लेखिका- रीता गुप्ता
बिमला आंटी हैरानपरेशान सी इधरउधर हो रही थीं. सालों एक ही तरह से रहने की आदी हो चुकीं बुजुर्ग आंटी बदलाव की हलकी कंपन से ही विचलित हो उठती थीं.
दरअसल, बात यह थी कि आंटी जिस बिल्डिंग में 40 सालों से भी कुछ अधिक सालों से रह रही थीं, वह बेहद जर्जर अवस्था में आ चुका था. छत टपकने लगी थी, दीवारें कमजोर हो चुकी थी और प्लास्टर झड़झड़ कर बिल्डिंग को बीभत्स बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही थी. इस कारण बिल्डिंग वालों ने पूरी बिल्डिंग को ध्वस्त कर फिर से बनाने का सामूहिक निर्णय लिया था और तब तक वहां रहने वालों को दूसरी जगह शिफ्ट होने का निर्देश दिया गया था. उस बिल्डिंग में रहने वाले सभी फ्लैट ओनर्स ने खुशीखुशी सहमति और सहयोग दिया था सिवाय बिमला आंटी के.
85 से अधिक वसंत देख चुकीं, झुकी कमर, धुंधलाती नजर और क्षीण काया की आंटी अपने फ्लैट में लगभग अकेली ही रहती थीं. 4 बेटियोंदामादों, नातीनतनियों का भरापूरा परिवार था. बारीबारी सब आतेजाते और रहते भी थे. पर आंटी कभी नहीं जाती थीं उन के यहां. शायद ही उन्होंने कोई रात अपने फ्लैट से इतर बिताई हो. अब तो बेटीदामाद भी बुजुर्ग हो चले थे. आंटी अकेली रहती थीं और गृहस्थी को इस तरह से जमा कर सहेजा था कि 10 वर्ष पूर्व अंकल के गुजरने के बावजूद भी टकधुमटकधुम चल ही रही थीं.
सालों पुरानी महरी की चौथी पुश्त यानी कि उस की पोती इन के घर का एकएक काम और इन की देखभाल करती थी. महरी की पोतीपोतों को तो आंटी ने ही पढ़ाया था. उस की पोती एक ब्यूटीपार्लर में पार्ट टाइम काम करती और बाकी वक्त इन के काम.
वैसे घर में काम ही कितना होता था, चिड़िया सा तो पेट था आंटी का जो वह झटपट पका देती, बाकी वक्त तो आंटी को बाहर दुनिया की चटपटी कहानियां सुनाने में गुजरता था. ड्राइवर भी कुछ ऐसा ही खानदानी था जो इन का बैंक, दुकान, अस्पताल इत्यादि की जिम्मेदारियां पूरी करता था. अंकल सरकारी नौकरी से रिटायर हुए थे तो पेंशन अच्छीखासी मिलती ही थी और बाकी सारी जरूरतें उन की बेटियां पूरी करती थीं.
बिमला आंटी में एक बात और खास थी वे अन्य बूढ़ों की तरह मरने की बातें कभी नहीं करती थीं, उन में जीने की अदम्य इच्छा थी. जीवन जीने की लालसा ही उन्हें अब तक जीवित भी रखा था और सक्रिय भी. हां, सौ बातों की एक बात कि आंटी अपना फ्लैट नहीं छोड़ना चाहती थीं.
बिल्डिंग के ज्यादातर लोग घर खाली कर अगलबगल रहने चले गए थे, पर आंटी मानों जिद पर अड़ी थीं कि वे घर नहीं खाली करेंगी. उन की बेटियां समझासमझा कर हार गई थीं. बिल्डर की अंतिम नोटिस पर अब छोटी बेटी और दामाद आ कर रह रहे थे ताकि शिफ्टिंग का कार्य पूरा कर दिया जाए. बिल्डर को जो अतिरिक्त राशि देनी थी उस का भुगतान भी हो चुका था पर आंटी टस से मस नहीं हो रही थीं.
पर घर को खाली तो करनी ही थी सो समान शिफ्ट करने वालों को बुला लिया गया और घर खाली होनी शुरू हो गई. नजदीक तो कोई फ्लैट नहीं मिल पाया था इसलिए शहर के अगले छोर पर जाने की तैयारी हो रही थी. बेटीदामाद तो शहर छोड़ने की ही जिद्द कर रहे थे,”अम्मां, अब छोड़ो गृहस्थी का मोह, साथ रहो हमारे. क्या रखा है इस शहर में अब? इन फर्निचर को बांट दो और जो भी ले कर चलना है चलो हमारे साथ. देखो, मैं खुद 2 बरस पर आ पाई हूं,”60 की दहलीज पार चुकी बिटिया बारबार दोहरा रही थी.
“मैं कैसे चली जाऊं, मैं कैसे यहां से चली जाऊं?” आंटी धीमेधीमे लगातार बुदबुदा रही थीं.“अम्मां, जिद मत करो, देखो मेरे बाल सफेद हो रहे हैं. तुम साथ रहोगी तो मैं निश्चिंत रहूंगी न…” बिटिया आखिरी कोशिश कर रही थी. फिर खीज कर अपने पति की तरफ देख कर कहा,”अम्मां, शुरू से हम बेटियों को कमतर ही समझती रहीं और परायापन भी बरकरार रखा. आज भी देखो कैसे जिद कर रही हैं. न होगा तो मैं कुछ महीने नए घर में साथ रह जाऊंगी और सब सेट कर दूंगी.”
आंटीजी तो मानों किसी और ही दुनिया में चली गई थीं, बेटी की बातों को अनसुनी करते हुए,”मैं कैसे जा सकती हूं इस घर को छोड़ कर…” की रट लगाए हुई थीं.
अब बिटिया की भी आंखे भर आई थीं, पास आ कर उस ने आंटीजी को अपने अंक में भरते हुए कहा,”अम्मां, मान भी जाओ कि अब वह नहीं आएगा. आना होता तो कब का आ चुका होता. सुमेध नहीं आएगा यह मान जाओ प्लीज,” कहते हुए सुगंधा फफकफफक कर रो पड़ी.
शून्य में विचरते सूने नयन जाग्रत हो उठे,”ना मेरी सुग्गा, मत रो… मुझे उस पंडित ने कहा था कि सुमेध जिंदा है और एक दिन जरूर वापस आएगा. मुझे पंडितजी की बातों पर पूरा विश्वास है, देखो क्या किसी को उस के नहीं रहने का कोई प्रमाण मिला है? जब तक उस का शरीर नहीं मिलेगा हम कैसे मान सकते हैं कि तुम्हारा भाई नहीं रहा?” बिमला आंटी बेटी को समझाते बोल रही थीं. अब की पथराने की बारी सुगंधा के नयनों की थी.
सुमेध 4 बहनों का एकलौता भाई, और 4 लड़कियों के बाद उस का जन्म हुआ था तो वर्मा आंटी को लगा था कि उन का जीवन अब जा कर पूर्ण हुआ. लड़कियों को उच्च शिक्षित करने का कोई खास रिवाज नहीं था उन के घर में, सो सभी को जल्दीजल्दी ब्याह कर निबटा दिया गया. बेटे को खूब पढ़ाना था इसलिए जब ग्रैजुएशन के बाद उस ने अमेरिका जा कर पढ़ने की इच्छा जाहिर की तो, झट से मान ली गई.
सुमेध बहुत होशियार था पढ़ने में. वहां जा कर भी अच्छा रिजल्ट करता रहा. उस की नौकरी भी लग चुकी थी. जौइन करने से पहले वह देश आने का प्रोग्राम बना रहा था कि अचानक उस के गायब हो जाने की खबर आई.
35 साल हो गए होंगे लगभग इस बात को. वर्मा अंकल और आंटी विश्वास ही नहीं कर पाए कभी कि सुमेध जिंदा नहीं होगा. अमेरिका जैसे बड़े से देश में उन का बेटा गुम हो गया, यह बात उन की गले ही नहीं उतरती थी. दुख अनंत था, किसी के पालेपोसे, कमाऊ लड़के का अचानक से गायब हो जाना किसी पहेली से कम नहीं था.
उस वक्त आज की तरह संचार के साधन नहीं थे. हर संभव कोशिश की गई कि कुछ सुराग तो मिले, न दूतावास से कोई खास खबर मिली न उस के वहां के दोस्तों से. कोई कहता स्विमिंग पूल में डूब गया तो कोई कहता किसी ने मर्डर कर दिया. पर सुबूत? कोई तो सुबूत हो, बौडी तक नहीं मिला तो कैसे मान लिया जाए कि सुमेध नहीं रहा?
गहन अंधकार वाली रात थी. अंकलआंटी की पूरी दुनिया लुट चुकी थी. उलझनों में उलझ वे मानों न जीने में थे न मरने में. बारबार दिल यही कहता कि वह जिंदा है और एक दिन वापस जरूर आएगा. यही कारण था कि वे लोग कभी घर छोड़ कर नहीं जाते थे.“सुमेध को तो यहीं का पता मालूम है, हम कहीं जाएं और पीछे से वह आ जाए तो?”
किसी को यह बात बहुत मामूली लग सकती है, कई तर्क भी दिए जा सकते हैं, पर मां के दिल से बहस नहीं किया जा सकता. उस का अंतर्मन हमेशा यही कहता कि किसी कारणवश सुमेध उन्हें भूल गया है पर उस की तंद्रा एक दिन टूटेगी और वह वापस उस की आंचल में आ जाएगा. इस सोच के पीछे उस पंडित का भी बड़ा हाथ था जिस ने सुमेध की जन्मपत्री देख यह भविष्यवाणी की थी कि वह वापस जरूर आएगा.
जब उम्मीद के सारे रास्ते बंद दिखते हैं तो लोग पूजापाठ, टोनाटोटका, जन्मपत्री बंचवाने जैसे कर्म भी आजमाने लगते हैं, पर तब तक सिर्फ इंतजारइंतजार और इंतजार…साल दर साल गुजरते गए पर न ही सुमेध आया और न ही उस की कोई खबर. अंकलआंटी एकदूसरे से छिपछिप कर रोते. दोनों एकदूसरे से सुमेध की चर्चा तक नहीं करते कि अगला खुश और मुसकराता दिख रहा है तो उस की हंसी क्यों छिनी जाए. अकसर दोनों की आंखों में तिनका चला जाता था कि आंखे लाल दिखती थीं.
बेटियों ने बहुत सहारा दिया ताउम्र. उन बेटियों ने, जिन्हें पालनपोषण के क्रम में पराया धन ही समझा था. कभीकभी वर्मा दंपति बेहद अफसोस करते कि बेटियों को उन्होंने आत्मनिर्भर नहीं बनाया, क्या पता किसी बेटी को यह बेरूखी गहरी चुभ गई हो कि पुत्र को ज्यादा मानध्यान दिया जा रहा और उस की आह लग गई. मन हर कोठी भटकता कि आखिर क्या हुआ होगा? अमेरिका जाना आसान नहीं था और न ही कोई आतापता या सूत्र ही जिसे पकड़ सुमेध को खोजा जा सके, उस अनजान सुदूर देश में. हर आतीजाती सांसों के साथ अमेरिका को कोसते दोनों, जिस ने उन का बेटा निगल लिया.
दुख कहर बन कर टूटा पर दोनों ने कभी मरने की इच्छा नहीं की, ‘वह लौट कर आएगा एक दिन…’इस विश्वास ने उन की जिजीविषा को जाग्रत रखा. अंकल कोई 10 साल पहले गुजरे. उन दिनों उन की आंखों में आएदिन कोई तिनका मानों चुभा रहता, हर वक्त लाल जो रहती थी. आंटी जब पूछतीं कि आंखें लाल दिख रही हैं, तो अंकल का जवाब हाजिर रहता,”तुम्हें तो बस डाक्टर के पास मुझे ले जाने का बहाना चाहिए. कह तो रहा हूं कि टहलते वक्त आंखों में कुछ चला गया है. अभी ठंडे पानी के छींटे मारता हूं, निकल जाएगा…” और इस तरह दिनभर आंखें गीली रहतीं, तिनका निकला या नहीं पर एक दिन उन के प्राण अवश्य निकल गए. आंटी ने बेहद बहादुरी से उन की मौत को स्वीकार किया और अब अकेली ही सुमेध की राह देखने लगी थीं.
“अम्मां, देखो अब लगभग सभी कुछ जा चुका है, थोड़ेबहुत बचे हैं उन्हें मैं समेटती हूं,” सुगंधा ने ड्राइंगरूम की दीवारों से तसवीरों को उतारते हुए कहा. अपनी रौकिंग चेयर पर बगल में ही बैठी आंटी अभी भी, ‘मैं नहीं जाऊँगी’ की जाप कर रही थीं. सुगंधा ने अपने पिता की हार चढ़ी तसवीर को उतारा, कुछ क्षण को थम उन्हें देखती रही. कैसे तड़पते हुए गए अपने अंतिम समय में. काश कि भाई की कोई खबर ही मिल जाती… उस ने बेहद संभाल कर वर्मा अंकल की तसवीर को दीवार के सहारे खड़ा किया.
अब बस सुमेध की तसवीर बची थी, उस पर आज तक किसी ने हार नहीं चढ़ाया था. फोटो उतारने के पहले सुगंधा ने अपनी अम्मां की तरफ फिर देखा, ‘जाने अम्मां अब इस घर के दोबारा बनने तक जीवित भी रहेंगी या नहीं. पर अम्मां बड़ी अदम्य इच्छा शक्ति वाली हैं, सुमेध से मिले बिना नहीं ही जाएंगी,’ऐसा सोचतेसोचते उस ने तसवीर को दीवार से उतारा, ‘यह क्या गिरने लगा?’
फोटो के पीछे से एक मोटा सा लिफाफा फिसल कर गिर पड़ा जो गिरते हुए बिखर गया. यह क्या… यह तो तसवीरे हैं, दूतावास से आई कोई चिठ्ठी भी है. सुगंधा हाथ में तसवीर को थामे ही लेटर पढ़ने लगी. लेटर में लिखा था कि वर्षों बाद सुमेध के गायब हो जाने की गुत्थी सुलझ गई है. सुमेध अमेरिका प्रवास के दौरान किसी लड़की से प्रेम करने लगा था पर वह प्यार एकतरफा निकला. लड़की के इनकार करने पर सुमेध ने पुल से नदी में कूद आत्महत्या कर ली थी शायद, जैसाकि उस के किसी दोस्त ने आशंका व्यक्त की थी, बौडी बहते हुए कहीं दूर निकल गई थी और शायद चट्टानों के बीच फंसी रह गई थी.
लेटर में अफसोस जताते हुए कहा गया था कि हम आज भी यह बताने में असमर्थ हैं कि उस ने आत्महत्या की या उस की हत्या की गई या यह महज एक दुर्घटना थी. बहुत खोजबीन के बाद भी सही तथ्यों की जानकारी नहीं मिल पाई है पर इतना तय है कि वह मर चुका है. साथ में उस की पानी में फूली सड़ीगली सी शरीर की तसवीरें भी थीं. कुछ फोटो जूम कर लिए गए थे जिस में उस की कलाई की तसवीर थी, हाथ में चांदी के कड़े को उस ने तुरंत पहचान लिया. चिठ्ठी पर तारीख कोई 10 साल पहले की थी यानी अंकल ने सचाई जानने के बाद ही दुनिया छोड़ा था.
सुगंधा धम्म से नीचे बैठ गई. सुमेध की बिखरी तसवीरों के बीच और फफकफफक कर रो पड़ी. कुछ देर बाद मानों तंद्रा भंग हुई, नजर घूमा कर अम्मां की तरफ देखा, अम्मां अब भी रौकिंग चेयर पर ही थीं, आंखें मूंदी हुई थीं पर अब बुदबुदाना बंद था. सुगंधा तत्परता से सभी तसवीरों को समेटने लगी. अम्मां की नजर न पड़ जाए, यह सोच कर चिठ्ठी सहित सभी को दोबारा लिफाफे में भरने लगी. वह भी वही करेगी जो उस के पिता कर के गए थे. इन को कहीं ऐसी जगह छिपा देगी कि अम्मां की नजर नहीं पड़े.
जल्दी से अपने पर्स में डाल वह अम्मां को उठाने गई. छूते ही उन की देह एक तरफ झूल गई और आंचल से एक तसवीर फिसलते हुए नीचे गिर गई. सुगंधा को मानों करंट लगा, यानी अम्मां ने देख लिया था तसवीरों को बिखरते हुए.
कुछ ही पलों में वर्षों का इंतजार समाप्त हो चुका था और साथ ही साथ मानों अम्मां के जीने का मकसद भी. राह ताकती सूनी अंखियां अब सदा के लिए बंद हो चुके थे, चेहरे पर तल्लीनता थी, अम्मां जा चुकी थीं.