फिल्मसमीक्षाः
रेटिंग: तीनस्टार
निर्माता: अनुपमा मंडलोई
निर्देशक:तनूजा चंद्रा
कलाकार:सुधा गर्ग,राधारानी शर्मा
अवधि: अड़तालिस मिनट
ओटीटीप्लेटफार्मः सिनेमा प्रिन्यो रडाॅटकाम
अमूमन डाक्यूमेंट्री फिल्म को नीर समाना जाता है.लेकिन पिछले कुछ वर्षों में इस दिशा में काफी बदलाव आ गया है.अब फिल्मकार डाक्यूमेंट्री फिल्मों को इस तरह रोचक तरीके से पेश करने लगे हैं कि दर्शक उनके साथ बंधा रहता है.ऐसी ही एक दो बुजुर्ग महिलाओं(एक की उम्र 95 वर्ष और दूसरी की 86 वर्षहै ) की जिंदगी ओैर उनके बीच के अटूट बंधन को दर्शाने वाली डाक्यूमेंट्री लेकर फिल्मकार तनूजा चंद्रा आयी है,जो कि इनदिनों ओटीटी प्लेटफार्म ‘सिनेमा प्रिन्योर’पर देखी जा सकती है.‘‘तमन्ना’’,‘दिल तो पागल है’ और ‘जख्म’ फिल्मों का लेखन करने के बाद तनूजा चंद्रा ‘दुश्मन’,संघर्ष’,‘यह जिंदगी का सफर’,‘सिलवट’ व ‘करीब करीब सिंगल’जैसी नौ फिल्मों का निर्देशन कर चुकी हैं.
ये भी पढ़ें- इंडियन आइडल 12: कोरोना पॉजिटीव पवनदीप राजन ने बंद कमरे में गाया
कहानीः
डाक्यमेंट्री की शुरुआत उत्तरप्रदेश के लाहरा नामक खूबसूरत गाॅंव से होती हैं.जहां 95 वर्षीय राधा अपनी छोटी 86 वर्षीय बहन सुधा के साथ रहती हैं.दोनों वाॅकर लेकर चलती हैं.घर के सामने बड़ा सा बगीचा है,जहां मोहम्मददीन और अलमहर काम करते हैं.घर में खाना बनाने के लिए अलग से महिला आती है.यह दोनों बहने एक दूसरे के बिना नहीं रह सकती,जब कि दोनों विपरीत स्वभाव की हैं.यह दोनों बुजुर्ग बहने डाक्यूमेंट्री की निर्देशक तनूजा चंद्रा की बुआ है. इनके माध्यम से कई भावानाओ और मीठी यादों को ताजा किया गया है.यह महिलाएं लगभग 12 साल से लाहरा में रह रही हैं, और वह बार बार तनूजा चंद्रा से कह रही थी कि शहर को छोड़कर गांव की स्वच्छ हवा में आकर शान की जिंदगी जियो.
यह डाक्यूमेंट्री इन महिलाओं के जीवन की एक झलक है. इसकी शुरूआत गर्मी के दिनों में सुबह साढ़े पाॅंच बजे बेड टी से होती है.फिर सुधा,राधा के लिए अखबार की कुछ सनसनी खेज खबरें पढ़ती है.आपस में चर्चा करती है कि कौन सी सब्जियां खरीदी जानी हैं और बगीचे में क्या उगाया जाना है.बहनों के बीच प्यार, साथ ही महिलाओं और उनके कर्मचारियों के बीच आपसी संबंध, दृढ़ता से उभरते हैं.
जैसे जैसे फिल्म आगे बढ़ती है,पता चलता है कि यह हंसमुख वृद्ध महिलाएं ठीक-ठाक प्रबंधन कर रही हैं.दोनों रात में बिस्तर साझा करती हैं,पर छोटी-मोटी दलीलें करती रहती हैं.ज्यादातर खाना पकाने की गुणवत्ता का लेकर.पर दोनों कबूल करती हैं कि ‘‘हम एक दूसरे के बिना नहीं कर सकती.‘‘
बीच में कुछ मार्मिक क्षण भी आते हैं, जब दोनों अपने दिवंगत पतियों और स्वास्थ्य समस्याओं की चर्चा करती हैं.सुधा अचानक मुस्कुराते हुए मृत्यु की इच्छा के बारे में कहती है,कि दिल का दौरा पड़ने से मौत आ जाए.
ये भी पढ़ें- ‘Nach baliye’ नहीं बल्कि ‘खतरों के खिलाड़ी 11’ का हिस्सा बनेंगे राहुल वैद्य
इनके आसपास कोई बच्चे या पति नहीं हैं.बल्किविभिन्न धर्मों के घरेलू श्रमिकों का एक छोटा समूह ही इनका परिवार है.दोनों को सरकारी पेंशन मिल रही है.भूमि के छोटे भूखंडों को श्रमिकों में विभाजित किया गया है.जो भूखंड जिसे दिया गया है,उससे होने वाली पैदावार का उस श्रमिक का परिवार उपयोग करता है.यहां त्यौहारों को एक साथ मनाया जाता है.
निर्देशनः
मानवीय भावनाओ को खूबसूरती से परदे पर पेश करने में माहिर तनू जा चंद्रा ने इस डाक्यूमेंट्री में दो बुजुर्ग महिलाओं की सोच,उनके अकेलेपन,उनके बीच के अटूटबंधन के साथ ही इस बात को भी रेखांकित किया है कि इंसान चाहे तो जांत पांत के परे भी अपना एक परिवार खड़ा कर सकता है,जो कि उनके हर सुख दुख में साथ देने को तत्पर हो.
निर्देशक ने सुबह सुबह वातावरण में कोयल की मीठी कूक, चिड़ियो की चहचहाहट के साथ गौरैया व मोर आदि को कैमरे में कैद कर गांव के माहौल को पूरी जीवंतताप्रदान की है.