लेखक- रोहित

हम जिन चीजों को खुद से नहीं कर पाते उन चीजों को स्क्रीन पर होते देख संतुष्टि महसूस करते हैं. हत्या कभी भी उबाऊ चीज नहीं है. यह व्यक्ति के भीतर थ्रिल पैदा करती है, डराती है, हैरान करती है और संभावना में ले जाती है.

साल 2018, महीना अप्रैल अंत का रहा होगा, क्योंकि इन्हीं दिनों से ही मैं आमतौर पर हाफ स्लीव शर्ट और हवाई चप्पल पहनने की शुरुआत किया करता था. दिल्ली विश्वविद्यालय के पटेल चेस्ट में बिहारी चाट खाने के बाद मुझे मिरांडा हाउस कालेज बसस्टैंड के लिए निकलना था.

वहीं से ढेरों बसें कर्मपुरा के लिए निकलती थीं, जहां मेरा गंतव्य था. उस दिन पटेल चेस्ट से मुड़ते हुए सामने मिरांडा हाउस के बसस्टैंड पर एक बड़ा सा काले रंग का विज्ञापन पोस्टर चस्पां देखा, जिस के बीच में गोल आकृति में कुछ सुनहरे रंग का आध्यात्मिक सा डिजाइन बना हुआ था. आमतौर पर यहां छात्र संगठनों, खासकर एबीवीपी और एनएसयूआई के बड़ेबड़े पोस्टर लगा करते थे, जिन में बैलेट नंबर के साथ उन की बड़ी तसवीर होती थी, लेकिन इस बार मामला थोड़ा अलग था. मन में सवाल था कि कहीं यह किसी का विरोध करने का कोई क्रिएटिव तरीका तो नहीं? फिर सोचा, ऐसा भी क्या विरोध कि देखने वाले को समझ ही न आए कि विरोध किस का किया जा रहा है. मैं ने जिज्ञासावश पोस्टर के भीतर लिखे उन 2 शब्दों पर गौर किया, सोचा इन्हें टटोलना चाहिए कि आखिर यह है क्या? जेब से फोन निकाला, इंटरनैट पर शब्द टाइप किए ‘सैक्रेड गेम,’ यानी ‘पवित्र खेल.’ नाम दिलचस्प था. पता चला, दरअसल यह ऐक्टर नवाजुद्दीन सिद्दीकी और सैफ अली खान स्टारर क्राइम थ्रिलर वैब सीरीज थी,

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जिसे उस साल नैटफ्लिक्स पर 5 जुलाई को रिलीज किया जाना था और यह इस सीरीज का ही विज्ञापन पोस्टर था. इस सीरीज के माध्यम से नैटफ्लिक्स अपने प्रोजैक्ट को भारत में एक्सपैंड करने की योजना बना रहा था. मेरे लिए नैटफ्लिक्स या वैब सीरीज जैसा फौर्मेट नया था, शायद भारत में बहुत से मेरे जैसे अबूझों के लिए उस दौरान यह नया ही रहा होगा. यह सीरीज जब रिलीज हुई तो उस समय देशभर में पौपुलर हो गई थी. इस सीरीज की पौपुलैरिटी उन दिनों चल रहे मीम मैटीरियल से समझा जा सकता था. यह सीरीज एक आम लड़के के गैंगस्टर बनने की कहानी दिखा रही थी.

जिस ने बचपन में अपनी मां का कत्ल इसलिए कर दिया क्योंकि उस ने उसे किसी गैर मर्द के साथ बिस्तर पर जिस्मानी संबंध बनाते देख लिया था, जिस ने अपने बाप को अपनी मां की हत्या के आरोप में जेल भिजवा दिया और जो आगे के युवा जीवन में चरसगांजे की लत में रहा और चोरीचकारी, मारपीट करतेकरते मुंबई का सब से बड़ा गैंगस्टर बन गया. इस की थीम में मारधाड़, खूनखराबा, चालबाजी, षड्यंत्र सबकुछ था. हर कोई देर में कोई न कोई किसी न किसी को मार ही रहा है, यानी पूरी सीरीज फुल डार्क मसाले वाली थी. नैटफ्लिक्स के वाइस प्रैसिडैंट एरिक बरमैक ने जो दांव इस सीरीज के माध्यम से भारत में खेला था वह एकदम सटीक बैठा. विक्रम चंद्र के इसी नाम के नौवेल पर आधारित यह सीरीज रातोंरात हिट हुई और नैटफ्लिक्स भारत में अपने पैर जमाने में कामयाब रहा. बदलता सिनेमाई कल्चर युवा तबके में इस सीरीज के प्रति एक खास क्रेज था.

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यह वह दर्शक तबका था जो अनुराग कश्यप की ‘गैंग्स औफ वासेपुर’, ‘गुलाल’, ‘देवडी’, ‘ब्लैक फ्राइडे’, ‘रमन राघव 2.0’ इत्यादि देखते हुए इस सिनेमा की खोज में कब से बैठा हुआ था. अब इस खोज को निर्देशक अनुराग कश्यप ने ‘सैक्रेड गेम्स’ के माध्यम से उन सभी दर्शकों को फुल पैकेज में दे दिया जो कब से इस सिनेमा की तलाश में थे. उन दिनों प्रौढ़ युवा दर्शकों के लिए यह एक फोमो से कम नहीं था कि यदि किसी दोस्त ने यह सीरीज न देखी हो तो वह खुद को पूरे ग्रुप से आइसोलेट महसूस करता. देखा जाए तो सैक्रेड गेम्स के बाद इंटरनैट पर क्राइम थ्रिल देखने वाले खासे औडियंस तैयार हुए, साथ ही, ऐसे डार्क सिनेमा और हिंसा वाले कंटैंट को देखने वालों की तादाद तेजी से बढ़नी भी शुरू हुई. इसे देखते हुए तमाम निर्देशकों ने किसी सीरीज की अधिकतम सफलता के फौर्मूले के तौर पर क्राइम थ्रिलर सीरीज को चुनना शुरू किया.

यह एक बड़ा फैक्ट भी है कि भारत में अधिकतर चर्चित और सफल वैब सीरीज क्राइम थ्रिल जौनर वाली ही हैं. लोग इन्हें ही देखना पसंद कर रहे हैं. ये क्यों पसंद की जा रही हैं, इस पर बाद में आया जाएगा पर फिलहाल उन सीरीज पर गौर करने की जरूरत है जो खूब हिंसा परोस कर भी सब से अधिक देखी गईं. ओटीटी पर ‘सैक्रेड गेम्स’ की हम ने बात की जिस में क्राइम को खूब दिखाया गया, ठीक इसी तरह एमेजौन प्राइम की क्राइम थ्रिल जौनर वैब सीरीज ‘मिर्जापुर’ को पौपुलैरिटी मिली. इसे ले कर युवाओं में अलग सरीखा क्रेज देखने को मिला.

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समाज में भ्रष्ट नेताओं और बाहुबलियों का खात्मा चाहने वाला आम नागरिक जब ओटीटी पर इस सीरीज का दर्शक बनता है तो वह भ्रष्ट नेता और बाहुबली से ही प्रभावित दिखाई देता है. इस सीरीज के दर्शक लंबे समय तक इंतजार करते रहे और यह भारत में औल टाइम हिट वैब सीरीज रही. ऐसे ही ओटीटी प्लेटफौर्म ‘वूट’ पर पिछले वर्ष मार्च में आई वैब सीरीज ‘असुर’ में भी खूब क्राइम दिखाया गया. दर्दनाक हत्या, चीखपुकार, साइको किलर और पुलिस इन्वैस्टिगेशन के इर्दगिर्द इस सीरीज को चलाया गया. यह दर्शकों को पसंद ही इसलिए आई कि इस में मायथोलौजी घुसा कर क्राइम करने का अलग कौन्सैप्ट डाला गया. ऐसे ही मनोज बाजपेयी की ‘द फैमिली मैन’ के दोनों सीजन क्राइम आधारित रहे, जिन में राष्ट्रवाद का तड़का स्वादानुसार डाला गया. इस के साथ पिछले साल मई में आई विवादित और हिट वैब सीरीज ‘पाताल लोक’ क्राइम आधारित सीरीज थी.

जिस में जयदीप अहलावत मुख्य भूमिका में थे. ऐसे ही अभिषेक बच्चन और आर माधवन स्टारर ‘ब्रेथ’, डिज्नी हौटस्टार पर प्रसारित सुष्मिता सेन स्टारर ‘आर्या’, पंकज त्रिपाठी स्टारर ‘क्रिमिनल जस्टिस’, ‘जामताड़ा’, ‘अभय’, ‘शी’, ‘लैला’ इत्यादि कई चर्चित ऐसी वैब सीरीज रहीं जिन्होंने क्राइम जौनर बना कर ओटीटी को क्राइम थ्रिल प्रधान क्षेत्र बनाने में भूमिका निभाई. आज भी अगर किसी भी ओटीटी प्लेटफौर्म पर देखा जाए तो इन प्लेटफौर्म में क्राइम और थ्रिल का अलग सेगमैंट बना रहता है. यानी यह दिखाता है कि इस जौनर को पसंद करने वालों का अपना अलग ही बेस बन चुका है. यहां तक कि ओटीटी पर विदेशी सीरीज में से भारत में भी चुन कर उन सीरीज को पसंद किया जा रहा है जो क्राइम आधारित ही हैं. इस से ही समझा जा सकता है कि इन दिनों नैटफ्लिक्स पर प्रसारित कोरियन क्राइम ड्रामा वैब सीरीज ‘स्क्विड गेम’ काफी देखी जा रही है.

यह युवाओं के बीच काफी पौपुलर शो बन गया है. भारत समेत पूरी दुनिया में इस की रेटिंग टौप पर पहुंच गई है. देखा जाए तो अभी तक पूरी दुनिया में सब से ज्यादा देखे जाने वाले और रेवेन्यु कमाने में इस सीरीज का नाम सब से ऊपर आ गया है. सीरीज में पूरे 9 एपिसोड में सिर्फ खूनखराबा दिखाया गया है. शो में थ्रिल है, गरीबों और अमीरों के बीच की बहस को खड़ा करने की कोशिश भले की गई हो पर सीरीज को जिस तरह प्लौट किया गया है उस में काफी हिंसा है और जुर्म है. ऐसे ही ‘ब्रेकिंग बैड’, ‘मनी हेइस्ट’, ‘डेक्सटर’ जैसी कई क्राइम थ्रिल सीरीज भी पौपुलर रही हैं जो औल टाइम हिट की कैटेगरी में गिनी जाती हैं. देखा गया है कि ओटीटी पर रिलीज होने वाली वैब सीरीज या फिल्मों का कम से कम एकतिहाई हिस्सा अकेले क्राइम सेगमैंट का ही होता है. भारत में सिनेमा के प्रति दर्शकों का रुझान समय के अंतराल के साथ बदलता रहा है.

एक समय था जब अंगरेजों से आजादी मिलने के बाद दर्शकों के बीच शुरुआती समय में किसान प्रधान फिल्में देखने को मिलती थीं, फिर समय बदला, औद्योगिकीकरण बढ़ा और गांव का ‘भोला’ शहर शिफ्ट हुआ तो सिनेमा में मजदूरों ने एंट्री मारी, बड़ीबड़ी मिलेंकारखानें दिखे, कमर्शियल सिनेमा में भी हंसुआहथौड़ा उठाए हीरो दिखा जो खुद ही अमीरों से गरीबों को इंसाफ दिला रहा है, उन का नेता बन गया है. शहर जब आधुनिक हो गए तो 90 के दशक के बाद सिनेमा में भी रोजीरोटी से जुड़ी चीजें दरकिनार हुईं, रोमांस जरूरत बना. प्रेम युवाओं का अंतिम लक्ष्य रहा. प्रेम में मरमिट जाना, जान दे कर भी पा लेना, प्रेम के लिए घर से विद्रोह करना, समाज से लड़मर जाना आदि देखना सुकून देने लगा.

सिनेमा की बदलती इन चीजों ने दिखाया कि दर्शकों, जो कि उसी समय में आम नागरिक भी हैं, ने अपने दिमाग में जिस समय जिन चीजों की इच्छाएं पालीं, वे परदे पर उकेरी गईं. आज के दर्शक सिनेमा को ले कर दोफाड़ हो गए हैं. ठीक पुरानी तर्ज पर आज दर्शक वही चीजें देखना चाह रहा है जिन्हें वह हासिल नहीं कर सकता है. सीधे शब्दों में कहें तो किसी एक दर्शक के लिए अपने मन की दबी कुंठाएं, व्यक्तिगत इच्छाएं व भावनाएं, गुप्त तरीके से एक्सप्रैस करने का माध्यम ओटीटी बना है. ऐसा क्यों है, इस का एक आसान जवाब है. हमें अपराध की कहानियां पसंद हैं, हमें मौत से ज्यादा दिलचस्पी मौत के तरीके सुनने में आता है, हमें चीजों को सनसनी में देखने में मजा आता है क्योंकि यह हमारी आम जिंदगी में थोड़ाबहुत हलचल ला देता है, रोज की रूटीन जिंदगी में कुछ नया और संभावना से परे कर देता है,

यानी रोमांच ला देता है. ये रोमांच उन सभी चीजों से भरे हुए होते हैं जिन्हें करने की हमें परमिशन नहीं है. मानव कल्पना के वे सभी डार्कसाइड्स जिन्हें महसूस कर हमें पता रहता है कि हम इसे हकीकत में नहीं कर सकते हैं उसे स्क्रीन पर देख कर ही हम अपनी आत्मकुंठाएं पूरी करने की संतुष्टि हासिल करते हैं. ओटीटी में आने वाली क्राइम सीरीज हमें इसलिए रिलेट कर रही हैं क्योंकि इन चीजों को हम करना चाहते हैं लेकिन असल में कर नहीं सकते. कई सवाल क्राइम सिनेमा के माध्यम से लोग देख कर संतुष्ट हो रहे होते हैं. उदाहरण के लिए, अगर मैं ने अपने मालिक की हत्या कर दी तो क्या होगा? अगर मैं ने बैंक लूट लिया तो क्या होगा? क्या होगा अगर मुझे बंदूक के साथ सड़कों पर घूमने, दरवाजों को लात मारने और बिना किसी सजा के मुझे ऐसा महसूस करने वाले को गिरफ्तार करने की अनुमति दी जाए?

इसे और भी आसान भाषा में समझने के लिए एक बात यह कि ‘हत्या कभी भी उबाऊ नहीं है, चोरी कभी भी उबाऊ नहीं है, किसी के साथ मारपीट करना कभी भी उबाऊ नहीं है, इस में जोखिम हैं’ और ओटीटी आप को कुछ ऐसा ही दिखा सकता है जो आप ने अपने जीवन में नहीं देखा है, या करने में असंभव लगे, जिसे देख कर आप थ्रिल महसूस करें. इसलिए आप को ‘मिर्जापुर’ के कालीन भैया या मुन्ना भैया लाख बुरे हों, पर पसंद आ जाते हैं या ‘सैक्रेड गेम्स’ के गणेश गायत्वांडे भा जाते हैं, क्योंकि यह आप को संतुष्टि देता है. यह बात भले दर्शक जानते हों या नहीं, लेकिन आज निर्देशक इसे भलीभांति समझ चुके हैं.

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