भारतीय विजित शर्मा की सायकोलाजिकल थ्रिलर फिल्म ‘‘मिरर गेम:अब खेल शुरू’’ को लेकर चर्चा में हैं. तो दूसरी तरफ वह बतौर लेखक, निर्देशक व अभिनेता अपनी एक फिल्म शुरू करने की योजना पर भी काम कर रहे हैं.

आपने ‘मानसून वेडिंग’ या ‘खोसला का घोसला’’ जैसी फिल्में की थी. क्या इस तरह की फिल्में आज के समय में बनती, तो ज्यादा बेहतर बनती?

– कब कौन सी चीज फायदा कर दें पता नही. कई बार एक छोटा सा किरदार आपको स्टार बना देता है. कई बार आप फिल्म में मुख्य किरदार निभाते हैं, फिल्म हिट हो जाती है, दूसरों को फायदा हो जाता है, आपको नहीं होता. अब हम इस तरह की बातें नहीं सोच सकते कि वह फिल्म अब आती, तो क्या हो सकता है? मैं उन चीजों के बारे में नहीं सोच सकता, जो नहीं हो सकता. मैं उन चीजों के बारे में सोचता हूं, जो हैं.

सिनेमा के बदलते दौर में क्या बौलीवुड में  बेहतरीन काम किया जा रहा है?

– देखिए, भेड़चाल तो हर जगह चलती है. मेरी ही कई फिल्में ऐसी हैं, जिन पर भेड़चाल हुई. जब मेरी फिल्म ‘‘मानसून वेडिंग’’ आयी, तो कईयों ने उसी तरह की फिल्में बना डाली. मैं हमेशा इस बात से बहुत खुश होता हूं कि मेरी फिल्मों ने सिनेमा में उस तरह की फिल्मों को बनाने का ट्रेंड शुरू किया. अब हम सायकोलाजिकल थ्रिलर फिल्म ‘मिरर गेमःअब खेल शुरू’ लेकर आ रहे हैं, मुझे यकीन है कि इस फिल्म के रिलीज के बाद एक बार फिर बौलीवुड में इस तरह की फिल्मों का एक दौर शुरू हो जाएगा. फिल्म का ट्रेलर तमाम लोगों को पसंद आ रहा है. काफी चर्चाएं हो रही हैं.

आखिर भारतीय सिनेमा में अच्छा काम बहुत कम होने की वजहें क्या हैं?

– आपने जटिल सवाल कर दिया. देखिए, सिनेमा के बदलाव के साथ अब स्टार कलाकार भी अच्छा सिनेमा करने लगे हैं. ‘बजरंगी भाईजान’, ‘दिल धड़कने दो’, ‘दंगल’, ‘एयर लिफ्ट’, ‘रूस्तम’ और अब ‘बाहुबली’. यह सारी अच्छी फिल्में हैं, तो हर समय हर तरह का सिनेमा बनता है और बनता रहेगा. मुझे नहीं लगता कोई इंसान खराब फिल्म बनाना चाहता है. कई बार कुछ फिल्में अच्छी बन जाती हैं, कुछ अच्छी नहीं बन पाती हैं. कई बार फिल्म बनते बनते गड़बड़ा जाती हैं. कई बार फिल्म बनाने की वजहें अलग होती हैं. कई बार पटकथा अच्छी होती है, पर निर्देशक उसे उस तरह से परदे पर उतार नहीं पाता. कई बार बहुत अच्छी फिल्म बनाने की कोशिश की जाती है, पर दर्शक उसे पसंद ही नहीं करता.

एक कलाकार के तौर पर आप पटकथा व किरदार पढ़कर पसंद करते हैं. उसके बाद भी फिल्में असफल होती हैं?

– गड़बड़ी तो कहीं भी, किसी भी चीज में हो सकती है. कई बार फिल्म अच्छी होती है, पर ट्रेलर गलत बन जाता है. तो फिल्म नहीं चलती. कई बार फिल्म के नाम के चलते फिल्म नही चलती. फिल्म एक ऐसी विधा है, जहां कहानी पटकथा लिखने से लेकर कलाकारों का चयन, शूटिंग, एडीटिंग, ट्रेलर, गाने, उसके पोस्टर व मार्केटिंग से लेकर रिलीज का समय सब कुछ सही बैठ जाए, तभी फिल्म चलती है. इनमें से कहीं कुछ भी गड़बड़ा जाए, तो बंटाधार हो जाता है. फिर अब दर्शक के पास च्वाइस बहुत हैं. जबकि अब फिल्मकार भी कुछ ज्यादा ही मेहनत कर रहा है.

हमारी बौलीवुड की फिल्में हौलीवुड की फिल्मों का मुकाबला नहीं कर पाती हैं?

– ‘दंगल’ ने चीन में काफी पैसा कमाया, पर यह जरुरी नहीं कि अमेरिका में भी कमाए. हौलीवुड फिल्मों ने लंबे समय से पूरे विश्व के दर्शकों पर अपनी छाप छोड़ रखी है. जब मैं छोटा था, तो मैं भी वीडियो खरीदकर हौलीवुड फिल्में देखा करता था. वह हमेशा पटकथा व प्री प्रोडक्शन पर काफी काम करते हैं और ऐसी फिल्में बनाते हैं, जिससे पूरे विश्व का दर्शक उनकी फिल्में देखने के लिए प्रेरित हो. हम बौलीवुड के फिल्मकारों ने इस तरह की सोच पर अब काम करना शुरू किया है. ‘मानसून वेडिंग’ पहली फिल्म थी, जिसने भारत के बाहर भी काफी पैसा कमाया था. वह भारतीय संस्कृति से ओतप्रोत भारतीय फिल्म थी. पर विश्व में सराही गयी. ‘स्लम डाग मिलेनियर’ भी संस्कृति के आधार पर भारतीय थी. इसकी कहानी भारतीय इंसान विकास स्वरूप ने ही लिखी थी. वास्तव में हौलीवुड ने धीरे धीरे अमरीकन फिल्म देखना एक कल्चर बना दिया है.

आपके लेखन के शौक में कोई नई प्रगति हुई है?

– उम्र व अनुभव के साथ प्रगति होती रही. स्कूल के दिनों में कविताएं लिखता था. मैंने कुछ रिजेक्टेड लवर जैसी कविताएं लिखी, तो लड़कियों ने मेरा मजाक भी उड़ाया. कालेज में पहुंचने के बाद कहानी लिखी. फिर कुछ फिल्मों में अभिनय करते समय कुछ सीन मैंने लिख दिए, जिन्हे मैं लिखना नहीं मानता. क्योंकि यह काम तो मैं अपने किरदार को अपने तरीके से निभाने के लिए करता रहा. अभी भी कविताएं कभी कभी लिखता हूं. अंग्रेजी अखबर के लिए ब्लाग लिखता हूं. कविताएं तो अंग्रेजी में तथा फिल्म की पटकथा हिंदी में लिखता हूं. 

क्या पढ़ना पसंद करते हैं?

– जब छोटा था तो क्लासिक पढ़ता था. मैंने काफी हिंदी व अंग्रेजी लेखकों को पढ़ा है. बीच में उर्दू कविताओं को पढ़ने का शौक रहा है. जावेद अख्तर ने जो पहली किताब व कैसेट ‘तरकश’, लिखी है इसे भी मैंने पढ़ा है.

सुना है आप को घूमने का भी शौक है?

– यात्राएं करने का शौक है. महाराष्ट्र व भारत में बहुत सी घूमने की जगहें हैं. मुझे ट्रैकिंग करने का भी शौक है. हाइकिंग की है. एक साल पहले मैं मनाली सायकल से गया था. मुझे अनजाने शहर में कार में बैठकर घूमने की बजाय पैदल चलते हुए घूमना पसंद है. तभी हमें शहर का असली मजा, असली खूशबू पता चलती है. एडवेंचर काम करने का आनंद अलग मिलता है. यात्राएं करते हुए ही हमें असली भारत व इंसान से मुलाकात होती है. हमने महाराष्ट् में कई जगह ट्रैकिंग की है. सायकलिंग करने के लिए यहां बहुत जगह हैं.

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