यूक्रेन की महिलाओं को यूरोप में सब से ज्यादा खूबसूरत समझा जाता है, तभी तो यहां की महिलाएं दुनिया भर के पुरुषों को आकर्षित करती हैं. लेकिन अब मौजूदा युद्ध के दौर में नजाकत से रहने वाली यहां की महिलाओं ने अपने देश की रक्षा के लिए बंदूक उठा ली है. अब यह देशभक्ति का जज्बा दिखाते हुए रूसी सैनिकों के सामने मोर्चा संभाले हुए हैं…
पूरी दुनिया में खासतौर से यूरोप में सब से से ज्यादा सुंदर यूक्रेन की महिलाएं और उस में भी राजधानी कीव की ही क्यों मानी जाती हैं? बारूद के धमाकों और धुएं के बीच यह सवाल पूछा जाना बेमानी नहीं है.
दरअसल, हर कोई देख और समझ भी रहा है कि यह युद्ध भी बहुत सी चीजों के साथसाथ सौंदर्य भी नष्ट कर रहा है. यूक्रेन को कुदरत ने तबियत से नवाजा है. वहां के दिलकश नजारे सचमुच आई कैचर हैं, खूबसूरत बीच और पहाडि़यां, झूमते फूल, इठलाते पेड़ और आलीशान गगनचुंबी इमारतें देख कर दिल वहीं रुक जाने को करता है.
कुछ दिन पहले तक जिंदगी यूक्रेन में बसती और मुसकराती थी. सड़कों पर रंगबिरंगी पोशाकें पहन कर चलते लोग बरबस ही हर किसी का ध्यान अपनी तरफ खींचते थे, इन में भी महिलाओं की तो बात ही निराली थी.
उन के नैननक्श और फिटनैस की मिसाल दी जाती है. पहनावे के मामले में यूक्रेन की महिलाएं बहुत रिजर्व हैं, जिन की ड्रैस पर रंगबिरंगे फूल दिखना आम है.
अजीब रंगत है यूक्रेन की. महिलाओं को मानो कटोरी भर मलाई में चुटकी भर सिंदूर डाल कर उन्हें नहला दिया गया हो. जिस की अपनी अलग ही कशिश होती है. उन की आंखें बोलती भी हैं, मुसकराती भी हैं और एक सौम्य न्यौता देती सी भी लगती हैं.
वे शोख चंचल और अल्हड हैं, चुलबुली हैं, मांसल हैं और नाजुक भी हद से ज्यादा हैं. औरत की परफेक्टनैस क्या होती है, यह यूक्रेन की महिलाओं को देख कर सहज ही समझा जा सकता है.
असल में यूक्रेन की महिलाएं बहुत सी पारिवारिक और सामाजिक बंदिशों से मुक्त हैं. लेकिन वे कतई उतनी उन्मुक्त नहीं हैं कि उन के बारे में कोई गलत खयाल या राय कायम की जाए.
इस में कोई शक नहीं कि वे आमतौर पर जिंदगी अपनी मरजी से जीती हैं. व्यक्तिगत जिंदगी से जुड़े मसलों मसलन शिक्षा, करिअर और शादी के फैसले लेने की उन्हें आजादी है.
वे बिंदास तरीके से शराब भी पीती हैं, लेकिन यह पूरे यूरोप की तरह यूक्रेन का भी कल्चर है, जिसे बुरी नजर से नहीं देखा जाता. यह खुलापन उन का हक है जो खुद उन्होंने हासिल किया है.
जब स्वाभिमान के लिए न्यूड भी हुईं
यूक्रेन की महिलाएं मरजी से सैक्स संबंध बनाती हैं और डेट पर भी जाती हैं. लेकिन इस का मतलब यह बिलकुल नहीं कि वे एकदम स्वच्छंद या ऐसीवैसी हैं. इस आजादी का इस्तेमाल वे अपने रिस्क पर करती हैं और अगर उन के चरित्र पर कोई अंगुली उठाता है तो वे इस का विरोध करते हुए आसमान सिर पर उठा लेती हैं. कैसे आइए इसे जानने के लिए 10 साल पीछे चलते हैं.
वह जनवरी, 2012 का तीसरा सप्ताह था, जब यूक्रेन का तापमान माइनस 4 डिग्री सेल्सियस था. हाड़ कंपा देने वाली इस ठंड में सैकड़ों यूक्रेनी महिलाएं कीव स्थित भारतीय दूतावास की छत पर प्रदर्शन करते नारे लगा रही थीं.
दिलचस्प बात यह कि वे सब टौपलैस थीं, जिन के हाथों में जकड़ी तख्तियों पर लिखा था ‘यूक्रेन इज नौट अ ब्रोथल’ यानी यूक्रेन वेश्यालय नहीं है और ‘वी आर नौट प्रास्टिट्यूट्स’ यानी हम वेश्या नहीं हैं.
मामला भी कम दिलचस्प नहीं था. तब मीडिया के जरिए यह खबर आम हुई थी कि भारतीय विदेश मंत्रालय ने रूस और किर्गिस्तान सहित यूक्रेन के दूतावासों को निर्देश दिए थे कि 18 से 40 वर्ष की उम्र की महिलाओं के वीजा आवेदनों की बारीकी से जांच की जाए. क्योंकि वे देहव्यापार करने भारत जाती हैं.
इस पर यूक्रेन में महिला अधिकारों के लिए अभियानपूर्वक काम करने वाली संस्था फेमेन ने इसे अपमानजनक बताते हुए अपने लोकतांत्रिक अधिकारों की दुहाई दी थी.
कुछ दिन बवाल मचने के बाद मामला ठंडा पड़ गया था. जाहिर है यूक्रेनी महिलाओं ने यह साबित कर दिया था कि वे अपने सम्मान और स्वाभिमान के प्रति सजग हैं और इस से कोई समझौता नहीं करेंगी. उन में गुस्सा और भड़ास इस कदर भरे थे कि उन्होंने तिरंगे को कथित रूप से रौंदा भी था.
लेकिन इस से इस सच पर परदा नहीं पड़ जाता कि यूक्रेन की युवतियां देहव्यापार करने भारत भी आती हैं क्योंकि यहां उन की भारी मांग है. कुछ छापों में वे पकड़ी भी गई हैं.
यूक्रेन में भी देहव्यापार प्रतिबंधित है लेकिन पूरी दुनिया की तरह वह वहां भी धड़ल्ले से होता है. यूक्रेनियन इंस्टीटयूट औफ सोशल स्टडीज की एक रिपोर्ट के मुताबिक साढ़े 4 करोड़ की आबादी वाले यूक्रेन में साल 2011 में कोई 50 हजार वेश्याएं थीं, जिन की तादाद अंदाजा है कि अब एक लाख के लगभग हो गई हैं.
इस एजेंसी के मुताबिक वहां हर छठी कालगर्ल नाबालिग है. दुनिया भर की एजेंसियां यूक्रेन को देहव्यापार का एक बड़ा अड्डा कह चुकी हैं और वहां ह्यूमन ट्रैफिकिंग और सैक्स टूरिज्म तेजी से फलफूल रहे हैं.
नाजुक हाथों में हथियार
बहरहाल, गैरत की हिफाजत और वकालात का यही जज्बा युद्ध के दिनों में भी दिखा, जब सारी नजाकत छोड़ते और भूलते जंग में महिलाओं ने भी मोर्चा संभाला. इस के पहले भी वे मर्दों के कंधा से कंधा मिला कर चलती रही हैं.
साल 2019 के आम चुनाव में 87 महिलाएं चुन कर संसद पहुंची थीं, जो कुल सदस्यों का 50 फीसदी होता है. सेना में हालांकि उन की भागीदारी महज 15 फीसदी है लेकिन युद्ध के दौरान यूक्रेन के गलीकूचों तक में हजारों महिलाओं ने रूसी सैनिकों से लोहा लिया.
मिस ग्रैंड इंटरनैशनल ब्यूटी कांटेस्ट 2015 में यूक्रेन की नुमाइंदगी करने वाली बला की खूबसूरत अनस्तलिया जिन्हें यूक्रेन की ब्यूटी क्वीन भी कहा जाता है, ने अपने इंस्टाग्राम हैंडल पर हथियार लिए कुछ तसवीरें पोस्ट कीं, जिस से महिलाओं का हौसला और बढ़ा था.
एक महिला सांसद किरा रुडिक ने भी इसी तरह की अपनी तसवीर अपलोड करते लिखा था कि अब यूक्रेन की महिलाएं पुरुषों की तरह अपनी धरती की रक्षा करेंगी.
देखते ही देखते ल्वीव की 33 वर्षीय केट माचिशिन सहित हजारों नाजुक कलाइयों ने रातोंरात एके 47 जैसे खतरनाक हथियार चलाने की ट्रेनिंग ली और फ्रंटलाइन पर आ कर रूसी सेना का मुकाबला किया.
केट जैसी हजारों महिलाओं का गुस्सा इस बात पर भी था कि रूसी सैनिक मासूम बच्चों की नृशंसता से हत्या कर रहे हैं और औरतों को अपनी हवस का शिकार बना रहे हैं.
हालांकि यह एक कड़वा सच है कि हरेक युद्ध में सैनिक महिलाओं को किसी सामान की तरह लूटते हैं. उन से सैक्स की अपनी जरूरत पूरी करते हैं और बाद में उन्हें मार देते हैं या मरने के लिए छोड़ देते हैं.
युद्ध औरतों के जिस्म पर ही नहीं, बल्कि उन की रूह पर भी कितनी बर्बरता और अमानवीयता से लड़े जाते हैं, यह भी रूस यूक्रेन की जंग के दौरान उजागर हुआ था. दूसरे विश्वयुद्ध के लोमहर्षक किस्सों में से एक जापान का है.
जापानी सैनिक चीनी, कोरियाई और फिलीपीनी लड़कियों को अपनी हवस का शिकार बनाते थे. छावनियों में लड़कियां सैक्स स्लेव की तरह रखी जाती थीं. एक चीनी युवती, जिस का नाम चोंग ओके सन है, का तजुर्बा बेहद भयावह है.
उस के मुताबिक जब वह महज 13 साल की थी, तब खेत पर जाते समय जापानी सैनिक उसे अगवा कर ले गए थे. दरजनों सैनिकों ने उस के मासूम जिस्म को उस के बेहोश हो जाने तक रौंदा. इस के बाद भी यह सिलसिला जारी रहा हो तो उसे याद नहीं.
दर्द और बेबसी से कराहती चोंग को जब होश आया तो वह कैद में थी. वह यह जान कर हैरान रह गई थी कि इस सैनिक अड्डे पर 400 के लगभग कोरियाई लड़कियां भेड़बकरियों की तरह ठुंसी हुई थीं. उन के शरीर पर नाम मात्र के कपड़े थे, लेकिन जख्म इफरात से थे.
जल्द ही लड़कियों को पता चल गया कि उन्हें कोई 5 हजार जापानी सैनिकों की हवस बुझानी है. औसतन एक लड़की से 40 सैनिकों ने बलात्कार किया.
इन औरतों को कंफर्ट वुमन नाम दिया गया था और जहां इन्हें रखा जाता था, उन्हें कंफर्ट स्टेशन नाम दिया गया. जुल्म की इंतहा यह कि जो लड़की विरोध करती थी, उस का खुले मैदान में गैंगरेप किया जाता था और उन्हें तड़पातड़पा कर मार दिया जाता था.
लड़कियां प्रैगनेंट न हों, इस के लिए उन्हें एक खास कैमिकल वाला इंजेक्शन, जिस का नाम नंबर 606 था, दिया जाता था. इस इंजेक्शन के ढेरों साइड इफेक्ट थे, लेकिन सैनिकों को इस से कोई सरोकार नहीं था. उन के लिए औरतें युद्ध में जीता हुआ माल होती थीं और आज भी कुछ बदला नहीं है.
औरतों की खूबसूरती होनहार ‘बहादुर’ सैनिकों के कदमों तले बेरहमी से रौंदी गई. अपनी मरजी से डेट पर जाने वाली खूबसूरत महिलाओं की मरजीनामरजी के कोई माने नहीं रह गए थे. उन्हें नोचनेखसोटने में रूसी सैनिक जापानी सैनिकों से उन्नीस नहीं रहे, जिन्होंने युद्ध औरत की देह पर लड़ा.
मुमकिन ही नहीं, बल्कि तय है कि सब कुछ शांत हो जाने के बाद कोई यूक्रेनी चोंग बताएगी कि उस के साथ कैसा सुलूक किया गया था.
युद्ध के दौरान मार्च के पहले सप्ताह में यूक्रेन के विदेश मंत्री दिमित्रो कुलेबा ने आरोप लगाया था कि रूसी सैनिक यूक्रेनी औरतों का बलात्कार कर रहे हैं. तब दहशत इतनी थी कि कोई खुल कर कुछ नहीं बोल पा रहा था.
गलत नहीं कहा जाता कि युद्ध में सब से ज्यादा दुर्गति महिलाओं की ही होती है. लड़े कोई भी लेकिन अंतत हारती औरत ही है. अपनी और अपनी अस्मत की हिफाजत के लिए यूक्रेनी औरतों ने हथियार उठाए तो यह भी उन की खूबसूरती का ही एक हिस्सा था.
नजाकत से रहना, मटक कर चलना, अदाएं दिखाना, मेकअप करना और रिझाना वगैरह आम दिनों में अच्छे लगते हैं पर युद्ध के दिनों में ये सब स्त्रियोचित हावभाव खुदबखुद गायब हो गए तो यह एक जरूरी मजबूरी थी, जिस पर यूक्रेनी बालाएं सौ फीसदी खरी उतरी हैं.
मुद्दत तक रहेगी दहशत
युद्ध के बाद लाखों यूक्रेनियनों को देश छोड़ कर पड़ोसी देशों में शरण लेनी पड़ी. इन में भी स्वभाविक रूप से महिलाओं की संख्या ज्यादा थी. उन्हें खानेपीने के लाले पड़ गए थे. वे बेघर हो गईं थीं.
जगहजगह उन के साथ ज्यादतियां हुईं और उन्हें जिस्म भी परोसना पड़ा. कितनी महिलाओं ने अपने पिता, भाई और पति को खोया, इस का हिसाब सालोंसाल चलेगा. कितनी औरतों के बच्चे उन से बिछड़ गए, इस का आडिट जब होगा तब होगा.
लेकिन यह तय है कि होंठों, आंखों और चेहरे सहित पूरे जिस्म से मुसकराने वाली यूक्रेनी महिला मुद्दत तक सदमे और दहशत में रहेगी. इस सूनेपन के रूस सहित सब जिम्मेदार हैं जो युद्धों के दुष्परिणामों को जानते हुए भी राष्ट्र और धर्म के नाम पर खामोश रह जाते हैं जबकि ये दोनों ही चीजें महिलाओं की वजह से हैं. उन के बगैर किसी राष्ट्र या धर्म का कोई अस्तित्व नहीं.
जो यूक्रेन महिलाओं की खूबसूरती की वजह से आकर्षण का केंद्र रहता था, वहां एक मुकम्मल सन्नाटा लंबे वक्त तक पसरा रहेगा. खंडहर केवल इमारतें नहीं हुई हैं, बल्कि यूक्रेन की आत्मा और चेतना भी तारतार हो गई है.
इस लड़ाई ने खूबसूरती की मिसाल बने देश को सदियों पीछे धकेल दिया है. फिर भी उम्मीद की जानी चाहिए कि यूक्रेन जल्द ही एक बार फिर आबाद होगा.
वहां की महिलाएं एक बार फिर शोखी से मुसकराती सड़कों, बीच और क्लबों में नाचती इतराती और इठलाती नजर आएंगी और दुनिया भर के लोग उन्हें देखने एक बार फिर यूक्रेन और कीव का रुख करेंगे.