लेखक- डा. अजय कुमार, वैज्ञानिक (कृषि प्रसार)
मधुमक्खीपालन एक ऐसा कारोबार है, जिसे दूसरे धंधों से कम धन, कम श्रम और कम जगह पर किया जा सकता है. मधुमक्खीपालन से मौनपालकों को शहद हासिल होता है, साथ ही साथ मधुमक्खियों के जरीए परपरागण के चलते फसलों और औद्योगिक फसलों से अच्छी उपज होती है.
भारतीय चिकित्सा पद्धति में शहद का विशेष महत्त्व है, क्योंकि इस में रोगनाशक और स्वास्थ्यवर्धक गुण पाए जाते हैं. यही वजह है कि भारत में मधुमक्खीपालन पर बहुत ज्यादा जोर दिया जाता है.
मधुमक्खीपालन को छोटे लैवल पर और व्यवसाय के रूप में भी अपनाया जा सकता है. इस के लिए मौनपालकों को आधुनिक व वैज्ञानिक तरीके से अपनाने के लिए सभी पहलुओं की अच्छी जानकारी होनी चाहिए.
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मधुमक्खीपालन प्रबंध
* मौनगृह का निरीक्षण 8-10 दिन के आसपास करते रहना चाहिए.
* इस के लिए मुंहरक्षक जाली पहन कर हाथों में दस्ताने पहन कर ऊपरी ढक्कन हटाते हैं और उलट कर नीचे साइड में रख देते हैं. उस के बाद मधुखंड की चौखट की जांच करते हैं.
* जांच करते हुए जांच करने वाले को सादा कपड़ों में होना चाहिए. चटकीले या भड़कीले रंग के कपड़े नहीं पहनने चाहिए.
* मधुखंड की जांच में देखते हैं कि किसकिस चौखट में शहद है.
* जिन चौखटों में शहद 70-80 फीसदी तक शील्ड है, उस फ्रेम को निकाल कर उस की मधुमक्खियां मधुखंड में ही झाड़ देते हैं.
* इस के बाद शील्ड मधु छत्ते को स्क्रेयर या चाकू की मदद से खरोंच कर बाहर करते हैं व चौखट को दोबारा मधुखंड में रख देते हैं.
* मधुखंड की जांच करने के बाद मधुखंड को उलटा रखे हुए ऊपरी ढक्कन के ऊपर रख देते हैं व इस के बाद शिशुखंड की जांच करते हैं. शिशुखंड की जांच
* रानी का निरीक्षण : सब से पहले शिशु खंड की विभिन्न चौखटों में रानी को देखा जाता है.
* रानी सब से लंबी उदर वाली सुनहरे रंग की होती है, जिस के चारों तरफ श्रमिक मधुमक्खी साथसाथ चलती हैं.
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