लेखक- रामविलास जांगिड़

भई जब से देश में विदेशी व्हाट्सऐप आया है तब से देशी ज्ञान की यहां खूब ठेलाठेली हो रही है. हर काम बिना व्हाट्सऐप के मुश्किल हो चला है. अब तो दुनिया जाए भाड़ में, अपने को तो व्हाट्सऐप ही चाहिए भाई... व्हाट्सऐप के मालिक फेसबुक को प्रणाम करता हूं. सभी देशप्रेमी सुबह उठते ही विदेशी व्हाट्सऐप पर स्वदेशी राग आत्मनिर्भर गाते हैं. सभी सरकारी औफिसर अपना औफिस इसी व्हाट्सऐप पर सजाते हैं. तरहतरह के सरकारी ग्रुप व्हाट्सऐप पर सरकार का झुन झुना बजाते हैं. ग्रुप के भीतर ग्रुप, ग्रुप के बाहर ग्रुप, ग्रुप के अंदर ग्रुप, ग्रुप ही ग्रुप... सरकारी आज्ञा, आदेश, नियम, निर्देश, योजना, क्रियान्विति, मौनिटरिंग, मूल्यांकन आदि का पचड़ा व्हाट्सऐप ग्रुप का सच्चा अखाड़ा है.

मैसेज, औडियो, वीडियो, फोटो सबकुछ. कटपेस्टफौरवर्ड. कटिंगपेस्टिंगफौरवर्डिंग. यानी सरकारी खेल चालू है. टीचर व्हाट्सऐप ग्रुप पर पढ़ा रहा है और विद्यार्थी ग्रुप में कहीं पार्टी मना रहा है. अफसर व्हाट्सऐप पर कुरकुरी रिश्वत खा रहा है और नेता व्हाट्सऐप से कुरसी पर नजरें जमा रहा है. कार्यालय व्हाट्सऐप पर जारी है और प्रेमीप्रेमिका को व्हाट्सऐप की बीमारी है. काकी व्हाट्सऐप पर चूडि़यां खनका रही है और भैंस लिपस्टिक की नई शेड व्हाट्सऐप पर चिपका रही है. सारे देवता व्हाट्सऐप पर फूलों की बरसात कर रहे हैं और सारे पीरपैगंबर व्हाट्सऐप पर प्रेमगीत गा रहे हैं. पीरपंडितगण गला फाड़ रहे हैं. ‘कराग्रे वसति व्हाट्सऐपा, कर मध्य फेसबुकाया, कर मूले ट्विटरो हस्त बंधने मोबाइलाया.’ तेल की कीमतें कितनी ही ऊपर आसमान चढ़ा दो पर व्हाट्सऐप मत छीनना. कोरोना में कितनी ही लाशों को श्मशान पहुंचा दो मगर व्हाट्सऐप मत छीनना.

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