घर के सामने रहने वाली लड़की के प्रति उस का आकर्षण दिनप्रतिदिन बढ़ता जा रहा था. उस लड़की की हरकतों से लगता कि वह भी उस में दिलचस्पी लेने लगी है. लेकिन क्या हकीकत में ऐसा था या यह उस की गलतफहमी थी?
मैंएक मल्टीनैशनल कंपनी में सीनियर एक्जीक्यूटिव हूं. कंपनी द्वारा दिए 2-3 बैडरूम के फ्लैट में अपने परिवार के साथ रहता हूं. परिवार में मेरी पत्नी व एक 10 वर्ष का बेटा है जो कौन्वैंट स्कूल में छठी क्लास में पढ़ रहा है. मेरी पत्नी खूबसूरत, पढ़ीलिखी है. मैं इस फ्लैट में पिछले
2 साल से रह रहा हूं. चूंकि हम लोगों को कंपनी मोटी तनख्वाह देती है तो उसी हिसाब से काम भी करना पड़ता है. मैं रोज 9 बजे अपनी गाड़ी से औफिस जाता व शाम को 6-7 बजे लौटता. कभीकभी तो इस से भी ज्यादा देर हो जाती थी. इसलिए कालोनी या बिल्ंिडग में क्या हो रहा है, यहां कौन लोग रहते हैं और क्या करते हैं, इस की मुझे बहुत कम जानकारी है. थोड़ाबहुत जो मेरी पत्नी मुझे खाना खाते वक्त या किसी अन्य बातचीत में बता देती थी उतना ही मैं जान पाता था.
एक दिन छुट्टी के दिन मैं अपनी बालकनी में बैठा सुबहसुबह पेपर पढ़ते हुए चाय पी रहा था कि मेरी नजर मेरे सामने की बिल्ंिडग में रहने वाली लड़की पर पड़ी, जो यही कोई 17-18 वर्ष की रही होगी. वह मेरी तरफ देखे जा रही थी. पहले तो मैं ने उसे यों ही अपना भ्रम समझा कि हो सकता है उसे कुछ कौतूहल हो, इस कारण वह मेरे फ्लैट की तरफ देख रही हो.
वैसे सुबहशाम टहलने का मेरा एक रूटीन था. सुबह उठ कर आधापौना घंटा कालोनी की सड़कों पर टहलता था व रात को खाना खा कर हम तीनों, मैं, मेरी पत्नी व मेरा बेटा कालोनी में टहलते अवश्य थे. अगर मेरे बेटे को रात को आइसक्रीम खाने की तलब लग जाती थी तो उसे आइसक्रीम भी खिलाने जाना पड़ता था.
मैं ने कई बार इस बात पर ध्यान दिया कि वह लड़की मेरे ऊपर व मेरी गतिविधियों पर नजर रखती है. मैं बालकनी में बैठा पेपर पढ़ रहा होता तो वह बालकनी की तरफ देखती और मुझ पर नजर रखती थी. जब हम रात को टहल रहे होते तो वह भी अपने कुत्ते के साथ टहलने निकल आती थी. कभीकभी उस का छोटा भाई भी उस के साथ आ जाता था, जोकि सिर्फ 5-6 साल का था, मगर दोनों भाईबहनों में बहुत फर्क था. वह बहुत खूबसूरत थी पर उस का छोटा भाई देखने में बहुत साधारण था.
एक दिन रात को मैं ने उस के पूरे परिवार को देखा. उस लड़की को छोड़ कर बाकी सभी देखने में बहुत साधारण थे. मुझे ताज्जुब भी हुआ मगर चूंकि आज के जमाने में कुछ भी हो सकता है इसलिए मैं ने इस बारे में ज्यादा नहीं सोचा किंतु जब उस लड़की की मेरे में दिलचस्पी बढ़ती जा रही थी तो मुझे थोड़ी परेशानी होने लगी कि मेरी बीवी देखेगी तो क्या कहेगी, मेरे बच्चे पर इस का क्या असर पड़ेगा.
कुछकुछ अच्छा भी लग रहा था. इस उम्र में कोई नौजवान लड़की अगर आप को प्यार करने लगे, चाहने लगे तो बड़ा अच्छा लगता है. अपने पुरुषार्थ पर विश्वास और बढ़ जाता है. इसलिए मैं भी कभीकभी पेपर पढ़ते समय उस की तरफ देख लेता था. हालांकि मेरी बालकनी और उस की बालकनी में करीब 50 फुट का फासला था, फिर भी हम एकदूसरे पर नजर रख सकते थे.
कुछ दिनों बाद उस ने भी सुबहसुबह टहलना शुरू कर दिया. कभी मेरे आगे, कभी मेरे पीछे. मैं यह सोच कर थोड़ा रोमांचित हुआ कि वह अब मेरी निकटता चाहने लगी है. शायद उसे मुझ से वास्तव में प्यार हो गया है. मैं भी उस के मोह में गिरफ्तार हो चुका था. अब मैं खाली समय में उस के बारे में सोचता रहता था. 40 से ऊपर की उम्र में जब पतिपत्नी के संबंधों में एक ठहराव सा, एक स्थायित्च, एक बासीपन सा आ जाता है उस दौर में इस प्रकार के संबंध नई ऊर्जा प्रदान करते हैं.
लगभग हर व्यक्ति एक नवयौवना के प्यार की कामना करता है. कुछ पा लेते हैं, कुछ सिर्फ खयालों में ही अपनी इच्छा की पूर्ति करते हैं. कुछ लोग कहानियां, सस्ते उपन्यासों द्वारा अपनी इस चाहत को पूरा करते हैं, क्योंकि इस दौर में व्यक्ति इतना बड़ा भी नहीं होता कि वह हर लड़की को बेटी समान माने, बेटी का दरजा दे. वह अपने को जवान ही समझता है व जवानी की ही कामना करता है. मैं भी इस दौर से गुजर रहा था.
मगर एक दिन गड़बड़ हो गई. उसे कहीं जाना था जो शायद मेरे औफिस जाने के रास्ते में ही पड़ता था. मैं औफिस जाने के लिए तैयार हो कर निकला. अपनी गाड़ी मैं ने बाहर निकाली तो देखा वह मेरी तरफ ही चली आ रही है. उस ने मुझे इशारे से रुकने को कहा और नजदीक आ कर बोली, ‘‘अंकल, क्या आप मुझे कालीदास मार्ग पर छोड़ देंगे? मुझे देर हो गई है और मुझे वहां 10 बजे तक पहुंचना बहुत जरूरी है.’’
कार से कालीदास मार्ग पहुंचने में लगभग 45 मिनट लगते हैं. हालांकि अपने लिए अंकल संबोधन सुन कर मुझे कुछ झटका सा लगा था मगर शराफत के नाते मैं ने कहा, ‘‘बैठो, छोड़ दूंगा.’’
वह चुपचाप कार में बैठ गई.‘‘वहां के स्कूल में आज आईआईटी प्रवेश की परीक्षा है,’’ उस ने संक्षिप्त जवाब दिया.रास्तेभर हम खामोश रहे. वह अपने नोट्स पढ़ती रही. मैं ने उसे उस के स्कूल छोड़ दिया.
हालांकि मेरा मन बड़ा अनमना सा हो गया था अपने लिए अंकल संबोधन सुन कर. मैं तो क्याक्या खयाली पुलाव पका रहा था और वह मेरे बारे में क्या सोचती थी? मगर उस के बाद भी उस की गतिविधियों में कोई बदलाव नहीं आया. उसी प्रकार सुबहशाम टहलना, बालकनी में खड़े हो कर मुझे देखना. चूंकि दूरी काफी थी इसलिए मैं यह नहीं समझ पा रहा था कि उस के देखने में अनुराग है, आसक्ति है या कुछ और है.
मैं ने सोचा, हो सकता है उसे मुझ से बात शुरू करने के लिए कोई और शब्द न मिला हो इसलिए उस ने मुझे ‘अंकल’ कहा हो. चूंकि मुझ को उस में रुचि थी अत: मैं ने उस के और उस के घरपरिवार के बारे में लोगों से पूछा, पता लगाया, पत्नी के द्वारा थोड़ीबहुत जानकारी ली. मुझे पता लगा उस के पिताजी भी एक दूसरी फर्म में इंजीनियर हैं मगर उन की यह
दूसरी पत्नी हैं. पहली पत्नी की मौत हो चुकी है.एक दिन छुट्टी के दिन वह सुबहसुबह मेरे फ्लैट में आई. मैं पेपर पढ़ रहा था. पत्नी ने दरवाजा खोल कर मुझे बुलाया, ‘‘आप से मिलने कोई रीमा आई है.’’
‘‘कौन रीमा?’’‘‘वही जो सामने रहती है.’‘‘ओह, मगर उसे मुझ से क्या काम?’’‘‘आप खुद ही उस से मिल कर पूछ लो.’’
मैं बालकनी से उठ कर ड्राइंगरूम में आया. उस ने मुझे नमस्ते की.मैं ने सिर हिला कर उस की नमस्ते का जवाब दिया.‘‘बोलो?’’ मैं ने पूछा.‘‘अंकल, मैं आप की थोड़ी मदद चाहती हूं.’’‘‘किस प्रकार की मदद?’’
वह थोड़ी देर खामोश रही, फिर बोली, ‘‘मेरा सलैक्शन आईआईटी में हो गया है मगर मेरे मम्मीपापा मुझे जाने नहीं देना चाहते. मैं चाहती हूं कि आप उन्हें समझाएं.’’
‘‘मगर मैं उन्हें कैसे समझाऊं, मेरा उन से कोई परिचय नहीं. कोई बातचीत नहीं. मेरी बात क्यों मानेंगे?’ ‘‘अंकल, प्लीज, मेरी खातिर, मेरी मम्मी की खातिर आप उन्हें समझाइए.’‘‘न ही मैं तुम्हें अच्छी तरह जानता हूं और न ही तुम्हारी मम्मी को, फिर मैं तुम्हारी खातिर कैसे तुम्हारे पापा से बात करूं?’’