राजद सुप्रीमो लालू यादव नोटबंदी के खिलाफ शुरू की गई मुहिम में अकेले पड़ गए हैं. बिहार में महागठबंधन के उनके साथी जदयू और कांग्रेस ने उनसे दूरी बना ली है. नोटंबदी के 50 दिन पूरे होने पर राजद ने आज महाधरना का आयोजन किया, लेकिन उसमें महागठबंधन के साथी दल नहीं पहुंचे. गौरतलब है कि नीतीश पहले ही नोटबंदी को सही करार दे कर इससे पल्ला झाड़ चुके हैं. महाधरना से एक दिन पहले कांग्रेस ने भी लालू से कन्नी काट ली.

जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार प्रकाश उत्सव और दलाईलामा के कार्यक्रमों में व्यस्त रहे और महाधरना को तव्वजो नहीं दी. वहीं दूसरी ओर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष और शिक्षा मंत्री अशोक चौधरी ने यह बहाना बना कर लालू के महाधरना से किनारा कर लिया कि 28 दिसंबर को ही कांग्रेस का स्थापना दिवस है. इसके लिए कई जलसों को आयोजन किया गया था. वैसे चौधरी ने कहा कि राजद के महाधरना को उन्होंने नैतिक समर्थन दिया है.

राजद सुप्रीमो लालू यादव ने आज पटना समेत बिहार के सभी 38 जिलों के मुख्यालय पर महाधरना का आयोजन किया. इस बहाने लालू ने पूरे राज्य में अपनी ताकत का भी प्रदर्शन कर डाला. लालू ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले 8 नवंबर को नोटबंदी का ऐलान करते हुए कहा था कि अगले 50 दिनों में वह हालात को नार्मल कर देंगे. उन्होंने जनता से 50 दिन मांगे थे और साथ में यह भी कहा था कि अगर 50 दिनों में हालात ठीक नहीं हुए, तो वह किसी भी तरह की सजा के लिए तैयार हैं. आज याने 28 दिसंबर को नोटबंदी के 50 दिन हो गए हैं और जनता को परेशानियों से निजात नहीं मिल सकी है. आज भी एटीएम में लंबी-लंबी कतारें लगी हुई है.

महाधरना की कामयाबी से खुश लालू  ने लगे हाथ ऐलान कर डाला कि नए साल में नोटबंदी के खिलाफ बड़ी रैली का आयोजन किया जाएगा. उन्होंने कहा कि रैली में शामिल होने के लिए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से बात की गई है और बाकी विपक्षी दलों से बातचीत चल रही है.

महागठबंधन के साथियों के महाधरना में शामिल नहीं होने से नाराज लालू ने कह डाला के इगो प्राब्लम की वजह से सभी विरोधी दल एकजुट नहीं हो पा रहे हैं, जबकि सभी गैरभाजपाई दलों की एक ही मंजिल है. सभी दिल्ली से भाजपा को उखाड़ने की कोशिश में लगे हुए हैं. लालू के इस आरोप के जबाब में  जदयू के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह कहते हैं कि नोटबंदी का विरोध ही विपक्षी दलों की एकजुटता का पैमाना नहीं है. हर पार्टी का अपना-अपना स्टैंड होता है. नीतीश शुरू से ही नोटबंदी के साथ हैं.

गौरतलब है कि नोटबंदी के ऐलान के शुरुआती दिनों से ही नीतीश उसके समर्थन में खड़े रहे हैं. उन्होंने नोटबंदी को देश की माली हालत में सुधार लाने वाला कदम करार दिया है. उन्होंने साफ कहा था कि इससे शुरू में कुछ दिन लोगों को परेशानी होगी पर आगे चल कर इससे देश को फायदा होगा. 1000 और 500 के नोट पर प्रतिबंध लगाना जरूरी था. इसके साथ ही वह यह भी कहते रहे हैं कि नोटबंदी को कारगर तरीके से लागू करना चाहिए, ताकि गरीबों, किसानों और महिलाओं को परेशानी नहीं हो.

नोटबंदी के बाद अब नरेंद्र मोदी बेनामी संपत्ति पर हमला करने की तैयारियों में लग गए हैं तो नीतीश ने अपनी पार्टी लाइन से आगे बढ़ कर इस मामले में भी मोदी के सुर में सुर मिला दिया है. भाजपा नेता सुशील मोदी कहते हैं कि बेनामी संपति का पता लगाने के प्रधनमंत्री के ऐलान ने लालू यादव को बौखला दिया है और इसके लिए वह राजनीतिक ड्रामेबाजी कर रहे हैं. कुछ भी हो नोटबंदी के खिलाफ राजद के महाधरना में शामिल नहीं होकर नीतीश और कांग्रेस ने सियासी हलको में अटकलों के बाजार को गरम तो कर ही दिया है.

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