Writer- Dipanvita Roy Banerjee

वे चारों डाइनिंग टेबल पर जैसे तैसे आखरी कौर समेट कर उठने के फिराक में थे. दिल के दरवाजे और खिड़कियां अंदुरनी शोर शराबों से धूम धड़ाका कर रहीं थीं.

नीना और लीना दोनों टीन एज बच्चियां अब उठकर अपने कमरे में चली गईं है और कमरे का दरवाजा अंदर से बन्द कर लिया है.

समीर और श्रीजा का चेहरा मेंढ़क के फूले गाल की तरह सूजा है, और उन दोनों के मन में एक दूसरे पर लात घुंसो की बारिश कर देने की इच्छा बलवती हो रही है.

” मै कुछ भी वीडियो फारवर्ड करूं ,किसी से कुछ भी कहूं ,तुम्हे क्या – तुमने मेरे मामले में दुबारा टांग अड़ाने की कोशिश भी की तो अंजाम देखने के लिए तैयार रहना! तुम औरत हो,देश और दुनिया के बारे में ज्यादा नाक न गलाओ! समझी?”

“अरे! इतनी क्यों कट्टर सोच है  तुम्हारी ! तुम सारे ग्रुप्स में फेक वीडियो डाल रहे हो ,भड़काऊ संदेश भेज रहे हो, कोरोना वाले लौक डाउन में जहां लोगों को शांत रहकर एक जुट होने का संदेश देना चाहिए, ताकि बिना वैमनस्य के लोग एक दूसरे की मदद कर सकें, तुम असहिष्णुता को बढ़ावा दे रहे हो, और मुझसे सहा नहीं जा रहा तो मै इसलिए चुप रहूं क्योंकि मै औरत हूं!”

“हां ,इसलिए ही तुम  मुझसे मुंह मत लगो! तुम लेडिस लोग समझती कुछ नहीं बस मुंह फाड़कर चिल्लाने लगती हो!”

“लडकियां भी समझ रही हैं, कि औरतों के प्रति तुम्हारा नजरिया कितना पूराना और कमतर है!”

“जानना ही चाहिए! उन्हें अपनी तरह नाच मत नचाओ!

औरत का जन्म है तो जिंदगी भर औरत ही रहेगी,मर्द बनकर  तो नहीं रह सकती!”

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उफ़ इसका क्या इलाज! बात बढ़ने से बच्चियां परेशान होंगी, श्रीजा मन मसोस कर रह गई.

कोरोना की वजह से लौक डाउन था.औफिस बंद था,यानी अब अपनी मर्जी का था,दवाब नहीं था. सैर सपाटा,दोस्ती यारी ,शराब कबाब बन्द था , बिन बताए घर से घंटों गायब रहना बन्द था, इस बन्द में सब कुछ तो बन्द था – फिर श्रीजा का खुलकर सांस लेना तो बन्द होना ही था ! मन लगाने को भड़काऊ संदेश फारवर्ड और पत्नी और बेटियों पर कट्टर पंथी सोचों का वार! लौक डाउन ने वाकई श्रीजा की जिंदगी तोड़ मरोड़ कर रख दी थी.

वह बेटियों के पास जाकर बैठ गई.छोटी बेटी ने पूछा – मां क्या पापा के दूसरे धर्मों के दोस्त नहीं है? मेरे तो बहुत सारे दोस्त हैं पक्के पक्के, जिनकी धर्म जाति  मुझसे अलग है.उनके घर जाती हूं तो पता तो नहीं चलता कि वे अलग धर्म के है, हम तो उनके घर खूब मज़े करते हैं!”

“बेटा खुराफात लोगों का यह अच्छा टाइम पास है! यहां इस लौक डाउन में  कितने ही लोगों को कितनी मुश्किलें हो रहीं हैं ,हम चाहे तो उन्हें मदद करें, ये क्या कि आपस में रंजिश बढ़ाएं! हर जाति धर्म में बुरे लोग होते हैं, जो अपराध करते हैं, उनका धर्म अपराध होता है, और कुछ नहीं! लेकिन कट्टर सोच वालों को कैसे समझाया जाय!”

“क्या हमारे पापा भी कट्टर ही हैं?”

“ये तुम खुद ही समझना , मै नहीं बता सकती!”

डिनर जैसे तैसे खत्म कर अब सोने की तैयारी थी.

निबाहना भी भारी काम है .श्रीजा को निभाना पड़ता ही है, बात सिर्फ बच्चों के भविष्य की ही नहीं, इस मरदुए से वो भी तो जाने अनजाने लगाव की डोर से बंधी है! दिमाग में कितनी ही भिन्नता हो, दिल में कितनी ही खिन्नता हो, निभाना सिर्फ निभाना नहीं, दिल का कहा मानना भी है!

काश ! पति अगर शांति प्रिय होता, उदार और समझदार होता, तो घर में ताला बन्दी कितनी रूमानी होती! हसरतें अनुराग से भरी भरी -बल्लियों उछलती पतिदेव के गले में झुल सी जाती!

पर यहां तो कूप मंडूक को देखते ही तन बदन में आग लहक जाती है!

कमरा साफ सुंदर, नीली रोशनी जैसे मादक नील परी सी अपनी चुनरी फैलाए थी!

करीने से बिस्तर लगाकर श्रीजा एक किनारे सिमट गई .

“श्रीजा ! इधर आओ ”

“मन नहीं है!”

“तुम्हारे मन से क्या होता है?”

“लौक डाउन!”

“वो बाहर है!”

“दिल में भी!”

“अरे! छोड़ो मै दिल की बात नहीं कर रहा!”

” मेरे घर का दरवाजा दिल से होकर गुजरता है! मेरा दिल चकनाचूर है! तुम देश वासियों में नफरत क्यों बांट रहे हो? उदार बनो,कट्टर नहीं! ”

“भाड़ में जाओ! इतना लेक्चर चौराहे पर जाकर दो!”

यार एक तो घर में कैद होकर रह गया ,ऊपर से तुम एटम बम फोड़े जा रही हो! घर है कि ब्लास्ट फर्नेस!”

“तुम ही बताओ! तुम भी कोरोना बम से कम हो क्या!

इतनी नफरत और उंच नीच का भेद भाव!”

अचानक  एक तकिया श्रीजा की पीठ पर आकर लगा. वो समीर की तरफ पीठ दिखाकर लड़ती जा रही थी, कि अचानक यह झटका !

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धमाके सा समीर मेन गेट खोलकर बाहर निकल चुका था.

दिमाग भन्ना गया था समीर का. आखिर एक औरत को इतनी हिम्मत पड़ी कैसे कि वह अपने पति से जवाब तलब करे ! कहीं उसने श्रीजा को ज्यादा ढील तो न दे दी? समीर अपने विचारों में इतना ही खो चुका था कि कब वह अपनी कालोनी से निकलकर मेन रोड में चलता जा रहा था उसे पता ही न चला!

होश तो तब हुआ जब पुलिस पेट्रोलिंग गाड़ी ने उसे आकर रोका!

“अरे !सर जी कुछ नहीं, बीबी घर में बड़ा चिक चिक कर रही थी!

मजाक है ?बिना मास्क बाहर घूम रहे हैं, वो भी रात के बारह बजे इस 144 में!”

लाख मिन्नतें कर किसी  तरह समीर पुलिस से जान छुड़ाने में कामयाब हुआ लेकिन पुलिस की गाड़ी उसे घर तक छोड़ने आई.

क्या हुआ मैडम! हम तो इन्हे थाने ले जा रहे थे.बड़ा गिड़गिड़ाया इन्होंने. क्या अनबन हो गई?”

“अहंकार के फुले हुए कुप्पे का यूं पिचक जाना श्रीजा के लिए बड़ा संतोष कारी था.उसने समीर की ओर भेद भरी नजरों से देख इतना ही पूछा- “क्या हुआ था

बताऊं?”

“अरे सर जी! गलती मेरी भी थी! अब घर के अंदर ही रहूंगा और बीबी की बात मानुंगा.”

श्रीजा के अंदर हंसी का गुबार भर भर निकलने को हुआ,लेकिन वो समीर के घिघियाए चेहरे को हंसी में टालना नहीं चाहती थी.

फिर से दोनो बिस्तर पर थे.समीर इस बार अपना खार खाया हाइड्रोजन बम दिल में ही दबाकर चुप सो गया!

करम फूटे जो ऐसी एटम बम को छुए!

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