Mother in Law & Dauther in law Relation : मौडर्न समय में रिश्ते जोरजबरदस्ती से नहीं बल्कि आपसी तालमेल से बनाने पड़ते हैं. तालमेल ऐसा जिस में दबनेदबाने की भावना न हो और एकदूसरे के प्रति सम्मान हो. सासबहू को ले कर समाज में परसैप्शन है कि इन का नेचर आपस में लड़ने?ागड़ने का है पर आज के बदले समय में सासबहू में तालमेल दिखाई देने लगा है. इवनिंग वाक से वापस आते हुए लिफ्ट में मेरे सामने रहने वाली मिसेज मौली अपने बेटे की पत्नी के साथ मिल गईं. अकसर सासबहू की यह जोड़ी मुझे आतेजाते मिल ही जाती है. उन्हें यों एकसाथ देख कर मैं ने कहा, ‘‘कहां चली यह सासबहू की खूबसूरत जोड़ी?’’ ‘‘मेला, मूवी और बाहर ही डिनर ले कर घर आने का प्लान है आंटी,’’ बहू आरती ने अपनी सास की ओर मुसकरा कर देखते हुए कहा.

‘‘वाह, आदर्श सासबहू हो आप दोनों,’’ मैं ने कहा तो बहू खिलखिलाते हुए बोली, ‘‘बाय द वे आंटी, क्या हम सासबहू लगती हैं?’’ ‘‘रियली नहीं, मुझे तो हमेशा आप दोनों मांबेटी ही लगती हो. अभी ही देख लो, दोनों ही जींसटौप में हो. मांबेटी भी नहीं, बहनें ही अधिक लग रही हो,’’ मैं ने हंस कर कहा तो वे दोनों खुश होते हुए चली गईं. सच में आज सासबहू की परिभाषा पूरी तरह से उलट गई है. मुझे अपनी मां का बहू रूप आज भी याद है जब उन के मुख पर घूंघट हुआ करता था. उसी घूंघट में वे घर के समस्त कार्यों को निबटाती थीं. घरबाहर सभी जगह पर मजाल है कि उन का घूंघट जरा सा भी ऊंचा हो जाए. उन की अपनी कोई मरजी न थी. बस, दादी के निर्देशों का पालन भर करना होता था. जब मैं बहू बन कर अपनी ससुराल आई तो घूंघट का स्थान सिर के पल्ले ने ले लिया और हमें घरबाहर के विभिन्न मुद्दों पर अपनी राय सासुमां के सामने रखने का अधिकार तो था परंतु अंतिम निर्णय सासुमां का ही होता था जो अप्रत्यक्ष रूप से घर के मर्दों का ही हुआ करता था.

 

आज की daugher in law परिवार में समानता का अधिकार रखती है. उस के पहनावे में साड़ी का स्थान जींसटौप, कुरतेलैगिंग्स और अन्य आधुनिक परिधानों ने ले लिया है. वह अपने पति के साथ कंधे से कंधा मिला कर खड़ी है. परिवार में उस की राय बहुत माने रखती है. न केवल पति बल्कि सासससुर भी उस की राय को तवज्जुह देते हैं. यह बदलाव सासबहू के रिश्ते में भी परिलक्षित होता है. वे आज सासबहू कम, मांबेटी, बहनें या दोस्त अधिक हैं. जो एकदूसरे को बखूबी सम?ाती हैं, साथसाथ शौपिंग करती हैं, मूवी देखती और घूमती हैं. एकदूसरे के बारे में उस की उम्र के मानसिक स्तर पर जा कर सोचती हैं और एकदूसरे का खयाल रखना भी बखूबी जानती हैं.

छोटा होता परिवार का आकार इस बदलाव का सब से बड़ा कारण है परिवार का छोटा होता आकार. मेरी बूआ के 4 बेटे थे. बूआ सदैव एक न एक बहू को अपने साथ रखती थीं. एक बेटेबहू से बिगड़ जाने पर कोई न कोई उन की देखभाल के लिए उपलब्ध रहता ही था. परंतु आज परिवार में एक या दो संतानें ही होती हैं. श्रद्धा कहती है, ‘‘आज की कटु सचाई तो यह है कि हम सासबहुएं एकदूसरे की पूरक बन गई हैं क्योंकि पहले की तरह आज कई बच्चे तो होते नहीं कि एक के पास नहीं पट रही तो दूसरे या तीसरे के पास चले जाएंगे. एक ही बेटा है और एक ही बहू. हमें उन के साथ और उन्हें हमारे साथ ही रहना है तो फिर क्यों न हंसीखुशी रहा जाए.’’ इसी प्रकार एक मल्टीनैशनल कंपनी में सीए के पद पर कार्यरत प्रियंका कहती हैं, ‘‘हमें उन की जरूरत है और उन्हें हमारी. आज सोसाइटी में इतना अधिक एक्सपोजर है कि बच्चों को कदमकदम पर किसी मार्गदर्शक की आवश्यकता होती है और वह मार्गदर्शक उन के ग्रांडपेरैंट्स से बढ़ कर कोई नहीं हो सकता.

 

‘‘उन के सुरक्षित हाथों में अपने बच्चों को छोड़ कर हम निश्चिंतता से काम कर पाते हैं. आजीवन अपने बच्चों के लिए खटने वाले मातापिता के लिए भी यह अपनी मेहनत को सफल होते देखने का स्वर्णिम पल होता है. उन्हें भी इस उम्र में किसी सहारे की आवश्यकता होती है और वह सहारा उन के बच्चों से अच्छा कोई नहीं हो सकता. थोड़े उन के और थोड़े हमारे बदलने से बात बन जाती है. ‘‘मेरे विवाह के इन 7 वर्षों में हम ने छोटेबड़े सभी त्योहार, बर्थडे, एनिवर्सरी जैसे सभी अवसरों को सदैव एकसाथ ही सैलिब्रेट किया है. यदि हम नहीं जा पाते हैं तो उन यादगार पलों में मम्मीपापा हमारे साथ होते हैं क्योंकि वे हमारी जौब की विवशताओं को भलीभांति सम?ाते हैं.

मेरे दोनों बच्चे अपने ग्रांडपेरैंट्स के साथ ही पलेबढ़े हैं.’’ बेटी की कमी पूरी करती बहुएं वर्तमान समय में जिन परिवारों में बच्चों के नाम पर केवल एक या दो बेटे ही हैं वहां पर बेटियों के लिए तरसती मां के लिए बेटे की पत्नी अर्थात बहू उन की बेटी की कमी को पूरी करती है. बेटी को ले कर अपने समस्त अरमानों को वे अपनी बहू के जरिए पूरा कर रही हैं. बहुएं भी अपनी सास को मां समान ही मानती हैं. परिधान, हेयरस्टाइल और ज्वैलरी का निर्धारण कर अपनी सास को आधुनिक और स्टाइलिश बना रही हैं. 2 बेटों की मां मेरी चचेरी बहन नीता का ही उदाहरण ले लीजिए. वह कहती है, ‘‘दूसरे बेटे के समय मुझे  बेटी की बड़ी चाह थी परंतु दूसरा भी बेटा होने के बाद बेटी की चाह मन में ही रह गई पर जब से बड़े बेटे का विवाह हुआ है, बहू रागिनी के रूप में मुझे बेटी मिल गई है.

बेटी वाले सारे अरमान मैं अपनी बहू के जरिए पूरा कर रही हूं. ‘‘कई बार तो अपनी कुछ नितांत निजी बातें, जिन्हें मैं पति के साथ भी शेयर नहीं कर पाती, बहू के साथ सा?ा करती हूं. अपनी मजबूत अंडरस्टैंडिंग के कारण हम बिना कहे ही एकदूसरे की बातें सम?ा जाते हैं.’’ इस के अतिरिक्त आज की सासें अपनी बहू की इच्छाओं का मान रखना भी बखूबी जानती हैं. अंजू को मैंटेनैंस के कारण कौटन पहनना कभी नहीं भाया परंतु कल वह बड़ी ही सुंदर कौटन साड़ी में थी तो मैं ने कहा, ‘‘तुम्हें तो कौटन पसंद नहीं था, फिर आज यह खूबसूरत कौटन साड़ी?’’ ‘‘बहू की पसंद है, उस का कहना है कि कौटन मेरे ऊपर बहुत फबता है, इसलिए अब यह मेरा भी पसंदीदा फैब्रिक हो गया है,’’ अंजू ने अपनी बहू की प्रशंसा करते हुए कहा. आत्मनिर्भर होती बेटियां पहले जहां बेटी को पढ़ालिखा कर उस का विवाह कर देना ही मातापिता अपना मुख्य दायित्व समझते थे,

 

वहीं आज के मातापिता बेटों की ही भांति बेटियों को भी पूरी तरह शिक्षित कर आत्मनिर्भर बना कर ही विवाह करते हैं. यही बेटियां आगे चल कर आत्मनिर्भर बहुएं बनती हैं क्योंकि लड़के भी आज नौकरीपेशा पत्नी को ही प्राथमिकता दे रहे हैं जो कंधे से कंधा मिला कर न केवल आर्थिक बल्कि जीवन के प्रत्येक मोरचे पर अपने पति का साथ निभा सके. कुछ मामलों में लड़कियों को बच्चे होने के बाद नौकरी छोड़नी पड़ती है. ऐसे में घर पर रहने के साथसाथ अपने परिवार की संपूर्ण देखभाल करने का दायित्व भी बहू का ही होता है. गौरव एक मल्टीनैशनल कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत है. प्रतिदिन गाजियाबाद से अपने औफिस दिल्ली जाने के लिए उसे सुबह 8 बजे निकलना पड़ता है. रात को 9 बजे ही घर वापस आ पाता है. ऐसे में पीछे रह गए वृद्ध सासससुर के साथसाथ 9 वर्षीय बेटे की शिक्षा का दायित्व भी गौरव की पत्नी गरिमा के कंधों पर है. गौरव स्वयं कहता है,

‘‘गरिमा मु?ा से कहीं बेहतर ढंग से घरबाहर सभी कुछ मैनेज कर लेती है. मेरे औफिस जाने के बाद पापामम्मी को डाक्टर के पास ले जाने से ले कर बेटे को पढ़ाने तक का सारा काम वही संभालती है और इसीलिए मैं अपने काम पर बेहतर ढंग से कंसन्ट्रेट कर पाता हूं.’’ सम?ादार होती सास आज की सास शिक्षित हैं. वे जानती हैं कि प्रतिदिन औफिस जाने वाली बेटे के बराबर पैकेज लेने वाली बहू को किसी भी प्रकार के बंधन, फिर वह चाहे रहनसहन हो या खानपान में बांधना अनुचित है क्योंकि बंधन जहां रिश्ते में खटास उत्पन्न करेगा वहीं आजादी रिश्ते की डोर को मजबूत और रेशमी बनाएगी. वे सम?ाती हैं कि आज की बहुओं को बेटी जैसी ही आजादी और प्यार दे कर ही उन का प्यार पाया जा सकता है. सुनंदा के पति जब बेटे के विवाह के बाद उस के पोस्ंिटग स्थल पर गए तो बहू को शौर्ट्स पहने देख कर अचंभित रह गए. अपनी पत्नी से दबे स्वर में बोले, ‘‘तुम ने इसे कपड़ों के बारे में कुछ नहीं सम?ाया?’’ ‘‘नहीं, मैं ने उसे अपनी मरजी से ही पहनने को कहा है.’’

‘‘तुम्हें पता है न, इस तरह के कपड़े घर की बहू पहने, यह बिल्कुल भी पसंद नहीं है मु?ो,’’ पतिदेव बोले. ‘‘ठीक है, मैं उसे साड़ी या सूट पहनने को कह देती हूं. परंतु फिर जब भी हम अपने बेटे के पास आएंगे तो बहू को अपने स्वाभाविक रहनसहन में परिवर्तन करना पड़ेगा जो निश्चय ही उसे और बेटे को पसंद नहीं आएगा और हमारा आना उन्हें भारस्वरूप प्रतीत होगा. ‘‘हम उन के साथ लंबे समय तक खुशीखुशी रह सकें, इस के लिए आवश्यक है कि हम उन के जीने के अंदाज और तौरतरीकों में अनावश्यक हस्तक्षेप न करें. उन्हें उन की जिंदगी अपने ढंग से जीने दें. जब बेटी पहन सकती है तो बहू क्यों नहीं? उस की भी तो इच्छाएं हैं. फिर आप जैसा कहें,’’ सुनंदा अपने पति को सम?ाते हुए बोली. ‘‘हां, शायद तुम ठीक कह रही हो. तुम्हारी सम?ादारी पर मु?ो गर्व है,’’ उन्हें भी अपनी पत्नी की बात जंच गई. समधीसमधन भी हो रहे प्यारे आज की बेटियां अपने मातापिता को ले कर बहुत पजैसिव होती हैं. उन की देखभाल करना वे अपनी जिम्मेदारी सम?ाती हैं.

मेरी बहन अनुजा ने इस मर्म को भलीभांति सम?ा लिया था. उस के बेटे ने जब सिंगापुर घूमने के लिए सुनंदा और उस के पति से भी चलने के लिए कहा तो वह बोली, ‘‘हम केवल तभी तुम लोगों के साथ चलेंगे जब स्निग्धा भी अपने मांपापा को साथ चलने के लिए तैयार करे.’’ स्निग्धा को तो मनमांगी मुराद मिल गई. वह तो कब से यही सोच रही थी परंतु संकोच में कह नहीं पा रही थी. अपनी सास की बात सुन कर वह सास के गले से लग गई और बोली, ‘‘मां आप कैसे मेरे मन की बातें बिना बोले ही सम?ा लेती हो?’’ सुनंदा कहती है, ‘‘मेरे ऐसा करने से बहू की नजरों में मैं बहुत ऊंची उठ गई. आखिर मेरे बेटे की ही भांति अपने मातापिता के लिए वह भी तो कुछ करना चाहती है, उस ने भी उन्हें ले कर कुछ सपने देखे होंगे. आखिर उस के मातापिता ने भी अपनी बेटी को आत्मनिर्भर बनाने में उतनी ही मेहनत और खर्चा किया है जितना हम ने, फिर उस के मातापिता के साथ भेदभाव क्यों?

‘‘कोई भी बहू अपने सासससुर का तभी मन से सम्मान कर पाएगी जब हम उस के मातापिता को सम्मान देंगे. प्रारंभ से ही हम ने ऐसा नियम बनाया है कि जब भी हम बेटेबहू के साथ घूमने जाते हैं तो बहू के मातापिता सदैव साथ में होते हैं. इस से हमें कंपनी तो मिलती ही है, बहू भी अपने मातापिता की ओर से नि रहती है जिस का सीधा असर हमारे परिवार के वातावरण और आपसी संबंधों पर परिलक्षित होता है.’’ आज बेटाबेटी का भेद पूरी तरह समाप्त हो चुका है. ऐसे में बहू के मातापिता को हेय नजरों से देखना अथवा उन्हें अपने से निम्नस्तर का सम?ाना सर्वथा अनुचित है. दरअसल, आज की लड़कियां अपने सासससुर के साथ बेटी बन कर रहती हैं. उन की प्रत्येक छोटीछोटी आवश्यकता का ध्यान रखती हैं. परंतु इस के साथ ही वे अपने मातापिता के लिए भी ससुराल के सदस्यों से मान और सम्मान की अपेक्षा रखती हैं जो सर्वथा उचित भी है. परंतु समस्या तब आती है जब अभिभावक अपने ही बच्चों के साथ कोई सम?ाता करने को तैयार नहीं होते.

जैसे, जब सासें अपनी बहू की भावनाओं का मान रखने की अपेक्षा अपने ईगो को ही सर्वोपरि रखने लगती हैं, जब अभिभावक बेटे द्वारा किए गए समस्त अनुचित कार्यों का दायित्व बहू पर डाल देते हैं, जब सासें बहुओं से आवश्यकता से अधिक अपेक्षाएं रखना प्रारंभ कर देतीं हैं अथवा बहू जब केवल ससुराल के अन्य सदस्यों की अपेक्षा अपने पति से ही मतलब रखती है, जब बहू अपनी मां के आगे सास को कुछ नहीं सम?ाती, जब अपनी ससुराल में भी मां की राय के अनुसार कार्य करती है और जब इन्हीं छोटीछोटी बातों को तूल दे कर बड़ा कर दिया जाता है तो यही छोटी बातें कब बड़ी हो कर रिश्तों में जहर घोलना प्रारंभ कर देती हैं, हम समझ ही नहीं पाते.

सासबहू का रिश्ता बेहद नाजुक होता है जिस के लिए सास और बहू दोनों को ही मानसिक रूप से तैयारी करनी होती है. सास को जहां बहू के हाथों अपना बेटा छिनता प्रतीत होता है वहीं बहू अपने पति पर एकाधिकार चाहती है. बहू यदि सास को ले कर शंकित और भ्रमित होती है तो सास भी चिंतित होती है कि वह अपनी बहू की कसौटी पर खरी उतर भी पाएगी या नहीं. रिश्ता कोई भी हो, उस की सफलता परस्पर समझदारी, विश्वास, सहयोग और समर्पण में ही निहित होती है. छोटीछोटी बातों को इग्नोर कर, एकदूसरे को यथोचित मानसम्मान दे कर और 2 पीढि़यों के अंतर को भलीभांति समझ कर व वक्त के अनुसार स्वयं में थोड़ा सा बदलाव कर के सासबहू के रिश्ते को अधिक खूबसूरत, प्यारा और आदर्श बनाया जा सकता है.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...