बैंकिग व्यवस्था में सिक्कों का वही स्थान है जो नोट का है. बैंक अपनी मेहनत से बचने के लिये खातों में पैसा जमा करने वालों से सिक्के नहीं लेते. सिक्के के अलावा बैक 10 और 20 रुपये के छोटे नोट लेने से भी बचते हैं. बैंको में सिक्के न जमा होने से कारोबारियों को मुश्किल का सामना करना पड़ रहा है. लखनऊ के बिजनेस मैन संदीप आहूजा ने बैंकों के इस व्यवहार के खिलाफ रिजर्व बैंक को पत्र लिखा. रिजर्व बैंक ने भी इस बात को संज्ञान में नहीं लिया तो वह बैंक के अन्याय के खिलाफ कोर्ट गये. अब कोर्ट के फैसले के बाद बैंक सिक्के लेने को बाध्य हो रहा है. कोर्ट ने निर्देश दिया है कि बैंक संदीप आहूजा से 5000 रुपये के सिक्के रोज ले. इसके लिये बैक को शाम 3 से 4 बजे तक का समय भी निर्धारित किया गया है.

संदीप आहूजा ब्रेड के कारोबारी हैं. ब्रेड की बिक्री पर बदले में उनको सिक्के ही मिलते हैं. ऐसे में पिछले 6 माह में उनके पास 40 लाख रुपये के सिक्के जमा हो गये. बैंक इन सिक्कों को उनके बैक खाते में जमा नहीं कर रहा. परेशान संदीप आहूजा रिजर्व बैंक से लेकर कोर्ट तक अपनी फरियाद सुना चुके हैं. कोर्ट ने जो रास्ता सुझाया है वह बहुत सरल नहीं है. 40 लाख के सिक्के अगर 5000 रोज भी बैंक लेगा तो 2 साल से अधिक का समय लग जायेगा. इस बीच संदीप के पास ब्रेड की बिक्री से और सिक्के जमा होते रहेंगे. ऐसे में सभी सिक्के बैंक मे जमा नहीं हो पायेंगे. संदीप आहूजा को रोज ब्रेड के बदले डेढ से 2 लाख रुपये के सिक्के मिलते हैं.

वह कहते हैं हम कोर्ट में एक बार फिर अपनी बात लेकर जायेंगे. हम चाहते हैं कि बैंक हमारे सिक्के ज्यादा मात्रा में लेना शुरू करे. जिससे हम अपने सिक्के खाते में जमा कर सकें. हम ग्राहक से सिक्के लेने से मना नहीं कर सकते क्योकि यह सरकारी मुद्रा है. जब सरकारी मुद्रा चलन में है तो बैंक क्यों सिक्के नहीं जमा कर रहा? यह बैंक का गलत व्यवहार है. हमारी लड़ाई 6 माह पुरानी है. अब बैंक को यह बहाना मिल गया है कि नोटबंदी के समय उनके पास दूसरे काम है. बैक नोटबंदी के पहले से सिक्के नहीं जमा कर रहा है. हम बैंक के व्यवहार से परेशान हैं. हमारी परेशानी बैंकों का व्यवहार है. हमें यह समझ नहीं आता कि बैंक सिक्कों को किस अधिकार से बैंक में जमा करने से मना कर रहा है. 

 

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