सौजन्य- मनोहर कहानियां

2008 में अहमदाबाद में 70 मिनट में अलगअलग 20 स्थानों पर जो 21 बम विस्फोट हुए थे, उस में 56 लोगों की जान गई थी. काफी कोशिशों के बाद क्राइम ब्रांच ने मजबूत सबूतों के साथ इस केस के आरोपियों को गिरफ्तार कर सलाखों के पीछे पहुंचा कर ही चैन की सांस ली.

26 जुलाई, 2008 की शाम को अहमदाबाद में हुए सीरियल बम ब्लास्ट के आरोपियों को कोर्ट ने आखिर सजा सुना ही दी. 14 सालों बाद 18 फरवरी, 2022 को अहमदाबाद की विशेष अदालत के विशेष जज श्री अंबालाल पटेल ने अपने 6,752 पेज के फैसले में 49 दोषियों में से 38 को फांसी और 11 को जीवन की अंतिम सांस तक जेल में रहने की सजा सुनाई. इस मामले में कुल 78 आरोपी थे. जिन में से 49 आरोपियों को दोषी करार दिया गया था. बाकी के 28 आरोपियों को दोषमुक्त कर दिया गया था.

इस के अलावा अदालत ने एक आरोपी को छोड़ कर बाकी आरोपियों पर 2.85 लाख रुपए का दंड भी लगाया है. जबकि आरोपी नंबर 7 पर 2.88 लाख रुपए का दंड लगाया है. आरोपियों द्वारा जमा कराई गई दंड की इस रकम में से मृतकों को एकएक लाख रुपए, गंभीर रूप से घायल को 50-50 हजार रुपए तथा सामान्य रूप से घायल को 25-25 हजार मुआवजा दिए जाने के आदेश दिए.

देश के इतिहास में पहली बार 38 लोगों को एक साथ सजा सुनाने का यह पहला मामला है. इस के पहले पूर्वप्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के मामले में 26 लोगों को एक साथ फांसी की सजा सुनाई गई थी.

अहमदाबाद की विशेष अदालत द्वारा जिन आरोपियों को सजा सुनाई गई  है, वे आरोपी अहमदाबाद, मध्य प्रदेश, बिहार और महाराष्ट्र की जेलों में बंद हैं. अब आइए थोड़ा उस मामले के बारे में जान लेते हैं, जिस में यह ऐतिहासिक फैसला सुनाया गया है.

26 जुलाई, 2008 दिन शनिवार की शाम थी. गुजरात के औद्योगिक नगर अहमदाबाद के रहने वाले लोग रोज की तरह अपने कामों में व्यस्त थे. किसी को क्या पता था कि वह दिन उन्हें एक ऐसा जख्म दे जाएगा, जिस की टीस उन्हें हमेशा सालती रहेगी. शाम होते ही पूरा शहर सीरियल बम धमाकों से दहल उठा था.

शहर में एक के बाद एक 70 मिनट में 20 स्थानों पर 21 विस्फोट हुए थे. जिस में 56 लोगों की मौत और 2 सौ से अधिक लोग घायल हुए थे. ये सारे बम विस्फोट शाम साढ़े 6 बजे शुरू हुए थे, जो 8 बज कर 10 मिनट तक होते रहे थे.

ये विस्फोट अहमदाबाद के हाटकेश्वर, नरोडा, सिविल अस्पताल, एलजी अस्पताल, नारोल सर्कल, जवाहर चौक, गोविंद वाड़ी, इसनपुर, खाडि़या, रायपुर चकला, सरखेज, सारंगपुर, ठक्करबापा नगर और बापूनगर में हुए थे.

इन में सब से पहला विस्फोट नारोल सर्कल और गोविंदवाड़ी सब्जी मंडी में हुआ था. सवा 6 बजे से साढ़े 6 बजे के बीच अहमदाबाद में सीरियल बम विस्फोट होने की चेतावनी पुलिस को पहले ही मिल चुकी थी.

पुलिस कुछ सोच पाती, उस के पहले ही साढ़े 6 बजे के बाद अहमदाबाद के अलगअलग इलाकों में एक के बाद एक बम विस्फोट होने की सूचना पुलिस कंट्रोल रूम को मिलने लगी थी.

अंतिम सूचना सिविल अस्पताल के ट्रामा सेंटर में विस्फोट होने की आई थी, जिस विस्फोट में सब से अधिक लोग मारे भी गए थे और घायल भी हुए थे.

इन विस्फोटों के कुछ ही मिनट पहले इंडियन मुजाहिदीन ने मुंबई के एक टीवी चैनल के औफिस में ईमेल भेज कर सीरियल विस्फोट की चेतावनी दी थी. यह ईमेल मुंबई के 3 अलगअलग स्थानों से किया गया था.

इस बात की जानकारी मिलते ही अहमदाबाद क्राइम ब्रांच  के एएसपी वी.आर. टोणिया और ऊषा राडा ने मुंबई जा कर पता किया था. वहां से पता चला था कि पहला ईमेल नई मुंबई के सानापाड़ा, दूसरा खालसा कालेज माटुंगा और तीसरा चैंबूर की एक प्राइवेट कंपनी से किया गया था. ये तीनों ईमेल इंडियन मुजाहिदीन ने एकाउंट हैक कर के किए थे. चेतावनी देने के साथसाथ इंडियन मुजाहिदीन ने सीरियल बम विस्फोट की जिम्मेदारी भी ली थी.

यह ऐसा समय था, जब आज की तरह सर्विलांस की टैक्नोलाजी नहीं थी. वहां सीसीटीवी कैमरे भी नहीं लगे थे. इसलिए गुजरात पुलिस के लिए यह मामला एक चुनौती था. फिर भी गुजरात पुलिस ने हार नहीं मानी और आरोपियों को पकड़ ही लिया था.

पुलिस ने सब से पहले एफएसएल की टीम बुला कर विस्फोटों में उपयोग में लाई गई सामग्री की जांच कराई थी. उसी के आधार पर अहमदाबाद की सभी जांच एजेसिंयों ने मामले की जांच शुरू की थी.

उस समय अहमदाबाद के क्राइम ब्रांच के प्रमुख आशीष भाटिया थे, जो इस समय गुजरात राज्य पुलिस के प्रमुख यानी डीजीपी हैं. आशीष भाटिया के नेतृत्व में क्राइम ब्रांच के अभय चूड़ासमा, गिरीश सिंघल, हिमांशु शुक्ला, राजेंद्र असारी, मयूर चावड़ा, ऊषा राडा और वी.आर. टोणिया जैसे होशियार अधिकारियों की एक टीम बनाई गई थी.

इन में 2 को टैक्निकल, 2 को औपरेशन और 2 को इंट्रोगेशन की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. आशीष भाटिया के आदेश पर मेहसाना के कांस्टेबल दिलीप ठाकोर अहमदाबाद आ गए थे. मोबाइल ट्रैकिंग के लिए जो भी जरूरत थी, अभय चूड़ासमा ने उस की व्यवस्था कराई.

उन्हें जो भी लीड मिलती, उस पर नजर रखने और दिशानिर्देशों की जिम्मेदारी आईपीएस हिमांशु शुक्ला को सौंपी गई थी. लाखों फोन काल्स में संदेहास्पद नंबर दिलीप ठाकोर ने खोज ही निकाले थे.

राज्य सरकार ने रखा 50 लाख का ईनाम

इस मामले की जांच क्राइम ब्रांच कर रही थी, इसलिए इस बात का डर था कि अगर सभी जांच एजेसियां एक साथ काम करेंगी तो आरोपी हाथ से निकल सकते हैं.

राज्य सरकार ने इस मामले का खुलासा करने वाली एजेंसी को 50 लाख रुपए ईनाम देने की घोषणा कर रखी थी, जिस की वजह से जांच एजेंसियों में क्रेडिट लेने की होड़ लग गई थी. इसलिए पूरी बात उस समय के राज्य के गृहमंत्री अमित शाह के सामने रखी गई. उन्होंने क्राइम ब्रांच को छोड़ कर सभी जांच एजेसिंयों को रुकने के लिए कहा था.

अहमदाबाद में विस्फोट हुए, उस के पहले जयपुर, हैदराबाद, मुंबई, दिल्ली सहित अन्य कई शहरों में विस्फोट हुए थे. पता चला कि उन्हीं को ध्यान में रख कर अहमदाबाद में भी विस्फोट किए गए थे. भारत में सिमी पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, जिस से सिमी से जुड़े सदस्यों को रेगुलर अहमदाबाद के एटीएस कार्यालय में हाजिरी देने आना पड़ता था.

विस्फोट के 2-3 दिन बाद हाजिरी देने आए 2 सदस्यों को क्राइम ब्रांच ने हिरासत में ले कर पूछताछ की, पर उन्होंने कोई जानकारी नहीं दी. लेकिन अहमदाबाद क्राइम ब्रांच के पास विस्फोट के एकाध महीने पहले आईबी से मिली जो जानकारी थी, जब उस के आधार पर पूछताछ की गई तो उन दोनों ने बताया कि वे दोनों अन्य राज्य में ट्रेनिंग लेने गए थे, जहां 40 से 50 अन्य युवक भी ट्रेनिंग ले रहे थे.

3 स्थानीय युवक भी सिमी में शामिल हुए थे. वे भी वहां ट्रेनिंग ले रहे थे. वे इस सीरियल विस्फोट में शामिल हो सकते हैं.

उन दोनों से मिली इस जानकरी के आधार पर क्राइम ब्रांच ने अहमदाबाद के रहने वाले और ट्रेनिंग के लिए गए उन तीनों युवकों में से एक को उठा लिया. उस से पूछताछ की गई तो उस ने बम रखने की बात स्वीकार कर ली. इसी के साथ उस ने आजमगढ़ के एक मौलवी का नाम बता कर कहा कि उसी ने सभी को ट्रेनिंग दी थी.

उस युवक द्वारा दी गई जानकारी से पता चला कि विस्फोट से कुछ दिनों पहले 15-20 लड़के अहमदाबाद में ठहरे थे. उन्होंने ब्रिज के नीचे किराए पर मकान लिया था, जिस की छत पर वे मीटिंग करते थे.

इसी के साथ पुलिस को वटवा में भी किराए का मकान लेने की जानकारी मिली. उसी युवक ने पुलिस को यह भी बताया था कि ये जो लोग किराए के मकानों में ठहरे थे, इन की मदद 4-5 स्थानीय लोगों ने भी की थी.

क्राइम ब्रांच जोड़ने लगी केस की कडि़यां

गैस सिलेंडर कालूपुर से लाया गया था. इसी जानकारी के आधार पर गैस सिलेंडर देने वाले को गिरफ्तार किया गया. इस के बाद पुलिस ने कुछ चश्मदीदों और तकनीकी संसाधनों की मदद से 15 अगस्त, 2008 को 11 लोगों को गिरफ्तार कर लिया था.

उसी दौरान विस्फोट में उपयोग में लाई गई 2 कारें भरूच में देखे जाने की जानकारी भरूच के कांस्टेबल याकूब अली ने अभय चूड़ासमा को दी थी. पुलिस ने जब इस बारे में जानकारी जुटाई तो पता चला कि विस्फोटों से कुछ दिनों पहले 4 युवक भरूच में कपड़े का व्यवसाय करने के बहाने किराए का मकान ले कर ठहरे थे. वहां वे 2 कारें ले कर आए थे. वहां वे 2 महीने रहे थे. विस्फोट होने के एक सप्ताह पहले वहां से चले गए थे.

अखबारों में कारों के फोटो देखते ही जिस आदमी ने उन युवकों को मकान किराए पर दिलाया था, उस ने यह बात अपने पड़ोसी को बताई थी. पड़ोसी ने यह बात पुलिस के मुखबिर से बताई.

इस के बाद यह जानकारी पुलिस तक पहुंच गई थी. फिर पुलिस ने जांच की तो पता चला कि ये कारें महाराष्ट्र से चोरी कर के लाई गई थीं. मकान किराए पर लेने के लिए उन चारों युवकों में से एक ने मकान मालिक को फोन किया था. इस तरह पुलिस को एक फोन नंबर भी मिल गया था.

पुलिस ने उस फोन नंबर की जांच की तो पता चला कि उस नंबर से दिल्ली और मध्य प्रदेश के एसटीडी पीसीओ पर फोन किए गए थे. इस के आगे पुलिस को उस नंबर से कोई जानकारी नहीं मिल सकी थी.

लेकिन पुलिस ने यह जरूर पता लगा ली थी कि वह सिमकार्ड कहां से खरीदा गया था. जब उस सिम को बेचने वाले वेंडर के पास पुलिस पहुंची तो उस ने बताया कि उस ने एक नहीं, 3 सिम उन लोगों को बेचे थे.

इस के बाद जब उन दोनों नंबरों की जांच की गई तो पता चला कि उन नंबरों से भी उत्तर प्रदेश, दिल्ली और मुंबई फोन किए गए थे.

एक फोन नंबर से एक लैंडलाइन नंबर पर फोन किया गया था. पर अहमदाबाद की क्राइम ब्रांच को उस की डिटेल्स नहीं मिली. लेकिन यह जरूर पता चल गया था कि वह नंबर दिल्ली का है. इसलिए उस नंबर के बारे में दिल्ली पुलिस को सूचना दी गई.

लेकिन इस के बाद दिल्ली में विस्फोट हुआ तो ये सारे के सारे नंबर बंद हो गए थे. पर सितंबर में हुए विस्फोट के बाद से दिल्ली पुलिस बहुत ऐक्टिव हो गई थी.

20 दिनों की जांच में अहमदाबाद क्राइम ब्रांच के हाथों कुछ खास नहीं लगा था. उसी दौरान पुलिस के हाथ एक ऐसा नंबर लगा, जो असली नाम और पते पर लिया गया था. जब उस नंबर के बारे में पता किया गया तो वह नंबर दिल्ली के जाकिरनगर के बाटला हाउस का निकला.

जांच के दौरान पुलिसकर्मी को मारी गोली

उस नंबर के बारे में पता करने के लिए एक पुलिसकर्मी प्राइवेट टेलिकौम कंपनी का एग्जीक्यूटिव बन कर इनक्वायरी के लिए उस पते पर गया.

दरवाजा खटखटाने पर किसी ने दरवाजा खोला तो पता चला कि अंदर 5-7 युवक थे. उन्हें शक हो गया कि यह आदमी टेलिकौम कंपनी का नहीं, पुलिस वाला है तो उन्होंने तुरंत फायरिंग शुरू कर दी थी, जिस में वह पुलिसकर्मी मारा गया.

इस के बाद पुलिस को चकमा दे कर 3 लोग भाग गए और 2 लोग बाथरूम में घुस गए. दिल्ली पुलिस ने उन दोनों को पकड़ लिया था. बाद में पूछताछ की गई तो पता चला कि वही लोग अहमदाबाद में विस्फोट करने आए थे. इस के बाद हिमांशु शुक्ला और मयूर चावड़ा को उत्तर प्रदेश भेजा गया.

याकूब अली दिलीप ठाकोर की लीड से जो नाम क्राइम ब्रांच के सामने आए थे, उन का संबंध विस्फोट से तो था, पर छोटी मछलियों को पकड़ने की घोषणा क्राइम ब्रांच करना नहीं चाहती थी, क्योंकि वह मुख्य सूत्रधार तक पहुंचना चाहती थी.

हिमांशु शुक्ला सुबह जब एयरपोर्ट पहुंचे तो उन्हें बताया गया कि उन्हें उत्तर प्रदेश के लखनऊ जाना है, जहां अबु बशर को पकड़ना है. 5-7 अधिकारियों के साथ वह लखनऊ पहुंचे और अबू बशर को उठा लिया. क्राइम ब्रांच की यह बड़ी सफलता थी.

पुलिस कस्टडी में आने के बाद अबू में इतनी ताकत नहीं थी कि वह मुंह बंद रखता. उस ने एक के बाद एक आतंक के पन्ने खोलने शुरू कर दिए.

दूसरी ओर महाराष्ट्र की पुलिस गाडि़यों के बारे में जांच कर रही थी. नंबरों के आधार पर जांच कर के मुंबई ने 2 वाहन चोर पकड़े थे. इन दोनों चोरों के माध्यम से 2 वाहन चोर और पकड़े गए. बाद में पकड़े गए दोनों चोरों ने अन्य 2 चोरों को गाड़ी देने का काम सौंपने की बात स्वीकार कर ली.

आगे की जांच में यह पूरा नेटवर्क पुणे से चलने का पता चला, जिस में 8-10 लोग शामिल थे. जो पुणे में हैडक्वार्टर बना कर वहां बम बनाते थे.

एकएक कर पकड़े गए 81 आरोपी

महाराष्ट्र पुलिस ने इस मामले में आगे बढ़ते हुए वहां पकड़े गए लोगों से पूछताछ की तो पता चला कि इन के लीडर मेंगलुरु के भटकल गांव में भटकलबंधु हैं. लेकिन पुलिस जांच करते हुए जब भटकल पहुंची तो पता चला कि भटकलबंधु फरार हो चुके हैं.

पर अब तक जो लोग पकड़े जा चुके थे, उन से पता चला था कि विस्फोट के पहले करीब 40 युवकों ने हालोल के पास पावागढ़ के नजदीक एक कैंप में ट्रेनिंग ली थी. उसी के बाद इस सीरियल बम विस्फोट की घटना को अंजाम दिया गया था.

अबू का मुंह खुलते ही धीरेधीरे

81 आरोपियों को पुलिस ने पकड़ लिया था. जिस में मुफ्ती अबू बशर, मोहम्मद कयामुद्दीन और आतंकियों के ग्रुप लीडर तौकीर भी शामिल था.

बम में टाइमर डिवाइस लगा कर विस्फोट के रूप में एल्युमीनियम नाइट्रेट का उपयोग कर के सिविल अस्पताल और एलजी अस्पताल में गैस सिलेंडर के साथ वाहन में बम रखे गए थे. जबकि अन्य जगहों पर साइकिल पर टिफिन बम रखे गए थे.

जयपुर की तरह यहां भी सभी भूरे रंग की पौलिथिन बैग में बम रखे गए थे. जैसेजैसे आरोपी गिरफ्तार होते गए, पुलिस चार्जशीट दाखिल करती गई. कुछ भाग गए थे, जिन्हें मध्य प्रदेश पुलिस ने गिरफ्तार किया था.

इस मामले की जांच 9 महीने तक चली थी. इस दौरान क्राइम ब्रांच की टीम को आदेश था कि सभी लोग सुबह 10 बजे औफिस आ जाएं. जबकि तमाम अधिकारी रात 2 बजे के पहले कभी घर नहीं जाते थे.

अपराध की गंभीरता को ध्यान में रख कर क्राइम ब्रांच की टीम के 6 एसीपी को इस मामले की जांच में नियुक्त कर दिया गया था. इस मामले की जांच गुजरात पुलिस के लिए एक चुनौती थी. इस का मास्टरमाइंड उत्तर प्रदेश का अबू बशर था. उसे सफलतापूर्वक पिक करना जरूरी था.

आशीष भाटिया गुजरात सरकार को समझाने में सफल रहे थे. उन्हें आदेश मिला था कि जरूरत हो तो चार्टर प्लेन का उपयोग करना. अबू बशर को पकड़ने गई टीम उसे लखनऊ से उठा लाई, तब तक इस बात की भनक किसी को नहीं लगी थी. इस मामले की जांच में 15 लाख रुपए केवल हवाई जहाज की टिकटों पर खर्च हुए थे.

मुंबई से कार द्वारा लाया गया था विस्फोटक

अहमदाबाद में हुए विस्फोट की जिम्मेदारी इंडियन मुजाहिदीन, हरकत उल जिहाद अल इस्लामी ने स्वीकारी थी. भटकलबंधु रियाज, इकबाल और यासीन इस पूरे मामले के मुख्य सूत्रधार थे. रियाज और इकबाल को गुजरात की क्राइम ब्रांच ने गिरफ्तार कर लिया था. यासीन भटकल एक अन्य मामले में दिल्ली की जेल में बंद है. उस के खिलाफ अब मुकदमा खुलेगा.

पूछताछ में पता चला था कि इस पूरे मामले की योजना केरल के जंगलों में बनी थी. गोधरा कांड के बाद हुए दंगों का बदला लेने के लिए बाघमोर के जंगल में विस्फोट की ट्रेनिंग दी गई थी. इस के बाद आतंकियों की एक टीम ट्रेन द्वारा अहमदाबाद आई थी.

विस्फोट मुंबई से कार द्वारा अहमदाबाद और सूरत लाया गया था. मुफ्ती अबू बशर ने स्लीपर सेल तैयार किया था. 13 साइकिलें खरीदी गईं और बम रखने के लिए स्लीपर सेल का उपयोग किया गया था.

पुलिस ने कुल 99 आतंकियों की पहचान की थी. विस्फोट के बाद अहमदाबाद में 20 और सूरत में 15 शिकायतें दर्ज कराई गई थीं. इन 35 शिकायतों को एक किया गया था.

पहचान किए गए आतंकवादियों में से 3 पाकिस्तान और एक सीरिया भाग गया था. 3 आतंकी अलगअलग राज्यों में सजा काट रहे हैं. एक एनकाउंटर में मारा गया था.

अहमदाबाद में हुए विस्फोटों से पहले ही आईबी के एक सिपाही ने गुजरात पुलिस को चेताया था. उस ने बताया था कि सिमी ने नया संगठन बनाया है, जो गुजरात में कुछ गलत करने की तैयारी कर रहा है. उस ने कुछ आतंकवादियों की गुप्त जानकारी देने के साथ नंबर भी दिए थे. पर इस सूचना पर उस समय किसी ने ध्यान नहीं दिया था.

1163 लोगों ने दी थी गवाही

आतंकवादियों का मंसूबा कितना खतरनाक था, इस का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने सूरत में भी 15 बम रखे थे. पर संयोग से उन में से एक भी बम नहीं फटा था.

इस बात की जानकारी मिलने के बाद सूरत के पुलिस कमिश्नर एम.एस. बरार भी अपनी टीम के साथ जांच में लग गए थे.

महत्त्वपूर्ण जानकारी के साथ उन्होंने डीसीपी वी. चंद्रशेखर को बेंगलुरु भेजा था. दूसरी ओर मामले की गंभीरता को देखते हुए बड़ौदा के पुलिस कमिश्नर राकेश अस्थाना ने शक के मद्देनजर कुछ लोगों को उठाना शुरू कर दिया था. उसी तरह भरूच के एसपी सुभाष त्रिवेदी भी काम में लग गए थे.

इस मामले में 1,163 लोगों की गवाही हुई थी, जबकि 1,237 गवाहों को छोड़ दिया गया था. कुल 51 लाख पेज की 521 चार्जशीटें दाखिल की गई थीं. 9,800 पेज की तो एक ही चार्जशीट थी. 6,000 दस्तावेजी साक्ष्य पेश किए गए थे.

कुल 7 जजों ने 14 साल तक इस मामले की सुनवाई की थी. तब कहीं जा कर यह ऐतिहासिक फैसला आया.

निचली अदालत ने तो दोषियों को सजा दे दी, पर अभी तो ये सभी दोषी हाईकोर्ट  फिर सुप्रीम कोर्ट जाएंगे. उस के बाद राष्ट्रपति के यहां. फांसी के तख्ते तक कौन पहुंचेगा, इस का इंतजार तो अभी लंबे समय तक करना होगा.

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