जिस चीज से मनुष्य जाति का भला होने वाला है वह है एक मात्र शिक्षा व ज्ञान, जो स्कूलों में मिलता है, न कि मंदिर या मसजिद में. शिक्षा के बुनियादी सवालों से भटक कर आज हम मंदिरमसजिदों के फुजूल झगड़ों में उल झ गए हैं. यह मूर्खता के अलावा कुछ नहीं.
अपने देश में आम लोगों द्वारा मंदिर, मसजिद, चबूतरा, मजार आदि का निर्माण खुद के दम पर चंदे और दान से तैयार कर लिया जाता है. भले ही गांव की आबादी थोड़ी ही क्यों न हो. भारत के अधिकतर गांवों में मंदिर, मसजिद, चर्च, चबूतरा, मजार इत्यादि में से कुछ न कुछ जरूर पाए जाते हैं.
अगर एक ही गांव में 2 या 3 धर्म के लोग रहने वाले हैं तो सभी धर्मों के लोग अपनेअपने धर्मस्थल का निर्माण अपनेअपने धर्म के लोगों के सहयोग से कर लेते हैं. भले ही उन के खुद के घर झोंपड़ी ही क्यों न हों. वे आपसी सहयोग से कोई न कोई धार्मिकस्थल का निर्माण जरूर कर लेते हैं, क्योंकि बात आखिर उन के धर्म को बड़ा दिखाने की भी रहती है.
सदियों से लोगों में धर्म के प्रति इतनी आस्था भर दी गई है कि वे काल्पनिक ईश्वर या अल्लाह के लिए मरमिटने, एकदूसरे को नीचा दिखाने और लड़ाई झगड़े तक करने के लिए तैयार हो जाते हैं.
दूसरी ओर अपने देश में शिक्षा जैसी बुनियादी जरूरत के लिए सरकार पर निर्भर रहना पड़ता है. स्कूल भवन आदि निर्माण के लिए आम लोगों द्वारा एक पैसा भी दान के रूप में नहीं दिया जाता है. अपने देश में सभी सरकारी स्कूल सरकार के भरोसे ही चल रहे हैं जबकि हम इंसानों को शिक्षा से ही तरक्की की राह प्राप्त होती है.
ज्योतिबा फूले ने कहा था, ‘‘मंदिर का मतलब होता है मानसिक गुलामी का रास्ता. स्कूल का मतलब होता है जीवन में प्रकाश का रास्ता. मंदिर की जब घंटी बजती है तो हमें संदेश देती है कि हम धर्म, अंधविश्वास, पाखंड और मूर्खता की ओर बढ़ रहे हैं. वहीं जब स्कूल की घंटी बजती है तो वह यह संदेश देती है कि हम तर्कपूर्ण ज्ञान और वैज्ञानिकता की ओर बढ़ रहे हैं. अब तय आप को करना है कि आप को जाना कहां हैं.’’
जिस प्रकार अपने देश में मंदिर, मसजिद, गुरुद्वारे, मठ आदि मौजूद हैं उस से स्पष्ट है कि एक साजिश के तहत आम इंसान को धर्म के नाम पर पाखंड, अंधविश्वास और मूर्खता की ओर ढकेलने के लिए ऐसे धार्मिकस्थल ही नहीं, बल्कि धर्मग्रंथों तक की रचना कर दी गई है और आज भी किया जा रहा है. आज भी आम इंसानों को इसी चक्रव्यूह में गोलगोल घुमाने का प्रयास किया जा रहा है. कल तक इस की दुकानें छोटी जरूर थीं लकिन आज मौल का रूप लेती जा रही हैं. आज भी इस पाखंड और अंधविश्वास के बाजार को बढ़ावा देने की कोशिश जारी है.
किसी भी धर्म के लोगों द्वारा सब को शिक्षा देने की बात नहीं की गई थी. यहां तक कि हिंदू धर्मावलंबियों द्वारा निचले तबके को शिक्षा से दूर रखने की साजिश रची गई थी. इसीलिए भारत में निचले तबके के लोगों को सैकड़ों वर्षों तक शिक्षा जैसी बुनियादी जरूरतों से काफी दूर रहना पड़ा था. निचले तबके के लोगों को धार्मिक ग्रंथों को पढ़ने से रोकने की कोशिश की गई थी. दूसरी ओर निचले तबके को समाज में इतने भेदभाव और छुआछूत जैसे घिनौने षड्यंत्रों में उल झा दिया गया है कि यह वर्ग आज भी उस बीमारी से उबर नहीं पाया है.
अगर देखा जाए तो हम मनुष्यों को शिक्षा की बदौलत ही पशु से इंसान के रूप में बदलने में मदद मिली है. सचाई यह है कि आज भी जिस चीज से मनुष्य जाति का भला होने वाला है वह एकमात्र शिक्षा और ज्ञान है, जो स्कूलों में मिलता है, न कि मंदिर और मसजिदोंचर्चों में.
किसी भी मंदिर या मसजिद से जुड़े लोग आम लोगों को शिक्षित करने की जिम्मेदारी नहीं उठाते. इस के पीछे की वजह यह है कि वे समाज के लोगों को पाखंडी, अंधविश्वासी और अवैज्ञानिक बनाने का काम कर रहे हैं क्योंकि उन्हें पता है कि अगर लोगों को ज्ञान और वैज्ञानिकता की शिक्षा दी जाने लगेगी तो वे अवैज्ञानिकता, पाखंड, अंधविश्वास और मूर्खता को नहीं मानेंगे. सो, वे अपने पैरों पर कुल्हाड़ी कभी नहीं चलाएंगे.
शिक्षा की बदौलत ही इंसान इस मुकाम पर पहुंचा है कि आज मनुष्य का जीवन दिनोंदिन विलासितापूर्ण और आरामदायक होता जा रहा है. लोग शिक्षा के कारण ही अपने अधिकारों के प्रति सचेत हो रहे हैं. लोग अंधविश्वास, पाखंड से दूर हो रहे हैं. लोग वैज्ञानिकता की ओर उन्मुख हो रहे हैं. कल तक इंसान को काफी संघर्ष करना पड़ता था. हालांकि, आज भी मानवजाति संघर्षरत है. उस के संघर्ष कम नहीं हुए हैं और यही संघर्ष उस को पशु से मनुष्य के रूप में परिष्कृत कर रहा है.
मंदिरमसजिद जरूरी या स्कूल
मैं ने अपने दौरों के दौरान कुछ गांवों को करीब से देखने का प्रयास किया तो पाया कि कुछेक गांवों को छोड़ कर लगभग सभी गांवों में छोटेबड़े एकदो मंदिर या मसजिद जरूर मिले. मैं यहां सिर्फ एक गांव का ब्योरा दे रहा हूं. उस गांव की आबादी लगभग 1,200 है. उस गांव में 5 मंदिर हैं.
प्रत्येक मंदिर पर लाखों रुपए खर्च किए गए हैं. सिर्फ एक मंदिर की भव्यता की बात की जाए तो मंदिर का प्रांगण संगमरमर से बना हुआ है. अंदर फर्श पर टाइल्स लगे हुए हैं. मंदिर की खिड़कियां और दरवाजे मोटेमोटे लोहे की ग्रिल से बने हुए हैं.
उस मंदिर की बाउंड्री वौल काफी कलात्मक बनी हुई है. मंदिर के चारों तरफ सुंदर लाइटिंग की व्यवस्था की गई है. मंदिर के प्रांगण में सुंदर फूलों की क्यारियां हैं. जगहजगह नल की व्यवस्था की गई है.
मंदिर के गेट के पास हैंडपंप लगे हुए हैं. अन्य मंदिरों में इतनी सजावट तो नहीं है, लेकिन उस गांव के लोगों द्वारा धीरेधीरे उन्हें भी सुंदर बनाने के प्रयास जारी हैं. उस गांव के लोगों द्वारा चंदा इकट्ठा कर मंदिर की भव्यता प्रदान की गई है.
गांव के एक सज्जन ने बड़े गर्व से बताया, ‘‘मंदिर निर्माण के लिए बाहरी लोगों से एक रुपए की भी मदद नहीं ली गई है. सबकुछ ग्रामीणों के चंदे से किया गया है.’’
लगभग ऐसे ही सभी भारतीय गांवों में मंदिर, मसजिद, गुरुद्वारे, मठ इत्यादि में से कोई न कोई एकदो धर्मस्थल जरूर पाए जाते हैं.
वहीं, उस गांव में स्कूल की बात की जाए तो एकमात्र सरकारी प्राइमरी स्कूल है. गांव में एक भी लाइब्रेरी नहीं है. उस स्कूल की बाउंड्री वाल टूटीफूटी है. उस गांव के दोचार ग्रामीणों से बात करने पर पता चला कि उस गांव में सरकारी स्कूल के प्रांगण में गायबकरियां भी चली जाती हैं क्योंकि मुख्य गेट टूटे हुए हैं.
उस गांव के स्कूल के प्रधानाध्यापक रंजन प्रसाद ने बताया, ‘‘गांव के अधिकतर लोग स्कूल की संपत्ति को सरकारी सम झ कर दुरुपयोग करते हैं. यहां के कुछ बच्चे, जो इसी स्कूल में पूर्व में पढ़ कर निकल चुके हैं, दूसरे स्कूल में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं, वे स्कूल बंद होने के बाद इस में तोड़फोड़ भी कर देते हैं. स्कूल बंद होने के बाद इंसान से ले कर जानवर तक यहां अपना बसेरा बना लेते हैं. स्कूल में अव्यवस्थित शौचालय गांववासियों के सौजन्य से टूट चुका है. वहीं संपूर्ण स्कूल की बात की जाए तो पूरा स्कूल जीर्णशीर्ण अवस्था में है.
‘‘स्कूल के बारे में गांव के लोग सुरक्षा के लिए चिंतनशील नहीं रहते हैं. इसलिए यह स्कूल ग्रामीणों के नजर में महत्त्वहीन है, जबकि इस गांव के अधिकतर बच्चे इसी स्कूल से पढ़ कर निकले हैं. कुछ वर्तमान अध्ययनरत बच्चों के मातापिताओं ने भी इसी स्कूल से शिक्षादीक्षा ली है. दरअसल उन का प्रारंभिक ज्ञान इसी स्कूल से हुआ है. वे सभी जितनी श्रद्धा से अपने गांव के मंदिरों की देखभाल करते हैं उतना इस स्कूल की करते तो सचमुच यह शिक्षा का मंदिर इस हालत में न होता.’’
डेहरी ओन सोन के एक सामाजिक कार्यकर्ता अवधेश कुमार ने बताया, ‘‘दरअसल अभिभावकों की उपेक्षा के कारण भी सरकारी स्कूलों में पढ़ाईलिखाई ठीक से नहीं हो पा रही है. आम लोग धार्मिक कार्यों के प्रति तो खूब बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते हैं और मंदिर, मसजिद, मठ, गुरुद्वारा, चर्च आदि को खूब पल्लवितपुष्पित करते रहते हैं. उस के लिए चंदा वगैरह इकट्ठा करते रहते हैं. जबकि, इन चीजों से गांव के भविष्य का निर्माण नहीं होता है. जिन चीजों से उन के बच्चों का भविष्य संवरता है, उस ओर लोगों का ध्यान बिलकुल नहीं है. अगर समाज के लोगों द्वारा स्कूल को सिर्फ समर्थन मिलता तो शिक्षा का बंटाधार न होता.
‘‘जबकि, दिनोंदिन गांवगांव में मंदिर, मसजिद, मठ, गुरुद्वारा, चर्च आदि फलफूल रहे हैं और समाज में गहरी पैठ बनाते जा रहे हैं. इस से समाज का भला होने वाला नहीं है. धार्मिक स्थलों और धार्मिक कार्यों से कुछ खास वर्गों को लाभ जरूर हो सकता है लेकिन किसी भी सूरत में धार्मिक दुकानों से आम लोगों का कल्याण होने वाला नहीं है. सदियों से काल्पनिक ईश्वर और ईश्वरीय शक्ति के बारे में ऐसी पट्टी पढ़ाई जा रही है कि लोग आज भी गुमराह होते जा रहे हैं और समाज में यह फैलाया जा रहा है कि इसी से सभी का कल्याण होने वाला है. इसी से मोक्ष की प्राप्ति होगी.’’
होना तो यह चाहिए था कि शिक्षा के मंदिरों को आज के मंदिरों की तरह लोग श्रद्धाभाव से देखते, पूजा करते और सभी बच्चे बिना भेदभाव के शिक्षा ग्रहण करते. लेकिन, शिक्षा के मंदिर को उपेक्षित किया जा रहा है और सरकार के भरोसे पर छोड़ दिया गया.
पैसे वाले लोग व्यावसायिक यानी प्राइवेट स्कूलों में शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं तो गरीबगुरबों के बच्चे इन टूटेफूटे स्कूलों में पढ़ाई कर रहे हैं और अपने भविष्य को संवारने में जुटे हुए हैं.
आम लोगों को आज भी सम झ नहीं आ रहा है कि पढ़ाईलिखाई से ही सभी का भला होने वाला है. इस से भविष्य का निर्माण होने वाला है. पूजापाठ और धार्मिक कार्यों से पंडितों, पुजारियों, मठाधीशों, मौलवियों को जरूर फायदा होने वाला है, आम इंसानों को कुछ भी नहीं मिलने वाला. इस से सिर्फ आम लोगों के समय और धन की बरबादी होती है.
लोगों को एक बार जरूर सोचने की जरूरत है कि जो ऐसे धार्मिक स्थलों के निर्माण के लिए दान दे रहे हैं, उस से समाज को क्या फायदा मिलने वाला है? क्या इस से समाज के किसी वंचित वर्ग को फायदा होने वाला है? अगर नहीं तो फिर उस दान को ऐसी जगह क्यों न लगाएं जिस से समाज के किसी जरूरतमंद को फायदा मिले बजाय मंदिरमसजिद के, जो समाज के लोगों के बीच नफरत पैदा कर रहे हैं, पाखंड, ढकोसला, अंधविश्वास और मूर्खता को बढ़ावा दे रहे हैं.