कुछ दिनों पहले ये खबर आई थी कि असम की एक लड़की के खिलाफ 46 मौलानाओं ने फतवा जारी कर दिया है. लड़की के नाम और काम से पहले दिमाग में जिस शब्द ने जगह बनाई वो है ‘फतवा’. हर तरफ इस बात को फैलते भी देर नहीं लगी (इंटरनेट की मेहरबानी). आनन फानन में राज्य के मुख्यमंत्री से लेकर लेखकों तक के ट्वीट भी सामने आने लगे. रही सही कसर टीवी ने पूरी कर दी. असम के कई लोकल टीवी चैनलों ने इस मामले की कड़ी निंदा की. कुछ बुद्धिजीवियों ने असम के होजई जिले की तुलना सऊदी अरब से भी कर दी. पर अब जाकर इस पूरे मामले की सच्चाई सामने आई है.
जैसा की आजकल का चलन है, टीवी और अखबार की पत्रकारिता की गलितयों को वेबसाइट खोज निकालते हैं. कुछ ऐसा ही इस मामले में भी हुआ. कुछ अंग्रेजी वेबसाइट ने अब इस मामले की हकीकत बताई है. इंडियन आइडल जूनियर फेम सिंगर को यह सारा मामला मीडिया से ही पता चला. इसका मतलब 46 मौलानाओं ने उन्हें व्यक्तिगत तौर पर कोई नोटिस या तथाकथित फतवा नहीं भेजा था. ओपीनिय मेकर मीडिया ने नाहिद के लिए भी ओपीनियन तैयार कर दिया था.
फतवे पर नाहिद ने लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को एक ही जवाब दिया, "फतवे के बारे में सुनकर मुझे बहुत दुख हुआ. मै बहुत रोई. पर मुझे लगता है कि मेरा संगीत अल्लाह का तोहफा है. मैं ऐसी धमकियों के आगे झुककर अपना संगीत नहीं छोड़ूंगी." असम में लगा यह तथाकथित फतवा 24 घंटे के अंदर हर मीडिया चैनल पर छा गया. ब्रेकिंग की खबर बन गई वो खबर, जो असल में कोई खबर थी ही नहीं. प्राइम टाइम के गाली-गलौच में निष्कर्ष यह निकाला गया कि असम में भी तालिबन स्टाइल के फतवे जारी होने लगे हैं, जो लोकतंत्र के लिए एक बड़ा खतरा हैं.
कुछ अंग्रेजी के अखबारों ने तो यह तक कह दिया कि नाहिद ने आईएसआईएस और आतंकवाद के खिलाफ गाने गाए हैं. और वे इस बात की जांच करेंगे कि क्या फतवा इसी कारण जारी किया गया था. असल में कोई फतवा जारी ही नहीं किया गया था. इसका सबूत है वो लिफलेट जिस पर 46 मुस्लिमों ने दस्तख्त किए हैं. यह असमिया भाषा में छापा गया और इसे होजई और नागांव जिलों में बांटा गया.
गौरतलब है कि इस लिफलेट में 25 मार्च को असम के लंका इलाके के उदाली सोनई बीबी कॉलेज में होने वाले कार्यक्रम का जिक्र किया गया है, पर उसमें कहीं भी नादिरा का नाम नहीं है. लिफलेट के ऊपर ‘गुहारी’ लिखा है और लिफलेट में यह अपील की गई है कि ईदगाह, मदरसों, कब्रिस्तान और मस्जिदों से घिरे उदाली सोनई बीबी कॉलेज में अगर नृत्य-संगीत जैसे कार्यक्रम होंगे तो लोगों को अल्लाह का कहर झेलना होगा. यह शरीया कानून के खिलाफ है.”
ऐसी बातों का कोई तुक नहीं बैठता. पर गलत खबर फैलाने का भी कोई तुक नहीं है. लिफलेट में कुछ दिनों पहले हुए जादूगरी के शो का भी जिक्र किया गया है और बच्चों को ऐसे कार्यक्रमों से दूर रहने की हिदायत दी गई है. जिन 46 लोगों ने लिफलेट पर दस्तखत किए हैं वे मदरसों के शिक्षक और असम स्टेट जमियत उलामा के सदस्य हैं.