रमाकांतजी और उन की पत्नी खाना खा कर उठे ही थे कि  फोन घनघना उठा. फोन उन के इंदौर शहर में ही रहने वाले समधीजी का था. वे बड़े घबराए स्वर में कह रहे थे, ‘‘भाई साहब नमिता को पेट में बहुत दर्द हो रहा है. मैं अपोलो हौस्पिटल ले कर जा रहा हूं.’’

रमाकांतजी ने झट गाड़ी निकाली और सपत्नीक हौस्पिटल पहुंच गए. उन्हें देख कर उन के समधी गुप्ताजी की जान में जान आई.

‘‘नमिताजी को हर्निया का दर्द है. तुरंत औपरेशन करना पड़ेगा,’’ डाक्टर ने जब गुप्ताजी को बताया तो वे घबरा गए, परंतु समधी रमाकांत और उन की पत्नी ने उन्हें हिम्मत दी, तो वे थोड़ा संभले और फिर औपरेशन करवाने के लिए तुरंत तैयार हो गए. 3 दिन हौस्पिटल में रहने के दौरान रमाकांत दंपती ने नमिता की जीजान से सेवा की. 3 दिन बाद हौस्पिटल से डिस्चार्ज हो कर घर आते समय रमाकांत ने गाड़ी अपने घर की ओर मोड़ दी.

नमिताजी ने जब समधी के घर जाने से मना किया तो रमाकांतजी की पत्नी बोलीं, ‘‘बहनजी, इसे समधियाना नहीं अपनी बेटी का घर कहिए. आप की बेटी और दामाद मुंबई में हैं. उन्हें आने में वक्त लगेगा. आप मेरी बहू की मां हैं, इसलिए जब तक आप ठीक नहीं हो जातीं आप और भाई साहब यहीं रहेंगे.’’

रमाकांत दंपती के अनुरोध पर गुप्ता दंपती कुछ न कह सके. 2 दिन बाद उन की बेटी और दामाद भी आ गए. फिर भी सभी एकसाथ एक ही घर में रहे. 15 दिन तक अपनी बेटी के ससुराल में सब के साथ रहने के बाद वे जबरदस्ती अपने घर गईं. परंतु इस दौरान समधी के यहां मिले प्यार, सम्मान और देखभाल की प्रशंसा करते गुप्ता दंपती आज भी नहीं थकते हैं.

सभी सम्मान के हकदार

भारतीय समाज पुरुषप्रधान है. अत: पुरातनकाल से ही लड़की के मातापिता को लड़के के मातापिता की अपेक्षा कमतर माना जाता रहा है, पर अब मान्यताएं बदल रही हैं. लड़कियों का पालनपोषण भी मातापिता लड़कों की ही तरह कर रहे हैं और आजबेटियां समाज में अनेक उच्च पदों पर आसीन हैं. अपने पति के बराबर और कई बार उस से भी अधिक वेतन पाने वाली लड़की किसी भी कीमत में अपने मातापिता को कमतर नहीं देखना चाहती.

आज अधिकतर दंपतियों की 1 या 2 संतानें होती हैं. बेटों की तरह आज बेटियां भी ताउम्र अपने मातापिता की जिम्मेदारी उठाना चाहती हैं. आत्मनिर्भर होने के बाद उन के लिए भी कुछ करना चाहती हैं. बेटी या बेटे के विवाह के समय हमें नए रिश्तेदार मिलते हैं, जो वास्तव में हमारे समान ही सम्मान के हकदार होते हैं. यह हमारा दायित्व है कि अहंकारी, नकचढ़े और स्वार्थी समधीसमधिन बनने के बजाय हम अपने इस नए रिश्ते को प्यार और मित्रतारूपी भाव से सींच कर प्रिय मित्र और सुलझे रिश्तेदार बनें. फिर देखिए कैसे यह रिश्ता आप के लिए खुशनुमा और बेशकीमती बनता है.

जिन परिवारों में बहू के मातापिता को उचित सम्मान प्राप्त नहीं होता, वहां बहू भी अपने सासससुर को समुचित मान नहीं दे पाती. रश्मि की मां जब भी अपनी बेटी से मिलने जाती हैं, तो उस की सास पूरे घर का काम छोड़ कर आराम करने लगती हैं या घूमने चल देती हैं. मांबेटी पूरा दिन घर के काम समाप्त करने में ही लगी रहती हैं. आचारव्यवहार में भी उस की सास यही जताती हैं कि मानो बेटी की मां हो कर रश्मि की मां ने कोई गुनाह किया है जबकि उन की बेटी रश्मि ही अपनी ससुराल का सारा काम संभालती है. इसलिए जब उस की ननदें अपने मायके आती हैं, तो रश्मि भी बीमार हो जाती है. वह भी घर का पूरा काम छोड़ कर बिस्तर पकड़ लेती है.

रश्मि कहती है, ‘‘जब मेरी मां को मेरे घर आ कर काम करना पड़ता है, तो फिर इन की बेटियां क्यों आराम से रहें?’’ आमतौर पर लड़के वाले स्वयं को लड़की के मातापिता से श्रेष्ठ समझते हैं, परंतु कई बार इस के उलट भी देखने में आता है. दीप्ति की बेटी की सास ग्रामीण परिवेश की कम पढ़ीलिखी महिला हैं. इसलिए जब पहली बार उन की समधिन अपनी बहू के मायके आईं, तो दीप्ति ने उन्हें हर बात में यह जताने की कोशिश की कि वे उन से अधिक स्टैंडर्ड, मौडर्न और शिक्षित हैं.

समधिन की पारखी नजरें सब समझ रही थीं, पर वे शांत रहीं. 2 दिन बाद जब वे जाने लगीं तो बोलीं, ‘‘बहनजी, मैं भले कम पढ़ीलिखी और गांव की हूं पर मैं ने अपने बेटे को इस लायक बनाया कि आप ने उसे अपनी बेटी दे कर दामाद के रूप में स्वीकार किया है.’’ दीप्ति खिसिया कर रह गईं. इस प्रकार का व्यवहार हमेशा के लिए मन में कटुता भर देता है और गाहेबगाहे आप की बेटी को ही इस का खमियाजा भुगतना पड़ता है. इसलिए आप की बेटी या बेटे के ससुराल वाले कैसे भी हों, हैं तो आप के दामाद या बहू के ही मातापिता, तो फिर उन के प्रति सदैव आदर का भाव रखें और संबंधों को सौहार्दपूर्ण बनाने की कोशिश करें.

जब भी आप के समधी घर आएं आप उन्हें वही मान दें, जो आप को उन के घर जाने पर मिलता है. कभी भी किसी भी अवसर पर उन्हें कमतर दिखाने की कोशिश न करें. सदैव याद रखें कि  बहू के मातापिता के प्रति किया गया आप का व्यवहार अपरोक्ष रूप से आप की बहू को प्रभावित करेगा. मेरी सहेली कांता जब भी अपने लिए कुछ खरीदती हैं, तो अपनी समधिन के लिए भी खरीदती हैं. इस से बहू गरिमा के मन में अपनी सास के लिए इज्जत और अधिक बढ़ जाती है. गरिमा कहती है, ‘‘मेरी सास मेरी मां के साथ बिलकुल वैसा ही व्यवहार करती हैं जैसा एक बड़ी बहन अपनी छोटी बहन के साथ करती है. उन के व्यवहार में कभी बड़प्पन या अहंकार नहीं झलकता. भला ऐसी सास को कौन प्यार नहीं करेगा.’’

उपहार लें तो दें भी

भारतीय समाज में अनेक रस्में और रिवाज ऐसे हैं, जिन में लड़की वाले को देना ही होता है. मसलन, विवाह बाद साल भर तक समस्त त्योहार चलाने की रस्म, गर्भावस्था के 7वें माह गोद भराई, संतानोत्पत्ति पर मुंडन संस्कार में वस्त्र व अन्य सामान आदि देने जैसी अनेक परंपराएं हैं. आप केवल लेने का भाव ही न रख कर उन के लिए भी उतना ही देने का भाव रखें. इस से कभी संबंधों में कटुता नहीं आ सकती.

अमिता के सासससुर बेहद सुलझे हुए हैं. जब उस के बेटे के मुंडन संस्कार में उस के मायके से ससुराल के हर व्यक्ति के लिए कपड़े और मिठाई आई, तो उस की सास ने भी उस के मायके के प्रत्येक सदस्य के लिए कपड़े और मिठाई भिजवाई, साथ ही यह भी कहा कि हमारे यहां भी तो नाती हुआ है. यह आप के लिए हमारी खुशी और प्यार है, जिसे आप को स्वीकारना ही होगा,’’ अमिता अपनी सास के इस कदम का गुणगान करते नहीं थकती. मेरी सहेली अंजू जब अपने बेटेबहू के साथ सिंगापुर घूमने गईं, तो जबरदस्ती अपने समधीसमधिन को भी ले गईं. अपने सासससुर के साथसाथ अपने मातापिता को भी विदेश घुमा कर बहू कृतिका अपने को गौरवान्वित अनुभव कर रही थी.

अंजू कहती हैं, ‘‘समधियों के साथ रहने से हमें एक अच्छी कंपनी तो मिलती ही है, साथ ही बहू को भी अपने मातापिता के लिए कुछ कर पाने का संतोष रहता है. मेरे बेटे की तरह उस ने भी तो अपने मातापिता के लिए कुछ सपने बुने होंगे. मेरा बेटा यदि हमारे लिए करना चाहता है, तो बहू भी अपने मातापिता के लिए क्यों न करे. उस के मातापिता ने भी तो उसे बनाने में हमारी तरह ही पैसा और परिश्रम खर्च किया है. ऐसे में अपनी बहू की इच्छाओं का मान रखना हमारा प्रथम दायित्व बनता है.’’ आजकल पतिपत्नी दोनों कामकाजी होते हैं. ऐसे में सब से कठिन होता है बच्चों का पालनपोषण. गरिमा कहती है, ‘‘मेरे ससुर और पापा यानी 2 समधियों ने मिल कर इस समस्या का बेहतरीन हल निकाला. जब मेरी बेटी हुई तो मम्मीजी ने उसे क्रैच भेजने से साफ मना कर दिया कि मेरे होते हुए मेरी पोती नौकरों के भरोसे नहीं पलेगी. वे और पापाजी हमारे पास आ गए. जब उन्हें किसी काम से जाना होता था, तो उस अवधि में मेरे मम्मीपापा आ जाते थे. मेरी बेटी आज 5 साल की है पर दादीदादा, नानानानी के प्यार के तले उस ने जो परवरिश पाई है वह मैं कभी भी नहीं दे सकती थी. चारों ने मिल कर हमारी समस्या को चुटकियों में सुलझा दिया.’’

बेटी के मातापिता का भी यह दायित्व बनता है कि वे अपनी बेटी को पति के साथसाथ ससुराल के सभी सदस्यों को साथ ले कर चलना सिखाएं. बेटी को कोई भी शिक्षा देते समय ध्यान रखें कि आप के घर में भी बहू है और वह भी किसी की बेटी है. श्रुति जब अपनी बेटी के विवाह के बाद पहली बार अपनी समधिन से मिलीं तो बोलीं, ‘‘भाभीजी, आप शुरू से ही बच्चों के पास रहने जाती रहिएगा ताकि इन्हें आप के साथ रहने की आदत रहे. अकसर लोग शुरू में तो बच्चों के पास जाते नहीं और फिर जब भविष्य में उन के पास जा कर कुछ दिन रहना चाहते हैं, तो बच्चों को अकेले रहने की आदत हो चुकी होती है, फिर वे मातापिता को अपने साथ ऐडजस्ट नहीं कर पाते.’’

श्रुति की समधिन आज भी कहती हैं, ‘‘मैं ने ऐसी पहली मां देखीं जिन्होंने अपनी बेटी को इतनी अच्छी सीख दी.’’ आप को अपने समधी की विवशता को भी समझना चाहिए. जैसाकि श्रीप्रकाशजी के साथ हुआ. वे जब आगरा अपने कुछ दोस्तों के साथ घूमने गए, तो अपने बेटे की ससुराल भी पहुंच गए. ससुराल में बहू के वृद्ध मातापिता ही थे. उन से जो बन पड़ा उन्होंने किया, परंतु श्रीप्रकाशजी की अपेक्षाओं पर वे खरे नहीं उतर पाए. उन्होंने घर जा कर बहू के मातापिता को खूब भलाबुरा कहा, ‘‘मैं अपने 4 दोस्तों को बड़े शौक से ले कर गया था. न ढंग का नाश्ता, न खातिरदारी, बस चायबिस्कुट में टरका दिया.’’

जबकि वे अचानक बिना पूर्व सूचना के पहुंच गए थे. ऐसे में उन के समधीसमधिन यथासंभव जो कर सके किया. आप को अपने रिश्तेदारों की विवशता को समझना चाहिए. ऐसे में जब भी आप उन के घर जाएं अपने साथ ही नाश्ता आदि का इंतजाम कर के ले जाएं ताकि आप के जाने से परेशानी की जगह उन्हें मदद हो. आप को उन की इज्जत अपनी इज्जत समझनी चाहिए.

ध्यान रखने योग्य बातें

– समधी चाहे दूर रहते हों या एक ही शहर में, कभी आप उन्हें बुलाएं और कभी आप उन के यहां जाएं. आपस में मिलतेजुलते रहने से प्रेम और सौहार्द बना रहता है.

– उन के आने पर उचित मानसम्मान और विनम्र व्यवहार करें ताकि वे दोबारा भी आने का साहस कर सकें.

– उन के आने पर बहू या दामाद की कमियों या बुराइयों का ही गुणगान न करें, बल्कि जितना हो सके उतनी तारीफ ही करें ताकि बच्चे के मातापिता आश्वस्त हो सकें.

– बहू के मातापिता के आने पर बहू को उन के साथ वक्त बिताने का अवसर दें. रीमा जब विदेश से अपने देवर की शादी में 1 सप्ताह के लिए आई, तो उस की सास ने उस के मातापिता को उस के कमरे में ही ठहराया ताकि वह अपने मातापिता के साथ वक्त बिता सके.

– जब भी आप जाएं अपने बजट के अनुसार छोटामोटा तोहफा अवश्य ले जाएं.

– यदि आप के समधी अकेले रहते हैं, तो उन के काम में हाथ बंटाएं और भोजन आदि में अनावश्यक तीमारदारी न करवाएं.

– मिलने पर भूत में हुई किसी अप्रिय घटना का जिक्र कर के ताना न मारें और न ही विवाह में हुई भूलचूक को दोहराएं. 

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