शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी और दूसरी बुनियादी जरूरतों पर वाहवाही व लोकप्रियता बटोरने वाली दिल्ली की केजरीवाल सरकार शराब के मुद्दे पर लड़खड़ा क्यों रही है. हर कोई इस का जवाब यही देगा कि राजस्व के लिए, क्योंकि किसी भी राज्य को जीएसटी के बाद सब से ज्यादा आमदनी शराब की बिक्री से ही होती है जो कि राज्य और कल्याणकारी योजनाएं चलाने के लिए जरूरी भी है. यह बेहद खोखला तर्क है क्योंकि अगर शराब से ही सरकार चलनी है तो इसे और सुलभ कर देना चाहिए. इस से राज्यों की आमदनी और बढ़ेगी और विकास भी धड़ाधड़ होगा.
हकीकत में शराब धर्म के बाद आदमी की सब से बड़ी दुश्मन है, जो उसे हर तरह से खोखला और बरबाद कर देती है. लेकिन कई सर्वेक्षणों में लोकप्रियता में नंबर वन की हैसियत हासिल करने वाले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पीनेपिलाने के मसले पर जरूरत से ज्यादा दरियादिली दिखा रहे हैं. इसी साल जून में दिल्ली सरकार ने शराब की औनलाइन बिक्री और होम डिलीवरी का फैसला लिया था जिस पर अदालत में मुकदमा भी चल रहा है. भाजपा सांसद प्रवेश वर्मा की ओर से दायर एक जनहित याचिका में सवाल यह नहीं उठाया गया है कि शराब की औनलाइन बिक्री से शराब को और प्रोत्साहन मिलेगा बल्कि पूछा यह गया है कि सरकार यह कैसे तय करेगी कि शराब और्डर करने वाला बालिग है या नहीं. उन्हें एतराज इस बात पर है कि शराब की होम डिलीवरी योजना में उम्र की निगरानी की कोई प्रक्रिया नहीं है. इस से कम उम्र लोगों को भी शराब मुहैया कराई जा सकती है.
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यह डर अपनी जगह जायज और सही है जिस पर दिल्ली सरकार के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने बड़ी मासूम दलील यह दी कि शराब की होम डिलीवरी की व्यवस्था किसी न किसी रूप में पिछले 25-30 सालों से है और इस से घर के बच्चों पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा. हाईकोर्ट ने भी दिल्ली सरकार से पूछा है कि वह उम्र की निगरानी और सत्यापन की बाबत क्या इंतजाम करेगी, इस का जवाब 18 नवंबर तक दे.
इस पर दिल्ली सरकार के एक और नामी अधिवक्ता राहुल मेहरा ने चुटकियों में समस्या यह कहते हल कर दी कि फिलहाल यह सिर्फ मौजूदा नियम में संशोधन है और अभी प्रभाव में नहीं आया है और जब भी यह प्रभाव में आएगा तो उम्र के सत्यापन के लिए ग्राहक से आधार कार्ड या दूसरा कोई प्रमाण लिया जाएगा जिस से उस की उम्र का पता चल सके. गौरतलब है कि अब दिल्ली में शराब पीने की वैधानिक उम्र 21 साल कर दी गई है. अब अदालत जो भी फैसला ले लेकिन यह साफ दिख रहा है कि न तो प्रवेश वर्मा को शराब के नुकसानों से कोई मतलब है और न ही दिल्ली सरकार इस बारे में कुछ सोच रही जिस ने जरा सी बात के लिए 2 वकील खड़े कर दिए, जबकि मालूम सब को है कि यह सब बचकाना और निरर्थक है और ठीक वैसा ही है कि 18 साल से कम उम्र वालों को तंबाकू, गुटखा और सिगरेट नहीं बेचे जाएंगे लेकिन बेचे धड़ल्ले से जाते हैं.
रही बात दिल्ली सरकार की उदारता की तो अब वह महिलाओं के लिए अलग शराब की दुकानें भी खोलने जा रही है जिस से वे सुकून से पी सकें और शराबी पुरुषों के जैसे नुकसान ?ोलने को तैयार रहें. ऐसे होते हैं नुकसान शराब के नुकसान गिनाना बाढ़ की तबाही और उस के दिखते हुए नुकसान गिनाने जैसी बात है जिस में डूबने और बहने वालों को भगवान अगर कहीं होता तो भी न बचा पाता क्योंकि शराब देवताओं का भी प्रिय पेय रहा है, बस, नाम उस का सोमरस था. इधर आम लोगों की बात और है जो अपनी गाढ़ी कमाई का बड़ा हिस्सा इस रंगीन पानी पर फूंक देते हैं, फिर कुछ सालों बाद लिवर, किडनी और फेफड़ों के मरीज हो कर अस्पतालों व डाक्टरों के चक्कर लगाते बचा पैसा कुछ और सांसों के एवज में उन्हें चढ़ा देते हैं और फिर एक दिन तड़पतड़प कर दुनिया से विदा हो जाते हैं. पीछे छोड़ जाते हैं रोताबिलखता अपना परिवार, पत्नी, बच्चे और बूढ़े मांबाप.
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नशामुक्त भारत यात्रा आंदोलन के राष्ट्रीय संयोजक डा. सुनीलम की मानें तो देश में हर साल शराब के सेवन से कोई 10 लाख लोग मर जाते हैं. युवा वर्ग दूसरे मादक पदार्थों सहित शराब का आदी होता जा रहा है. शराब की बिक्री से ज्यादा फायदा राजनेताओं, पुलिस और शराब माफिया को होता है. इसलिए पूरे देश में शराबबंदी लागू की जाए. कभी किसान नेता के रूप में चर्चित और लोकप्रिय रहे सुनीलम बैतूल की मुलताई विधानसभा से विधायक रह चुके हैं और अब बतौर समाजसेवी राष्ट्रीय शराबबंदी चाहते हैं. सुनीलम कभी सुर्खियों में नहीं रहते और न ही उन्हें किसी न्यूज चैनल के प्राइम टाइम में जगह मिलती है क्योंकि वे गांधीवादी हैं और गांधी के साबरमती आश्रम के कौर्पोरेटीरण के खिलाफ आश्रम बचाने को भी प्रतिबद्ध हैं. गुजरात सरकार ने साबरमती आश्रम के संचालकों को निकम्मा करार देते एक ट्रस्ट बना कर उस में अपनों को ठूंस दिया है. इस का विरोध करने वाले सुनीलम को हर समय धमकियां मिलती रहती हैं.
बतौर किसान नेता तो सुनीलम खूब हिट हुए थे पर बतौर शराबविरोधी सामाजिक कार्यकर्ता उन की बात कोई नहीं सुन रहा है. रही बात शराब के नुकसानों की तो वे किसी सुबूत के मुहताज नहीं जिन से पहले जेब खाली होती है, फिर इज्जत जाती है और फिर शराबी ही चला जाता है. यह कैसे होता है और इस से कितने लोग जीतेजी मर जाते हैं, इस बात को भोपाल की एक मराठी समुदाय की गृहिणी की जबानी सम?ों तो सम?ा आएगा कि शराब की हकीकत क्या है. इस महिला के पति एक मलाईदार विभाग में सरकारी अधिकारी थे. रिश्वत खूब मिलती थी, सो पीने की लत लग गई. ज्यादा काम वे इसलिए नहीं करते थे कि इस से आम लोगों का भला हो बल्कि इसलिए करते थे कि घूस ज्यादा मिले, जिस से वे ज्यादा से ज्यादा शराब पी सकें. 2 वर्षों में हालत ऐसी हो गई कि वे सुबह चाय की जगह भी शराब पीने लगे. पत्नी ने बहुत रोका, दोनों छोटी बच्चियों की दुहाई दी लेकिन इस का असर हो इस स्टेज को वे पार कर चुके थे और चौबीसों घंटे धुत्त रहने लगे थे.
एक दिन उलटियां हुईं तो भागेभागे डाक्टर के पास गए जिस ने स्पष्ट कहा कि शराब छोड़ दो तो ही बच पाओगे क्योंकि सारे और्गन ढंग से काम नहीं कर रहे हैं. अब वह आदतन शराबी भी क्या जो डाक्टर की सलाह मान ले. 3 दिनों में थोड़ा आराम लगा तो अस्पताल से घर जाते वक्त सब से पहले शराब की दुकान पर रुके और अपने पसंदीदा ब्रैंड की 3 बोतलें खरीदीं और घर आ कर 3 दिनों का कोटा पूरा कर सो गए. सो तो गए, पर सुबह उठे नहीं. वे तो अब जिंदा नहीं, वहीं उन के आश्रित ये तीनों कहने को ही जिंदा हैं. उन का छोड़ा पैसा धीरेधीरे खत्म हो रहा है. इस घटना के 2 वर्षों बाद एक दिन पत्नी कुछ कागजों की खानापूर्ति के लिए उन के औफिस गई तो बाहर निकलते वक्त ये शब्द कानों में पड़े, ‘वह जा रही है बेवड़े की बीवी.
साला खुद तो चला गया, इन्हें ठोकरें खाने के लिए छोड़ गया.’ शब्दों का चयन गलत था, लेकिन बात सही थी. यह पत्नी पति के जीतेजी कभी सुकून से नहीं रही क्योंकि पति आएदिन शराब के नशे में धुत्त रहता था और रोकनेटोकने पर मारपीट पर भी उतारू हो आता था. यही हाल हरेक शराबी का है जिसे अपनी जिम्मेदारियों से कोई वास्ता नहीं, जो चंद घंटों के नशे को ही जिंदगी का इकलौता सुख मान चुका है. वे हकीकत में जिंदगी की असली खुशियों से भागे हुए लोग हैं. असली खुशी घरपरिवार के साथ होशोहवास में मिलती है, जिंदगी की दुश्वारियों से लड़ने में मिलती है, घर के सदस्यों को सुखसुविधाएं मुहैया कराने में मिलती है, अपने हिस्से का काम मेहनत और ईमानदारी से पूरा करने में मिलती है. गम दूर होने की गलतफहमी लेकिन इन बहके हुए लोगों पर इन नसीहतों का कोई असर नहीं होता क्योंकि ये पलायनवादी एक भ्रम और वहम में जीते हैं.
इन्होंने सदियों से प्रचलित एक मंत्र को अपना लिया है कि शराब पीने से गम दूर होते हैं. अगर ऐसा होता तो दुनिया में कोई गम ही नहीं होता, सभी लोग धुत्त ?हो कर नालेनालियों में पड़े होते. गम के इन मारों की तेजी से बढ़ती तादाद बेहद चिंताजनक है. एम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में कोई 16 करोड़ लोग शराब पीते हैं. इन में से भी 5 करोड़ 57 लाख वे हैं जो बिना शराब के रह ही नहीं पाते, यानी आदतन शराबी हैं. खपत के लिहाज से देखें तो हर साल लगभग 600 करोड़ लिटर शराब लोग गटक जाते हैं. डब्लूएचओ की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि देश में प्रतिव्यक्ति शराब की खपत साल 2005 (प्रतिव्यक्ति 2.4 लिटर) के मुकाबले 2016 में दोगुनी (5.7 लिटर) हो चुकी थी जो और तेज रफ्तार से बढ़ रही है.
2 वर्षों पहले आई एक सरकारी रिपोर्ट में आसान भाषा में बताया गया था कि भारत में हर 5 में से एक आदमी शराब पीता है. यह बिलाशक अच्छी स्थिति नहीं है. इस के लिए सरकार की नीतियों को भी कम दोषी नहीं ठहराया जा सकता. यह ठीक है कि कोई सरकार आ कर लोगों के मुंह में पैग बना कर नहीं डालती पर दिल्ली और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में कोशिश यही की जा रही है कि यह आसानी से लोगों को सुलभ हो. इधर लोग भी कम नहीं हैं जो मौकेबेमौके पीनेपिलाने के बहाने ढूंढ़ते रहते हैं. घर में कोई पार्टी हो तो शराब, होली हो तो शराब, दीवाली हो तो शराब. ये और इस के जैसे दूसरे बहाने न हों तो भी शराब की महफिल जमाने के शौक ने शराब के चलन को खूब बढ़ावा दिया है. हर मौके पर दलील यही दी जाती है कि आखिर हर्ज क्या है थोड़ी सी पीने में. 4 दिन की जिंदगी है, उस में भी गमों का ढेर है. पी लेंगे तो जी लेंगे. शराब पर शेरोशायरी की भरमार है जिन में इस के नुकसान कम, फायदे ज्यादा बताए गए हैं. फिल्मों ने भी शराब को खूब बढ़ावा दिया है.
अधिकतर फिल्मों में हीरो मतलबबेमतलब शराब पीता रहता है. प्रेमिका की बेवफाई पर वह बार या ठेके पर ?ामता दिखता है. विलेन ने बहन का बलात्कार कर दिया या मांबाप की हत्या कर दी तो वह सीधे शराब के अड्डे पर जा कर बोतल गटकता नजर आता है. ये तमाम बातें और दृश्य लोग सीधेसीधे अपनी जिंदगी में उतार लेते हैं क्योंकि परदे का हीरो उन का रोल मौडल होता है. वे यह भूल जाते हैं कि वह फिल्म थी लेकिन हकीकत में जिंदगी की दुश्वारियां शराब पीने से और बढ़ती हैं. कोई 200 तरह की बीमारियां शराब से होती हैं जिन में कैंसर और डायबिटीज भी शामिल हैं. यानी शराब पीने से दुख और बढ़ता है, कम होने की तो कोई वजह ही नहीं.
जेब पर भारी स्टेटस सिंबल और सोसाइटी ड्रिंक बनती जा रही शराब कितनों को कंगाल कर चुकी है और कर रही है, इस का आंकड़ा किसी के पास नहीं. हां, घरों में ?ांक कर देखें तो महीने में 50 हजार से ज्यादा कमाने वाले लोग शराब पर औसतन 300 रुपए रोज खर्च करते हैं और 500 रुपए रोज कमाने वाले 60 रुपए रोज खर्च करते हैं. इस के लिए जाहिर है उन्हें घर के लोगों से आर्थिक ज्यादती करनी पड़ती है. इतने रुपयों में वे क्याक्या कर सकते हैं, इस का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है. पैसों की तंगी घरों में आएदिन की कलह की वजह बनती है जिस से जिंदगी का लुत्फ खत्म होता जाता है. पैसे के साथसाथ इज्जत भी जाती है. खुद शराबी भी इस बात को सम?ाते हैं.
लेकिन शाम होते ही तलब उन के सोचनेसम?ाने की ताकत खत्म कर देती है. अधिकांश शराबी या तो उधारी में जीते हैं या फिर कर्ज की दलदल में गलेगले तक डूबे रहते हैं. रिश्तेदारी और समाज में लोग इन से कतराते हैं. ऐसे कई नुकसानों के बाद भी लोग नहीं संभलते तो उन की अक्ल पर तरस ही खाया जा सकता है. औरतों को तो बख्शो यह ठीक है कि पूर्ण शराबबंदी मुमकिन नहीं, लेकिन सरकारी स्तर पर शराब को प्रोत्साहन एक निंदनीय कृत्य है जिस की निंदा कोई नहीं करता. दिल्ली और मध्य प्रदेश में महिलाओं के लिए अलग शराब की दुकानें खोलने की सुगबुगाहट सरकारों की बदनीयती और उन्हें पिछड़ा रखने की साजिश के तौर पर ही देखी जानी चाहिए. महिलाओं में भी तेजी से शराब का चलन बढ़ रहा है खासतौर से युवतियों में जो खुद कमा रही हैं. लेकिन पैसा गंवाने में वे अगर पुरुषों से इस तरह होड़ करेंगी तो उन के आगे बढ़ने के रास्ते में गड्ढे ही गड्ढे होंगे.
शराब को आधुनिकता का पैमाना, पुरुषों की बराबरी और फैशन सम?ाने की भूल महिलाएं कर रही हैं, यह बात इस से भी साबित होती है कि वे सरकार की इस पहल पर खामोश हैं जो आगे चल कर उन्हें काफी महंगी साबित होगी. इस के अलावा यह उन की इमेज पर भी ग्रहण लगाने वाली बात है. औनलाइन शराब डिलीवरी के जरिए, दरअसल, सरकारें उन्हें ही फांसने की साजिश कर रही हैं जिस का वक्त रहते विरोध नहीं हुआ तो वे अपना आत्मविश्वास खोने लगेंगी. महिलाओं में ब्रैस्ट कैंसर की एक अहम वजह शराब भी है. यह कई अध्ययनों से साबित होता रहा है.
इस के अतिरिक्त मां बनने में भी शराब का सेवन एक बड़ी बाधा है. अपने दौर की मशहूर फिल्म ऐक्ट्रैस मीना कुमारी शराब की लत के कारण तनहा रह गई थीं और तड़पतड़प कर मरी थीं. आज सभ्य और अभिजात्य महिलाओं को इस से सबक लेने की जरूरत है कि शराब से हासिल तो कुछ नहीं होता पर जो छिनता है उस की भरपाई असंभव है.