पिछले 2 वर्ष से होली में कोई खास मजा नहीं आ रहा था. ऐन होली के दिन मास्टर भोलाराम का जाने कौन सा रिश्तेदार पैदा हो जाता था कि वे गायब हो जाते. अब किशोरों को भी उन्हें होली का भांड़ बनाने में जो मजा आता था, वह किसी और को नहीं. मास्टर भोलाराम भी लाखों में एक थे. छोटा कद, बाहर को निकली तोंद, सड़क पर चलते तो ऐसा लगता जैसे कोई बड़ी फुटबौल लुढ़क रही हो. होली क्या आती, उन के लिए मुसीबत आ जाती. वही सब का निशाना बनते. बेचारे, खुद को बहुत बचाते, पर आखिर पकड़े जाते और फिर उन की ऐसी दुर्गति होती कि बयान करना मुश्किल है. लेकिन पिछले 2 साल से मास्टर भोलाराम किसी को हवा भी नहीं लगने दे रहे थे. होली वाले दिन उन के दरवाजे  पर बड़ा सा अलीगढ़ी ताला लटका होता था. किशोर मायूस हो कर लौट जाते.

होली के दूसरे दिन वे अलसुबह बच्चों, बूढ़ों सभी को चुटकी भर गुलाल लगालगा कर होली की मुबारकबाद दे रहे होते. लोग सोचते रह जाते, ‘आखिर, इतनी सुबह मास्टरजी आ कहां से गए ’ सवा किलो मोतीचूर के लड्डुओं का लालच कम नहीं होता. उस वर्ष बजरंगी हलवाई ने जोरजोर से ऐलान किया, ‘‘होली के दिन जो भी मास्टर भोलाराम की सही खबर लाएगा, उसे सवा किलो मोतीचूर के लड्डू दिए जाएंगे.’’

यों सवा किलो लड्डुओं का नुकसान बजरंगी के दिल पर छुरी चला गया था, पर वह तकलीफ उस से बेहतर थी, जो मास्टर भोलाराम के न मिलने पर होती थी, क्योंकि लोगों का दूसरा निशाना वही होता था. कुछ  तो लड्डुओं का लालच और कुछ मास्टर भोलाराम के गायब होने का रहस्य जानने की उत्सुकता, अत: लड़कों की टोली पीछे लग गई. 2 दिन पहले से ही उन पर नजर रखी जाने लगी. वैसे इस बात की ज्यादा आशंका थी कि मास्टर भोलाराम रात के अंधेरे में ही कहीं खिसकेंगे. अत: होली की पूर्व संध्या से ही लड़कों की टोली सख्ती से मास्टर भोलाराम की निगरानी में लग गई. रात के 12 बजे तक जब मास्टर भोलाराम कहीं नहीं गए तो किशोरों को विश्वास हो गया कि इस वर्ष मास्टर भोलाराम कहीं नहीं जाएंगे. वे सब दूसरे इंतजाम करने चले गए.

सुबह जब वे सब शोर मचाते, उछलकूद करते मास्टर भोलाराम के दरवाजे पर पहुंचे तो दंग रह गए. दरवाजे पर लटका बड़ा सा ताला उन सब की खिल्ली उड़ाता महसूस हो रहा था. सब एकदूसरे की तरफ देखते हुए जैसे पूछ रहे थे, ‘यह क्या हुआ ’ किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि एकाएक मास्टर भोलाराम कहां गायब हो गए. रात 12 बजे तक तो उन का ऐसा कोई कार्यक्रम नहीं नजर आता था.कुछ देर विचारविमर्श करने के बाद सब मायूस हो कर लौटने लगे. तभी मास्टर भोलाराम के घर की बगल वाली गली में दूध वाले को जाते देख पवन चौंका. उस ने सब को रुकने का संकेत देते हुए कहा, ‘‘रुको दोस्तो, यह दूध वाला इस गली में कहां जा रहा है, जबकि यह गली तो आगे जा कर बंद हो जाती है  इस गली में तो केवल मेरे और मास्टर भोलाराम के घरों के पिछले दरवाजे खुलते हैं ’’

 ‘‘अरे हां, बात तो तुम्हारी एकदम ठीक लगती है.’’

‘‘मेरे यहां पिछले दरवाजे से दूध लेने का रिवाज भी नहीं है, फिर ’’

‘‘फिर तो वह जरूर मास्टर भोलाराम के यहां गया होगा.’’ जब दूध वाला लौट कर आया तो उसे लड़कों ने घेर लिया, ‘‘ओ हो, भैयाजी. आज तो बड़ी मस्ती में लग रहे हो ’’

‘‘क्यों न होऊं, जब दोगुने दाम पर मेरा दूध बिक रहा है.’’

‘‘कौन मूर्ख दोगुने दाम दे रहा है ’’

‘‘अरे, वही मास्टर भोलारामजी. लेकिन तुम लोग किसी से कहना नहीं. इसी बात का भेद रखने के तो मुझे दोगुने दाम मिल रहे हैं.’’ लेकिन किशोरों ने इस से आगे कुछ सुना ही नहीं. वे शोर करते हुए एक तरफ चले गए. उन का शिकार जो पिंजरे में मौजूद था. अब सवाल था, पिंजरे का दरवाजा कैसे खुले  आननफानन में ढेर सारी चाबियां इकट्ठी हो गईं. फिर चुपकेचुपके ताला खोलने का प्रयत्न शुरू हो गया. आखिर, ताला खुल ही गया. बिना आवाज किए लड़के अंदर प्रवेश करने लगे. मास्टर भोलाराम चौंके. बाहरी कमरे में कदमों की आहट हो रही थी. सहसा पवन ने चिल्ला कर कहा, ‘‘मास्टरजी, बाहर आ जाइए. आप की पोल खुल चुकी है.’’ भीतर से कोई जवाब नहीं मिला. तब सभी अंदर वाले कमरे में पहुंचे. कमरा खाली था. छोटे पिंकू की नजर पलंग पर रखी गुझियों से भरी प्लेट पर अटक गई. तभी आंगन से मोहन की आवाज आई, ‘‘लगता है, इस बार भी मास्टरजी गच्चा दे गए. पीछे का दरवाजा खुला है.’’

‘‘आओ, बाहर देखें. भाग कर कहां जाएंगे,’’ पंकज बोला. पूरी टोली शोर मचाती लौट पड़ी. पिंकू की नजर फिर गुझियों पर अटक गई. धीरेधीरे सब बाहरी कमरे की तरफ जा रहे थे. उस ने मौका देख कर प्लेट की तरफ हाथ बढ़ाया. तभी वह चीख पड़ा. चौंक कर सभी पलटे, ‘‘क्या हुआ, पिंकू ’’

‘‘चमत्कार… देखो, यह गुझियों की प्लेट अपनेआप हिल रही है.’’

तभी प्लेट बड़ी तेजी से हिली.

पवन ने लपक कर फर्श पर लटकी हुई पलंग की चादर उलट दी. मास्टर भोलाराम अपनी बड़ी तोंद के साथ फर्श और पलंग के बीच फंसे हुए थे. फिर तो होली का ऐसा हुड़दंग मचा और मास्टरजी की ऐसी रंगाई हुई कि पिछले 2 साल की कसर पूरी हो गई. अगले दिन पिंकू महाशय दोस्तों के साथ बजरंगी हलवाई की दुकान पर डेढ़ किलो मोतीचूर के लड्डुओं पर हाथ साफ कर रहे थे. बजरंगी हलवाई ने अपनी जान बच जाने की खुशी में दरियादिली दिखाते हुए ढाई सौ ग्राम लड्डू और कुरबान कर दिए थे.

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