लेखिका- अर्विना
शाम धुंध में डूब चुकी थी. होटल की ड्यूटी खत्म कर रंजना तेजी से कैमिस्ट की दुकान पर पहुंची. उसे देखते ही कैमिस्ट सैनेटरी पैड को पेक करने लगा. रंजना ने उस से कहा कि इस की जगह मैंस्ट्रुअल कप दे दो. कैमिस्ट ने एक पैकेट उस की तरफ बढ़ाया. मधुकर सोच में पड़ गया. यह नौजवान मैंस्ट्रुअल कप क्यों ले रहा है? ऐसा लगता तो नहीं कि शादी हो चुकी हो. शादी के बाद आदमियों की भी चालढाल बदल जाती है. इस से बेखबर रंजना ने पैकेट को अपने बैग में डाला और घर की तरफ कदम बढ़ा दिए. रंजना बीचबीच में अपने आजूबाजू देख लेती. सर्दियों की रात सड़क अकसर सुनसान हो जाती है. रंजना को पीछे से किसी के चलने की आहट लगातार सुनाई दे रही थी, पर उस ने पीछे मुड़ कर देखना उचित नहीं सम झा, अपनी चलने की रफ्तार बढ़ा दी. अब उस के पीछे ऐसा लग रहा था कि कई लोग चल रहे थे.
उस के दिल की धड़कनें बढ़ गई थीं. डर से चेहरा पीला पड़ गया था. घर का मोड़ आते ही वह मुड़ गई. कदमों की आहट अब सुनाई नहीं दे रही थी. यह सिलसिला कई दिनों से चल रहा था. कदमों की आहट गली के मोड़ पर आते ही शांत हो जाती थी. रंजना घर में भी किसी से इस बात का जिक्र नहीं कर सकती. नौकरी का बहुत शौक तो था. घर की माली हालत अच्छी थी. वह तो बस शौकिया नौकरी कर रही थी. वह औरतों के हकों की पक्षधर थी, पर खुद को छद्म वेश में छिपा कर ही रखती थी. साजसिंगार की जगह मर्दों की वेशभूषा में रहती. रात में लौटती तो होंठों पर लिपस्टिक और आईब्रो पैंसिल से रेखाएं बना लेती. अपनी ब्रा या अंदरूनी कपड़े कस कर के पहनती, ताकि उभार दिखाई न दें. इस से रात में जब लौटती तो डर नहीं लगता था. लेकिन कुछ दिनों से पीछा करती कदमों की आहट ने रंजना के अंदर की औरत को सोचने पर मजबूर कर दिया. उस ने घर के गेट पर पहुंच कर अपने होंठ पर बनी नकली मूंछें टिशू पेपर से साफ कीं और नौर्मल हो कर घर में मां के साथ भोजन किया और सो गई.
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अगले दिन होटल जाते हुए रंजना ने सोचा कि आज वह जरूर देखेगी कि कौन उस का पीछा करता है. रात जब रंजना की ड्यूटी खत्म हुई, तो वह बैग उठा कर घर की ओर चल दी. अभी कुछ ही दूर चली थी कि पीछे आहट सुनाई दी. रंजना ने हिम्मत कर के पीछे देखा. घने कुहरे की वजह से कुछ दिखाई नहीं दिया. एक साया धुंधला सा दिखाई दिया. अब जैसे ही रंजना पलटी काले ओवरकोट में एक अनजान मर्द उस के सामने खड़ा था. रंजना को इतनी सर्दी में पसीना आ गया, शरीर कांपने लगा. आज लगा कि औरत कितना भी मर्द का छद्म वेश बना ले, शारीरिक तौर पर तो वह औरत ही है. फिर भी रंजना ने हिम्मत बटोर कर कहा, ‘‘मेरा रास्ता छोड़ो. मु झे जाने दो.’’ ‘‘मैं मधुकर, तुम्हारे होटल के करीब एक आईटी कंपनी में सौफ्टवेयर इंजीनियर हूं.’’ ‘‘तुम इस होटल में काम करते हो, यह तो मैं जानता हूं. तुम शादीशुदा हो क्या?’’ रंजना ने नहीं में गरदन हिलाई. रंजना जरूरत से ज्यादा डर गई. उस का बैग हाथ से छूट गया. सारा सामान बिखर गया. रंजना अपना सामान जल्दीजल्दी समेटने लगी, लेकिन मधुकर के पैरों के पास पड़ा कैमिस्ट के यहां से खरीदा गया मैंस्ट्रुअल कप उस की पोल खोल चुका था. मधुकर ने पैकेट चुपचाप उठा कर उस के हाथ में रख दिया. ‘‘तुम इस छद्म वेश में क्यों रहती हो? मेरी इस बात का जवाब दे दो,
मैं रास्ता छोड़ दूंगा.’’ ‘‘रात की ड्यूटी होने की वजह से यह सब करना पड़ा. इस छद्म वेश में किसी का ध्यान मेरी तरफ नहीं गया, लेकिन आप ने कैसे जाना?’’ ‘‘मैं ने तुम्हें कैमिस्ट की दुकान पर यह पैकेट लेते देख लिया था.’’ ‘‘ओह, यह बात है.’’ ‘‘चलो, मैं तुम्हें गली तक छोड़ देता हूं.’’ दोनों खामोश साथसाथ चलतेचलते गली तक आ गए. ‘‘मधुकर, एक बात का जवाब दो कि क्या तुम ही कुछ दिनों से मेरा पीछा कर रहे हो?’’ मधुकर मुसकरा दिया. दोनों ने एकदूसरे का नाम जाना. चलतेचलते बातोंबातों में मोड़ आ गया. मधुकर रंजना से विदा ले कर चला गया. रंजना कुछ देर खड़ी हो कर रास्ते को देखती रही. दिल की तेज होती धड़कनों ने रंजना को आज सुखद एहसास का अनुभव हुआ. घर पहुंच कर मां को आज की घटना के बारे में बताया. मां कुछ चिंतित हो गईं. सुबह एक नया ख्वाब ले कर रंजना की जिंदगी में आया. तैयार हो कर होटल जाते हुए रंजना बहुत खुश थी. वह मधुकर की याद में सारा दिन खोई रही.
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मन भौंरे की तरह उड़उड़ कर उस के पास चला जाता था. ड्यूटी खत्म कर रंजना उठने को हुई, तभी एक कस्टमर के आ जाने से वह बिजी हो गई. घड़ी पर निगाह गई तो 8 बज चुके थे. रंजना बैग उठा कर निकली, तो मधुकर बाहर ही खड़ा था. ‘‘रंजना, आज देर कैसे हो गई?’’ ‘‘मधुकर, एक कस्टमर आ गया था.’’ रंजना और मधुकर साथसाथ चलते हुए गली के मोड़ पर पहुंचे. मधुकर ने विदा ली और चला गया. यह सिलसिला चलते हुए कब 3 महीने बीत गए, पता ही नहीं चला. आज मधुकर ने रंजना को शाम को एक रैस्टोरैंट में बुलाया था. कंधे पर बैग झुलाते हुए रंजना निकल पड़ी. गली के नुक्कड़ पर. मधुकर बाइक पर बैठा उस का इंतजार कर रहा था. बाइक पर सवार हो वे दोनों रैस्टोरैंट पहुंच गए. मधुकर ने टेबल पहले से ही बुक करा रखी थी. कोने की टेबल पर खूबसूरत सा दिल के शेप वाला बैलून, लाल गुलाब का गुलदस्ता रखा था. मधुकर ने घुटनों के बल बैठ कर रंजना का हाथ थाम कर चूम लिया और दिल के आकार की हीरे की अंगूठी रंजना की उंगली में पहना दी. ‘‘अरे वाह, अंगूठी तो बहुत सुंदर है.’’ डिनर के बाद रंजना और मधुकर बाइक पर सवार हो कर घर की ओर चले जा रहे थे कि एक बाइक वाले ने उन का रास्ता रोक लिया. बाइक पर 2 लड़के बैठे थे.
उन के मुंह पर कपड़ा बंधा था. उन्होंने रंजना को देख कर फब्तियां कसनी शुरू कर दीं. रंजना को अचानक ही अपनी लिपिस्टिक गन का खयाल आया. उस ने धीरे से बैग में हाथ डाला और गन चला दी. गन के चलते ही नजदीक के थाने में ब्लूटूथ के जरीए खबर मिल गई. थानेदार 5 सिपाहियों को ले कर निकल पड़े. कुछ ही देर में पुलिस के सायरन की आवाज सुनाई देने लगी. लड़कों ने रंजना का बैग छीनने की कोशिश की. मधुकर ने एक लड़के के गाल पर चांटा जड़ दिया. इस छीनाझपटी में रंजना का हाथ छिल गया और खून रिसने लगा. बैग कस के पकड़े होने की वजह से बच गया. सामने से पुलिस की गाड़ी को आता देख कर लड़के दूसरी दिशा में अपनी मोटरसाइकिल घुमा कर भाग निकलने की कोशिश करने लगे. पर थानेदार ने उन्हें दबोच लिया और पकड़ कर गाड़ी में बैठा लिया. थानेदार ने एक सिपाही को आदेश दिया, ‘‘इस लड़के की बाइक आप चला कर इस के घर पहुंचा दें. इस लड़के और लड़की को हम जीप से इन के घर छोड़ देते हैं.’’ रंजना और मधुकर जीप में सवार हो गए. ‘‘आप का क्या नाम है?’’ थानेदार ने सवाल किया. ‘‘मेरा नाम रंजना है. मैं होटल में रिसैप्शनिस्ट हूं.
ये मेरे दोस्त मधुकर हैं. ये एक आईटी कंपनी में इंजीनियर हैं.’’ ‘‘रंजना, आप बहुत बहादुर हैं. आप ने सही समय पर अपनी लिपिस्टिक गन का इस्तेमाल किया है.’’ पुलिस की जीप रंजना के घर के सामने रुकी. पुलिस की गाड़ी देख कर रंजना की मां घबरा गईं और रंजना के पापा को आवाज लगाई, ‘‘जल्दी आइए, रंजना पुलिस की गाड़ी से आई है.’’ रंजना के पास महेशजी तेजी से बाहर की ओर लपके. बेटी को सकुशल देख कर जान में जान आई. थानेदार जोगिंदर सिंह ने सारी बात महेशजी को बताई और मधुकर को भी घर पहुंचाने के लिए इजाजत मांगी. इस के बाद इंस्पैक्टर जोगिंदर सिंह मधुकर को घर के सामने छोड़ कर वापस थाने चले गए. मधुकर ने इस बात की चर्चा अपने मम्मीपापा के साथ की. पापा का रिऐक्शन था, ‘‘बेटा, तुम ने जो भी किया उचित था. रंजना की सम झदारी से तुम दोनों सकुशल घर आ गए.’’ ‘‘रंजना जैसी लड़की तो वाकई बहू बनाने लायक है,’’ मम्मी ने भी हां में हां मिलाई. मधुकर ने खाना खा कर रंजना को फोन मिलाया. उधर से आवाज आई, ‘मैं रंजना की मम्मी बोल रही हूं…’ ‘‘मैं मधुकर बोल रहा हूं. नमस्ते आंटी. रंजना कैसी है?’’ ‘मैं रंजना को फोन देती हूं, तुम बात कर लो.’
मधुकर ने पूछा, ‘‘क्या हुआ रंजना? तुम ठीक तो हो न? तुम बोल क्यों नहीं रही?’’ ‘मधुकर, मेरी ही गलती है? मु झे इतना सजधज कर जाना ही नहीं चाहिए था.’ ‘‘देखो रंजना, एक न एक दिन तो तुम्हें इस रूप में आना ही था. इस घटना को कपड़ों से नहीं जोड़ा जा सकता है. तुम तो जमाने से टक्कर लेने के लिए तैयार हो…’’ ‘मधुकर, तुम ठीक कह रहे हो. मैं ही गलत सोच रही थी.’ ‘‘रंजना, मैं तुम्हें हमेशा के लिए अपना बनाना चाहता हूं.’’ ‘लव यू… मधुकर… रात ज्यादा हो गई है. तुम अभी आराम करो, कल मिलते हैं… गुड नाइट.’ सुबह मधुकर घर से औफिस जाने के लिए निकल ही रहा था कि मम्मी की आवाज आई. ‘मधुकर हो सके तो शाम को रंजना को घर पर ले कर आना.’ ‘‘ठीक है मम्मी. मैं चलता हूं,’’ कह कर मधुकर ने बाइक स्टार्ट की और निकल गया रंजना से मिलने. रंजना को उस के होटल छोड़ने से पहले मधुकर ने उस से कहा, ‘‘मम्मी आज शाम को तुम से मिलना चाहती हैं.’’ ‘‘जरूर चलूंगी आंटी से मिलने. शाम 6 बजे तुम मु झे होटल से पिक कर लेना.’’ बाइक से उतर कर रंजना ने मधुकर को बायबाय किया और होटल की सीढि़यों पर चढ़ कर अंदर चली गई. मधुकर उस दिन औफिस खत्म होने का इंतजार कर रहा था.
रंजना के आते ही वह खुश हो गया. बाइक पर सवार हो कर वे दोनों मधुकर के घर पहुंच गए. ‘‘मां, यह रंजना है.’’ ‘‘नमस्ते आंटीजी.’’ ‘‘नमस्ते, कैसी हो रंजना?’’ ‘‘जी, ठीक हूं.’’ मधुकर की मां कावेरी रंजना को ही निहारे जा रही थीं. वे मन ही मन रंजना को अपनी बहू के रूप में देख रही थीं. ‘‘मां, अपने हाथ की बनी कचौडि़यां नहीं खिलाओगी. बहुत भूख लगी है,’’ मधुकर ने कहा. यह सुन कर कावेरी वर्तमान में लौट आईं और बेटे की बात पर मुसकरा दीं. वे उठ कर रसोई से प्लेट में कचौड़ी और चटनी ले आईं. रंजना प्लेट उठा कर कचौड़ी खाने लगी. ‘‘आंटी, कचौड़ी बहुत स्वादिष्ट बनी हैं.’’ मधुकर खातेखाते बीच में बोल पड़ा, ‘‘रंजना, मां के हाथ में जादू है. वे खाना बहुत स्वादिष्ठ बनाती हैं.’’ ‘‘अब इतनी भी तारीफ मत कर,’’ मां बोलीं. नाश्ता खत्म कर रंजना ने घड़ी की तरफ देखा. 7 बजने वाले थे. रंजना उठ खड़ी हुई. ‘‘मधुकर, रंजना को उस के घर तक पहुंचा आओ.’’ ‘‘ठीक है मां.’’ कावेरी ने मन ही मन तय किया कि कल रंजना के घर जा कर वे उस का हाथ मधुकर के लिए मांग लेंगी. इस के बारे में मधुकर के पापा की भी रजामंदी मिल गई. सुबह ही कावेरी ने रंजना की मम्मी को अपने आने की सूचना दे दी थी. शाम के समय कावेरी और उन के पति के आने पर रंजना की मां ने उन्हें ड्राइंगरूम में बिठाया. कावेरी बोलीं, ‘‘शारदाजी, मैं रंजना का हाथ अपने बेटे के लिए मांग रही हूं. आप न मत कीजिएगा.’’ ‘‘कावेरीजी, बस आप ने मेरे मन की बात कह दी. मैं भी यही सोच रही थी.’’ यह सुन कर वे दोनों एकदूसरे के गले लग गईं. रंजना और मधुकर के पिता भी खुश हो गए. ‘‘अरे, पहले बच्चों से तो पूछ कर रजामंदी ले लो,’’ मधुकर के पिता हरीशजी ने मुसकरा कर कहा. महेशजी सामने से बच्चों को आता देख बोले, ‘‘लो, इन का नाम लिया और ये लोग हाजिर.’’ मधुकर ने आते ही मां से चलने के लिए कहा. ‘‘बेटा, हमें तुम से कुछ बात करनी है.’’ ‘‘कहिए मां, क्या कहना चाहती हैं.’’ ‘‘मधुकर, रंजना को हम ने तुम्हारे लिए शारदाजी से मांग लिया है. तुम बताओ कि तुम्हारी क्या मरजी है?’’ ‘‘मांपापा मु झे कुछ नहीं कहना है. रंजना से पूछ लें… वह क्या चाहती है.’’
कावेरी ने रंजना से पूछा, ‘‘क्या तुम मेरी बेटी बन कर मेरे घर आओगी?’’ रंजना ने शरमा कर गरदन झुकाए हुए हां कह दी. महेशजी चहक उठे, ‘‘रंजना ने हां कह दी. अब तो कावेरीजी आप मेरी समधिन हुई.’’ सभी एकसाथ हंस पड़े. शारदाजी मिठाई के साथ हाजिर हो गईं, ‘‘लीजिए कावेरीजी, मिठाई खाइए,’’ और झट से मिठाई का एक टुकड़ा कावेरी के मुंह में खिला दिया. कावेरी ने शारदा को मिठाई खिलाई और प्लेट हरीशजी की ओर बढ़ा दी. मधुकर ने रंजना को देखा तो रंजना का चेहरा सुर्ख गुलाब सा लाल हो गया था. रंजना एक नजर मधुकर पर डाल कर झट से अंदर भाग गई. ‘‘शारदाजी, एक अच्छा सा सुविधाजनक दिन देख कर शादी की तैयारी कीजिए. चलने से पहले जरा रंजना को बुलाइए.’’ शारदा उठ कर के अंदर जा कर रंजना को बुला लाईं. कावेरी ने अपने हाथ के कंगन उतार कर रंजना को पहना दिए. रंजना ने झुक कर उन के पैर छू लिए. हरीश और कावेरी ने मधुकर के साथ शारदा और महेशजी से विदा ली और घर आ गए. 2 महीने बाद शारदाजी के घर से शहनाई के स्वर गूंज रहे थे. रंजना दुलहन के रूप में सजी आईने के सामने बैठी खुद को पहचान नहीं पा रही थी. छद्म वेश हमेशा के लिए उतर चुका था. ‘‘सुनो रंजना दीदी,’’ रंजना की कजिन ने आवाज लगाई, ‘‘बरात आ गई… ’’ रंजना मानो सपने से हकीकत में आ गई. उस के पैर लग्न मंडप की ओर बढ़ गए.